राजा दशरथ की कहानी (Raja Dashrath Ki Kahani) मुख्य रूप से श्रीराम के जन्म के समय से शुरू होती है। वैसे तो उन्हें इतिहास का परम प्रतापी राजा भी कहा जाता है। वे रामायण के एक ऐसे पात्र थे जो भाग्यशाली तो थे क्योंकि उनके पुत्र भगवान श्रीराम थे लेकिन साथ ही अभागे भी क्योंकि उनके जीवन में अपने पुत्र के साथ रहने का सुख नही लिखा था।
राजा दशरथ का जन्म महान कुल जिसे सूर्यवंशी, इश्वाकू व रघुवंश के नाम से जाना जाता हैं, उसमे हुआ था। उनकी तीन पत्नियाँ थी व पांच पुत्र-पुत्रियाँ। आज हम राजा दशरथ के जन्म से लेकर मृत्यु तक का वृतांत (Raja Dashrath Kaun The) आपको बताएँगे।
Raja Dashrath Ki Kahani | राजा दशरथ की कहानी
दशरथ का जन्म कौशल नरेश अज के घर में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम अज व इंदुमती था। बचपन में उनका नाम नेमी था लेकिन बाद में दशरथ पड़ गया। दशरथ का अर्थ होता हैं दसो दिशाओं में रथ। दरअसल दशरथ जब युद्ध करने जाते थे तो वे अपनी रथ को सभी दस दिशाओं में लेकर जा सकते थे व भयंकर युद्ध कर सकते थे, इसलिये उनका नाम दशरथ पड़ गया।
अपने माता-पिता की मृत्यु के पश्चात दशरथ कौशल देश के राजा बने जिसकी राजधानी अयोध्या थी। वे अत्यंत पराक्रमी व शक्तिशाली योद्धा थे जिन्होंने एक बार देवासुर संग्राम में देवताओं की ओर से युद्ध भी लड़ा था। ऐसे में राजा दशरथ का इतिहास (Dashrath Kaun The) श्रीराम के जन्म से पहले भी गौरवशाली रहा था।
अभी तक आपने राजा दशरथ के जन्म के बारे में जान लिया है। उसके बाद उनके जीवन में कई घटनाएँ हुई जो इतिहास के पन्नों में लिखी गई। उदाहरण के तौर पर दशरथ को श्रवण के माता-पिता का श्राप, उनका विवाह, श्रीराम व अन्य पुत्रों का जन्म, कैकई षड़यंत्र, राम वनगमन व अंत में पुत्र वियोग में मृत्यु प्रमुख है। ऐसे में हम हरेक घटना को संक्षेप में आपके सामने रखने जा रहे हैं।
दशरथ को श्रवण के माता-पिता का श्राप
जब दशरथ राजकुमार थे तब वे शिकार खेलने जाया करते थे। एक दिन जब वे सरयू नदी के किनारे शिकार कर रहे थे तब वहां पर श्रवण अपने बूढ़े व अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा करवाते समय विश्राम करने रुका था। दशरथ ने श्रवण को हिरण समझकर उस पर तीर चला दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। अपने बेटे की मृत्यु से कुपित होकर श्रवण के माता-पिता ने दशरथ को पुत्र वियोग में मरने का श्राप दिया व अपने प्राण त्याग दिए।
राजा दशरथ का विवाह
जब दशरथ विवाह योग्य हुए तो उनका विवाह सर्वप्रथम मगध देश की राजकुमारी कौशल्या के साथ हुआ। उसके बाद उन्होंने दो और विवाह किए जिसमे उनकी दूसरी पत्नी कैकेय देश की राजकुमारी कैकई व तीसरी पत्नी काशी देश की राजकुमारी सुमित्रा थी। तीनों रानियों में दशरथ को कैकई सबसे प्रिय थी क्योंकि वह सुंदर होने के साथ-साथ युद्धकला में भी निपुण थी। इस कारण राजा दशरथ उन्हें अपने साथ युद्ध पर भी लेकर जाते थे।
दशरथ की पुत्री का नाम
विवाह के कुछ समय पश्चात दशरथ व कौशल्या के घर एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम शांता था। वर्षिणी जो कि रानी कौशल्या की बहन व अंगदेश की महारानी थी, एक दिन अपने पति राजा रोमपद के साथ दशरथ के महल में आयी हुई थी। उनके कोई संतान नही थी, यह देखकर दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद दे दिया जिसका विवाह बाद में ऋषि श्रृंग मुनि से हुआ था।
राजा दशरथ देवासुर संग्राम
एक बार देवताओं व असुरों के बीच भयानक युद्ध चल रहा था। उस युद्ध में देव इंद्र राजा दशरथ से सहायता मांगने आये थे। तब दशरथ अपनी दूसरी पत्नी कैकेयी के साथ उस युद्ध में भाग लेने गए थे। दुर्भाग्य से युद्ध में दशरथ बुरी तरह घायल हो गए तब कैकेयी ने ही अपनी समझदारी से दशरथ के प्राण बचाए व उनका उपचार किया था।
