स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Swami Dayanand Saraswati Ka Jivan Parichay)

Swami Dayanand Saraswati In Hindi

आज हम आपके सामने स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Swami Dayanand Saraswati In Hindi) रखने जा रहे हैं वेभारतीय समाज में जन्मे एक समाज सुधारक, वेदों शास्त्रों के ज्ञाता, कुरीतियों के विरुद्ध लड़ने वाले, महान चिंतक व आर्य समाज के संस्थापक थे। उन्होंने भारतीय समाज में फैली कई कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी व उन्हें समाप्त करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

साथ ही वे वेदों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे व उनका प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में करना चाहते थे। स्वामी जी के विचार धार्मिक, राजनीतिक, शिक्षा व सामाजिक सुधार से जुड़े हुए थे। ऐसे में आज हम आपके सामने स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Swami Dayanand Saraswati Ka Jivan Parichay) विस्तृत रूप में रखने जा रहे हैं।

Swami Dayanand Saraswati In Hindi | स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय

स्वामी दयानंद सरस्वती जी भारतवर्ष में जन्मे एक ऐसे महान पुरुष थे जिन्होंने धर्म में फैली कई कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने अपने जीवनकाल में केवल हिन्दू धर्म पर ही टिपण्णी नहीं की अपितु उन्होंने विश्व के अन्य धर्मों पर भी अपने विचार रखे। इन्हें हम इसी लेख में स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार के अंतर्गत पढ़ेंगे।

सबसे पहले तो हम दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Dayanand Saraswati Ka Jivan Parichay) आपके सामने रखने वाले हैं। यहाँ आपको स्वामी जी के जन्म, माता-पिता, मूल नाम, जाति, परिवार इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाएगी।

  • स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म गुजरात के टंकारा में हुआ था।
  • स्वामी दयानंद का जन्म 12 फरवरी 1824 ईस्वी में मूल नक्षत्र में हुआ था।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती का वास्तविक नाम मूलशंकर था। इसे हम स्वामी दयानंद के बचपन का नाम भी कह सकते हैं।
  • स्वामी जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती के माता-पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी व यशोदाबाई था।

स्वामी जी के पिता शिव भक्त थे और वे बचपन से ही उन्हें भगवान शिव की उपासना करना व व्रत रखना सिखाया करते थे। एक दिन स्वामी जी महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में रखे प्रसाद को देखने के लिए रात भर जागे रहे और देखा कि शिवजी के लिए रखा प्रसाद एक चूहा खा रहा है। यह देखकर उन्होंने अपने पिता से भगवान के अस्तित्व को लेकर वाद-विवाद किया।

कुछ समय पश्चात, अपने चाचा व छोटी बहन की मृत्यु ने उन्हें अंदर तक झंकझोर के रख दिया था। इसने उन्हें मनुष्य के जीवन-मृत्यु के बारे में गहराई से सोचने को विवश किया। उनके माता-पिता उनका विवाह जल्द करवा देना चाहते थे किंतु स्वामी जी को विवाह नहीं करना था। उनका मन समाज के लिए कार्य करने का था, इसलिए उन्होंने सन 1846 में अपने घर को छोड़ दिया।

स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Swami Dayanand Saraswati Ka Jivan Parichay)

अब हम स्वामी जी के घर छोड़ने के बाद के जीवन के बारे में बात करने वाले हैं। इसके बाद ही उनका असली कार्य शुरू हुआ था। घर छोड़ कर जाने के बाद ही स्वामी जी को अपने गुरु मिले थे। गुरु से मिलने से पहले वे कई वर्षों तक इधर-उधर सत्य की खोज में भटकते ही रहे। अंत में जाकर उन्हें अपने गुरु मिले जिन्होंने उनका मार्गदर्शन किया।

इसके बाद ही उन्होंने प्रसिद्ध आर्य समाज की स्थापना की थी तथा एक नारा दिया था। वह नारा आज आर्य समाज का प्रमुख नारा है और सभी आर्य समाजी उसी का ही पालन करते हैं। आइए स्वामी जी के घर छोड़ने के बाद का विवरण भी जान लेते हैं।

  • स्वामी दयानंद सरस्वती के गुरु कौन थे?

