सीता आरती हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

सीता आरती (Sita Aarti)

आज हम सीता माता की आराधना करने के लिए सीता माता की आरती (Sita Mata Ki Aarti) का पाठ करेंगे। माता सीता का नाम पवित्रता का पर्यायवाची कह दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। सदियों पहले अयोध्या की प्रजा के द्वारा उनके चरित्र पर जो लांछन लगाया गया था, उसको धोने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया कि वे युगों-युगों तक पवित्रता शब्द की ही पर्याय बन गयी।

सीता आरती (Sita Aarti) के माध्यम से सीता माता के जीवन, गुणों, शक्तियों, कर्मों, उद्देश्य व महत्व इत्यादि का वर्णन किया गया है। ऐसे में आज हम आपके साथ सीता आरती इन हिंदी में भी साझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ भी समझ सकें। अंत में हम आपके साथ सीता जी की आरती पढ़ने के लाभ व महत्व भी साझा करेंगे। तो आइए सबसे पहले करते हैं सीता माता आरती का पाठ।

Sita Mata Ki Aarti | सीता माता की आरती

आरती श्री जनक दुलारी की।
सीता जी रघुवर प्यारी की॥

जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी।
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की॥

आरती श्री जनक दुलारी की।
सीता जी रघुवर प्यारी की॥

सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी।
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की॥

आरती श्री जनक दुलारी की।
सीता जी रघुवर प्यारी की॥

विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई।
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की॥

आरती श्री जनक दुलारी की।
सीता जी रघुवर प्यारी की॥

Sita Aarti | सीता आरती – अर्थ सहित

आरती श्री जनक दुलारी की।
सीता जी रघुवर प्यारी की॥

हम सभी मिथिला नरेश जनक की दुलारी पुत्री सीता की आरती करते हैं। वे श्रीराम को अत्यधिक प्रिय हैं। हम सभी माता सीता की आरती करते हैं।

जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी।
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की॥

सीता माता ही इस जगत की माता हैं और उन्होंने ही इसका विस्तार किया है। वे ही परम सत्य हैं और वे साकेत में विचरण करती हैं। माता सीता सभी के ऊपर दया दिखाती हैं और दीन-दुखियों का उद्धार कर देती हैं। सीता मैया अपने भक्तों के हित में कार्य करती हैं।

सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी।
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की॥

सीता माता ने पतिव्रता नारी के रूप में अपना जीवनयापन किया है और श्रीराम के हित में ही सभी कार्य किये हैं। जब श्रीराम को मंथराकैकई के कारण चौदह वर्ष का वनवास मिला तो वे भी अपने पति के साथ वन में गयी। इसके पश्चात, अपने पति के हित के लिए माता सीता ने श्रीराम से दूर रहकर वनवासी के जीवन को स्वीकार किया। यह करके वे त्याग व धर्म की साक्षात मूर्ति बन गयी।

विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई।
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की॥

माता सीता की कीर्ति सभी लोकों में फैल गयी। उनका केवल नाम लेने से ही हमारा मन पवित्र हो जाता है और हम बुद्धिमान बनते हैं। माता सीता के सुमिरन से हमारे सभी कष्ट व दुःख समाप्त हो जाते हैं। जो भी सीता माता की शरण में जाता है, उसके सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं।

सीता माता की आरती का महत्व

ऊपर के लेख में आपने सीता आरती सहित उसका अर्थ भी पढ़ा और सीता जी की आरती के भावार्थ को जाना। ऐसे में सीता माता की आरती को लिखने का आशय यही था कि इससे सीता माता के गुणों और कर्मों के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया जा सके और हम उसके पाठ से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर सकें। सीता माता की आरती के पाठ से व्यक्ति को सीता माता के अद्भुत गुणों के बारे में ज्ञान होता है।

माता सीता त्याग, प्रेम, दया की प्रतीक हैं और उनका पूरा जीवन इसी को ही समर्पित रहा। उनके कर्मों के कारण वे युगों-युगों तक मनुष्य जाति के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गयी और आज भी हम सभी उन्हें आदर्श मानकर उदाहरण देते हैं। ऐसे में सीता माता आरती के माध्यम से सीता माता के जीवन के बारे में अद्भुत वर्णन किया गया है। यही सीता माता की आरती का महत्व होता है।

सीता आरती के लाभ

अब यदि आप सीता आरती पढ़ने के फायदे जानने को यहाँ आये हैं तो वह भी हम आपको बता देते हैं। आपने टीवी पर रामायण अवश्य ही देखी होगी और जब आप उसे देखते होंगे तो आपका हृदय अंदर से निर्मल हो जाता होगा। वहीं जब आप उस पर माता सीता की भूमिका को देखते हैं तो आपके अंदर प्रेम सहित त्याग की भावना विकसित होती है जो आपको दूसरों का भला करने को प्रेरित करती है।

यही भावनाएं सीता माता की आरती के पाठ से भी विकसित होती है। इससे आपका मन शांत होता है और उसमें सकारात्मक विचार आते हैं। मन में जो द्वेष, घृणा, तनाव, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध इत्यादि की भावनाएं पनप रही थी, वह सभी समाप्त होने लगती है तथा मन प्रेम, स्नेह, दया, करुणा, त्याग, आध्यात्म की भावनाओं से भर जाता है। इससे ना केवल आप शांत मन से अपना कार्य कर पाते हैं बल्कि उसे उत्तम तरीके से भी करते हैं। यही श्री सीता आरती को पढ़ने के मुख्य लाभ होते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने सीता माता की आरती हिंदी में अर्थ सहित (Sita Mata Ki Aarti) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने सीता आरती के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

सीता माता की आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: सीता रावण की पुत्री थी क्या?

उत्तर: कुछ किवंदतियों के अनुसार माता सीता को रावण की पुत्री माना गया है जिसे रावण ने समुंद्र में बहा दिया था और वह जनक नगरी पहुँच गयी थी।

प्रश्न: सीता माता की उम्र कितनी थी?

उत्तर: वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता का श्रीराम के साथ विवाह 18 वर्ष की आयु में हो गया था और उसके बाद वे वनवास को चली गयी थी। चौदह वर्षों के पश्चात 32 वर्ष की आयु में वे अयोध्या की महारानी बनी थी।

प्रश्न: सीता पूर्व जन्म में कौन थे?

उत्तर: माता सीता को पूर्व जन्म में वेदवती का रूप माना जाता है जो रावण के अत्याचार से दुखी होकर आत्मदाह कर लेती हैं और अगले जन्म में उसकी मृत्यु का कारण बनने का श्राप देती हैं।

प्रश्न: सीता पहले किसकी बेटी थी?

उत्तर: सीता माता धरती की पुत्री मानी जाती हैं जिन्हें बाद में मिथिला के राजा जनक ने गोद ले लिया था और उनका पालन-पोषण किया था।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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