जगन्नाथ भगवान की पूरी कहानी व श्रीकृष्ण से उसका संबंध

Jagannath Puri Story In Hindi

आज हम आपके सामने भगवान जगन्नाथ की कहानी (Jagannath Puri Story In Hindi) रखेंगे। क्या आप जानते हैं कि जब भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई अर्थात जब उन्होंने अपने मानव रुपी शरीर को छोड़ दिया तब उसके बाद क्या हुआ था? उनके देह त्याग के बाद उनके शरीर का क्या हुआ था तथा किसने उनका अंतिम संस्कार किया था?

यह सब हम आपसे इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि जगन्नाथ भगवान की पूरी कहानी (Jagannath Mandir Ki Kahani) का संबंध भगवान कृष्ण की मृत्यु से ही है। इसके लिए आपको जगन्नाथ भगवान की पूरी कहानी को जानना होगा। आइए जाने जगन्नाथ भगवान की कहानी का भगवान श्रीकृष्ण से क्या संबंध है।

Jagannath Puri Story In Hindi | भगवान जगन्नाथ की कहानी

जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि जगन्नाथ भगवान की कहानी का संबंध भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु से है। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में कई कार्य किए थे इनमें से कंस वध, महाभारत युद्ध, सुदामा मिलन प्रमुख थे। जब यह सब कार्य हो गए और वह समय आने लगा जब उन्हें अपनी इस देह का त्याग कर पुनः वैकुण्ठ धाम लौटना था, तब जो कुछ घटित हुआ, उसी से ही जगन्नाथ मूर्तियों की कहानी जुड़ी हुई है। आइए जाने उसके बारे में।

  • श्रीकृष्ण की मृत्यु

अपने अंतिम समय में भगवान कृष्ण द्वारका नगरी में रह रहे थे। द्वारका नगरी में कुछ समय पहले सभी यादवों के बीच भीषण लड़ाई छिड़ गई थी। उस लड़ाई में सभी यादव मारे गए थे जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के सभी भाई-बंधु भी थे। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारका नगरी के पास ही वन में एक वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे थे।

उसी समय ज़रा नामक शिकारी जंगल में शिकार करने आया हुआ था। उसने दूर से ही भगवान श्रीकृष्ण के चरणों पर बनी हुई मोर की आकृति देखी और उसे हिरण की आँख समझकर तीर चला दिया। पैर में तीर लगने से श्रीकृष्ण ने अपनी देह त्याग दी व वैकुण्ठ धाम लौट गए। श्रीकृष्ण की मृत्यु का समाचार द्वारका सहित पूरे भारतवर्ष में फैल गया। यह सुनकर हर कोई द्वारका नगरी की ओर दौड़ पड़ा।

  • श्रीकृष्ण का हृदय

भगवान कृष्ण की मृत्यु का समाचार जब हस्तिनापुर पहुँचा तो अर्जुन सहित सभी पांडव द्वारका की ओर निकल पड़े। अर्जुन श्रीकृष्ण के परम मित्र थे और उनके जीजा भी। चूँकि श्रीकृष्ण के परिवार में ओर कोई नहीं बचा था, इसलिए अर्जुन व बाकी पांडवों ने ही उनका अंतिम संस्कार किया। द्वारका के समुद्र तट के पास ही श्रीकृष्ण की देह को अग्नि दे दी गई थी।

कई दिनों तक उनका शरीर जलता रहा लेकिन उनका हृदय अभी भी वैसा ही था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दर्शन देकर कहा कि वह उनके हृदय को लकड़ी समेत समुद्र में बहा दे। अर्जुन ने भगवान का आदेश मानकर उनके हृदय को द्वारका के पास ही समुद्र में बहा दिया।

  • जगन्नाथ भगवान की पूरी कहानी (Jagannath Mandir Ki Kahani)

उनका हृदय कई वर्षों तक समुद्र में बहता रहा तथा द्वारका के पश्चिमी छोर से समुद्र में बहता हुआ पूर्वी छोर पुरी नगरी में पहुँच गया। उस समय पुरी के राजा इंद्रद्युम्न हुआ करते थे जो बहुत ही परोपकारी राजा थे। वे भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त भी थे। जब श्रीकृष्ण का हृदय पुरी के समुद्र किनारे पहुँच गया तब उन्होंने पुरी के राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में दर्शन दिए।

