शंकराचार्य रचित गंगा स्तोत्र अर्थ सहित (Ganga Stotram Lyrics In Hindi)

Ganga Stotram

गंगा स्तोत्र अर्थ सहित (Ganga Stotram) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

सनातन धर्म में माँ गंगा को सबसे पवित्र नदी माना गया है जिसका उद्गम स्थान गंगोत्री है। गंगोत्री से निकल कर भारत के कई राज्यों में बहती हुई माँ गंगा करोड़ो लोगों के जीवन को संवारने का कार्य करती हैं। हर वर्ष करोड़ो भक्त गंगा नदी में डुबकी लगाने आते हैं। ऐसे में यदि हम अपने घर पर या गंगा माता के घाट पर गंगा स्तोत्र (Ganga Stotra) का पाठ करते हैं तो यह बहुत ही शुभ फल देने वाला होता है।

आज के इस लेख में आपको ना केवल श्री गंगा स्तोत्रं (Ganga Stotram) पढ़ने को मिलेगा बल्कि साथ के साथ उसका भावार्थ भी जानने को मिलेगा। यदि शंकराचार्य रचित गंगा स्तोत्र अर्थ सहित (Ganga Stotram Lyrics In Hindi) पढ़ लिया जाए तो उससे हमें गंगा माता के गुणों व महत्व का ज्ञान होता है। अंत में आपको मां गंगा स्तोत्र के लाभ व महत्व भी जानने को मिलेंगे। आइये पढ़ते हैं गंगा जी का स्तोत्र।

गंगा स्तोत्र (Ganga Stotra)

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले॥

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम्॥

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम्॥

तव जलममलं येन निपीतं, परमपदं खलु तेन गृहीतम्।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये, पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये॥

कल्पलतामिव फलदां लोके, प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे॥

तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे॥

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये॥

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम्॥

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः॥

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम्।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः॥

गंगा स्तोत्र अर्थ सहित (Ganga Stotram Lyrics In Hindi)

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले॥

गंगा माता तो देवताओं के लिए भी पूजनीय हैं। माँ गंगा ही अपनी तरंगों के माध्यम से तीनों लोकों के पापों का नाश कर देती हैं। वे भगवान शिव के मस्तक पर विहार करती हैं अर्थात रहती हैं। मेरा पूरा ध्यान माँ गंगा के चरणों की ओर ही है।

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम्॥

हे भागीरथी माँ!! आप सभी को सुख प्रदान करने वाली हो। आपके जल की महिमा का वर्णन तो सभी वेद व उपनिषद भी करते हैं। मैं तो अज्ञानी हूँ और आपकी संपूर्ण महिमा को नहीं जानता हूँ। इसलिए अब आप मुझ पर कृपा करें और मुझे ज्ञान प्रदान करें।

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम्॥

श्रीहरि के चरणों को छूकर निकला जल ही गंगा जल है अर्थात माँ गंगा का निवास स्थान श्रीहरि के चरण हैं। माँ गंगा की तरंगे तो चन्द्रमा के समान शीतल व ठंडक प्रदान करने वाली है। हे माँ गंगा!! मुझ पर से पापों का बोझ कम कर दो और मुझे भवसागर पार करवा दो।

तव जलममलं येन निपीतं, परमपदं खलु तेन गृहीतम्।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः॥

जो भी गंगा जल को ग्रहण कर लेता है, उसे तो इस सृष्टि में परम पद की प्राप्ति हो जाती है और उसके घर में सुख-शांति का वास होता है। जो भी माँ गंगा की भक्ति करता है, उस पर तो किसी दुष्ट का प्रभाव नहीं होता और ना ही यमराज उसे अकाल मृत्यु मार सकते हैं।

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये, पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये॥

जो बुरे आचरण का होता है, आप उसका भी उद्धार कर देती हैं। आप हिमालय पर्वत को खंड-खंड में विभाजित कर वहां अपनी धारा को आगे बढ़ाती हैं। आप ही भीष्म पितामह की माता हैं और मुनि की कन्या हो। आप ही गिरे हुए व्यक्तियों को संभालने का कार्य करती हैं और तीनों लोक आपकी महिमा का वर्णन करते हैं।

कल्पलतामिव फलदां लोके, प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे॥

आप हर कल्प में मनुष्य का उद्धार करने के लिए आती हैं। जो भी गंगा माता को प्रणाम करता है, उसे किसी भी तरह का दुःख या पीड़ा नहीं सताती है। आप अपनी तरंगों को भारत देश के विभिन्न राज्य से ले जाती हुई अंत में समुंद्र में मिल जाती हैं।

तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे॥

जो व्यक्ति एक बार भी गंगा माता की निर्मल धारा में सच्चे मन के साथ स्नान कर लेता है, तो वह फिर से किसी माँ के गर्भ में जन्म नहीं लेता है अर्थात उसे मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। गंगा मैया ही हमें नरक की अग्नि से बचाती हैं, हमारे संकटों का नाश कर देती हैं और उनकी महिमा सर्वोपरि है।

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये॥

आप अपनी लहरों से अशुद्ध शरीर व मन को भी शुद्ध कर देती हो। आप पुण्य प्रदान करने वाली माँ जाह्नवी हो। आप करुणा की सागर हो। इंद्र देव का मुकुटमणि आपके चरणों में विराजता है। आप अपनी शरण में आये भक्तों को सुख व शुभ फल प्रदान करती हैं।

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥

माँ गंगा के द्वारा ही हमारे सभी तरह के रोग, दुःख, पीड़ा, पाप, अज्ञानता इत्यादि का नाश किया जाता है। वे ही तीनों लोकों का सार हैं और पृथ्वी का हार हैं। मैं गंगा माता की शरण में आया हूँ।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः॥

हे अलकनंदा माँ!! आप हमें परम आनंद प्रदान करने वाली हो। आप करुणा की सागर हो और हम सभी आपकी वंदना करते हैं। जो भी व्यक्ति गंगा किनारे निवास करता है, वह मानो वैकुण्ठ में निवास करता है।

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥

हे माँ गंगे!! आपके जल में कछुआ, मछली, कमजोर गिरगिट या कोई भी छोटा सा जानवर बनकर रहना अच्छा है, बजाये कि हम माँ गंगा से दूर एक कुलीन राजा भी बन जाएं।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम्॥

गंगा माँ इस जगत की ईश्वरी हैं, वे ही हमें पुण्य प्रदान करती हैं, उनकी जय हो। वे तरल रूप में इस पृथ्वी पर विद्यमान हैं और मुनि की वे पुत्री हैं। जो भी शंकराचार्य द्वारा रचित इस गंगा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करता है, उसकी हर जगह जय-जयकार होती है और वह सत्य को पा लेता है।

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः॥

जिस मनुष्य के हृदय में माँ गंगा का वास होता है अर्थात जो उनका भक्त होता है, उसे सदा सुख मिलता है और अंत में उसे मुक्ति मिल जाती है। शंकराचार्य जी के द्वारा लिखा गया यह गंगा स्तोत्र बहुत ही मधुर, संतोष प्रदान करने वाला तथा मन को प्रसन्न कर देने वाला है।

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम्।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः॥

गंगा जी का यह स्तोत्र संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सार है और इसके नियमित पाठ से व्यक्ति को इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है। शंकर जी के सेवक आदि शंकराचार्य जी के द्वारा रचित यह गंगा स्तोत्रं सुख प्रदान करने वाला है और इस तरह से यह समाप्त हो जाता है।

श्री गंगा स्तोत्रं (Ganga Stotram) – महत्व

मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने पर मनुष्य के पाप धुल जाते हैं लेकिन आप यह मत सोचिये कि आप बुरे कर्म करते जाएंगे और गंगा स्नान करने पर उन सभी कर्मों के पाप धुल जाएंगे। दरअसल गंगा नदी में स्नान करने पर हमारे केवल वह पाप धुलते हैं जो हमसे अनजाने में हो जाते हैं जबकि जो बुरे कर्म सोच समझकर किये गए हैं, उनका दंड ईश्वर हमें अवश्य देते हैं।

मां गंगा स्तोत्र के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया गया है कि यह भारत की सबसे पवित्र नदी ही नहीं है अपितु इसके जल में चमत्कारिक शक्तियां हैं। गंगा स्तोत्र में माँ गंगा के गुणों, महत्व व पूजा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है और यही गंगा जी की स्तोत्र का महत्व होता है। ऐसे में हमें प्रतिदिन शंकराचार्य द्वारा रचित श्री गंगा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

मां गंगा स्तोत्र के लाभ (Shankaracharya Ganga Stotram Benefits In Hindi)

गंगा मैया तो सभी की हैं और हर कोई उसमें डुबकी लगा सकता है और माँ के आँचल में समा सकता है। मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद उसके शरीर की राख को गंगा नदी में बहाने की ही परंपरा रही है जिससे कि उसकी आत्मा को शांति व मोक्ष मिल सके। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन गंगा मां के स्तोत्र का पाठ करता है तो उसके मोक्ष मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

गंगा जी के स्तोत्र के माध्यम से व्यक्ति का तन व मन दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं। इससे शरीर तो रोग मुक्त रहता ही है बल्कि साथ के साथ उसके मन में भी सकारात्मक विचार आते हैं। गंगा स्तोत्र के माध्यम से व्यक्ति आत्मिक शांति का अनुभव करता है और उसके मन से तनाव दूर हो जाता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन गंगा माता के स्तोत्र का पाठ करता है, उसे अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गंगा स्तोत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: गंगा जी का मंत्र क्या है?

उत्तर: गंगा जी का मंत्र “ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः” है जिसका जाप हम सुबह-शाम किसी भी समय कर सकते हैं।

प्रश्न: गंगा माता को कैसे प्रसन्न करें?

उत्तर: यदि आप गंगा माता को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर, नहा धोकर, गंगा जल से शरीर की शुद्धि कर गंगा चालीसा, आरती व स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: गंगा जी कितने बहन है?

उत्तर: गंगा जी को हिमालय पर्वत की पुत्री माना जाता है। इस अनुसार उनको दो बहने हैं जिनका नाम माता पार्वती व मेनका है।

प्रश्न: गंगा जी की पूजा कैसे की जाती है?

उत्तर: गंगा जी की पूजा करने के लिए आपको प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर, नहा धोकर, गंगा जल से शरीर की शुद्धि कर गंगा चालीसा, आरती व स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: गंगा जी में डुबकी लगाने से क्या होता है?

उत्तर: गंगा जी में डुबकी लगाने से हमारे शरीर के अनजाने में किये हुए पाप धुल जाते हैं और शरीर रोग मुक्त रहता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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