Kaikai Ka Anutap: कैकेयी का अनुताप के प्रश्न उत्तर

कैकेयी का अनुताप

हम सभी कैकई की भ्रष्ट बुद्धि की तो बात करते हैं लेकिन श्रीराम वनवास के पश्चात कैकेयी का अनुताप (Kaikeyi Ka Anutap) किसी ने नहीं देखा होगा। श्रीराम के राज्याभिषेक से एक दिन पहले उनकी प्रिय दासी मंथरा ने अवश्य ही उनकी बुद्धि भ्रष्ट कर दी थी लेकिन इसके बाद से उनका बुरा दौर चालू हो गया था।

वैसे तो श्रीराम के वनगमन के बाद से ही कैकई का बुरा समय शुरू हो चुका था लेकिन जब भरत अयोध्या पहुँचे और उन्हें संपूर्ण स्थिति का ज्ञान हुआ, तब से सही मायनो में कैकई का बुरा दौर शुरू हुआ था। आज हम आपके साथ कैकेयी का अनुताप के प्रश्न उत्तर (Kaikai Ka Anutap) भी सांझा करेंगे। आइए जाने श्रीराम वनगमन के पश्चात कैकई का पश्चाताप।

कैकेयी का अनुताप (Kaikeyi Ka Anutap)

कैकई राजा दशरथ की दूसरी पत्नी तथा भगवान श्रीराम की सौतेली माँ थी। उसका एक पुत्र था जिसका नाम था भरत। वह कैकेय देश की राजकुमारी थी जिसे अयोध्या के राजा दशरथ विवाह करके अपने साथ अयोध्या ले आए थे। कैकेयी अपने मायके से अपनी प्रिय दासी मंथरा को भी साथ में लेकर आई थी।

चूँकि कैकेयी भरत की माँ थी किंतु वह राजा दशरथ के चारों पुत्रों को समान स्नेह करती थी। भगवान श्रीराम के जन्म के पश्चात से ही उसे पता था कि दशरथ के बाद अगले राजा राम ही होंगे क्योंकि धर्म व नीति के अनुसार सबसे बड़ा पुत्र ही राजा बनता है। उसने कभी मन में भी नहीं सोचा था कि उसके पुत्र भरत का भी राज्याभिषेक हो सकता है।

  • मंथरा ने की बुद्धि भ्रष्ट

जब राजा दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक का निर्णय लिया तब कैकेयी भी बहुत प्रसन्न थी लेकिन अपनी प्रिय दासी मंथरा की चालों में फंसकर उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। कैकई ने लालच की भावना से अयोध्या के राज परिवार की खुशी को एक ही दिन में तहस नहस कर दिया। राजा दशरथ ने बहुत वर्षों पहले रानी कैकेयी को दो मनचाहे वर दिए थे जिन्हें कैकेयी ने आगे कभी भी मांग लेने के उद्देश्य से संभाल कर रखे थे।

अब रानी कैकेयी ने मंथरा की चालों में फंसकर राजा दशरथ से अपने दोनों वर मांगे। इसमें एक था श्रीराम को 14 वर्षों का कठोर वनवास व दूसरा अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा नियुक्त करना। इन्हीं दो वरों के कारण अयोध्या के राज परिवार की दुर्गति हो गई व रानी कैकेयी का संपूर्ण जीवन पश्चाताप की अग्नि में बीता।

  • महाराज दशरथ की मृत्यु

जब श्रीराम का वनगमन हुआ तभी से राजा दशरथ गहन दुःख में चले गए थे व एक दिन पुत्र वियोग में ही उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु होते ही रानी कैकेयी को अपने पति की मृत्यु का प्रमुख कारण माना गया। अब रानी कैकेयी को जीवनभर अपने राजसी वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार त्यागकर एक विधवा के भाँति जीवन व्यतीत करना था किंतु फिर भी वह अपने पुत्र भरत के राजा बनने से संतुष्ट थी।

  • भरत ने किया कैकेयी का त्याग

रानी कैकेयी की खुशी उस समय मातम में बदल गई जब उसके पुत्र भरत का अपने ननिहाल कैकेय से अयोध्या में आगमन हुआ व उन्हें सब षड्यंत्र का पता चला। इससे पहले तक कैकई को कोई पश्चाताप नहीं था लेकिन भरत के अयोध्या आगमन के बाद ही कैकई का अनुताप (Kaikai Ka Anutap) शुरू हुआ था। भरत एक आज्ञाकारी पुत्र तो थे ही साथ में अपने बड़े भाई श्रीराम के अनन्य भक्त भी। उनके मन में श्रीराम के लिए अपार स्नेह था व जब उन्हें अपनी माँ कैकेयी के द्वारा रचे सब षड्यंत्र का पता चला तो उन्होंने उसी समय कैकेयी का हमेशा के लिए त्याग कर दिया।

भरत ने प्रतिज्ञा ली कि अब आगे से वह अपनी माँ कैकेयी का मुख कभी नहीं देखेंगे। इसके साथ ही भरत ने अयोध्या का राज सिंहासन ठुकरा दिया व श्रीराम को अयोध्या वापस लाने के लिए चित्रकूट निकल पड़े।

  • चित्रकूट से खाली हाथ लौटना

भरत के साथ श्रीराम को लेने कैकेयी भी अन्य माताओं के साथ चित्रकूट गई थी। वहाँ जाकर उन्होंने सभी के सामने श्रीराम से अपने किए कर्मों के लिए क्षमा मांगी व अपने दोनों वचन भी वापस ले लिए। उन्हें लगा कि अपने दोनों वचन वापस लेने से उनके पाप धुल जाएंगे व श्रीराम वापस अयोध्या आ जाएंगे लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

श्रीराम ने अपने पिता दशरथ की मृत्यु के बाद वचन के वापस नहीं होने का कारण बताकर अयोध्या वापस आने को मना कर दिया। उनके अनुसार केवल राजा दशरथ को ही श्रीराम से वचनों को वापस लेने का अधिकार प्राप्त था। चूँकि माता कैकेयी ने उनकी मृत्यु के बाद वचन वापस लिए हैं तो अब इसका कोई औचित्य नहीं रह जाता। निराश होकर कैकेयी को खाली हाथ पश्चाताप के साथ अयोध्या लौटना पड़ा।

  • भरत का नंदीग्राम वनवास

अयोध्या वापस आने के पश्चात भरत ने श्रीराम की भाँति 14 वर्ष वनवासी जीवन जीने का निर्णय किया व अयोध्या के निकट नंदीग्राम वन में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे। जब कैकेयी को इसका पता चला तो वे भरत से मिलने गई व वहीं उसके साथ कुटिया बनाकर रहने को कहा लेकिन भरत ने इसके लिए साफ मना कर दिया।

उन्होंने कैकेयी को राजभवन में रहकर सब सुख भोगने का निर्देश दिया। भरत ने कहा कि जिस सुख को भोगने के लिए उन्होंने यह सब षड्यंत्र रचा, अब उन्हें चौदह वर्ष वह सब भोगने होंगे। बस यहीं से कैकेयी का अनुताप (Kaikeyi Ka Anutap) सही मायनो में शुरू हो गया था जो चौदह वर्षों तक चला था। आइए जाने कैकई के पश्चाताप की कहानी।

  • कैकई का पश्चाताप

इसके बाद कैकेयी कुछ नहीं कर सकती थी। अब उसे अयोध्या के सूने राजभवन में अकेले ही जीवन व्यतीत करना था। एक ही पल में अयोध्या का पूरा राजभवन सूना हो गया था व चारों ओर केवल घोर दुःख ही दुःख था। कहीं भी कोई प्रसन्नता व खुशी नहीं थी। राज परिवार के आधे सदस्य तो वन में थे तो जो भवन में थे, वे भी हताशा और तनाव में रहने लगे थे। राज परिवार के सभी सदस्य, मंत्री व सैनिक उन्हें तिरस्कार भरी नज़रों से देखने लगे थे।

यदि वह राजभवन से बाहर अयोध्या में प्रजावासियों के बीच जाने का सोचती तो वहाँ तो उन्हें और भी घोर अपमान सहना पड़ता। अयोध्यावासी ना उनसे सीधे मुँह बात करते और उल्टे उनकी पीठ पीछे उनका अपमान किया करते थे। साथ ही राजभवन के बाहर उनकी सुरक्षा को भी बहुत खतरा था क्योंकि कुछ प्रजावासी तो उन्हें मारने तक पर उतारू थे।

इसलिए कैकेयी ने अपने 14 वर्ष अयोध्या के राजभवन में ही एक पागल स्त्री की भाँति बिताए थे। वे एक कमरे से दूसरे कमरे में अकेले ही घूमा करती थी और किसी से बात नहीं करती थी। जिस श्रीराम को उसने षड्यंत्र के तहत वन भेजा था, अब वहीं वह उनके वापस आने को तरसने लगी थी ताकि इस अपमान का अंत हो सके।

  • खत्म हुआ कैकई का अनुताप

कैकेयी का अनुताप (Kaikeyi Ka Anutap) तब समाप्त हुआ जब श्रीराम वापस अयोध्या लौटे थे। 14 वर्षों के पश्चात जब श्रीराम वापस अयोध्या पधारे, तो उन्होंने पुष्पक विमान से उतर कर सर्वप्रथम माता कैकई के ही चरण स्पर्श किए थे। यह देखकर सारी अयोध्या आश्चर्यचकित रह गई थी क्योंकि उन्हें लगा था कि भरत की भाँति श्रीराम भी उनका त्याग कर देंगे या उन्हें अब वैसा सम्मान नहीं देंगे।

श्रीराम जानते थे कि यह चौदह वर्ष कैकई के लिए किसी पश्चाताप से कम नहीं थे। वे यह भी जानते थे कि अपने अयोध्यावासी उन्हें वनवास दिलवाने के कारण कैकई को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते होंगे व अयोध्या के सैनिक व मंत्री भी उनका वैसा आदर नहीं करते होंगे। इसलिए श्रीराम ने माता कैकई को पुनः वही सम्मान व आदर दिलवाने के लिए सर्वप्रथम उनके चरण स्पर्श किए थे व अयोध्या को बता दिया था कि क्षमा ही सबसे बड़ा गुण है। इसके बाद कैकई के अनुताप की अग्नि कम हुई थी और उनका जीवन पहले के जैसा हो गया था।

Kaikai Ka Anutap | कैकेयी का अनुताप के प्रश्न उत्तर

प्रश्न: कैकेयी को अभागिन रानी क्यों कहा गया है?

उत्तर: जिस रानी को चौदह वर्षों तक तिरस्कार का जीवन जीना पड़ा हो, जिसका उसके पति व पुत्र ने त्याग कर दिया हो, वह अभागिन रानी नहीं होगी तो और क्या ही होगी।

प्रश्न: कैकेयी दुष्ट क्यों थी?

उत्तर: कैकेयी पहले दुष्ट नहीं थी लेकिन उसकी प्रिय दासी मंथरा ने उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर दी थी इसके बाद अपने कर्मों के कारण वह दुष्ट बनती चली गई

प्रश्न: कैकेयी का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: पउम चरिउ (पुष्पदत्त) में कैकेयी का दूसरा नाम अग्रमहिषी बताया गया है।

प्रश्न: कैकेयी किसकी बेटी थी?

उत्तर: कैकेयी कैकेय प्रदेश के राजा अश्वपति की बेटी थी उस समय कैकेय प्रदेश भी बहुत शक्तिशाली राज्य हुआ करता था जो वर्तमान अफगानिस्तान में है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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