नवरात्रि के पांचवें दिन नवदुर्गा के पंचम रूप मां स्कंद माता (Maa Skandmata) की पूजा करने का विधान है। यह हिमालय की पुत्री तथा माता पार्वती का ही एक रूप है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता अर्थात स्कंद की माता कहा गया है। इनकी उपासना करने से संतान प्राप्ति होती है तथा मोक्ष के द्वार खुलते हैं।
इसके लिए आपको स्कंदमाता मंत्र (Skandmata Mantra) का जाप करना चाहिए। स्कंद माता से जुड़े सभी मंत्रों के बारे में आपको इसी लेख में जानने को मिलेगा। इसी के साथ ही आज हम आपको स्कंद माता की कथा, पूजा विधि, भोग व महिमा इत्यादि के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
Maa Skandmata | मां स्कंद माता की कथा
सबसे पहले तो हम स्कंदमाता की कथा के बारे में जान लेते हैं। अब यदि आप माँ दुर्गा के अन्य 8 रूपों को देखेंगे तो उन सभी में माँ अकेली ही हैं। जबकि माँ का यह एकमात्र रूप ऐसा है जिसमें वह अकेले नहीं बल्कि भगवान कार्तिक को अपनी गोद में लिए बैठी हैं। दरअसल इसके पीछे तारकासुर नामक राक्षस की कथा छिपी हुई है।
एक समय पहले तारकासुर राक्षस का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ गया था। सभी देवता उससे भयभीत थे और उसने स्वर्ग लोक पर भी अपना शासन स्थापित कर लिया था। दुविधा यह थी कि उसका वध केवल शिव पुत्र कार्तिकेय के हाथों ही हो सकता था। उस समय कार्तिक बहुत छोटे थे और उन्हें तारकासुर से युद्ध करने के लिए अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा अतिशीघ्र दी जानी आवश्यक थी।
इस कारण माता पार्वती या माता दुर्गा ने अपना यह स्कंद माता वाला रूप धारण किया था। इस रूप में उन्होंने कार्तिकेय को अपनी गोद में बिठाकर अस्त्र-शस्त्र का संपूर्ण ज्ञान दिया था। अपनी माता से मिली शिक्षा के कारण ही भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर से युद्ध कर उसका वध कर दिया था। बस तभी से ही माँ दुर्गा के 9 रूपों में उनका यह स्कंद माता वाला अद्भुत व विचित्र रूप भी सम्मिलित हो गया।
मां स्कंद माता का स्वरुप
देवी स्कंदमाता सिंह पर सवार रहती हैं इसलिए इनका वाहन सिंह है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर की नीचे वाली भुजा से यह कार्तिकेय के छोटे रूप को पकड़े रखती हैं तो ऊपर वाली भुजा में कमल पुष्प लिए रहती हैं। बाईं ओर की नीचे वाली भुजा वर मुद्रा में होती है तथा ऊपर वाली भुजा से एक और कमल पुष्प लिए रहती हैं।
स्कंदमाता का अर्थ
भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। ऐसे में कार्तिकेय की माता होने के कारण और केवल उनके लिए ही ऐसा रूप धारण करने के कारण माता पार्वती का एक नाम स्कंदमाता भी पड़ा। जिस प्रकार पर्वत पुत्री होने के कारण पार्वती, गौर वर्ण होने के कारण गौरी, शिव की शक्ति होने के कारण माहेश्वरी कहा जाता है, ठीक उसी तरह स्कंद की माता होने के कारण उन्हें स्कंदमाता कहा गया।
स्कंदमाता के नाम
स्कंद माता का एक नाम पद्मासना देवी भी है क्योंकि वे कमल के पुष्प पर भी विराजमान रहती हैं। इसी के साथ उन्हें माता पार्वती, उमा, माहेश्वरी, सती, शैलपुत्री, दुर्गा, आदिशक्ति इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
स्कंदमाता मंत्र (Skandmata Mantra)
नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है। ऐसे में यदि आप स्कंद माता के नाम का व्रत रख रहे हैं या उनकी पूजा करने जा रहे हैं तो स्कंदमाता के मंत्र का जाप किया जाना अति आवश्यक हो जाता है। स्कंदमाता का एक नहीं बल्कि कई मंत्र हैं जिन्हें बीज मंत्र, मुख्य मंत्र, ध्यान मंत्र व स्तुति मंत्र इत्यादि के नाम से जाना जाता है। ऐसे में आइए स्कंदमाता के सभी मंत्रों को जान लेते हैं।
