Ram Ka Roop: राम जी कैसे दिखते थे? (Ram Ji Kaise Dikhte The)

Ram Ka Roop

श्रीराम हम सभी के मन में बसते हैं। राम का रूप (Ram Ka Roop) चाहे जैसा भी था, वह अद्भुत था। उन्होंने जन्म तो त्रेतायुग में लिया था लेकिन आज भी उनकी दी गयी शिक्षाएं सार्थक है। उनके जीवन को समर्पित समय-समय पर कई ग्रंथ व काव्य लिखे गए हैं जिसमें से सर्वप्रथम महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण है तो दूसरी गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस है।

दोनों में ही श्रीराम के स्वरुप का वर्णन किया गया है। ऐसे में आज हम आपके इस प्रश्न का भलीभांति उत्तर देंगे कि राम जी कैसे दिखते थे (Ram Ji Kaise Dikhte The)? श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे जिनका रूप दैवीय व अलौकिक होने के साथ-साथ सभी गुणों से परिपूर्ण था। ऐसे में आइये जाने वाल्मीकि रामायण व तुलसीदास रामचरितमानस के अनुसार श्री राम का रूप कैसा था।

राम का रूप (Ram Ka Roop)

त्रेता युग में जब श्रीराम ने शिशु रूप में माँ कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया तो चारों ओर एक दिव्य प्रकाश फैल गया था। जब उन्हें पहली बार सरयू नदी के पवित्र जल से स्नान करवाया गया और उसके बाद जिसने भी उन्हें देखा तो देखता ही रह गया। हर अयोध्यावासी के मन में श्रीराम के बालरूप की वह छवि अंकित हो गयी थी।

इसके बाद महर्षि वाल्मीकि जी को भगवान ब्रह्मा जी के वरदान से दिव्य शक्ति प्राप्त हुई और देवर्षि नारद मुनि के सानिध्य में उन्होंने रामायण की रचना की जिसमें श्रीराम के रूप का संस्कृत भाषा में वर्णन (Ram Ka Roop Sanskrit) है। इसके बाद समय-समय पर कई महापुरुषों ने अपनी दिव्य शक्ति व रामायण को आधार मानकर अपनी-अपनी भाषाओं में राम जी के जीवन को लिखा। हर ग्रंथ में कई भिन्नताएं थी लेकिन सभी की मूल भावना एक ही थी।

उस युग में रामजी का स्वरुप (Ram Kaise Dikhte The) इतना चमत्कारिक था कि स्वयं कामदेव भी उनके समक्ष कुछ नहीं थे। तुलसीदास जी ने स्वयं लिखा है कि राम जी के रूप में करोड़ों कामदेव की शोभा थी अर्थात उनका रूप इतना अद्भुत था कि स्वयं कामदेव भी उनके समक्ष गौण थे। ऐसे में हम राम जी के पूर्ण स्वरुप को आपके सामने रखने जा रहे हैं ताकि आप मन ही मन श्रीराम की छवि को अपने मन में बना सकें।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार – राम जी कैसे दिखते थे? (Ram Ji Kaise Dikhte The)

यदि आपको श्रीराम के रूप को समझना है तो उसके लिए वाल्मीकि रामायण का संदर्भ ही लेना होगा। श्रीराम के रूप चरित्र का सबसे पहले वर्णन महर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा ही किया गया है। उसके बाद श्रीराम के जीवन से संबंधित लिखे गए हरेक ग्रंथ व काव्य ने वाल्मीकि रामायण को ही आधार बनाया है।

इसी के साथ ही राम जी के जीवन से संबंधित जो भी काव्य लिखे गए हैं उनमें से केवल श्रीराम को वाल्मीकि जी ने ही उनके युग में देखा था। इसी को ध्यान में रखकर महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण में राम का रूप (Ram Ka Roop) कुछ इस तरह से लिखा है कि जिसमें कोई त्रुटी नज़र नहीं आती। आइये जाने श्री राम की छवि।

  • राम जी का रंग

उत्तर भारत में ज्यादातर मंदिरों में श्रीराम को श्वेत वर्ण का दिखाया जाता है जबकि कृष्ण को श्याम वर्ण में। दक्षिण भारत में श्रीराम व श्रीकृष्ण दोनों को ही श्याम वर्ण में दिखाया जाता है जो उचित है। भगवान विष्णु का वर्ण श्याम है और उनके सभी अवतारों का वर्ण भी श्याम ही है। वाल्मीकि रामायण में भी श्रीराम के शरीर का वर्ण या रंग श्याम अर्थात सांवला बताया गया है।

  • राम जी के बाल

राम जी के केश अर्थात बाल लंबे, चमकदार, गहरे व काले रंग के थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के बाल थोड़े घुंघराले भी थे जिनकी लंबाई कंधों तक थी। वे अपने बालों को अधिकतर खुला रखते थे या फिर कभी-कभार सिर के ऊपर या पीछे बाँध लिया करते थे, जो उनके रूप को और भी दिव्य बना देता था।

  • राम जी की आँखें

राम जी की छवि में जो चीज़ सबसे अद्भुत थी, वह थी उनकी आँखें। उनकी आँखें बड़ी थी जो खिले हुए कमल पुष्प के समान लगती थी। उनकी आँखों में एक दिव्यता थी जो हर किसी को उन पर मोहित कर दिया करती थी। उनकी आँखों में जो भी ध्यान से देखता था, उसे उनके दैवीय अवतार होने का ज्ञान हो जाता था।

  • राम जी की नाक

वाल्मीकि जी ने संस्कृत में राम जी का जो रूप (Ram Ka Roop Sanskrit) लिखा है उसमें उनकी नाक का वर्णन महानासिका, सुडौल व मुख के अनुसार उन्नत बताया गया है। कहने का अभिप्राय यह हुआ कि श्रीराम की नाक उनके मुख के समान उन्नत व पूर्ण विकसित थी।

  • राम जी के होंठ

राम जी के दोनों होंठ एक जैसे रंग, रूप व आकार के थे। उनका रंग उगते हुए सूर्य के समान लालिमा लिए हुए था।

  • राम जी के कान

राम जी के कान भी नाक के समान बड़े-बड़े थे। वाल्मीकि जी श्री राम के रूप (Ram Ka Roop) का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उनके कान बड़े व उभरे हुए थे जिनमें कुंडल बहुत ही सुंदर लगते थे।

  • राम जी का चेहरा

श्रीराम के मुख को लेकर बहुत ही स्पष्ट वर्णन लिखा गया है। ऊपर आपने जो केश, आँख, नाक, कान व होंठ का वर्णन पढ़ा है, वह सभी मिलकर श्रीराम के मुख को अद्वितीय व अद्भुत बना देते थे। उनके मुख पर चंद्रमा के जैसी सौम्यता व चमक थी। वाल्मीकि जी ने श्रीराम के मुख को सौम्य, कांतिवान, गंभीर, निश्छल मुस्कान लिए हुए मर्यादा व साहस का तालमेल बनाते हुए वर्णित किया है।

  • राम जी के हाथ

श्रीराम के हाथ बहुत ही लंबे थे जो उनके घुटनों तक आते थे। ऐसे में वाल्मीकि रामायण में उन्हें आजानुभुज भी कहा गया है।

  • राम जी का उदर

श्रीराम का उदर अर्थात पेट ना ज्यादा निकला हुआ था और ना ही ज्यादा अंदर था। शरीर के निचले हिस्से के अनुरूप ना यह ज्यादा बड़ा था और ना ही ज्यादा छोटा। उनके उदर में तीन रेखाएं थी जो बहुत ही शुभ मानी जाती है।

  • राम जी के पैर

राम जी के हाथों की तरह ही पैरों की लंबाई भी अधिक थी। उनके पैर शरीर के ऊपरी हिस्से के समानुपात में थे अर्थात पैर की कुल लंबाई शरीर के ऊपरी भाग के बराबर थी।

इस तरह से वाल्मीकि जी ने अपनी रचना में राम जी कैसे दिखते थे (Ram Ji Kaise Dikhte The), इसका स्पष्ट रूप से वर्णन किया है। उनके रूप का इससे ज्यादा और विस्तृत वर्णन आपको किसी अन्य ग्रंथ में नहीं मिल सकता है। हालाँकि अन्य ने भी इसी को ही आधार मानकर श्रीराम के रूप का अपने-अपने मन से वर्णन किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता है।

तुलसीदास जी के अनुसार – राम कैसे दिखते थे? (Ram Kaise Dikhte The)

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बहुत ही सुंदर कथन लिखा है:

“जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।”

यहाँ तुलसीदास जी यह कहना चाह रहे हैं कि व्यक्ति के मन में राम जी को लेकर जिस भी तरह की भावना है अर्थात वह उन्हें जिस भी रूप में देखना चाहता है, श्रीराम उसके लिए वही रूप धारण कर लेते हैं। इस एक कथन से तुलसीदास जी श्रीराम के रूप को लेकर हर शंका पर पूर्ण विराम लगा देते हैं।

वाल्मीकि रामायण के बाद श्रीराम के जीवन से संबंधित जो ग्रंथ सबसे ज्यादा प्रचलित है, वह तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस ही है। मान्यता है की तुलसीदास जी वाल्मीकि जी का ही पुनर्जन्म थे जिन्होंने हनुमान जी को दिए वचन के अनुसार फिर से जन्म लेकर रामायण को विस्तृत रूप में लिखा था।

तुलसीदास जी राम के रूप का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उनका शरीर नील कमल व मेघ के समान था जिसका वर्ण श्याम था। वह रूप इतना दिव्य था कि उसके अंदर करोड़ो कामदेव की शोभा विद्यमान थी। बस इन्हीं दो कथनों के द्वारा तुलसीदास जी ने श्रीराम के रूप (Ram Ka Roop) का वर्णन किया है।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.