कृष्ण अर्थात प्रेम की साक्षात मूरत जिसे हम कृष्ण प्रेम (Krishna Prem) भी कह सकते हैं। कान्हा के रूप में श्रीहरि ने एक ऐसा रूप धरा था जो सभी के दिलों में हमेशा के लिए बस गया। बाकि सभी रूप में उन्होंने हमें केवल धर्म की शिक्षा देकर एक आदर्श स्थापित किया लेकिन उनका कृष्ण अवतार बहुआयामी था।
इसलिये कोई कृष्ण को अपना पुत्र तो कोई प्रेमी, कोई पति तो कोई पिता, कोई मार्गदर्शक तो कोई ईश्वर समझता है। कान्हा एक ऐसे रूप थे जिन्हें हम किसी भी रूप में देख सकते हैं लेकिन उनका सबसे प्रसिद्ध रूप हैं प्रेमी का। इसे भगवान श्रीकृष्ण का प्रेम मंत्र (Krishna Prem Mantra) भी कह सकते हैं जिसे शायद ही शब्दों के माध्यम से पूर्ण रूप में समझाया जा सके। फिर भी आज हम श्री कृष्ण प्रेम को समझाने का एक तुच्छ प्रयास कर रहे हैं।
कृष्ण प्रेम क्या है? (Krishna Prem)
आखिर प्रेम ही तो भक्ति का दूसरा नाम है। प्रेम के बिना भक्ति नही और भक्ति के बिना प्रेम नही। प्रेम भक्ति के बिना ईश्वर का भी कोई मोल नही। हम जब कान्हा के ऊपर आधारित प्रेम कथाएं, गोपियों संग रासलीला, राधा संग प्रेम (Sri Krishna Prem) व महारास के बारे में सुनते हैं या संगीत में कान्हा की बंसी की धुन सुनते हैं या धारावाहिकों या मूर्तियों या चित्रों में कान्हा का रूप देखते हैं तो उन पर मोहित हो उठते हैं। तो जरा सोचिये जिस समय कान्हा ने गोकुल में ग्वाले के रूप में अवतार लिया तब उनका असली रूप कितना मनोहर रहा होगा।
अपने उस मनोहर रूप के साथ जब वे वृंदावन के वनों में यमुना किनारे मुरली बजाया करते होंगे तब सभी की क्या दशा होती होगी। विश्व की सभी भाषाओँ से परे वह धुन एक ऐसी ध्वनि थी जिसमें कोई शब्द नही अपितु हृदय को चीर देने वाला संगीत था।
उसी कान्हा के परमब्रह्म रूप को देखने के लिए हम आकाश में देखते हैं क्योंकि हमें पता है वे वहां पर है। हम लोग चाहते हैं कि हम उन्हें महसूस कर सके तथा उन्हें देख सके किंतु क्या आप जानते हैं कि इसके द्वारा कान्हा का क्या संदेश था? वह केवल एक भौतिक व शारीरिक प्रेम नही था तथा शारीरिक प्रेम से इस दिव्य प्रेम (Krishna Prem) की अनुभूति भी नही हो सकती। यह केवल शरीर को छू लेने या उसे देखने मात्र का प्रेम नही था अन्यथा ऐसे असीमित आनंद की अनुभूति नही होती।
यह तो आत्माओं का परमात्मा से मिलन था। यह कथन स्वयं श्रीकृष्ण ने मदभागवत कथा में कहा हैं तथा महारास में भी दिखाया हैं जब उन्होंने अनेकों रूप धरकर प्रत्येक गोपी संग महारास रचाया था। इसका अर्थ था कि उस समय उन्होंने अनेक रूप नही लिए था अपितु सभी को अपने पास कान्हा की अनुभूति करवा दी थी और वह केवल निश्छल प्रेम से ही हो सकती हैं।
भगवान कृष्ण से प्रेम कैसे करें?
कान्हा को देखने के लिए यह आवश्यक नही कि हमारा द्वापर युग में वृंदावन में होना आवश्यक हो, उसके लिए आप अभी इसी समय उनके रूप के दर्शन कर सकते है व जब जी चाहे उनसे प्रेम कर सकते है। स्वयं कान्हा ने ही कहा हैं कि वे सभी प्राणियों के अंदर विद्यमान हैं इसलिये यदि आपका प्रेम (Krishna Prem Mantra) सच्चा व निःस्वार्थ हैं तो वे आपको अपने अंदर हृदयपटल में दिखाई देंगे। यकीन मानिये जब आपने कान्हा को अपने हृदयपटल पर महसूस कर लिया तो जो प्रेम व आनंद की अनुभूति उस समय होगी वह कोई शारीरिक छवि नही दे सकती।
यही परमब्रह्म का रूप हैं व यही रूप कान्हा ने अनेकों गोपियों को दिखाया था। इसलिये उनके महारास या रासलीला को शब्दों में व्यक्त शायद ही किया जा सके क्योंकि वह एक अनुभूति थी जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, शब्दों में व्यक्त नही। कान्हा को पाना हैं या उन्हें महसूस करना हैं तो वे स्वयं आप ही हैं। उन्हें अपने अंदर महसूस करिए व फिर देखिये कान्हा आपसे कितना प्रेम (Sri Krishna Prem) करते हैं।
कृष्ण प्रेम से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: श्री कृष्ण के अनुसार प्रेम क्या है?
उत्तर: श्री कृष्ण के अनुसार प्रेम केवल शारीरिक या भौतिक नहीं होकर आत्मा का आत्मा से मिलन होता है। प्रेम अपने प्रेमी के लिए त्याग व समर्पण की भावना रखता है। तभी इसे निश्छल प्रेम की संज्ञा दी जा सकती है।
प्रश्न: कृष्ण से प्रेम कैसे करें?
उत्तर: यदि आपको कृष्ण से प्रेम करना है तो सबसे पहले स्वयं से प्रेम करना सीखो। इसके लिए अपने अंतर्मन से कृष्ण का ध्यान करो, उनकी छवि को अपने हृदय पर देखो। आपको स्वतः ही कृष्ण से प्रेम होने लग जाएगा।
प्रश्न: कृष्ण को पाने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर: कृष्ण को पाने का एक ही तरीका है और वह है उनके प्रति निश्छल प्रेम। इसके लिए श्रीकृष्ण के चरणों में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देना होता है। श्रीकृष्ण को अपने अंदर देखे और उनके प्रति संपूर्ण समर्पण भाव रखे।
प्रश्न: कृष्ण के अनुसार किसी से प्यार कैसे करें?
उत्तर: कृष्ण के अनुसार किसी के प्रति प्यार या प्रेम बहुत ही अटूट रिश्ता होता है। इसके लिए आपको अपना स्वस्थ नहीं देखना होता है बल्कि अपने प्रेमी के प्रति त्याग व समर्पण की भावना रखनी होती है।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: