रानी कर्णावती का जौहर और उससे जुड़ी सच्चाई

रानी कर्णावती और हुमायूं कहानी

आज हम आपको रानी कर्णावती और हुमायूं कहानी (Rani Karnavati Aur Humayun Ki Kahani) बताने जा रहे हैं।  हम सभी को इतिहास की पुस्तकों में ज्यादातर यह कहानी पढ़ाई जाती है कि मुगल सम्राट हुमायूँ ने रानी कर्णावती के द्वारा राखी भिजवाने के बाद उनकी रक्षा करने के लिए बहादुर शाह जफर के साथ युद्ध किया था। किंतु हमें संपूर्ण कथा तथा इसके पीछे जुड़ी पूरी राजनीति के बारे में नहीं बताया जाता।

यदि सच में ऐसा हुआ होता तो रानी कर्णावती का जौहर (Rani Karnavati Ka Johar) नहीं होता। आज हम आपके सामने रानी कर्णावती के द्वारा हुमायूँ को राखी भिजवाने तथा हुमायूँ द्वारा बहादुर शाह जफर के साथ युद्ध करने की कथा का वर्णन संपूर्ण रूप से करेंगे ताकि आप सत्य से परिचित हो सकें।

रानी कर्णावती और हुमायूं कहानी

रानी कर्णावती जिन्हें कर्मवती के नाम से भी जाना जाता है, मेवाड़ के महाराज राणा सांगा की पत्नी थी। उस समय भारत देश की भूमि पर चारों ओर से मुगलों और अफगानों का आक्रमण हो रहा था। हर तरफ हिंदुओं का रक्त बहाया जा रहा था तथा मंदिरों व गुरुकुलों को तोड़ा जा रहा था। तब दिल्ली के नए मुगल राजा बने बाबर ने खानवा के युद्ध में मेवाड़ के राजा राणा सांगा को पराजित कर दिया था तथा लाखों की संख्या में हिंदुओं का कत्लेआम किया था।

उसके कुछ समय पश्चात वर्ष 1928 में राणा सांगा की मृत्यु हो गई और रानी कर्णावती विधवा हो गई। दरअसल राणा सांगा फिर से युद्धभूमि में जाना चाहते थे क्योंकि वे अपने मेवाड़ को बर्बर मुगलों के हाथ में नहीं जाने देना चाहते थे। किंतु उससे पहले ही उनके किसी परिचित ने उन्हें जहर दे दिया जिस कारण उनकी मृत्यु हो गई। अब सब कठिनाइयाँ इसके बाद से ही शुरू हुई जिस कारण आगे चलकर रानी कर्णावती को जौहर (Rani Karnavati Ka Johar) करना पड़ा था। आइए जाने आगे का घटनाक्रम।

  • रतन सिंह बने मेवाड़ के राजा

राणा सांगा की एक और पत्नी थी जिनका नाम धनबाई था। उनसे उन्हें रतन सिंह नामक पुत्र था जो रानी कर्णावती के पुत्रों से बड़ा था। इसलिए रतन सिंह को मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। हालाँकि वे 2 से 3 वर्ष ही मेवाड़ के राज्य सिंहासन पर बैठ सके और वर्ष 1931 में एक भीषण युद्ध में उनकी भी मृत्यु हो गई।

राणा सांगा व रानी कर्णावती के दो पुत्र थे। बड़े पुत्र का नाम विक्रमादित्य तथा छोटे का नाम उदय सिंह था। हालाँकि दोनों ही बहुत छोटे थे। विक्रमादित्य की आयु 14 वर्ष थी तो वहीं उदय सिंह की मात्र 9 वर्ष। रतन सिंह की मृत्यु के पश्चात रानी ने अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य को उत्तराधिकारी बना दिया था।

उस समय चित्तोड़ का शासन मुगलों के हाथ में ना जाने पाए, इसलिए अपने पुत्र के पूरी तरह परिपक्व होने तक महारानी ने शासन अपने हाथों में ले लिया था। बस यहीं से रानी कर्णावती और हुमायूं कहानी (Rani Karnavati Aur Humayun Ki Kahani) की शुरुआत होती है।

  • बहादुर शाह जफर का आक्रमण

उस समय अवसर पाकर गुजरात के अफगान राजा बहादुर शाह जफर ने राजस्थान के मेवाड़ राज्य पर आक्रमण कर दिया। यह उसके लिए एक सुनहरा अवसर था क्योंकि राणा सांगा और रतन सिंह की मृत्यु हो चुकी थी। वहीं दूसरी ओर, विक्रमादित्य अभी अपरिपक्व तथा कमजोर राजा था जबकि उदय सिंह अभी बहुत छोटे थे। उस समय उदय सिंह की आयु मात्र 11 से 12 वर्ष के बीच रही होगी।

विक्रमादित्य एक बार पहले भी बहादुर शाह जफर के हाथों हार चुके थे तथा उनका सेना में प्रभाव भी बहुत कम था। इसलिए मेवाड़ की सेना ने विक्रमादित्य के नेतृत्व में लड़ना अस्वीकार कर दिया। तब रानी कर्णावती ने मेवाड़ की रक्षा करने के उद्देश्य से राजनीति का सहारा लिया तथा विक्रमादित्य व उदय सिंह को राज्य से दूर बूंदी जिले में भेज दिया तथा सेना को युद्ध करने का आदेश दिया।

  • रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी क्यों भेजी?

रानी कर्णावती को यह भी ज्ञात था कि मेवाड़ की सेना बहादुर शाह जफर की सेना की अपेक्षा अत्यधिक कम थी तथा एक मजबूत नेतृत्व का भी आभाव था। तब उन्होंने शत्रु के शत्रु की सहायता लेने के उद्देश्य से दिल्ली के सम्राट हुमायूँ की सहायता लेने का सोचा। उस समय राखी का पर्व भी पास में था इसलिए उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में लिया तथा हुमायूँ को राखी भिजवा दी।

उस समय क्रूर राजा हुमायूँ बंगाल पर चढ़ाई कर रहा था तथा वहाँ निरंतर हिंदुओं का रक्त बहा रहा था। उसने वर्तमान पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश में लाखों हिंदुओं की हत्या करवा दी थी तथा हजारों मंदिरों को तुड़वा डाला था। जब उसे रानी कर्णावती का संदेश प्राप्त हुआ तो उसने इस अवसर का लाभ उठाने का निर्णय लिया।

उसे यह भलीभाँति ज्ञात था कि राजा विक्रमादित्य एक कमजोर राजा है तथा यदि वह उसे राजा बना देगा तो एक तरह से चित्तोड़ उसके अधीन माना जाएगा। साथ ही वह मेवाड़ की राजपूत राजाओं की शक्ति को भी कम करना चाहता था। इसलिए वह योजना के अनुसार मेवाड़ की ओर बढ़ा लेकिन तय समय पर नहीं पहुँचा।

  • रानी कर्णावती का जौहर

हुमायूँ का उद्देश्य था कि उसके आने से पूर्व ही बहादुर शाह जफर राजपूत सेना का सफाया कर दे तथा उनकी शक्ति कमजोर हो जाए। इससे एक तो राजपूत सेना मारी जाती तथा बहादुर शाह की सेना भी थोड़ी कमजोर होती। इसके बाद वह अपनी सेना की सहायता से बहादुर शाह की सेना को आसानी से हराकर पीछे खदेड़ देता तथा मेवाड़ पर अपना अहसान जताता।

सब कुछ उसकी योजना के अनुसार हुआ तथा बहादुर शाह की सेना मेवाड़ पर टूट पड़ी। मेवाड़ के सैनिक तो अपने माथे पर भगवा बांधकर निकले थे तथा युद्ध भूमि से या तो जीतकर या वहीं प्राण न्योछावर करने के उद्देश्य से गए थे। इसलिए अंत में मेवाड़ की सेना का भयानक कत्लेआम हुआ। बाहर अपनी सेना को हारता देख रानी कर्णावती ने सभी रानियों तथा महिलाओं के साथ जौहर (Rani Karnavati Ka Jauhar) कर लिया।

यह राजस्थान के हुए तीन मुख्य जौहर के इतिहास में दूसरा जौहर था। जौहर अर्थात दुश्मनों के हाथों बहन-बेटियों द्वारा बलात्कार से बचने के लिए उनके अपने पास पहुँचने से पहले अग्नि में अपने शरीर को जलाकर भस्म कर देना।

  • मेवाड़ हुआ हुमायूँ के अधीन

जब राजपूत सेना हार गई तथा रानी व महिलाओं ने जौहर कर लिया तब हुमायूँ की मुगल सेना मेवाड़ पहुँची। उन्होंने आसानी से बहादुर शाह की कमजोर हो चुकी सेना को वापस जाने पर विवश कर दिया। उसके बाद हुमायूँ ने कर्णावती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य को फिर से वहाँ का राजा घोषित कर दिया व दिल्ली चला गया। अब एक तरह से विक्रमादित्य और मेवाड़ उसके अधीन था।

किंतु हुमायूँ की यह चाल ज्यादा समय तक ना चल सकी और राज परिवार में विद्रोह हो गया। विक्रमादित्य के चचेरे भाई बानवीर ने षड़यंत्र के तहत उनकी हत्या कर दी। यह वर्ष 1936 का समय था और बानवीर खुद राज सिंहासन पर बैठ गया। हालाँकि बानवीर भी हुमायूँ का गुलाम बनकर रह गया जिस कारण सेना व अधिकारियों में अत्यधिक रोष व्याप्त था।

  • उदय सिंह बने मेवाड़ के महाराज

बानवीर ने विक्रमादित्य की हत्या के बाद सिंहासन के उत्तराधिकारी उदय सिंह की हत्या करने का भी प्रयास किया। हालाँकि उदय सिंह की धाय माँ पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर उदय सिंह के प्राणों की रक्षा की। उसके बाद वर्ष 1940 में उदय सिंह ने बानवीर की हत्या कर दी और मेवाड़ की गद्दी पर बैठे।

उन्होंने हुमायूँ व मुगलों की सेना के सामने झुकने से साफ़ मना कर दिया और मेवाड़ को स्वतंत्र बनाए रखा। हालाँकि इसके लिए उन्हें कई भीषण युद्धों का सामना करना पड़ा था। आगे चलकर उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठे थे जिनके बारे में हम सभी जानते हैं।

तो यह थी रानी कर्णावती और हुमायूं कहानी (Rani Karnavati Aur Humayun Ki Kahani) की सच्चाई। हमें इतिहास में बहुत चीजें ऐसी पढ़ाई गई है जो ना तो पूर्ण सत्य है और साथ ही हमें भ्रमित भी करती है। एक तरह से हुमायूँ के पिता के कारण ही रानी कर्णावती विधवा हुई थी और उसकी चाल के कारण ही उन्हें जौहर भी करना पड़ा था।

रानी कर्णावती और हुमायूं कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: रानी कर्णावती ने जौहर क्यों किया?

उत्तर: रानी कर्णावती ने जौहर बहादुर शाह जफर के कारण किया था जफर ने मेवाड़ पर आक्रमण कर राजपूत सेनाओं की बर्बर तरीके से हत्या कर दी थी उसके बाद मुगलों से अपने सम्मान की रक्षा करने हेतु रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था

प्रश्न: महारानी कर्णावती किसकी पत्नी थी?

उत्तर: महारानी कर्णावती मेवाड़ के राजा राणा सांगा की पत्नी थी इससे उन्हें दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनके नाम विक्रमादित्य व उदय सिंह थे।

प्रश्न: रानी कर्णावती महाराणा प्रताप की क्या लगती थी?

उत्तर: रानी कर्णावती महाराणा प्रताप की दादी लगती थी रानी कर्णावती का विवाह मेवाड़ के राजा राणा सांगा के साथ हुआ था इससे उन्हें दो पुत्र विक्रमादित्य व उदय सिंह हुए। महाराणा प्रताप उदय सिंह के पुत्र थे

प्रश्न: महारानी कर्णावती कहाँ की रानी थी?

उत्तर: महारानी कर्णावती मेवाड़ की रानी थी उनके पति का नाम राणा सांगा था जो मेवाड़ के महाराज थे

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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