आरती

अम्बेजी की आरती (Ambeji Ki Aarti) | जय अंबे गौरी आरती (Jai Ambe Gauri Aarti)

अंबे जी की आरती (Ambe Ji Ki Aarti) – अर्थ, भावार्थ, नियम, महत्व व लाभ सहित

विश्व में कोई अन्य ऐसा धर्म नहीं है जहाँ ईश्वरीय शक्ति के रूप में नारीत्व की पूजा की जाती हो जबकि सनातन धर्म में माँ आदिशक्ति जिन्हें हम माँ अंबे के नाम से भी जानते हैं, वह ईश्वर के लिए भी पूजनीय है। श्रीराम जब रावण के साथ अंतिम युद्ध पर जा रहे थे तब उन्होंने माँ अंबे का ही ध्यान किया था और सर्वोच्च ईश्वर भी माँ की आराधना करते हुए देखे जा सकते हैं। यही कारण है कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए अंबे जी की आरती (Ambe Ji Ki Aarti) का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

आज के इस लेख में आप अवश्य ही अम्बेजी की आरती (Ambeji Ki Aartii) पढ़ने आये होंगे। आपको अंबे माता की आरती कहीं से भी आसानी से मिल जाएगी। यह आपको हर तरह की धार्मिक पुस्तकों, विभिन्न तरह की वेबसाइट इत्यादि में मिल जाएगी किन्तु प्रश्न यह है कि धर्मयात्रा की इस वेबसाइट पर लिखे गए इस लेख में आपको अलग से क्या जानने को मिलेगा जो आपको अन्यत्र नहीं मिलेगा!!

तो इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहाँ पर आपको ना केवल जय अंबे गौरी आरती (Jai Ambe Gauri Aarti) पढ़ने को मिलेगी अपितु उसी के साथ अम्बे जी की आरती का हिन्दी अनुवाद भी मिलेगा। इसी के साथ-साथ आपको उस हिन्दी अनुवाद से अंबे मां की आरती का भावार्थ भी जानने को मिलेगा जो कि अद्भुत है। इन सभी के पश्चात, आपको अम्बे माँ आरती का महत्व, लाभ व नियम सहित कई अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां भी पढ़ने को मिलेगी जो आपके लिए जाननी अति-आवश्यक है। तो सबसे पहले करते हैं अंबे माँ की आरती का पाठ।

अंबे जी की आरती (Ambe Ji Ki Aarti)

जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥ टेक॥

मांग सिन्दूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको॥ जय॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गल माला कंठन पर साजै॥ जय॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी॥ जय॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति॥ जय॥

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती॥ जय॥

चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे॥ जय॥

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥ जय॥

चौंसठ योगिनि मंगल गावत नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू॥ जय॥

तुम ही जगत की माता तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ता॥ जय॥

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर-नारी॥ जय॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति॥ जय॥

अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख सम्पत्ति पावै॥ जय॥

जय अंबे गौरी आरती (Jai Ambe Gauri Aarti) – अर्थ व भावार्थ सहित

जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥

अर्थ: हे माँ अम्बे व गौरी!! आपकी जय हो। हे हम सभी का मंगल करने वाली माँ!! आपकी जय हो। हे श्याम व गौर दोनों वर्णों वाली माँ!! आपकी जय हो। स्वयं त्रिदेव अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी दिन-रात आपका ही ध्यान करते हैं।

भावार्थ: इस कथन में माँ अंबे के विभिन्न रूपों की चर्चा की गयी है और यह बताने का प्रयास किया गया है कि मातारानी के हर रूप में माँ अंबे का ही वास है या सभी उनका ही एक अंश है। इसी कारण इस सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा, इस सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु व इस सृष्टि के संहारक भगवान शिव माँ अंबे का ध्यान करते हैं।

मांग सिन्दूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको॥

अर्थ: आपने अपनी माँग में सिंदूर भर रखा है और कस्तूरी का तिलक लगा रखा है। आपकी दोनों ही आँखें बहुत तेजस्वी है तथा आपका शरीर चंदन सा महक रहा है।