बहुत लोग Swami Dayanand Saraswati Ke Guru Kaun The, के बारे में भी जानना चाहते हैं। चलिए इस प्रश्न का भी उत्तर जान लेते हैं। घर से निकलने के बाद उन्होंने एक साधु की भांति अपना जीवनयापन किया व लगभग 25 वर्षों तक सत्य की खोज में वनों, पहाड़ों पर घूमते रहे। इस दौरान वे स्वामी विरजानंद जी के संपर्क में आए। स्वामी विरजानंद जी ही स्वामी दयानंद सरस्वती के गुरु बने। उन्होंने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से वेदों, शास्त्रों, संस्कृत भाषा व अन्य धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया।

वेदों ने स्वामी जी को बहुत प्रभावित किया। स्वामी विरजानंद जी ने उनसे कहा कि लोग आजकल हिंदू धर्म के मूल अर्थात वेदों को भूल चुके हैं व समाज में कई बुराइयां व्याप्त हो चुकी हैं। तो स्वामी दयानंद जी ने निश्चय किया कि वे समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाएंगे व लोगों को वेदों की ओर वापस लेकर आएंगे।

  • स्वामी जी का वेदों की ओर लौटो का नारा

वेदों व सभी शास्त्रों का अध्ययन करने के पश्चात लोगों को धर्म के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने विश्वप्रसिद्ध नारा वेदों की ओर लौटो का नारा दिया। स्वामी जी का यह नारा आज भी उन्हें मानने वालों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने हिंदू धर्म का मुख्य आधार वेदों को ही माना। इसी के साथ उन्होंने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों का विरोध किया व अंतर-जातीय विवाह व विधवा विवाह का समर्थन किया।

  • आर्य समाज की स्थापना

सन 1875 में उन्होंने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य भारत वर्ष में धर्म की स्थापना करना व वेदों का प्रकाश फैलाना था। उन्होंने धर्म का ज्ञान फैलाने के उद्देश्य से कई पुस्तकों की भी रचना की। साथ ही आर्य समाज के 10 सूत्रीय नियम थे जिनका नाम था कृण्वन्तो विश्वमार्यम् अर्थात विश्व को आर्य बनाते चलो।

  • दयानंद सरस्वती जी का हिंदी भाषा के प्रति प्रेम

स्वामी दयानंद जी को हिंदी भाषा से अत्यधिक लगाव था और वे भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी को बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारत के विभिन्न राज्यों में आपस में बोली जाने वाली आम भाषा अंग्रेजी ना होकर हिंदी हो व हम अपनी संस्कृति पर गर्व कर सकें।

हालांकि उनकी मातृभाषा गुजराती थी व धर्म भाषा संस्कृत थी किंतु हिंदी एक ऐसी भाषा थी जिसे भारत के ज्यादातर सभी लोग बोल, समझ व पढ़ सकते थे। इसलिए उन्होंने संपूर्ण भारत की आम भाषा के लिए अपने देश की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा हिंदी को बनाने पर बल दिया।

स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार

जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि स्वामी जी ने प्रत्येक विषय पर अपने विचार रखे थे। फिर चाहे वह धार्मिक हो या राजनीतिक, शिक्षा से संबंधित हो या सामाजिक सुधार से जुड़ा हुआ कोई विषय। दयानंद सरस्वती जी ने समाज के हरेक वर्ग के उत्थान का कार्य किया था और उस पर अपने विचार प्रकट किए थे। अब हम एक-एक करके स्वामी दयानंद सरस्वती के विभिन्न विषयों के ऊपर रखे गए सभी तरह के विचारों को विस्तृत रूप में रखने जा रहे हैं

#1. स्वामी दयानंद सरस्वती के राजनीतिक विचार

स्वामी जी ने देशवासियों में मुगलों व अंग्रेजों से स्वतंत्रता की ललक जगाई व संपूर्ण भारत को आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक रूप से संगठित करने का कार्य किया। आर्य समाज से कई स्वतंत्रता सेनानी निकले जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहाँ तक कि महात्मा गाँधी व लोकमान्य तिलक भी उन्हें अपना आदर्श मानते थे।

