गुंडिचा मंदिर (Gundicha Mandir Puri) उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में स्थित है जो भगवान जगन्नाथ मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर की महत्ता तब और बढ़ जाती है जब स्वयं भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा के साथ यहाँ रहने आते हैं। उन दिनों मंदिर में भारी भीड़ उमड़ती है तथा कोई भी भगवान के दर्शन कर सकता है।
Gundicha Mandir को कलिंग राज्य की वास्तुकला को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है जो हल्के भूरे रंग के बलुआ पत्थरों से बना है। गुंडिचा माता को भगवान जगन्नाथ की मौसी माना जाता है। इसी कारण गर्मियों के मौसम में भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में जाकर रहते हैं। आइए इस मंदिर के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
Gundicha Mandir Puri | गुंडिचा मंदिर का इतिहास व संरचना
यह मंदिर एक विशाल उद्यान के बीच में स्थित है जिस कारण इसे भगवान जगन्नाथ का गर्मियों में उद्यान घर भी कहा जाता है। यह मंदिर बाकि सभी मंदिरों की भाँति कलिंग शैली में बना है। मंदिर चार भागों में बंटा है जिसमें विमला (मुख्य मंदिर), जगमोहन (प्रार्थना भवन), नट मंडप (नृत्य भवन) तथा भोग मंडप (बैठने तथा ध्यान लगाने का प्रांगन) शामिल है।
इसके अलावा Gundicha Mandir में एक रसोई है जहाँ प्रसाद इत्यादि का निर्माण किया जाता है। मंदिर चारों ओर से एक दीवार के द्वारा बंद किया गया है। मंदिर में दो द्वार हैं जिसमें से पश्चिम द्वार मुख्य द्वार है तथा यहीं से भगवान जगन्नाथ प्रवेश करते हैं। दूसरा द्वार पूर्वी द्वार है जहाँ से भगवान जगन्नाथ वापस जाते हैं।
भगवान जगन्नाथ का गुंडिचा मंदिर में आना
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई व बहन के साथ तीन विशाल रथों में बैठकर अपनी मौसी गुंडिचा के मंदिर (Gundicha Mandir Puri) में आते हैं तथा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। मंदिर में आने से एक दिन पूर्व पूरे मंदिर को साफ कर उसे पवित्र किया जाता है तथा प्रभु के लिए भोग बनाया जाता है।
प्रभु मंदिर के पश्चिमी द्वार से अंदर प्रवेश करते हैं तथा अपने रथ से उतरकर मंदिर के अंदर स्थित रत्नवेदी पर विराजमान होते हैं। उनके साथ उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा भी विराजमान होते हैं। उनके आने के तीन दिन बाद उनकी पत्नी महालक्ष्मी पालकी में बैठकर Gundicha Mandir आती है तथा प्रभु को वापस अपने साथ चलने को कहती है।
सात दिनों तक विश्राम करने के पश्चात नौवें दिन प्रभु अपने रथ में बैठकर मंदिर के पूर्वी द्वार से चले जाते हैं तथा अपने मंदिर श्रीमंदिर पहुँचते हैं। उनके साथ उनके भाई व बहन भी अपने-अपने रथों में बैठकर श्रीमंदिर चले जाते हैं।
कोई भी आ सकता है गुंडिचा मंदिर
जगन्नाथ मंदिर में केवल हिंदुओं को ही प्रवेश मिलता है तथा इसके अलावा भारतीय बौद्धों, जैन व सिख लोगों को ही मंदिर में प्रवेश मिल पाता है। अन्य किसी को भी मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इसलिए जो भक्त बाकि दिनों में भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पाते उनके लिए स्वयं भगवान जगन्नाथ बाहर निकलते हैं तथा गुंडिचा मंदिर जाकर रहते हैं।
इन सात दिनों में कोई भी आकर उनके दर्शन कर सकता है। इसलिए इस समय उनके दर्शन करने देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु गुंडिचा मंदिर (Gundicha Mandir Puri) में आते हैं।
गुंडिचा मंदिर पुरी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: गुंडिचा मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: गुंडिचा माता भगवान जगन्नाथ की मौसी लगती है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर से बाहर निकलकर गुंडिचा मंदिर ही रहने जाते हैं। बस इसी कारण गुंडिचा मंदिर प्रसिद्ध है।
प्रश्न: गुंडिचा मंदिर में किसकी पूजा की जाती है?
उत्तर: गुंडिचा मंदिर में माता गुंडिचा की पूजा की जाती है। उन्हें भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ आषाढ़ मास में 7 दिनों के लिए अपनी मौसी गुंडिचा के यहाँ जाकर ही विश्राम करते हैं।
प्रश्न: जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में कितने दिन रहते हैं?
उत्तर: जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में सात दिन रहते हैं। रथयात्रा का उत्सव नौ दिनों का होता है। पहले दिन भगवान जगन्नाथ अपने धाम से निकलते हैं और फिर सात दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहते हैं और नौवें दिन पुनः अपने धाम लौट जाते हैं।
प्रश्न: गुंडिचा मंदिर में कौन रहता है?
उत्तर: गुंडिचा मंदिर में माता गुंडिचा रहती है जिन्हें भगवान जगन्नाथ की मौसी माना जाता है। आषाढ़ मास में सात दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ भी गुंडिचा मंदिर में रहने आते हैं।
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