भावार्थ: इस कथन में माँ अंबे के रूप का वर्णन किया जा रहा है। उन्हें एक सुहागिन स्त्री के रूप में दिखाया है जो अपनी माँग में सिंदूर भरती हैं। उनकी आँखों को बहुत ही चमकदार बताया गया है जिससे वे तीनों लोकों में चल रही गतिविधियों पर अपनी नज़र रखती हैं। साथ ही वे ही तीनो लोकों में सुगंध को फैलाने का कार्य कर रही हैं। एक तरह से माँ सुगंध में हैं, प्रकाश में हैं तथा उनका वास इस लोक में हर जगह है।

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गल माला कंठन पर साजै॥

अर्थ: आपका शरीर सोने की भांति चमक रहा है और आप लाल रंग के वस्त्र पहनती हैं। आपने अपने गले में लाल रंग के फूलों की माला पहनी हुई है जो बहुत ही सुन्दर लग रही है।

भावार्थ: इसमें भी माँ के रूप का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि किस तरह से उनके शरीर से निकलने वाले प्रकाश से हर जगह रोशनी हो रही है। उन्हें सुहाग के लाल वस्त्र पहने हुए भी बताया गया है और हमें इसी रूप में ही माँ की पूजा करनी चाहिए। माँ को लाल फूल बहुत ही प्रिय होते हैं और हमें उनकी पूजा में लाल रंग के फूल अवश्य चढ़ाने चाहिए।

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी॥

अर्थ: आप अपने वाहन सिंह पर विराजती हैं और आपने अपने हाथों में तलवार व राक्षसों की खोपड़ियाँ ली हुई है। देवता, मनुष्य, ऋषि-मुनि सभी ही आपके सेवक हैं और आप उनका दुःख दूर करती हैं।

भावार्थ: माँ का वाहन सिंह (शेर) है जो बहुत ही शक्तिशाली होता है और अकेले ही दुष्टों का संहार कर सकता है। माँ ने अपने हाथों में दुष्टों का नाश करने के लिए तलवार ली हुई है और इसे वह राक्षसों के कटे हुए सिर के साथ दिखा भी रही हैं। ऐसे में जो लोग भी बुरे कर्म करते हैं या दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं, उन्हें माँ के द्वारा दंड दिया जाता है। उनकी सच्चे मन से भक्ति करने पर हमें आगे का मार्ग पता चलता है तथा मन को शांति मिलती है।

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति॥

अर्थ: आपने अपने कानो में कुंडल और नाक में मोती पहना हुआ है जो बहुत ही अच्छे लग रहे हैं। इन्हें देख कर लगता है कि वे करोड़ो सूर्य व चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाश फैला रहे हैं।

भावार्थ: माता के रूप का वर्णन करते हुए इसमें यह बताया गया है कि माँ ने किस-किस तरह का श्रृंगार किया हुआ है। माँ के शरीर से इतना तेज निकल रहा है कि उसके सामने सूर्य व चंद्रमा की रोशनी भी कुछ नहीं है। इस तरह से माँ अपने तेज से केवल इस लोक में ही नहीं अपितु संपूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रकाश फैलाने का कार्य कर रही हैं। इस कथन का तात्पर्य यह है कि माँ केवल सूर्य को ही नहीं अपितु ब्रह्मांड में स्थित अन्य तारो को भी सँभालने का कार्य करती हैं।

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती॥

अर्थ: आपने शुम्भ व निशुम्भ नामक राक्षसों का वध कर दिया था। इसी के साथ आपने दैत्य राजा महिषासुर का भी संहार किया था। आपकी आँखों से राक्षसों का संहार करने के लिए धुआं निकलता रहता है और आप दिन-रात उसी ताक में ही रहती हैं।

भावार्थ: दानव चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों ना हो, वह माँ के द्वारा मारा ही जाता है। उसका नाश करने के लिए माँ कभी भी नहीं रूकती हैं और ना थकती हैं, फिर चाहे वह महिषासुर के साथ नौ दिनों तक चलने वाला युद्ध ही क्यों ना हो। हमें भी माँ अंबे से प्रेरणा लेकर किसी भी विपत्ति या संकट के सामने हार ना मानते हुए, उसका डटकर सामना करना चाहिए, तभी हमारी विजय होती है।

चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे॥

अर्थ: आपने चंड-मुंड नामक राक्षसों का भी वध किया था तथा अत्यधिक शक्तिशाली रक्तबीज को भी मार गिराया था। आपने क्षीर सागर पर आक्रमण करने आये मधु-कैटभ राक्षसों का भी वध कर दिया था और देवताओं का भय दूर किया था।

भावार्थ: इसमें बताया गया है कि माँ ने रक्तबीज जैसे राक्षस का वध करने के लिए माँ काली का रूप धर कर उसका रक्त तक पी लिया था। यह एक ऐसा कार्य था जो सुनने में सभी को भयभीत कर देगा लेकिन माँ ने दुष्टों का नाश करने के लिए इसकी भी परवाह नहीं की। ऐसे में हमें भी बुराई के घिनौने रूप को देख कर डरना नहीं चाहिए बल्कि उसका दोगुनी शक्ति के साथ सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥

अर्थ: आप ही माँ सरस्वती, माँ पार्वती व माँ लक्ष्मी हो। सभी वेद व शास्त्र भी आपका बखान करते हैं और आप शिव भगवान को बहुत प्रिय हो।

भावार्थ: माँ अंबे के द्वारा ही अन्य सभी माताओं की उत्पत्ति हुई है या फिर इसे दूसरे शब्दों में कहें तो सभी माताएं माँ अंबे का ही एक रूप हैं। इसी कारण उन्हें सरस्वती की तरह ज्ञान व बुद्धि देने वाली, माँ लक्ष्मी की तरह धन-संपदा देने वाली और माँ पार्वती की तरह अभयदान देने वाली बताया गया है। माँ अंबे की महिमा का वर्णन सभी तरह के वेदों व शास्त्रों में भी किया गया है और कोई भी व्यक्ति इसे झुठला नहीं सकता है।

चौंसठ योगिनि मंगल गावत नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू॥

अर्थ: चौसंठ तरह की प्रजातियाँ भी आपका मंगलगान करती हैं। आपकी आराधना में तो स्वयं भैरव बाबा ताल, मृदंग, डमरू की ताल पर नाचते हैं।

भावार्थ: माँ की महिमा किसी से भी छुपी हुई नहीं है और सभी उसका गुणगान करते हैं। भैरव बाबा जो स्वयं काल के देवता माने जाते हैं और भगवान शिव का अनुसरण करते हैं, वे भी माता अंबे की आराधना करते हैं। एक तरह से यदि हम माँ अंबे की भक्ति करते हैं तो हम काल के प्रकोप से भी बच जाते हैं।

तुम ही जगत की माता तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ता॥

अर्थ: आप ही इस जगत की माँ हो, आप ही इस जगत का पालन-पोषण करती हो, आप ही भक्तों के दुखों को दूर करती हो और आप ही हम सभी को सुख-संपत्ति देती हो।

भावार्थ: हमारे लिए हमारी जननी व जन्मभूमि पूजनीय है लेकिन उसी के साथ ही हमें इस सृष्टि की जननी माँ अंबे को भी नहीं भूलना चाहिए। उन्हीं के द्वारा ही सबका निर्माण किया गया है और वही हम सभी का भरण-पोषण भी करती हैं। हमें यदि कोई दुःख है या संकट आ पड़ा है तो हमें सच्चे मन से माँ अंबे का ध्यान करना चाहिए। इससे हमें अवश्य ही कोई ना कोई रास्ता मिल जाएगा। इस तरह से माँ की भक्ति करने से हमें सभी तरह का सुख व संपत्ति प्राप्त होती है।

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर-नारी॥

अर्थ: आपकी चार भुजाएं हमें अभय व वरदान देने की मुद्रा में बहुत ही सुंदर लग रही हैं। जो भी मनुष्य सच्चे मन से आपकी सेवा करता है, उसे इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है।

भावार्थ: माँ अंबे की एक नहीं बल्कि चार भुजाएं ऐसी हैं जो भक्तों को तरह-तरह का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस तरह से माँ अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए हमेशा ही तैयार रहती हैं। यदि हम उनकी सच्चे दिल से पूजा करते हैं और अच्छे कर्म करते हैं तो अवश्य ही माँ अंबे हमसे प्रसन्न होती हैं और हमें उसका फल देती हैं।

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति॥

अर्थ: सोने की थाली के साथ आपकी आरती उतारी जाती है। उस थाली में हम अगरबत्ती, कपूर व दीपक अवश्य रखते हैं। श्रीमालकेतु में आपका निवास स्थान है और आपकी आरती की ज्योति करोड़ो रत्नों से भी अधिक प्रकाशमान है।

भावार्थ: इसमें माँ अंबे की पूजा कैसे की जानी चाहिए, उसके बारे में बताया गया है। माँ की पूजा में अगरबत्ती, कपूर व दिया-बाती अवश्य शामिल होने चाहिए। पूरे विधि-विधान के साथ माँ की पूजा करने से हमें अवश्य ही उसका फल मिलता है।

अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख सम्पत्ति पावै॥

अर्थ: जो कोई भी माँ अंबे की आरती को सच्चे मन से गाता है। शिवानन्द स्वामी जी के अनुसार, उसे हर तरह का सुख व संपत्ति प्राप्ति होती है।

भावार्थ: यदि आपका मन सच्चा है, आप बुरे कर्म नहीं करते हैं, हमेशा सत्कर्म करते हैं, माँ अंबे के बनाये नियमों का पालन करते हैं और उनकी भक्ति करते हैं तो अवश्य ही माँ अंबे आपके हर संकट को दूर कर देंगी और आपको हर तरह का यश, वैभव, सुख व संपत्ति देंगी।

अम्बेजी की आरती (Ambeji Ki Aarti) –  नियम

आपको इंटरनेट पर अलग-अलग लेखों के माध्यम से माँ अंबे जी की आरती को पढ़ने के तरह-तरह के नियमों के बारे में बताया गया होगा जो कि अधिकतर व्यर्थ में ही लिखे गए होते हैं। पहली बात तो माँ का कोई भी भक्त अंबे आरती का पाठ कर सकता है और इसके लिए माँ की ओर से किसी तरह की शर्त नहीं रखी गयी है। हालाँकि आपको नैतिक तौर पर कुछ बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

उदाहरण के तौर पर आप बिना नहाये या नहाने के पश्चात यदि शौच गए हैं तो अंबे माता की आरती का पाठ करने से बचें। आप जहाँ भी अम्बे जी की आरती का पाठ कर रहे हो, वह जगह स्वच्छ हो अर्थात किसी अनुचित जगह पर अंबे मां की आरती का पाठ करने से बचें। इसी के साथ ही जब भी आप अंबे आरती का पाठ करना शुरू करें तो अपने मन को भी शांत रखें और उसमे किसी भी तरह के अनुचित या बुरे विचार ना आने दें।

कुल मिलाकर हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि अंबे माँ की आरती को पढ़ने से पहले जगह, तन व मन का स्वच्छ व निर्मल होना आवश्यक होता है। यदि आप बिना इसके भी अंबे मां की आरती का पाठ करते हैं तो आपको कोई हानि तो नहीं होगी किन्तु कुछ लाभ भी नहीं मिलेगा। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि आप स्नान करके स्वच्छ जगह पर और निर्मल मन के साथ ही अम्बेजी की आरती का पाठ करें।

अंबे मां की आरती (Ambe Maa Ki Aarti) – महत्व

सनातन धर्म में कई तरह की देवियों व उनके तरह-तरह के रूपों के बारे में बात की गयी है तथा उनका महत्व दर्शाया गया है किन्तु उन सभी का आधार माँ आदिशक्ति जिन्हें हम माँ अंबे या दुर्गे के नाम से भी जानते हैं, वही हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती तथा अन्य देवियाँ माँ अंबे का ही एक रूप हैं या उनसे प्रकट हुई हैं। माँ अंबे ही इन सभी की आधार देवी मानी जाती हैं।

अंबे माँ की आरती के माध्यम से हम सभी को यह बताने की चेष्ठा की गयी है कि उनके जैसा कोई दूसरा नहीं है और जो व्यक्ति अंबा माँ की आरती पढ़ता है, उसका उद्धार होना तय है। मां अंबे की आरती के माध्यम से उनके गुणों, शक्तियों, पराक्रम, कर्मों, महत्व इत्यादि के बारे में विस्तार से बताया गया है ताकि भक्तगण माँ के महत्व के बारे में अच्छे से जान सकें। यही अम्बे जी की आरती का महत्व होता है।