सर्वप्रथम स्वराज का नारा भी स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ही दिया था जिसे लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी जी के विचारों से प्रभावित होकर कई युवा व समाज सुधारक आगे आए व देश के निर्माण में अपना योगदान दिया।

#2. दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार

स्वामी जी ने सर्वप्रथम अपने धर्म अर्थात हिंदू धर्म में फैली बुराइयों व कुरीतियों का विरोध किया। इस दौरान वे कई विद्वानों व पंडितों से मिले और उनके साथ शास्त्रार्थ कर उन्हें परास्त किया। उन्होंने विष्णु के रूपों श्रीराम व श्रीकृष्ण इत्यादि को भी भगवान मानने से मना कर दिया और उन्हें इतिहास के महापुरुष बताया। इस बात पर हिंदू धर्म में उन्हें लेकर बहुत विवाद भी हुआ।

तत्पश्चात उन्होंने अन्य धर्मों जैसे कि इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध व सिख धर्म का भी गहन अध्ययन किया व उनमें फैली बुराई व गलत नीतियों के विरुद्ध खड़े हुए। इस तरह उन्होंने केवल एक धर्म में ही व्याप्त कुरीतियों व प्रथाओं के विरुद्ध ना जाकर सभी धर्मों में फैली कुरीतियों को समाप्त करना अपना उद्देश्य समझा। उनका मुख्य कार्य समाज को एक नई दिशा देने का था ताकि लोग एक सभ्य, सुशिक्षित व स्वतंत्र समाज का निर्माण कर सकें।

स्वामी दयानंद सरस्वती व इस्लाम

स्वामी दयानंद सरस्वती ने जिस धर्म की नीतियों का प्रबल विरोध किया वो था इस्लाम। उन्होंने तो मोहम्मद को ढोंगी तक बता दिया था व कुरान को अल्लाह के शब्द मानने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि जो धर्म दूसरों से इतनी ईर्ष्या, हिंसा, जीवों की हत्या, महिलाओं को उपभोग की वस्तु माने, उसे वह भगवान के कहे शब्द नहीं मान सकते।

इसी तरह उन्होंने विश्व के अन्य मुख्य धर्मों पर भी अपने विचार रखे व सभी को नकार दिया। उन्होंने हिंदू धर्म में वेदों को वैज्ञानिक व जीवन जीने की पद्धति में सर्वश्रेष्ठ माना। उनके अनुसार धर्म का कार्य मनुष्य को श्रेष्ठ जीवन पद्धति, अहिंसा, अच्छाई व बुराई की समझ, सभी को समान अधिकार इत्यादि सिखाना है।

इसलिए उन्होंने आर्य समाज के 10 सूत्रीय नियम में एक नियम यह भी बनाया था कि ना केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व में वेदों का प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हो। उन्होंने संपूर्ण विश्व में हिंदू धर्म का फैलाव करने की इच्छा जताई।

#3. दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार

  • उन्होंने वेदों का अध्ययन कर कहा कि किसी मनुष्य की जाति उसकी परिवार की जाति के अनुसार ना होकर, कर्म के अनुसार निर्धारित होनी चाहिए।
  • समाज में शूद्रों के साथ हो रहे अत्याचार व भेदभाव के भी वे विरुद्ध थे। स्वामी जी ने उन्हें अधिकार दिलाने के लिए कई प्रयास किए। वे शूद्रों के उद्धार के पक्षधर थे।
  • महिलाओं की शिक्षा पर उस समय ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था व शुरुआत से ही उन्हें घर का काम दे दिया जाता था, जिसका उन्होंने विरोध किया। वे महिलाओं को भी समान अधिकार व शिक्षित करने के समर्थक थे।
  • कुछ राज्यों में बच्चों के बाल विवाह की परंपरा थी। स्वामी जी ने इस प्रथा का भी पुरजोर विरोध किया।
  • उस समय तक कुछ जगह सती प्रथा भी प्रचलन में थी जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी को जलती चिता में स्वयं का आत्म-दाह करना होता था। उन्होंने इस कुरीति का भी पुरजोर विरोध किया।
  • इसी के साथ उस समय महिला के विधवा हो जाने के बाद उसे समाज के शुभ कार्यों से वंचित कर दिया जाता था व उसे एक असहाय जीवन व्यतीत करना होता था। समाज में एक विधुर पुरुष को पुनः विवाह करने का अधिकार था लेकिन विधवा महिला को नहीं। इसलिए उन्होंने विधवा विवाह का भी समर्थन किया।
  • उन्होंने मनुष्य को शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के उद्देश्य से योग व प्राणायाम को बढ़ावा दिया व सभी को प्रतिदिन योग करने के लिए प्रेरित किया।
  • उन्होंने लोगों को शाकाहार अपनाने के लिए भी प्रेरित किया। वे जीव-हत्या के विरोधी थे व सभी जीवों की रक्षा करना अपना दायित्व समझते थे।

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई?

स्वामी जी को धर्म के प्रति विरोधावासी विचार रखने व अंग्रेज़ सरकार के प्रति क्रांतिकारी विचारधारा रखने के कारण, कई बार षड़यंत्र के तहत मारने का प्रयास किया गया। इन प्रयासों में उन्हें विष देना, नदी में डुबोकर मारना इत्यादि प्रमुख है किंतु वे हर बार बच निकले। एक बार मुस्लिम समाज के लोगों ने उन्हें गंगा नदी में फेंक दिया था लेकिन अपनी योग शक्ति से वे बच गए थे।

फिर एक दिन जोधपुर के महाराज ने उन्हें आमंत्रित किया था जहाँ नन्ही नाम की एक वैश्या ने स्वामी जी के रसोइये के साथ मिलकर उनके दूध में पिसा हुआ कांच मिला दिया था। बाद में उनके चिकित्सक के द्वारा भी उन्हें धीमी मात्रा में विष दिया गया। लोगों के अनुसार इसमें अंग्रेज़ सरकार की भूमिका थी। अंत में 30 अक्टूबर 1983 को मंत्रों का उच्चारण करते हुए स्वामी जी ने अपना देह त्याग दिया।

निष्कर्ष

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Swami Dayanand Saraswati In Hindi) विस्तृत रूप में जान लिया है। यहाँ आपको विभिन्न विषयों पर दिए गए स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार भी पढ़ने को मिले। हालांकि यह भी एक सत्य है कि हिन्दू धर्म सहित अन्य सभी धर्मों ने उनके इन विचारों को मानने से मना कर दिया है।

स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: स्वामी दयानंद के बचपन का नाम क्या था?

उत्तर: स्वामी दयानंद के बचपन का नाम मूल शंकर था बाद में उनके गुरु ने उनका नाम दयानंद सरस्वती रखा था

प्रश्न: स्वामी दयानंद का जन्म कहां हुआ था?

उत्तर: स्वामी दयानंद का जन्म गुजरात राज्य के टंकारा में सन 12 फरवरी 1824 को हुआ था

प्रश्न: स्वामी दयानंद के गुरु कहां रहते थे?

उत्तर: स्वामी दयानंद अपना घर छोड़ने के बाद लगभग 25 वर्षों के लिए इधर-उधर भटकते रहे थे तभी उनकी भेंट अपने गुरु स्वामी विरजानंद जी महाराज से हुई थी

प्रश्न: स्वामी दयानंद सरस्वती के शिक्षा संबंधी विचार क्या है?

उत्तर: स्वामी दयानंद सरस्वती के शिक्षा संबंधी विचार आर्य समाज में सिखाये जाते हैं इसमें मुख्यतया वेदों का ज्ञान दिया जाता है और मानवता के गुण डाले जाते हैं

प्रश्न: स्वामी दयानंद का जन्म कब हुआ?

उत्तर: स्वामी दयानंद का जन्म सन 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था

प्रश्न: स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ?

उत्तर: स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म आज से लगभग 200 वर्षों पहले सन 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा हुआ था

प्रश्न: वेदों की ओर लौटो का नारा किसने दिया?

उत्तर: वेदों की ओर लौटो का नारा स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने दिया था जो आर्य समाज के संस्थापक भी थे

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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