रानी कैकेयी की चतुराई व कर्तव्यनिष्ठा से प्रसन्न होकर दशरथ ने उन्हें दो वर मांगने को कहा। रानी कैकेयी ने उस समय तो कुछ नही माँगा लेकिन दशरथ से यह कह दिया कि समय आने पर वह उनसे यह दो वर मांग लेंगी। राजा दशरथ ने कैकेयी को वे दो वचन कभी भी उनसे मांगने को कह दिया। यह दो वचन ही राजा दशरथ की कहानी (Raja Dashrath Ki Kahani) का दुखद अंत करते हैं।
राजा दशरथ का पुत्र कमेष्टि यज्ञ
कई वर्षों तक दशरथ को कोई पुत्र प्राप्त नही हुआ। इससे वे बहुत चिंतित थे क्योंकि अयोध्या की प्रजा अपने अगले राजा के जन्म लेने की प्रतीक्षा में थी। तब अपने राजगुरु वशिष्ठ के परामर्श पर दशरथ ने अपने दामाद ऋषि श्रृंग मुनि से संपर्क कर पुत्र कामेष्टि यज्ञ आयोजित करवाया। उस यज्ञ के फल स्वरुप ऋषि ने उन्हें एक खीर का प्याला दिया जिसे तीनो रानियों को खाना था। वह खीर का प्याला तीनो रानियों ने आपस में बांटकर खा लिया।
राजा दशरथ के कितने पुत्र थे?
पुत्र कामेष्टि यज्ञ के फलस्वरुप दशरथ के घर चार पुत्रों का जन्म हुआ। इसमें उन्हें सबसे बड़ी रानी से श्रीराम प्राप्त हुए जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। दूसरी रानी कैकेयी से उन्हें भरत तथा तीसरी रानी से दो पुत्र लक्ष्मण व शत्रुघ्न की प्राप्ति हुई। कुछ वर्षों तक राजमहल में उनका लालन-पालन करने के पश्चात दशरथ ने उनका विद्या संस्कार करके महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने भेज दिया।
राजा दशरथ और श्रीराम
जब चारो भाई अपनी शिक्षा पूर्ण करके वापस अयोध्या आ गए तो राजमहल में फिर से खुशी छा गयी। दशरथ भी अपने सभी पुत्रों के चरित्र को लेकर बहुत प्रसन्न थे तथा अब अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाना चाहते थे। तब उन्होंने अपनी मंत्रिपरिषद बुलाकर विचार-विमर्श किया कि अब उन्हें अयोध्या का राज सिंहासन अपने सबसे बड़े पुत्र राम को देकर सन्यास ले लेना चाहिए।
उनके इस प्रस्ताव से सभा में सभी सहमत थे तथा राजगुरु वशिष्ठ ने भी इसकी आज्ञा दे दी। उस समय उनके दो पुत्र भरत व शत्रुघ्न अपने नाना के घर कैकेय गए हुए थे। दशरथ (Raja Dashrath Kaun The) ने राम को बुलाकर अपना निर्णय सुना दिया जिसे श्रीराम ने भी पिता की आज्ञा मानकर स्वीकार कर लिया।
कैकेयी का कोपभवन जाना
राजा दशरथ ने अगले दिन श्रीराम के राजभिषेक की घोषणा पूरे राज्य में करवा दी। इस घोषणा से चारो ओर उल्लास का वातावरण छा गया लेकिन मंथरा जो कि कैकेयी की सबसे प्रिय दासी थी, उसने कैकेयी को भड़का दिया तथा उसके पुत्र भरत को राजा बनाने को कहा।
तब मंथरा की योजना के अनुसार कैकेयी उस रात को कोपभवन में चली गयी। कोपभवन वह होता हैं जहाँ रानी अपने सभी आभूषण, राजसी वस्त्र इत्यादि त्यागकर राजा से नाराज़ होकर चली जाती हैं। फिर उस रात राजा को रानी को मनाने कोपभवन में अवश्य जाना होता हैं। जब राजा दशरथ को यह बात पता चली तो वे आनन-फानन में कोपभवन गए।
दशरथ कैकेयी संवाद
राजा दशरथ कैकेयी का यह स्वरुप देखकर अत्यंत डर गए तथा उनसे जो इच्छा हो वह मांगने को कहा। कैकेयी ने अपने वही दो वचन मांगे जो उन्होंने देवासुर संग्राम में उसे दिए थे। राजा दशरथ इसके लिए तैयार हो गए तथा उससे कुछ भी मांगने को कहा।
तब कैकेयी ने अपने दो वचनों में भरत का राज्याभिषेक व श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास मांग लिया। यह दो वचन सुनकर दशरथ अंदर तक हिल गए थे तथा प्रलाप करने लगे थे।
राजा दशरथ का श्री राम के विरह में विलाप