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स्कंदमाता बीज मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
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स्कंदमाता का मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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स्कंदमाता का ध्यान मंत्र
महाबले महोत्साहे। महाभय विनाशिनी।
त्राहिमाम स्कन्दमाते। शत्रुनाम भयवर्धिनि॥
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स्कंदमाता स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस तरह से आपने स्कंदमाता मंत्र (Skandmata Mantra) की संपूर्ण जानकारी ले ली है। आगे से स्कंदमाता की पूजा करते समय इन सभी मंत्रों का जाप अवश्य करें। मुख्य तौर पर स्कंदमाता बीज मंत्र का जाप करना ना भूलें।
स्कंदमाता की पूजा विधि
माँ दुर्गा के अन्य रूपों की तरह ही इनकी भी पूजा करने का विधान है। इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें तथा चौकी पर माता रानी की मूर्ति को स्थापित करें। इसके पश्चात हल्दी, चंदन, कुमकुम इत्यादि से माँ की पूजा करें तथा ऊपर दिए गए मंत्रों का जाप करें। इसके साथ ही माँ को सुहाग का सामान जैसे कि लाल चुनरी, पुष्प, बिंदी, चूड़ियाँ इत्यादि अर्पित करें।
स्कंदमाता का भोग
स्कंद माता की पूजा करते समय उन्हें उनके प्रिय व्यंजन केले का भोग अवश्य लगाया जाना चाहिए। मां स्कंदमाता को केला अत्यधिक प्रिय होता है। इस कारण उनकी पूजा करते समय केले को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। इसके अलावा आप उन्हें चावल से बनी खीर, हलवा या अन्य किसी मीठी चीज़ का भोग भी लगा सकते हैं।
स्कंदमाता की महिमा
स्कंदमाता हमारे मन से बुरी प्रवत्तियों का विनाश कर मन को एकाग्रचित्त करने में सहायता प्रदान करती हैं। इससे हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा मन में अच्छे विचार आते हैं। यह हमारी बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने तथा मन को संयमित रखने में सहायक है। इससे हम रचनात्मक कार्य कर पाते हैं और चीज़ों को नए नजरिए से भी देख पाते हैं।
जिन लोगों का विवाह हुए समय हो चुका है और संतान नहीं हो रही है तो वह इच्छा भी स्कंद माता की कृपा से पूरी होती है। इसके लिए भक्तों को स्कंदमाता मंत्र का सच्चे मन के साथ जाप करना चाहिए। इतना ही नहीं, हर नवरात्र व्रत रखने चाहिए और खासतौर पर पांचवें दिन। इससे स्कंद माता जल्दी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हरेक इच्छा को पूरा करती हैं।
स्कंद माता से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: स्कंद माता कौन है?
उत्तर: स्कंद माता मां दुर्गा के 9 रूपों में से एक हैं। मातारानी भगवान स्कंद अर्थात कार्तिकेय को अपनी गोद में लिए रहती हैं। इस कारण उन्हें स्कंद की माता स्कंदमाता कहा जाता है।
प्रश्न: स्कंदमाता की कथा क्या है?
उत्तर: स्कंदमाता ने भगवान कार्तिकेय को बहुत छोटी आयु में ही अस्त्र-शस्त्र की संपूर्ण शिक्षा दे दी थी। इस कारण उन्हें स्कंद माता के नाम से जाना गया। दरअसल भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है।
प्रश्न: स्कंदमाता का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर: स्कंदमाता का दूसरा नाम पद्मासना देवी है। इसके अलावा उन्हें माता पार्वती, उमा, माहेश्वरी, सती, शैलपुत्री, दुर्गा, आदिशक्ति इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
प्रश्न: स्कंदमाता की पूजा क्यों करते हैं?
उत्तर: स्कंदमाता की पूजा से हमारा मन स्थिर होता है और नकारात्मक सोच का अंत होता है। इतना ही नहीं, जिन भक्तों को संतान प्राप्ति की इच्छा है, उनकी यह इच्छा भी स्कंद माता की कृपा से पूरी होती है।
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