अंबे माता की आरती (Ambe Mata Ki Aarti) – लाभ

अब आपको जय अंबे गौरी आरती का पाठ करने से क्या कुछ लाभ मिलते हैं, इसके बारे में भी जानना होगा तो हम आपको निराश ना करते हुए इसके बारे में भी जानकारी देंगे। दरअसल अंबे आरती का पाठ करने से व्यक्ति को एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं जो उसके जीवन की दिशा तक को बदल सकते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो मां अंबे आरती का पाठ करने के फायदे बहुत सारे हैं।

जो व्यक्ति नियमित रूप से ऊपर बताये गए नियमों का पालन करते हुए अंबे गौरी आरती पढ़ता है, उसे अवश्य ही इसका प्रभाव कुछ ही सप्ताह में देखने को मिल जाता है। अब इनमे से कौन-कौन से लाभ आपको मिल सकते हैं, वह हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं। आइये जाने अंबे जी की आरती पढ़ने से मिलने वाले लाभ।

  • यदि आपका कोई काम नहीं बन पा रहा है या रह-रह कर उसमें किसी ना किसी तरह की रूकावट आ रही है तो माँ अंबे के प्रभाव से वह जल्दी ही बन जाता है।
  • यदि आपका मन खिन्न है या आप किसी बात को लेकर तनाव में हैं तो माँ अंबे आरती के प्रभाव से मन शांत होता है तथा तनाव दूर हो जाता है।
  • यदि आपको आगे का कोई मार्ग समझ नहीं आ रहा है या जीवन में क्या किया जाए, इसको लेकर चिंतित हैं तो आगे का मार्ग भी सुगम होता है तथा आपको एक नयी राह भी मिलती है।
  • माता अंबे के प्रभाव से और उनकी आरती के नियमित पाठ से आपका यश परिवार, मित्रों व समाज में फैलता है तथा मान-सम्मान में वृद्धि देखने को मिलती है।
  • यदि आपके ऊपर कोई बुरा साया है या बुरी शक्तियों का प्रभाव है तो वह भी अंबे माँ के प्रभाव से समाप्त हो जाता है। यह लाभ तो आपको बस अम्बे आरती के पाठ के कुछ दिनों में ही देखने को मिल जाएगा।

हालाँकि अंबे माता आरती को पढ़ने के इनके अलावा भी कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं जो हर व्यक्ति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग प्रभाव डालते हैं। फिर भी हमने उनमें से कुछ चुनिंदा लाभों को आपके सामने रखा है ताकि आपको यह पता चल सके कि यदि आप नियमित रूप से अंबे की आरती पढ़ेंगे तो आपके ऊपर उसका क्या प्रभाव होगा।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

Recent Posts

संतोषी मां चालीसा हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

आज के इस लेख में आपको संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) पढ़ने को मिलेगी। सनातन धर्म…

14 hours ago

वैष्णो देवी आरती हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

आज हम आपके साथ वैष्णो देवी की आरती (Vaishno Devi Ki Aarti) का पाठ करेंगे।…

14 hours ago

तुलसी जी की आरती हिंदी में अर्थ सहित – महत्व व लाभ भी

आज के इस लेख में आपको तुलसी आरती (Tulsi Aarti) हिंदी में अर्थ सहित पढ़ने…

16 hours ago

तुलसी चालीसा अर्थ सहित – महत्व व लाभ भी

आज हम तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa Lyrics) का पाठ करेंगे। हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे…

17 hours ago

महाकाली जी की आरती – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

आज हम आपके साथ महाकाली माता की आरती (Mahakali Mata Ki Aarti) का पाठ करेंगे। जब…

3 days ago

महाकाली चालीसा इन हिंदी PDF फाइल व इमेज सहित डाउनलोड करें

आज हम आपके साथ श्री महाकाली चालीसा (Mahakali Chalisa Lyrics) का पाठ करेंगे। जब भी…

3 days ago

This website uses cookies.