उन्होंने इंद्रद्युम्न को पुरी नगरी में उन्हीं के एक रूप भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर बनवाने का आदेश दिया। साथ ही उन्होंने राजा से कहा कि समुद्र तट के निकट एक वृक्ष के नीचे से लकड़ी का एक लठ्ठा मिलेगा जिससे वह उनकी, उनके बड़े भाई, बहन तथा सुदर्शन चक्र की मूर्तियाँ बनवाए। इंद्रद्युम्न ने अगले ही दिन श्रीकृष्ण के आदेशानुसार उनके हृदय व लठ्ठा को लेने भेज दिया और भगवान विश्वकर्मा को बुलावा भेजा।

राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान विश्वकर्मा की सहायता से उस लट्ठे की चार मूर्तियाँ बनवाई जो भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम), बहन सुभद्रा तथा सुदर्शन चक्र की थी। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के हृदय से जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियाँ स्थापित की गई।

हर 12 वर्षों में बदलता है मूर्ति का आवरण

आज भी यह रीति अपनाई जाती है जो इस बात की पुष्टि करती है। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति जिस काष्ठ/ लकड़ी के अंदर है, कहते हैं कि वह भगवान कृष्ण का असली शरीर है जिसके ऊपर का लकड़ी का आवरण हर बारह वर्षों के बाद बदला जाता है। इस आवरण को बदलते समय किसी को भी इसे देखने की अनुमति नहीं होती है। मंदिर के पुजारी भी इस समय अपनी आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं तथा हाथों को कपड़े से लपेट लेते हैं। कहते हैं कि जो भी मूर्ति के अंदर का आवरण देख लेगा उसकी उसी समय मृत्यु हो जाएगी।

तो यह थी भगवान जगन्नाथ की कहानी (Jagannath Puri Story In Hindi) और उनकी मूर्तियों का रहस्य। श्रीकृष्ण भगवान को ही जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है। उनके अगल-बगल में उनके दोनों भाई-बहन बलराम व सुभद्रा की मूर्तियाँ हैं। सुभद्रा ही अर्जुन की पत्नी थी जिसका पुत्र अभिमन्यु और पोता परीक्षित था। परीक्षित ही पांडवों व कौरवों का एकमात्र जीवित वंशज था और उसी के समय ही कलियुग की शुरुआत हुई थी।

भगवान जगन्नाथ की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: भगवान जगन्नाथ की असली कहानी क्या है?

उत्तर: भगवान जगन्नाथ की असली कहानी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है इसके अनुसार श्रीकृष्ण के हृदय से भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों का निर्माण हुआ था वहीं उनका यह मुख श्रीकृष्ण के आश्चर्यचकित रूप को दर्शाता है जब माता यशोदा उनके बचपन की कहानियां द्वारकावासियों को सुना रही थी

प्रश्न: जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?

उत्तर: भगवान जगन्नाथ की मूर्तियाँ अधूरी इसलिए है क्योंकि भगवान विश्वकर्मा जी की यह शर्त थी कि जब वे मूर्तियों का निर्माण कर रहे हो तो कोई भी अंदर प्रवेश नहीं करेगा राजा इंद्रद्युम्न वहाँ समय से पहले आ गए थे इसलिए विश्वकर्मा जी मूर्ति का निर्माण कार्य बीच में ही छोड़कर चले गए थे।

प्रश्न: जगन्नाथ मंदिर का चमत्कार क्या है?

उत्तर: जगन्नाथ मंदिर का चमत्कार यह है कि मंदिर के शीर्ष पर लगाया गया ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है साथ ही मंदिर की कोई भी परछाई नहीं है

प्रश्न: क्या जगन्नाथ इच्छाएं पूरी करते हैं?

उत्तर: यह भी कोई पूछने वाली बात है? भगवान जगन्नाथ भगवान श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं और उनका यह मंदिर सनातन धर्म के चार धामों में से एक है ऐसे में अवश्य ही उनके सामने आप बेझिझक कुछ भी माँग सकते हैं

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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