विरोचन दैत्य नगरी का राजा (Virochan Kaun Tha) था जो बहुत ही दानवीर था। हालाँकि वह स्वयं इतना प्रसिद्ध नहीं हुआ लेकिन उसके पिता, दादा व पुत्र का नाम इतिहास में अत्यधिक प्रसिद्ध है। विरोचन के दादा का नाम हिरण्यकश्यप, पिता का नाम प्रह्लाद व पुत्र का नाम बलि था। जहाँ एक ओर उसके दादा का वध करने स्वयं भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में आए थे तो वही उनके ईटा विष्णु के प्रिय भक्त थे।
वही उनके पुत्र बलि का मानभंग करने भी भगवान विष्णु के वामन अवतार के रूप में जन्म लेना पड़ा था। प्रह्लाद के बाद उनके राज सिंहासन का उत्तराधिकारी विरोचन ही बना था। विरोचन अपने पिता के स्वभाव के अनुसार ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। आज हम विरोचन की कथा (Virochan Ki Katha) को जन्म से मृत्यु तक जानेंगे।
Virochan Kaun Tha | विरोचन की कथा
हिरण्यकश्यप की मृत्यु के पश्चात प्रह्लाद दैत्य नगरी का राजा बन गया था। जब वह बड़ा हुआ तब उसका विवाह धृति नामक स्त्री से हुआ। उससे विरोचन नामक पुत्र का जन्म हुआ जो अपने पिता के समान शक्तिशाली तथा दानवीर स्वभाव का था। प्रह्लाद के मोक्ष प्राप्त करने के पश्चात विरोचन तीनों लोकों का राजा बन गया। विरोचन की पत्नी का नाम विशालाक्षी था जिससे उसका पुत्र बलि हुआ था।
एक बार देवराज इंद्र तथा विरोचन भगवान ब्रह्मा/ प्रजापति के पास शिक्षा ग्रहण करने गए। वहां उन्होंने आत्मन अर्थात स्वयं को जानने की शिक्षा ग्रहण की। इंद्र तथा विरोचन ने बत्तीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण की। उसके पश्चात वे पुनः अपनी नगरी में आ गए।
हालाँकि विरोचन भगवान ब्रह्मा के द्वारा दी गयी शिक्षा को पूरी तरह आत्म-सात नही कर पाया था तथा आत्मन के रूप में शरीर की पूजा करने लगा था। उसने वापस आकर दैत्यों को भी यही ज्ञान दिया।
विरोचन की मृत्यु कैसे हुई?
एक दिन इंद्र ने छल से विरोचन का वध करवा दिया। चूँकि विरोचन बहुत दानवीर राजा था, इसलिये इंद्र प्रातःकाल ब्राह्मण का वेश धारण कर विरोचन की सभा में गया। उसने विरोचन से दान स्वरुप कुछ मांगने की चेष्ठा की। विरोचन ने ब्राह्मण को निराश न करने की आशा से उसे दान देने का संकल्प ले लिया।
इंद्र यह जानता था कि यदि वह उसका वध कर देगा तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या से उसे जीवित कर देंगे। इसका उपाय बस एक ही था और वह था विरोचन का मस्तक धड़ से अलग हो जाना। इसलिये इंद्र ने विरोचन का मस्तक ही मांग लिया। इंद्र के द्वारा विरोचन का मस्तक मांगे जाने के पश्चात उसने बिना देरी किये अपना मस्तक काटकर इंद्र को दे दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार देव-दैत्य संग्राम में विरोचन देव इंद्र के हाथों मारा गया था। इस प्रकार विरोचन का अंत हो गया तथा उसके पश्चात उसका पुत्र बलि दैत्य नगरी का राजा बन गया। बहुत जल्द बलि ने अपने पराक्रम के बल पर तीनो लोकों को जीत लिया और शक्तिशाली राजा बन गया। इस तरह से विरोचन की कथा (Virochan Ki Katha) का यहीं अंत हो जाता है।
विरोचन से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: विरोचन का पुत्र कौन था?
उत्तर: विरोचन का पुत्र राजा बलि थे। बलि ने अपनी शक्ति से ना केवल दैत्य नगरी पर राज किया बल्कि तीनो लोकों को अपने अधीन कर लिया था। फिर भगवान विष्णु ने उसका मान भंग किया था।
प्रश्न: विरोचन के कितने पुत्र थे?
उत्तर: राजा विरोचक का एक ही पुत्र था जिसका नाम राजा बलि था। विरोचन को अपनी पत्नी विशालाक्षी से बलि प्राप्त हुए थे।
प्रश्न: विरोचन के पुत्र का क्या नाम था?
उत्तर: विरोचन के पुत्र का नाम बलि था जो आगे चलकर दैत्य नगरी का अगला राजा बना।
प्रश्न: प्रहलाद की पत्नी कौन है?
उत्तर: प्रहलाद की पत्नी का नाम धृति है। इससे उन्हें विरोचन सहित कई पुत्रों की प्राप्ति हुई। प्रहलाद के बाद राज सिंहासन पर विरोचन ही बैठे थे।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: