बाबा गंगाराम की चालीसा – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

Baba Gangaram Chalisa

हिन्दू धर्म में चार तरह के समुदाय हैं जिनमे से एक वैश्य समुदाय है जिन्हें आज की आम भाषा में बनिया भी कह दिया जाता है। इनका कार्य व्यापार करना व उसके माध्यम से देश व समाज का वित्त कार्य चलाना होता है। बाबा गंगाराम जी इसी समुदाय में ही सर्वाधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि वे इसी समुदाय से आते थे। वैश्य समुदाय के लोग जो बालक गंगाराम में आस्था रखते हैं वे अवश्य ही बाबा गंगाराम चालीसा (Baba Gangaram Chalisa) का पाठ करते हैं।

बाबा गंगाराम जी को लेकर एक कथा है कि इन्होने बालक रूप में ही हिसार-भिवानी मार्ग पर स्थित लोहारी जाटू गाँव में समाधि ले ली थी। साथ ही यह भी कहा था कि जो भी व्यक्ति यहाँ आकर उनकी पूजा करेगा या मत्था टेकेगा, तो वे अवश्य ही उसकी हर कामना को पूरा करेंगे। उसके बाद से ही दूर-दूर से उनके भक्त अपना सिर झुकाने वहां आते हैं।

आज के इस लेख में आपको बाबा गंगाराम की चालीसा अर्थ सहित पढ़ने को मिलेगी ताकि आप उसका महत्व अच्छे से समझ सकें। इसके साथ ही आपको बाबा गंगाराम की चालीसा (Baba Gangaram Ki Chalisa) पढ़ने के लाभ भी जानने को मिलेंगे। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं बालक गंगाराम जी की चालीसा।

Baba Gangaram Chalisa | बाबा गंगाराम चालीसा

॥ दोहा ॥

अलख निरंजन आप हैं, निरगुण सगुण हमेश।
नाना विधि अवतार धर, हरते जगत कलेश

बाबा गंगारामजी, हुए विष्णु अवतार।
चमत्कार लख आपका, गूँज उठी जयकार

॥ चौपाई ॥

गंगाराम देव हितकारी, वैश्य वंश प्रकटे अवतारी।

पूर्वजन्म फल अमित रहेऊ, धन्य-धन्य पितु मातु भयेउ।

उत्तम कुल उत्तम सतसंगा, पावन नाम राम अरू गंगा।

बाबा नाम परम हितकारी, सत सत वर्ष सुमंगलकारी।

बीतहिं जन्म देह सुध नाहीं, तपत तपत पुनि भयेऊ गुसाई।

जो जन बाबा मैं चित लावा, तेहिं परताप अमर पद पावा।

नगर झुंझनूं धाम तिहारो, शरणागत के संकट टारो।

धरम हेतु सब सुख बिसराये, दीन हीन लखि हृदय लागये।

एहि विधि चालीस वर्ष बिताये, अन्त देह तजि देव कहाये।

देवलोक भई कंचन काया, तब जनहित संदेश पठाया।

निज कुल जन को स्वप्न दिखावा, भावी करम जतन बतलावा।

आपन सुत को दर्शन दीन्हों, धरम हेतु सब कारज कीन्हों।

नभ वाणी जब हुई निशा में, प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में।

ब्रह्मा विष्णु शिव सहित गणेशा, जिमि जनहित प्रकटेउ सब ईशा।

चमत्कार एहि भांति दिखाया, अन्तरध्यान भई सब माया।

सत्य वचन सुनि करहिं विचारा, मन महँ गंगाराम पुकारा।

जो जन करई मनौती मन में, बाबा पीर हरहिं पल छन में।

ज्यों निज रूप दिखावहिं सांचा, त्यों त्यों भक्तवृन्द तेहिं जांचा।

उच्च मनोरथ शुचि आचारी, राम नाम के अटल पुजारी।

जो नित गंगाराम पुकारे, बाबा दुख से ताहिं उबारे।

बाबा में जिन्ह चित्त लगावा, ते नर लोक सकल सुख पावा।

परहित बसहिं जाहिं मन मांही, बाबा बसहिं ताहिं तन मांही।

धरहिं ध्यान रावरो मन में, सुखसंतोष लहै न मन में।

धर्म वृक्ष जेही तन मन सींचा, पार ब्रह्म तेहि निज में खींचा।

गंगाराम नाम जो गावे, लहि बैकुंठ परम पद पावे।

बाबा पीर हरहिं सब भांति, जो सुमरे निश्छल दिन राती।

दीन बन्धु दीनन हितकारी, हरौ पाप हम शरण तिहारी।

पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा, सदा करो संतन मँह बासा।

तारण तरण गंग का पानी, गंगाराम उभय सुनिशानी।

कृपासिंधु तुम हो सुखसागर, सफल मनोरथ करहु कृपाकर।

झुंझनूं नगर बड़ा बड़ भागी, जहँ जन्में बाबा अनुरागी।

पूरन ब्रह्म सकल घटवासी, गंगाराम अमर अविनाशी।

ब्रह्म रूप देव अति भोला, कानन कुण्डल मुकुट अमोला।

नित्यानन्द तेज सुख रासी, हरहु निशातन करहु प्रकासी।

गंगा दशहरा लागहिं मेला, नगर झुंझनूं मँह शुभ बेला।

जो नर कीर्तन करहिं तुम्हारा, छवि निरखि मन हरष अपारा।

प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा, चौरासी का हो निस्तारा।

पंचदेव मन्दिर विख्याता, दरशन हित भगतन का तांता।

जय श्री गंगाराम नाम की, भवतारण तरि परम धाम की।

‘महावीर‘ धर ध्यान पुनीता, विरचेउ गंगाराम सुगीता।

॥ दोहा ॥

सुने सुनावे प्रेम से, कीर्तन भजन सुनाम।
मन इच्छा सब कामना, पुरई गंगाराम

Baba Gangaram Ki Chalisa | बाबा गंगाराम की चालीसा – अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

अलख निरंजन आप हैं, निरगुण सगुण हमेश।
नाना विधि अवतार धर, हरते जगत कलेश॥

बाबा गंगारामजी, हुए विष्णु अवतार।
चमत्कार लख आपका, गूँज उठी जयकार॥

हे बाबा गंगाराम! आप अलख-निरंजन व निर्गुण-सगुण दोनों हैं। आप तरह-तरह के अवतार लेकर अपने भक्तों के दुखों को दूर कर देते हैं। आप भगवान विष्णु के ही एक अवतार हैं। आपके चमत्कारों को देख कर हर जगह आपकी ही जय-जयकार हो रही है।

॥ चौपाई ॥

गंगाराम देव हितकारी, वैश्य वंश प्रकटे अवतारी।

पूर्वजन्म फल अमित रहेऊ, धन्य-धन्य पितु मातु भयेउ।

उत्तम कुल उत्तम सतसंगा, पावन नाम राम अरू गंगा।

बाबा नाम परम हितकारी, सत सत वर्ष सुमंगलकारी।

हे बालक गंगाराम! आप ही हमारे देवता हो और हमारे हितों की रक्षा करने वाले हो। आप वैश्य वंश में प्रकटे विष्णु अवतारी हो। आप ही हमारे माता-पिता हो और हमें अपने कर्मों का फल देते हो। आप उत्तम कुल में जन्मे हो और आपका नाम श्रीराम व माँ गंगा के जैसा पवित्र है। आपका नाम लेने से सब मंगल होता है।

बीतहिं जन्म देह सुध नाहीं, तपत तपत पुनि भयेऊ गुसाई।

जो जन बाबा मैं चित लावा, तेहिं परताप अमर पद पावा।

नगर झुंझनूं धाम तिहारो, शरणागत के संकट टारो।

धरम हेतु सब सुख बिसराये, दीन हीन लखि हृदय लागये।

आप हमारे जीवन को उत्कृष्ट बना देते हैं और सारा ताप हर लेते हैं। जो भी व्यक्ति बाबा गंगाराम में मन लगाता है, उसका यश हर जगह फैलता जाता है। झुंझुनू नगर में आपका धाम है और आप अपनी शरण में आये हुए के संकट समाप्त कर देते हैं। आप अपने भक्तों को सभी प्रकार के सुख देते हैं और दुखी लोगों के दुखों को दूर कर देते हैं।

एहि विधि चालीस वर्ष बिताये, अन्त देह तजि देव कहाये।

देवलोक भई कंचन काया, तब जनहित संदेश पठाया।

निज कुल जन को स्वप्न दिखावा, भावी करम जतन बतलावा।

आपन सुत को दर्शन दीन्हों, धरम हेतु सब कारज कीन्हों।

इसी तरह आपने अपने चालीस वर्ष बिता दिए और अंत समय में देवता बन गए। आपको देवलोक में स्थान मिला और तब आपने लोगों की भलाई के लिए कई तरह के उपदेश दिए। आप सभी के सपनों को पूरा करने वाले, उनके कार्य बनाने वाले और उन्हें दर्शन देकर उनका भला करने वाले हैं।

नभ वाणी जब हुई निशा में, प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में।

ब्रह्मा विष्णु शिव सहित गणेशा, जिमि जनहित प्रकटेउ सब ईशा।

चमत्कार एहि भांति दिखाया, अन्तरध्यान भई सब माया।

सत्य वचन सुनि करहिं विचारा, मन महँ गंगाराम पुकारा।

आपके लिए जब आकाशवाणी हुई तब आपने अपनी छवि पूर्व दिशा में दिखायी। उस दिशा से भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव व गणेश भी प्रकट हुए। आपने अपना चमत्कार दिखाकर माया का प्रभाव दिखाया। आपके सत्य वचन सुन कर सभी ने आपका नाम गंगाराम पुकारा।

जो जन करई मनौती मन में, बाबा पीर हरहिं पल छन में।

ज्यों निज रूप दिखावहिं सांचा, त्यों त्यों भक्तवृन्द तेहिं जांचा।

उच्च मनोरथ शुचि आचारी, राम नाम के अटल पुजारी।

जो नित गंगाराम पुकारे, बाबा दुख से ताहिं उबारे।

जिस किसी ने भी आपसे जो भी प्रार्थना की, आपने उसको तुरंत सुन लिया। जिस किसी को भी आपने दर्शन दिए, वह आपका भक्त बन गया। आपने राम भक्तों का भी उद्धार किया है। जो भी प्रतिदिन आपका नाम लेता है, उसके सभी तरह के दुःख समाप्त हो जाते हैं।

बाबा में जिन्ह चित्त लगावा, ते नर लोक सकल सुख पावा।

परहित बसहिं जाहिं मन मांही, बाबा बसहिं ताहिं तन मांही।

धरहिं ध्यान रावरो मन में, सुखसंतोष लहै न मन में।

धर्म वृक्ष जेही तन मन सींचा, पार ब्रह्म तेहि निज में खींचा।

जिन्होंने भी आपका ध्यान किया है, उन्हें इस पृथ्वी लोक पर परम सुख की प्राप्ति हुई है। आप हम सभी के मन व तन में निवास करते हैं। आपका अपने मन में ध्यान कर हमें संतोष की प्राप्ति होती है। जिस किसी ने भी धर्म का कार्य किया है, उसे परम ब्रह्म की प्राप्ति हुई है।

गंगाराम नाम जो गावे, लहि बैकुंठ परम पद पावे।

बाबा पीर हरहिं सब भांति, जो सुमरे निश्छल दिन राती।

दीन बन्धु दीनन हितकारी, हरौ पाप हम शरण तिहारी।

पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा, सदा करो संतन मँह बासा।

जो भी बाबा गंगाराम का नाम लेता है, उसे बैकुंठ लोक में स्थान मिलता है। जो दिन-रात गंगाराम जी का ध्यान करता है, उसके सभी तरह के दुःख दूर हो जाते हैं। आप दीन बंधुओं के हित की रक्षा करने वाले हैं और अब हम आपकी शरण में हैं तो आप हमारे पाप भी समाप्त कर दीजिये। आप ही पंचदेव हैं और संतों के मन में बसते हैं।

तारण तरण गंग का पानी, गंगाराम उभय सुनिशानी।

कृपासिंधु तुम हो सुखसागर, सफल मनोरथ करहु कृपाकर।

झुंझनूं नगर बड़ा बड़ भागी, जहँ जन्में बाबा अनुरागी।

पूरन ब्रह्म सकल घटवासी, गंगाराम अमर अविनाशी।

आप गंगा के जल से स्नान करते हैं और इसी कारण आपका नाम गंगाराम पड़ा था। आप कृपा बरसाने वाले और सुखों को प्रदान करने वाले हैं। आप हम सभी की इच्छा को पूरा करते हैं। झुंझुनू नगर में आपने जन्म लेकर उस नगरी के भाग खोल दिए। आप ब्रह्म हो, अमर हो और आपका विनाश नहीं किया जा सकता है।

ब्रह्म रूप देव अति भोला, कानन कुण्डल मुकुट अमोला।

नित्यानन्द तेज सुख रासी, हरहु निशातन करहु प्रकासी।

गंगा दशहरा लागहिं मेला, नगर झुंझनूं मँह शुभ बेला।

जो नर कीर्तन करहिं तुम्हारा, छवि निरखि मन हरष अपारा।

आप साक्षात ब्रह्म रूप हैं जिसके कानो में कुंडल और सिर पर मुकुट है। आप हमें आनंद व सुख देने वाले हैं तथा अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाते हैं। गंगा दशहरा पर आपकी नगरी झुंझुनू में मेला लगता है। जो भी व्यक्ति आपका कीर्तन करता है, उसके मन को अपार आनंद की अनुभूति होती है।

प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा, चौरासी का हो निस्तारा।

पंचदेव मन्दिर विख्याता, दरशन हित भगतन का तांता।

जय श्री गंगाराम नाम की, भवतारण तरि परम धाम की।

‘महावीर‘ धर ध्यान पुनीता, विरचेउ गंगाराम सुगीता।

जो सुबह उठ कर आपका नाम लेता है, उसका भला हो जाता है। आपका पंचदेव मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है जहाँ आपके दर्शन करने दूर-दूर से भक्त आते हैं। हे श्री गंगाराम! आपकी जय हो। आप भवसागर को पार करवा देते हो। महावीर आपका ध्यान धर कर गंगाराम चालीसा की रचना करते हैं।

॥ दोहा ॥

सुने सुनावे प्रेम से, कीर्तन भजन सुनाम।
मन इच्छा सब कामना, पुरई गंगाराम॥

जो भी भक्तगण इस गंगाराम चालीसा को प्रेम से सुनता है व दूसरों को सुनाता है और साथ ही आपके नाम का भजन व कीर्तन करता है, उसके मन की हर इच्छा बाबा गंगाराम पूरी कर देते हैं।

बालक गंगाराम की चालीसा का महत्व

जब भी किसी महापुरुष, कुल देवता, ईश्वर, संत इत्यादि के ऊपर चालीसा लिखी जाती है तो उस चालीसा का मुख्य उद्देश्य उसके माध्यम से उस व्यक्ति या महापुरुष के बारे में संक्षेप में संपूर्ण जानकारी दे देना होता है। यही बात बाबा गंगाराम की चालीसा से प्रतीत होती है क्योंकि आपको गंगाराम चालीसा पढ़ कर यह अवश्य ही ज्ञात हो गया होगा कि आखिरकार क्यों गंगाराम जी की महत्ता इतनी अधिक है।

दरअसल बालक गंगाराम चालीसा के माध्यम से बाबा गंगाराम की महत्ता, गुणों, प्रसिद्धि, चमत्कारिक शक्तियों इत्यादि के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी है। यही कारण है कि गंगाराम चालीसा की महत्ता इतनी बढ़ जाती है। उनकी शक्तियों व गुणों को देखते हुए ही दूर-दूर से भक्त उनकी समाधि पर पहुँचते हैं और वहां जाकर मत्था टेकते हैं।

बाबा गंगाराम चालीसा के लाभ

यदि आप नियमित रूप से बाबा गंगाराम चालीसा का पाठ करते हैं और उनमें अपनी आस्था रखते हैं तो अवश्य ही उनकी कृपा दृष्टि आप पर रहती है। जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा गंगाराम की सेवा करता है और उनकी प्रसिद्धि का बखान करता है, उसके और उसके परिवार के सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही बालक गंगाराम को गाय माता का बहुत बड़ा भक्त कहा जाता है।

ऐसे में यदि आप बाबा गंगाराम का ध्यान कर रहे हैं तो गाय माता भी आपसे बहुत प्रसन्न होती है और आपके घर को धन-धान्य से भर देती है। सभी तरह के देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी आपको मिलता है जो बाबा गंगाराम चालीसा (Baba Gangaram Chalisa) को पढ़ने का मुख्य लाभ है। साथ ही आपको वर्ष में एक ना एक बार बाबा गंगाराम जी की समाधि पर जाकर मत्था टेकना चाहिए और श्रद्धा सुमन अर्पित करने चाहिए।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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