चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupt Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

Chitragupta Chalisa

चित्रगुप्त चालीसा का पाठ (Chitragupta Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं जो उनकी काया से बने थे। इसलिए कायस्थ समुदाय को चित्रगुप्त भगवान के वंशज ही माना जाता है। चित्रगुप्त देवता की उत्पत्ति मृत्यु के देवता यमराज की सहायता करने के उद्देश्य से की गयी थी जो मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोगा रखते हैं। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ चित्रगुप्त चालीसा का पाठ (Chitragupta Chalisa) करने जा रहे हैं।

यहाँ आपको ना केवल श्री चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupt Chalisa) पढ़ने को मिलेगी बल्कि आप उसका भावार्थ भी जान पाएंगे। कहने का अर्थ यह हुआ कि हम आपके साथ चित्रगुप्त चालीसा इन हिंदी (Chitragupta Chalisa In Hindi) में भी सांझा करेंगे। अंत में आपको चित्रगुप्त चालीसा को पढ़ने से मिलने वाले लाभ व उसका महत्व भी जानने को मिलेगा। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं चित्रगुप्त भगवान की चालीसा।

चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupta Chalisa)

॥ दोहा ॥

सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥

करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥

॥ चौपाई ॥

जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर। जय यमेश दिगंत उजागर॥

अज सहाय अवतरेउ गुसांई। कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥

श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा। भांति-भांति के जीवन राचा॥

अज की रचना मानव संदर। मानव मति अज होइ निरूत्तर॥

भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई। धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥

राचेउ धरम धरम जग मांही। धर्म अवतार लेत तुम पांही॥

अहम विवेकइ तुमहि विधाता। निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥

श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी। त्रय देवन कर शक्ति समानी॥

पाप मृत्यु जग में तुम लाए। भयका भूत सकल जग छाए॥

महाकाल के तुम हो साक्षी। ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥

धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो। कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥

राम धर्म हित जग पगु धारे। मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥

विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें। पालन धर्म करम शुचि साजे॥

महादेव के तुम त्रय लोचन। प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥

सावित्री पर कृपा निराली। विद्यानिधि माँ सब जग आली॥

रमा भाल पर कर अति दाया। श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥

ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो। जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥

गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा। जाके कर्म गहइ तव हाथा॥

रावण कंस सकल मतवारे। तव प्रताप सब सरग सिधारे॥

प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा। सोउ करत तुम्हारी सेवा॥

रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी। विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥

व्यास चहइ रच वेद पुराना। गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥

पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा। असवर देय जगत कृत कीन्हा॥

लेखनि मसि सह कागद कोरा। तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥

विद्या विनय पराक्रम भारी। तुम आधार जगत आभारी॥

द्वादस पूत जगत अस लाए। राशी चक्र आधार सुहाए॥

जस पूता तस राशि रचाना। ज्योतिष केतुम जनक महाना॥

तिथी लगन होरा दिग्दर्शन। चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥

राशी नखत जो जातक धारे। धरम करम फल तुमहि अधारे॥

राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई। प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥

श्री गणेश तव बंदन कीना। कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥

देववृत जप तप वृत कीन्हा। इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥

धर्महीन सौदास कुराजा। तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥

हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा। कायथ परिजन परम पितामा॥

शुर शुयशमा बन जामाता। क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥

जय जय चित्रगुप्त गुसांई। गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥

जो शत पाठ करइ चालीसा। जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥

विनय करैं कुलदीप शुवेशा। राख पिता सम नेह हमेशा॥

॥ दोहा ॥

ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥

पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥

चित्रगुप्त चालीसा इन हिंदी (Chitragupta Chalisa In Hindi)

॥ दोहा ॥

सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥

करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥

मैं चित्रगुप्त भगवान का ध्यान कर उनके सामने अपना शीश झुकाकर उन्हें प्रणाम करता हूँ। मैं भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर के साथ चित्रगुप्त जी भगवान को भी मनाता हूँ। हे चित्रगुप्त देवता!! आप मुझ पर और मेरे परिवार पर कृपा कीजिये और हमें सहारा दीजिये। मैं अपने गुरुओं की चरण वंदना कर आपके यश का वर्णन करता हूँ।

॥ चौपाई ॥

जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर। जय यमेश दिगंत उजागर॥

अज सहाय अवतरेउ गुसांई। कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥

श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा। भांति-भांति के जीवन राचा॥

अज की रचना मानव संदर। मानव मति अज होइ निरूत्तर॥

चित्रगुप्त जी ज्ञान के भंडार हैं, उनकी जय हो। यमराज देवता के सहयोगी चित्रगुप्त जी की जय हो। ब्रह्मा जी ने यमराज जी की सहायता करने के उद्देश्य से ही आपको प्रकट किया था। सृष्टि में भगवान ब्रह्मा की कृपा से भांत-भांत के जीवन की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा के द्वारा ही सबसे सुंदर रचना मानव जीवन की की गयी। इसी के साथ ही मानवों में चित्त भी प्रदान किया गया।

भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई। धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥

राचेउ धरम धरम जग मांही। धर्म अवतार लेत तुम पांही॥

अहम विवेकइ तुमहि विधाता। निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥

श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी। त्रय देवन कर शक्ति समानी॥

ब्रह्मा जी के द्वारा ही चित्रगुप्त भगवान की उत्पत्ति हुई जिन्हें धर्म व अधर्म का ज्ञान दिया गया। आपने ही इस विश्व में धर्म की रचना की और धर्म अवतार लेकर भी आप ही प्रकट हुए। हमारे विवेक के स्वामी आप ही हैं और सत्ता के अहंकार में हमारा वह विवेक नष्ट हो जाता है। इस सृष्टि में संतुलन आप ही के कारण स्थापित हो पाता है। तीनों देवताओं की शक्तियां आपके अंदर समाहित है।

पाप मृत्यु जग में तुम लाए। भयका भूत सकल जग छाए॥

महाकाल के तुम हो साक्षी। ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥

धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो। कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥

राम धर्म हित जग पगु धारे। मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥

इस जगत में पाप व मृत्यु का समावेश आपने ही किया है और आपका भय इस जगत में हर जगह व्याप्त है। महाकाल के साक्षी आप ही हैं और हमारी मृत्यु का सब रहस्य भी आपके पास है। आपने ही धर्म युद्ध में भगवान कृष्ण की सहायता की थी जिस कारण उन्होंने गीता का ज्ञान दिया था। आप ही के कारण श्रीराम ने इस धरती पर अवतार लेकर मानव जाति को अद्भुत संदेश दिया था।

विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें। पालन धर्म करम शुचि साजे॥

महादेव के तुम त्रय लोचन। प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥

सावित्री पर कृपा निराली। विद्यानिधि माँ सब जग आली॥

रमा भाल पर कर अति दाया। श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥

भगवान विष्णु के चक्र पर आप ही विराजित रहते हैं और जो धर्म का पालन नहीं करता है, आप उसका संहार कर देते हैं। आप ही महादेव की तीनों आखें हो। आप ही शिव को तांडव नृत्य करने के लिए प्रोत्साहित करते हो। आपने ही सावित्री पर अपनी कृपा बरसाई थी जिस कारण उन्हें विद्या व निधियों का ज्ञान हुआ था। आपने ही रमा पर अपनी दया बरसा कर उसे श्रीनिधि प्रदान की थी।

ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो। जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥

गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा। जाके कर्म गहइ तव हाथा॥

रावण कंस सकल मतवारे। तव प्रताप सब सरग सिधारे॥

प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा। सोउ करत तुम्हारी सेवा॥

माँ उमा अर्थात माँ पार्वती की शक्ति में आप ही समाहित हो जिनके बिना तो शिव भी शव के समान हैं। आप ही देवताओं के गुरु बृहस्पति के नाथ हो जिनके द्वारा हम सभी का कल्याण होता है। आप ही के कारण दुष्ट राजा रावण व कंस के जीवन का अंत हो पाया था। प्रथम पूजनीय व महादेव के पुत्र गणपति जी भी सोने से पहले आपकी पूजा करते हैं।

रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी। विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥

व्यास चहइ रच वेद पुराना। गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥

पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा। असवर देय जगत कृत कीन्हा॥

लेखनि मसि सह कागद कोरा। तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥

रिद्धि-सिद्धि तो आपके चरणों की दासी हैं और आप ही हम सभी के संकटों को दूर कर शुभ काम बनाने वाले हो। महर्षि वेदव्यास जी ने आपकी कृपा से ही वेद व पुराणों की रचना की जिसे गणेश जी ने लिपिबद्ध किया था। आपने ही अपने हाथ में कलम व स्याही ले रखी है जिससे आप हमारे सभी कर्मों का लेखा-जोगा लिखते हो। आपके द्वारा ही हमारे सभी कर्मों को लिखा जाता है।

विद्या विनय पराक्रम भारी। तुम आधार जगत आभारी॥

द्वादस पूत जगत अस लाए। राशी चक्र आधार सुहाए॥

जस पूता तस राशि रचाना। ज्योतिष केतुम जनक महाना॥

तिथी लगन होरा दिग्दर्शन। चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥

आप विद्या, विनय व पराक्रम युक्त हो और आप ही इस जगत के आधार हो। आपके कुल बारह पुत्र हुए जिनमें से चार पुत्र ब्राह्मण कन्या नंदिनी से हुए। नंदिनी का एक नाम सूर्यदक्षिणा भी था। वहीं अन्य आठ पुत्र आपकी दूसरी पत्नी शोभावती से हुए जिन्हें ऐरावती के नाम से भी जाना जाता है।

राशी नखत जो जातक धारे। धरम करम फल तुमहि अधारे॥

राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई। प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥

श्री गणेश तव बंदन कीना। कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥

देववृत जप तप वृत कीन्हा। इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥

इन सभी पुत्रों के नाम राशि के अनुसार अलग थे जबकि प्रसिद्ध अलग नाम से हुए। इन्हीं की सहायता से ही आपने धर्म कार्य किया। श्रीराम व श्रीकृष्ण ने गुरु के घर जाकर ही शिक्षा प्राप्त की थी। श्री गणेश जी ने भी आपकी ही वंदना की थी और कर्म-अकर्म आपके ही अधीन है। देवताओं के द्वारा जब आपके नाम का व्रत किया गया, तब आपने उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान दिया था।

धर्महीन सौदास कुराजा। तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥

हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा। कायथ परिजन परम पितामा॥

शुर शुयशमा बन जामाता। क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥

जय जय चित्रगुप्त गुसांई। गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥

जिसे धर्म का ज्ञान नहीं है, वह भी चित्रगुप्त जी की तपस्या करके बैकुण्ठ लोक में स्थान पा सकता है। उनका श्रीहरि के चरणों में स्थान होता है और हरि नाम ही होता है। चित्रगुप्त जी के वंशज कायस्थ कहलाये गए थे। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी क्षत्रिय धर्म का पालन करने को कहा था। चित्रगुप्त भगवान की जय हो, जय हो। मैं गुरु के चरणों की वंदना कर उन्हें प्रणाम करता हूँ।

जो शत पाठ करइ चालीसा। जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥

विनय करैं कुलदीप शुवेशा। राख पिता सम नेह हमेशा॥

जो भी इस चित्रगुप्त चालीसा का सौ बार पाठ कर लेता है, उसके जन्म-मरण के सभी दुःख व कलेश समाप्त हो जाते हैं। कुलदीप जी भगवान चित्रगुप्त से यह विनय प्रार्थना कर रहे हैं कि वे उनके नाम को हमेशा बनाये रखें और उन पर कृपा बरसाएं।

॥ दोहा ॥

ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥

पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥

चित्रगुप्त भगवान का ज्ञान उनकी कलम है, बुद्धि सरस्वती है और आकाश उनका मसिपात्र है। वे अपने साथ कालचक्र की पुस्तक व दंडास्त्र रखते हैं। मनुष्यों के पाप व पुण्यों का लेखा-जोगा रखने के लिए ही उनका प्राकट्य हुआ है। इस सृष्टि का संतुलन बनाये रखने के लिए ही वे स्वर्ग व नरक के स्वामी हैं।

श्री चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupt Chalisa) – महत्व

हिन्दू धर्म में कर्मों के महत्व को अच्छे से बताया गया है। हम इस संसार में चाहे अच्छे कर्म करें या बुरे कर्म, उन सभी का परिणाम हमें भुगतना ही पड़ता है। हम जो भी करते हैं, ईश्वर सब देखते हैं और एक दिन हमें अपने कर्मों का सुखद या दुखद परिणाम भुगतना ही होता है। तो हमारे इन सभी कर्मों का लेखा-जोगा रखने का उत्तरदायित्व भगवान चित्रगुप्त जी के पास ही होता है।

हम इस संसार में जो भी कर्म कर रहे हैं या करने वाले हैं, उन सभी को चित्रगुप्त जी लिखते रहते हैं। फिर जब हमारी मृत्यु हो जाती है तो चित्रगुप्त जी ही यमराज के सामने हमारे सभी कर्मों को विस्तारपूर्वक पढ़कर सुनाते हैं। हमारे कर्मों के अनुसार ही यमराज जी यह निर्णय लेते हैं कि हमें स्वर्ग मिलेगा या नरक। इस तरह चित्रगुप्त भगवान के बारे में संपूर्ण विवरण देने के उद्देश्य से ही चित्रगुप्त चालीसा की रचना की गयी है जो उनके महत्व को दर्शाती है।

चित्रगुप्त भगवान की चालीसा (Chitragupta Bhagwan Ki Chalisa) – लाभ

अब यदि आप सच्चे मन के साथ चित्रगुप्त भगवान का ध्यान कर उनकी चालीसा का पाठ करते हैं तो इससे चित्रगुप्त भगवान की कृपा आप पर बरसती है। चूँकि वे हर समय हम पर नज़र बनाये हुए हैं और हमारे सभी कर्मों को लिख रहे हैं तो वे अपनी कृपा से आपको बुरे कर्म करने से रोकते हैं या उसके बारे में सचेत करते हैं।

इतना ही नहीं, जब हमारी मृत्यु हो जाती है और हमें यमराज जी के दरबार में पेश किया जाता है तो उस समय चित्रगुप्त जी हमारे कर्मों को पढ़ते समय यमराज जी से हम पर कुछ दया करने का आग्रह भी करते हैं। अब हम चित्रगुप्त जी की जितनी भक्ति करेंगे, उतना ही वे हमसे अधिक प्रसन्न होंगे और यमराज जी के प्रकोप से हमें बचायेंगे। यही चित्रगुप्त चालीसा के लाभ होते हैं।

चित्रगुप्त चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: चित्रगुप्त भगवान कौन है?

उत्तर: चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं जिनका जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था। उनका प्राकट्य मृत्यु के देवता यमराज की सहायता करने तथा मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोगा रखने के लिए हुआ था।

प्रश्न: चित्रगुप्त का क्या काम है?

उत्तर: भगवान चित्रगुप्त मनुष्य की मृत्यु के बाद यमराज के सामने उसके कर्मों का पूरा लेखा-जोगा पढ़ते हैं। इसके आधार पर ही यमराज यह निर्णय लेते हैं कि उसे स्वर्ग मिलेगा या नरक।

प्रश्न: क्या कायस्थ ब्राह्मण हैं?

उत्तर: कायस्थ समुदाय के लोग चित्रगुप्त भगवान के वंशज हैं। चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा से उत्पन्न हुए थे जिस कारण उनके जन्म का गोत्र ब्राह्मण था किन्तु भगवान ब्रह्मा ने उन्हें क्षत्रिय धर्म का पालन करने को कहा था।

प्रश्न: कायस्थ के देवता कौन है?

उत्तर: कायस्थ समुदाय का उदय भगवान चित्रगुप्त के कारण हुआ था और वे ही उनके पूर्वज माने जाते हैं। ऐसे में कायस्थ के प्रमुख देवता भगवान चित्रगुप्त ही हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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