कामाख्या माता की आरती (Kamakhya Mata Ki Aarti)

Kamakhya Mata Ki Aarti

कामाख्या माता की आरती (Kamakhya Mata Ki Aarti) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

माँ सती की देह से 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था जिनमें से एक प्रमुख शक्तिपीठ असम राज्य के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी का मंदिर है। यहाँ पर माँ सती का योनि भाग गिरा था जिसे हम कामाख्या के नाम से जानते हैं। यह इच्छाओं को पूर्ण करने वाली देवी मानी जाती हैं और एक तरह से सभी 51 शक्तिपीठों में कामाख्या देवी को ही प्रधान शक्तिपीठ माना जाता है। ऐसे में आज के इस लेख में आपको कामाख्या देवी की आरती (Kamakhya Devi Ki Aarti) पढ़ने को मिलेगी।

बहुत से लोग मातारानी के इस रूप के बारे में बात करने से हिचकते हैं या लज्जा का अनुभव करते हैं। ऐसे में हम कामाख्या माता की आरती को अर्थ सहित (Kamakhya Mata Ki Aarti) आपके साथ सांझा करेंगे ताकि आप इसका भावार्थ भी समझ सकें। अंत में हम आपके साथ मां कामाख्या आरती का महत्व व लाभ (Maa Kamakhya Aarti) भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं कामाख्या देवी आरती।

कामाख्या देवी की आरती (Kamakhya Devi Ki Aarti)

आरती कामाक्षा देवी की।
जगत् उधारक सुर सेवी की॥
आरती कामाक्षा देवी की॥

गावत वेद पुरान कहानी।
योनिरुप तुम हो महारानी।
सुर ब्रह्मादिक आदि बखानी।
लहे दरस सब सुख लेवी की॥
आरती कामाक्षा देवी की॥

दक्ष सुता जगदम्ब भवानी।
सदा शंभु अर्धंग विराजिनी।
सकल जगत् को तारन करनी।
जै हो मातु सिद्धि देवी की॥
आरती कामाक्षा देवी की॥

तीन नयन कर डमरु विराजे।
टीको गोरोचन को साजे।
तीनों लोक रुप से लाजे।
जै हो मातु! लोक सेवी की॥
आरती कामाक्षा देवी की॥

रक्त पुष्प कंठन वनमाला।
केहरि वाहन खंग विशाला।
मातु करे भक्तन प्रतिपाला।
सकल असुर जीवन लेवी की॥
आरती कामाक्षा देवी की॥

कहैं गोपाल मातु बलिहारी।
जाने नहिं महिमा त्रिपुरारी।
सब सत होय जो कह्यो विचारी।
जै जै सबहिं करत देवी की॥
आरती कामाक्षा देवी की॥

कामाख्या माता की आरती (Kamakhya Mata Ki Aarti)

आरती कामाक्षा देवी की।
जगत् उधारक सुर सेवी की॥

हम सभी शुद्ध मन के साथ कामाख्या देवी की आरती करते हैं। कामाख्या माता ही इस जगत का उद्धार करती हैं और स्वर्ग में उपस्थित सभी देवता उनके सेवक हैं।

गावत वेद पुरान कहानी।
योनिरुप तुम हो महारानी।
सुर ब्रह्मादिक आदि बखानी।
लहे दरस सब सुख लेवी की॥

वेदों और पुराणों में आपकी महिमा का वर्णन किया गया है और उसमें बताया गया है कि कामाख्या मंदिर में आप योनि रूप में विराजमान हैं। आपकी महिमा का वर्णन ब्रह्मा जी व देवताओं के द्वारा भी किया गया है। जो कोई भी आपके दर्शन कर लेता है, उसे सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है।

दक्ष सुता जगदम्ब भवानी।
सदा शंभु अर्धंग विराजिनी।
सकल जगत् को तारन करनी।
जै हो मातु सिद्धि देवी की॥

आप ही राजा दक्ष की पुत्री जगदंबा भवानी अर्थात माता सती हैं। आप ही भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में उनके साथ विराजती हैं। आप ही इस संपूर्ण जगत का उद्धार करती हैं और हम सभी को तारती हैं। सिद्धियों को प्रदान करने वाली माँ कामाख्या!! आपकी जय हो।

तीन नयन कर डमरु विराजे।
टीको गोरोचन को साजे।
तीनों लोक रुप से लाजे।
जै हो मातु! लोक सेवी की॥

आपके तीन नेत्र हैं और हाथों में डमरू है। माथे पर गोरोचन का तिलक किया हुआ है। आपका रूप देखकर तो तीनों लोकों के प्राणी भी मोहित हो जा रहे हैं। इस लोक की सेवा करने वाली कामाख्या देवी की जय हो।

रक्त पुष्प कंठन वनमाला।
केहरि वाहन खंग विशाला।
मातु करे भक्तन प्रतिपाला।
सकल असुर जीवन लेवी की॥

आपने अपने गले में पुष्पों की वनमाला पहनी हुई है। आपका वाहन शेर है और रूप बहुत विशाल है। आप सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। आप ही असुरों व दुष्टों का नाश कर देती हैं।