पूरी रात दशरथ कैकेयी के कक्ष में बैठे रोते रहे व उससे अपने यह वचन वापस लेने की याचना करते रहे किंतु कैकेयी टस से मस नही हुई। प्रातःकाल जब यह समाचार श्रीराम को मिला तो उन्होंने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए वनवास जाने का निर्णय लिया। उनके साथ उनकी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण ने भी वनवास जाने का निर्णय ले लिया।
दशरथ (Dashrath Kaun The) चाहते हुए भी उन्हें नही रोक पाए और अपने पुत्र के आदर्शों के आगे उन्हें झुकना पड़ा। अंत मे श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण दशरथ की आँखों के सामने वनवास चले गए।
राजा दशरथ द्वारा कैकेयी का त्याग
श्रीराम के वनवास प्रस्थान के पश्चात दशरथ बुरी तरह प्रलाप करने लगे थे। तब जैसे ही उन्होंने कैकेयी को देखा तो उनका क्रोध फूट पड़ा। उन्होंने उसी समय कैकेयी का त्याग कर दिया व अपनी पत्नी मानने से मना कर दिया।
अब राजा दशरथ न तो मंत्रिपरिषद में जाते व ना ही राजकाल सँभालते। उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था तथा हमेशा श्रीराम का नाम ही जपते रहते व रोते रहते थे। कई बार निद्रा में उनकी आँख खुल जाती और वे राम-राम चिल्लाने लगते थे। उनकी यह दशा देखकर राजमहल में सभी दुखी थे।
राजा दशरथ की मृत्यु
अंत में एक दिन राजा दशरथ ने श्रीराम के वियोग में ही अपने प्राण त्याग दिए। अपनी मृत्यु से पहले उन्हें श्रवण के माता-पिता का दिया हुआ श्राप याद आया जो उन्होंने उसे दिया था। आखिरकार दशरथ ने पुत्र वियोग में ही अपने प्राण त्याग दिए। दशरथ की मृत्यु के पश्चात पूरी अयोध्या में शोक व्याप्त हो गया।
राजा दशरथ का अंतिम संस्कार
दशरथ के चार पुत्र थे लेकिन वे इतने अभागे थे कि उनकी मृत्यु के समय उनका एक भी पुत्र उनके पास नही था। उनके दो पुत्र चौदह वर्ष के वनवास पर थे तो दो पुत्र कैकेय देश गए हुए थे। ऐसे समय में अयोध्या का शासन राजगुरु महर्षि वशिष्ठ के हाथो में आ गया था।
महर्षि वशिष्ठ ने दशरथ के शरीर को औषधि युक्त तैलीय पदार्थ में सुरक्षित रखने का आदेश दिया। इसके साथ ही उन्होंने कुछ सैनिकों को तुरंत कैकेय देश जाकर भरत व शत्रुघ्न को तीव्र गति से अयोध्या लौटने का आदेश दिया। महर्षि वशिष्ठ का आदेश पाकर भरत व शत्रुघ्न तुरंत अयोध्या के लिए निकल पड़े।
वापस आकर उन्हें संपूर्ण घटना का ज्ञान हुआ। इसके पश्चात भरत ने अयोध्या का राजसिंहासन ठुकरा दिया व अपनी माँ कैकेयी का हमेशा के लिए त्याग कर दिया। उन्होंने विधिवत अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार किया व श्रीराम को वनवास से वापस लेने चित्रकूट के लिए निकल पड़े। इस तरह से राजा दशरथ की कहानी (Raja Dashrath Ki Kahani) का यहीं अंत हो जाता है।
राजा दशरथ की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राजा दशरथ नाम क्यों पड़ा?
उत्तर: राजा दशरथ युद्ध की स्थिति में अपने रथ को दसों दिशाओं में तेजी के साथ घुमा सकते थे। इस कारण उनका नाम दशरथ पड़ गया था।
प्रश्न: राजा दशरथ की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर: राजा दशरथ का जन्म अयोध्या के राज परिवार में हुआ था। उनके पिता अयोध्या के राजा अज व माता इंदुमती थी।
प्रश्न: महाराज दशरथ का असली नाम क्या था?
उत्तर: महाराज दशरथ का असली नाम नेमी था जो उन्हें उनके माता-पिता ने दिया था। बाद में उनका नाम दशरथ पड़ गया था क्योंकि वे अपने रथ को दसों दिशाओं में ले जा सकते थे।
प्रश्न: राजा दशरथ की पुत्री कैसे पैदा हुई?
उत्तर: कुछ रामायण में यह लिखा गया है कि श्रीराम के जन्म से बहुत पहले राजा दशरथ को अपनी पत्नी कौशल्या से एक पुत्री प्राप्त हुई थी जिसका नाम शांता था।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: