हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannatha Ratha Yatra) पुरी शहर में बड़ी धूमधाम के साथ निकाली जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) अपने बड़े भाई बलभद्र (बलराम) तथा बहन सुभद्रा के साथ अपने भक्तों के बीच जाते हैं। इस जगन्नाथ यात्रा में भाग लेने के लिए देश-विदेश से करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पुरी नगरी पहुँचते हैं।
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) केवल पुरी में ही नहीं अपितु देश-विदेश के कई शहरों में बड़े हर्षोल्लास के साथ निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को तीन विशाल रथों पर लाखों लोगों की भीड़ में खींचा जाता है। आज हम आपको इस ऐतिहासिक जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।
Jagannatha Ratha Yatra | जगन्नाथ रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा हर वर्ष आयोजित की जाती है। रथयात्रा की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू हो जाती है। जैसे-जैसे जगन्नाथ यात्रा का दिन पास आने लगता है, पुरी नगरी में हलचल बढ़ जाती है। पुरी नगरी तो क्या बल्कि उड़ीसा राज्य में देश-विदेश से लाखों लोग आने शुरू हो जाते हैं। प्रशासन व सरकार की ओर से यात्रा के लिए पूरी व्यवस्था की जाती है ताकि इतनी विशाल भीड़ को नियंत्रित रखा जा सके।
भगवान जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Yatra) वाले दिन तो पुरी नगरी खचाखच भरी होती है। इस दिन हर होटल, धर्मशाला, घर पूरी तरह से भरे होते हैं। वह इसलिए क्योंकि भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों के बीच में आ जाते हैं। आइए जाने भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का उत्साह कैसा होता है और उसकी क्या कुछ विशेषताएं हैं।
#1. जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है जिनकी मूर्तियों का निर्माण स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के हृदय/ दारु ब्रह्म से हुआ था। पुरी के लोग भगवान जगन्नाथ को अपना राजा मानते हैं तथा स्वयं को उनकी प्रजा। इसलिए भगवान जगन्नाथ वर्ष में एक बार अपने भक्तों का हालचाल जानने अपने मंदिर से बाहर निकलते हैं। यह प्रथा हजारों वर्षों से चली आ रही है जिसका भाग बनने लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
#2. Jagannath Rath Yatra की तैयारियां
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए तैयारियां दो माह पहले से ही शुरू हो जाती है। इसके लिए तीन विशाल रथों का निर्माण किया जाता है जिन पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा बैठकर निकलते हैं। तीनों रथों को नीम वृक्ष की लकड़ियों से बनाया जाता है जो अक्षया तृतीय से शुरू होता है। इसे बनाने में किसी भी कील, कांटे इत्यादि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
रथ तैयार होने के पश्चात विधिवत रूप से उनकी पूजा की जाती है जिसे छर पहनरा कहते हैं। रथयात्रा शुरू होने से कुछ दिन पहले ही भक्तों का पुरी आना शुरू हो जाता है तथा पूरा शहर खचाखच भर जाता है।
#3. Jagannath Yatra के रथ
जिन रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा बैठकर निकलते हैं वह तीनों अलग-अलग होते हैं जिनकी पहचान भी देखने से की जा सकती है। भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊँचा होता है जिसमें 16 पहिए लगे होते हैं। यह रंग लाल व पीला होता है। भगवान बलभद्र का रथ 45 फीट ऊँचा होता है जिसमें 14 पहिए लगे होते हैं तथा रंग लाल व हरा होता है। माता सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊँचा होता है जिसमें 12 पहिए लगे होते हैं तथा रंग लाल व काला होता है।
#4. जगन्नाथ रथ यात्रा किस महीने में मनाते हैं?
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा को मंदिर से बाहर लाया जाता है तथा उन्हें उनके रथ में बिठाया जाता है। सबसे पहले भगवान बलभद्र का रथ चलता है जिसे तालध्वज कहते हैं। उसके पीछे माता सुभद्रा का रथ जिसे दर्पदलन कहते हैं। अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ जिसे गरुड़ध्वज या नंदीघोष के नाम से जाना जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannatha Ratha Yatra) में इतनी विशाल जनसंख्या रथ खींचने उमड़ती है कि आकाश से देखने पर सब चींटियों की भाँति प्रतीत होते हैं। कहते हैं कि जिसको भी भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने का अवसर मिल गया वह बहुत सौभाग्यशाली होता है।
#5. माता गुंडीचा मंदिर तक जगन्नाथ यात्रा
माता गुंडीचा को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है जहाँ यह यात्रा रुक जाती है। गुंडिचा मंदिर जगन्नाथ मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ तीनों रथों को पश्चिम द्वार से प्रवेश करवाकर रोक दिया जाता है जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा माता सुभद्रा सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इन सात दिनों तक महाप्रसाद भी यहीं बनता है तथा भगवान को भोग लगता है। सभी भक्तगण भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने गुंडीचा मंदिर आते हैं।
#6. महालक्ष्मी का जगन्नाथ को बुलाने आना
Jagannath Rath Yatra के तीसरे दिन अर्थात पंचमी तिथि को जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ की पत्नी माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए गुंडीचा मंदिर पहुँचती हैं। महालक्ष्मी को श्रीमंदिर से गुंडीचा मंदिर पालकी में बिठाकर लाया जाता है जहाँ आकर वे भगवान जगन्नाथ से वापस चलने को कहती हैं। भगवान जगन्नाथ कुछ दिनों के बाद आने का कहकर उन्हें वापस भेज देते हैं। इससे महालक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं तथा जाते समय भगवान जगन्नाथ के रथ का एक पहिया क्षतिग्रस्त कर देती हैं।
#7. नौवें दिन वापस जाते हैं भगवान जगन्नाथ
सात दिन विश्राम करने के पश्चात भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा के साथ पुनः अपने मंदिर लौट जाते हैं। इस दिन शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि होती है। वापसी की यात्रा को बहुडा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। जब भगवान अपने द्वार पर पहुँचते हैं तो उस दिन तीनों मूर्तियाँ अपने रथ में ही रहती हैं। मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं तथा बड़ी धूमधाम से उन्हें पुनः अपनी जगह स्थापित किया जाता है व भोग लगाया जाता है।
#8. रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है?
इस रथयात्रा से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहते हैं कि जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका नगरी में रहते थे तो एक दिन उनकी बहन सुभद्रा ने नगर घूमने की इच्छा व्यक्त की। यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम तथा सुभद्रा के साथ तीन रथों में बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकल पड़े। इसके बाद वे अपनी मौसी गुंडिचा के यहाँ गए और 7 दिन तक वहाँ रुके।
तब से पूरे भारतवर्ष में भक्तगण भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannatha Ratha Yatra) बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह यात्रा मुख्य तौर पर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाती है जो गुंडिचा मंदिर तक जाती है। ठीक वैसे ही देशभर के अन्य मंदिरों में भी जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जाती है।
#9. पुरी के गजपति राजा का आना
रथयात्रा से पहले पुरी के गजपति राजा यहाँ आते हैं तथा विधिवत तीनों रथों की पूजा अनुष्ठान करते हैं। इसके पश्चात जब रथयात्रा शुरू होती है तब वे भगवान की सेवा करने के लिए एक सफाईकर्मी का रूप लेते हैं तथा रथयात्रा के मार्ग पर आगे सोने की झाड़ू लगाते हैं। साथ ही रथयात्रा के मार्ग को चंदन, गंगाजल इत्यादि से शुद्ध किया जाता है। इसी मार्ग से तीनों रथ तथा लाखों भक्त गुजरते हैं।
#10. जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है, इसके बारे में तो हमने आपको ऊपर ही बता दिया है। वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण द्वारका जाने के बाद राजकार्य में ही व्यस्त रहते थे। ऐसे में उनका राजभवन के बाहर निकलना या अपनी प्रजा के बीच में जाना बहुत ही कम हो पाता था। फिर एक दिन उन्होंने सब कार्य त्याग कर अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ जो रथयात्रा की, वह सभी के दिलों में बस गई।
ऐसे में श्रीकृष्ण के जाने के कुछ वर्षों के पश्चात जब जगन्नाथ भगवान का विशाल मंदिर बनवाया गया, तब वहाँ से इस यात्रा को निकाला गया। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ को अपने दोनों भाई-बहन के साथ तीन विशाल रथों पर निकाल कर भ्रमण करवाया गया। चूँकि यह यात्रा श्रीकृष्ण के ही रूप भगवान जगन्नाथ के यहाँ से निकली थी, इसलिए इसका नाम जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannatha Ratha Yatra) रखा गया।
जब से यह रथयात्रा शुरू हुई है तब से आज तक कभी नहीं रुकी। हालाँकि जब अपना देश अफगान व मुगल शासकों के अधीन था तब उनके द्वारा जगन्नाथ मंदिर पर भी भीषण आक्रमण किए गए थे। मुगलों के द्वारा लाखों की संख्या में जगन्नाथ भक्तों की निर्मम हत्याएं कर दी गई थी। उस समय भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियों को बचाने के लिए पुजारियों के द्वारा उन्हें मंदिर से बाहर ले जाकर कई स्थानों पर छुपाना पड़ा था। कहते हैं कि इस दौरान भगवान अपने मंदिर से लगभग 144 वर्षों तक दूर रहे थे तथा जगन्नाथ यात्रा भी नहीं हो पाई थी।
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जगन्नाथ रथ यात्रा किस महीने में मनाते हैं?
उत्तर: जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ मंदिर से बाहर निकलते हैं और रथ पर सवार होकर मौसी गुंडिचा के यहाँ जाते हैं।
प्रश्न: जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी क्या है?
उत्तर: जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी भगवान श्रीकृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से जुड़ी हुई है। एक दिन जब सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की तो श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा तीनों रथ पर बैठकर नगर भ्रमण पर निकले थे।
प्रश्न: जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों होती है?
उत्तर: जगन्नाथ रथ यात्रा इसलिए होती है क्योंकि पूरे वर्ष अपने मंदिर में रहने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को दर्शन देने स्वयं मंदिर के बाहर आते हैं। ऐसा भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर किया गया था।
प्रश्न: भारत में रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है?
उत्तर: भारत ही नहीं अपितु विश्वभर में भगवान जगन्नाथ के भक्त हर वर्ष उनकी विशाल रथ यात्रा निकालते हैं। यह रथ यात्रा मुख्य तौर पर जगन्नाथ पुरी मंदिर से निकाली जाती है।
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