कहैं गोपाल मातु बलिहारी।
जाने नहिं महिमा त्रिपुरारी।
सब सत होय जो कह्यो विचारी।
जै जै सबहिं करत देवी की॥

श्रीकृष्ण ने भी आपको माता का दर्जा दिया है और आपकी महिमा का वर्णन किया है। स्वयं त्रिपुरारी अर्थात भगवान विष्णु भी आपकी महिमा को पूर्ण रूप से नहीं जान पाए हैं। जो भी कामाख्या देवी का ध्यान करता है, उसका सब मंगल होता है। हम सभी ही कामाख्या माता के नाम की जय-जयकार करते हैं।

मां कामाख्या आरती (Maa Kamakhya Aarti) – महत्व

सनातन धर्म में माँ आदिशक्ति को सबसे प्रमुख देवी माना गया है। ऐसे में माँ सती या माँ पार्वती को हम आदिशक्ति का ही रूप मानते हैं क्योंकि वे ही शिव की अर्धांगिनी और शक्ति का स्वरुप हैं। जब माँ सती ने अपने पिता दक्ष के आयोजित यज्ञ के अग्नि कुंड में कूद कर आत्मदाह कर लिया था और भगवान शिव बेसुध होकर उनके अधजले शव को लेकर दशों दिशाओं में घूम रहे थे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए थे।

माता सती के शरीर से यह टुकड़े भारत भूमि पर जहाँ-जहाँ गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का निर्माण हो गया। इसमें से मातारानी की योनि जहाँ गिरी, वह ही आज के समय में कामाख्या मंदिर या कामाख्या देवी के नाम से प्रसिद्ध है। कामाख्या माता हमें जीव की उत्पत्ति का मार्ग दिखाती हैं क्योंकि इस विश्व के हरेक जीव का उद्गम माता की योनि से ही होता है। कामाख्या आरती के माध्यम से इसी विषय पर ही प्रकाश डाला गया है और यही कामाख्या देवी आरती का महत्व होता है।

कामाख्या आरती (Kamakhya Aarti) – लाभ

स्त्री की योनि ऐसा भाग होता है जो जीव की उत्पत्ति का मार्ग होता है। फिर चाहे वह मनुष्य हो या अन्य कोई जीव-जंतु। यदि किसी को जन्म लेना है तो वह अपनी माता की योनि से ही जन्म लेता है। ठीक उसी तरह इस सृष्टि की रचना भी माता ने ही की है और इसी कारण उन्हें शिव की पूरक माना गया है। तभी कहा जाता है कि शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं। ऐसे में शिव के अर्धनारीश्वर रूप की भी पूजा की जाती है।

यदि आप सच्चे व शुद्ध मन के साथ मां कामाख्या आरती को पढ़ते हैं और उनका ध्यान करते हैं तो आपके ऊपर से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। कामाख्या माता की आरती के माध्यम से भूत, प्रेत, पिशाच, तंत्र, मंत्र इत्यादि का प्रभाव तो आपके ऊपर से हटता ही है, इसी के साथ ही आपके शत्रुओं का भी नाश हो जाता है।

माँ कामाख्या देवी के आशीर्वाद से आपके जीवन में आ रही हरेक बाधा, चुनौती, संकट, विपदा, कष्ट, कलेश, आपदा, विपत्ति इत्यादि सभी का नाश हो जाता है। एक तरह से जो भक्तगण सच्चे मन के साथ माँ आदिशक्ति के इस रूप का ध्यान करते हैं और कामाख्या देवी की आरती का पाठ करते हैं, उनके जीवन से हर नकारात्मक पहलू का अंत हो जाता है और आगे का जीवन सुखमय बनता है।

कामाख्या देवी आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कामाख्या में कितने दिन चाहिए?

उत्तर: यदि आप कामाख्या मंदिर दर्शन करने का सोच रहे हैं तो उसके लिए एक दिन ही पर्याप्त रहता है लेकिन आप इसके साथ ही आसपास के दर्शनीय स्थल भी देखना चाहते हैं तो दो से तीन दिन का समय पर्याप्त होता है।

प्रश्न: कामाख्या मंदिर का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: कामाख्या मंदिर एक शक्तिपीठ है और इसे सभी 51 शक्तिपीठों में सिद्ध शक्तिपीठ माना गया है। ऐसे में आप कामाख्या मंदिर को सिद्ध शक्तिपीठ भी कह सकते हैं।

प्रश्न: कामाख्या देवी की पूजा कब करनी चाहिए?

उत्तर: कामाख्या मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का कार्य नवरात्र के दिनों में होता है। इन दिनों कामाख्या मंदिर में देश-विदेश से करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं।

प्रश्न: कामाख्या मंदिर के पास कौन सी नदी बहती है?

उत्तर: कामाख्या मंदिर के पास ब्रह्मपुत्र नदी बहती है जो भारत में बहने वाली सबसे लंबी नदी है। यह चीन से शुरू होती है और भारत से होकर गुजरती है और उसके बाद बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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