नवधा भक्ति रामायण चौपाई अर्थ सहित

नवधा भक्ति रामायण चौपाई

आज हम आपके सामने नवधा भक्ति रामायण चौपाई (Navdha Bhakti Ramayan) रखेंगे। यदि आपको ईश्वर को पाना है तो श्रीराम के मुख से निकली यह नवधा भक्ति आपके बहुत काम आने वाली है। इसी नवधा भक्ति को पाने के लिए शबरी जीवनभर प्रतीक्षा कर रही थी। इस कारण इसे शबरी की नवधा भक्ति (Shabri Navdha Bhakti) भी कहा जाता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि श्रीराम ने तो नवधा भक्ति को श्लोक या चौपाई के माध्यम से कहा था। ऐसे में आपको यह कैसे समझ में आएगी। इसलिए आज हम आपके साथ नवधा भक्ति रामायण चौपाई अर्थ सहित भी साझा करेंगे। चलिए जानते हैं भगवान राम ने रामायण में माता शबरी को कब और क्या ज्ञान दिया था जिसके तुरंत बाद उन्हें मोक्ष मिल गया था।

नवधा भक्ति रामायण चौपाई

शबरी भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त व मतंग ऋषि की शिष्य थी। जब भगवान श्रीराम अपने 14 वर्षों के वनवास में चित्रकूट पहुँचे थे तो उसी समय ऋषि मतंग ने समाधि ले ली थी व अपने लोक को चले गए थे। जाने से पहले उन्होंने अपनी शिष्य शबरी की ईश्वर भक्ति से प्रसन्न होकर उससे कहा था कि एक दिन भगवान विष्णु के रूप श्रीराम स्वयं तुम्हारी कुटिया में आएंगे व तुम्हारा उद्धार करेंगे।

तब से लेकर शबरी प्रतिदिन भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करती व उनके लिए अपनी कुटिया को सजाती। उसके अंदर अपने गुरु की भाँति धर्म का संपूर्ण ज्ञान पाकर मोक्ष प्राप्ति की इच्छा थी। एक दिन जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए माता शबरी की कुटिया में पहुँचे तो शबरी ने उनका आतिथ्य सत्कार किया।

भगवान राम भी शबरी की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न थे। अंत में जब भगवान राम जाने लगे तब शबरी ने अपने गुरु की बात उन्हें बताई व ज्ञान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की। तब प्रभु श्रीराम ने उन्हें मूक भाषा में हृदय से हृदय तक नवधा भक्ति का ज्ञान (Navdha Bhakti Ramayan) दिया। चलिए पढ़ते हैं नवधा भक्ति रामायण चौपाई।

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥

गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन, करइ कपट तजि गान॥

मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥

नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥
नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥

सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥
जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥

इस तरह से श्रीराम ने माता शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया था। इस ज्ञान को पाकर ही माता शबरी धन्य हो गई थी और मोक्ष प्राप्त कर गई थी।

नवधा भक्ति रामचरितमानस

ऊपर आपने जो नवधा भक्ति पढ़ी, वह श्रीराम ने माता शबरी (Shabri Navdha Bhakti) को सुनाई थी। इसमें ईश्वर के नाम की जगह मम या मैं का उल्लेख किया गया है। वह इसलिए क्योंकि इसे श्रीराम स्वयं बोल रहे हैं। वहीं यदि हम इसे शुद्ध रूप में पढ़ेंगे तो वहाँ मैं या मम की जगह हरि का उल्लेख होगा। ऐसे में आइए जाने नवधा भक्ति रामचरितमानस के माध्यम से।

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति प्रभु कथा प्रसंगा॥

गुर पद पंकज सेवा, तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति प्रभु गुन गन, करइ कपट तजि गान॥

मंत्र जाप प्रभु दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

सातवँ सम हरिमय नभ देखा। हरि ते संत अधिक करि लेखा॥
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥

नवम सरल सब सन छलहीना। हरि भरोस हियँ हरष न दीना॥
नवधा भक्ति शबरी कह दीनी। सादर सबरी शीश धरी लीनी॥

यहाँ हमने उन शब्दों को मोटे अक्षरों में लिखा है जहाँ-जहाँ हरि का उल्लेख किया गया है। आप ईश्वर का ध्यान कर किसी भी नवधा भक्ति का उच्चारण कर सकते हैं। इसमें मुख्य है इस नवधा भक्ति रामायण चौपाई को अर्थ सहित समझा जाना। इसलिए अब हम आपको नवधा भक्ति में हरेक भक्ति को विस्तार से बताएंगे।

नवधा भक्ति रामायण चौपाई अर्थ सहित

भगवान श्रीराम माता शबरी को नवधा भक्ति की शुरुआत इस पंक्ति से करते हैं: “नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं, सावधान सुनु धरु मन माहीं”। इस पंक्ति में भगवान श्रीराम शबरी या फिर भगवान श्रीहरि हम सभी को कहते हैं कि अब मैं तुम सभी को नवधा भक्ति बताने जा रहा हूँ। इसलिए सभी सावधान होकर सुने और इसे अपने मन में धारण करें।

इसके बाद भगवान श्रीराम नवधा भक्ति में हरेक भक्ति को श्लोक के माध्यम से कहते हैं आइए जाने प्रत्येक नवधा भक्ति के माध्यम से वे हमें क्या संदेश देना चाह रहे हैं

#1. पहली नवधा भक्ति

“प्रथम भगति संतन्ह कर संगा”

अर्थ: हमेशा संत लोगों के आचरण में रहो।

भावार्थ: संत लोग तुम्हारा उद्धार कर देंगे तो वहीं बुरे लोग तुम्हें उद्देश्य से भटका देंगे। सही लोगों के साथ रहने से तुम्हारा व्यवहार भी सही रहता है और तुम उत्तम जीवनयापन कर पाते हो। तभी हम आज कहते हैं कि बुरी संगति से दूर रहना चाहिए।

#2. दूसरी नवधा भक्ति

दूसरि रति प्रभु कथा प्रसंगा

अर्थ: ईश्वर की कथाओं को सुनो।

भावार्थ: शास्त्रों में ईश्वर की जो भी कहानियाँ लिखी गई है, उस हरेक कहानी का कोई ना कोई अर्थ है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि ईश्वर की प्रत्येक कहानी हमें कुछ ना कुछ शिक्षा देकर जाती है। ऐसे में प्रभु की कहानियों को सुनते रहना चाहिए ताकि हम अपने मार्ग से ना भटकें।

#3. तीसरी नवधा भक्ति

“गुर पद पंकज सेवा, तीसरि भगति अमान।”

अर्थ: अपने गुरु के चरणों की हमेशा सेवा करते रहो।

भावार्थ: गुरु ही हमारा मार्गदर्शन कर जीवन सफल बना सकते हैं। बिना सच्चे गुरु के हमें ईश्वर भी नहीं मिल सकते हैं। स्वयं माता शबरी को भी अपने गुरु मतंग के मार्गदर्शन के कारण ही ईश्वर की प्राप्ति हुई थी। इसलिए जीवन में गुरु का होना अति-आवश्यक है जो आपको सही मार्ग दिखलाए।

#4. चौथी नवधा भक्ति

“चौथि भगति प्रभु गुन गन, करइ कपट तजि गान”

अर्थ: प्रभु का हमेशा ध्यान करो व उनकी स्तुति करो। उस समय मन में किसी भी प्रकार के कपट व छल की भावना को मत आने दो।

भावार्थ: हमेशा ईश्वर की भक्ति में लीन रहना चाहिए। इसके लिए प्रभु के भजन करने व सुनने चाहिए। प्रभु भजन से हमारे मन से बुरी भावनाओं को दूर करने में मदद मिलती है। यह मन को शुद्ध करने का काम करती है।

#5. पंचमी नवधा भक्ति

“मंत्र जाप प्रभु दृढ़ बिस्वासा, पंचम भजन सो बेद प्रकासा”

अर्थ: मंत्रों का जाप करो व ईश्वर पर दृढ-विश्वास रखो। उसके लिए वेदों व शास्त्रों का अध्ययन करो।

भावार्थ: मंत्रों में बहुत शक्ति होती है जो आसपास के वातावरण को सकारात्मकता व शक्ति से भर देते हैं। साथ ही वेदों में जीवन जीने की उत्तम पद्धति को बताया गया है। ऐसे में वेद हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं जो सनातन धर्म की नींव हैं। एक तरह से वेदों के माध्यम से ही हमारा उद्धार हो जाएगा।

#6. छठी नवधा भक्ति

“छठ दम सील बिरति बहु करमा, निरत निरंतर सज्जन धरमा”

अर्थ: आत्म-मंथन करो व अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना सीखो। सांसारिक व भौतिक वस्तुओं के मोह में ना पड़कर सामाजिक कल्याण के कार्य करो। स्वयं का आत्म-विकास करो व संतों के जैसा आचरण करो।

भावार्थ: यदि हम अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं तो हमें अपने मार्ग से कोई भी नहीं हटा सकता है। इस संसार में कई ऐसी भौतिक वस्तुएं हैं जो हमें भटकाती हैं और हमारा समय व्यर्थ करती हैं। ऐसे में उन पर ध्यान नहीं देकर हम अपना बहुत समय बचा सकते हैं। साथ ही हमेशा संतों के जैसे व्यवहार करने से हमारा मन भी शुद्ध बनता है।

#7. सातवीं नवधा भक्ति

“सातवँ सम हरिमय नभ देखा, हरि ते संत अधिक करि लेखा”

अर्थ: सातवीं भक्ति में श्रीराम कहते हैं कि इस पूरे विश्व को हरि के रूप में ही देखो अर्थात एक समान रूप से देखो। इसी के साथ ही उन्होंने गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर बताया है।

भावार्थ: इस पृथ्वी पर हम लोगों में उनके देश, पहचान, जाति, भाषा इत्यादि के आधार पर भेदभाव करते हैं जबकि हमें सभी को समान रूप से देखना चाहिए। वह इसलिए क्योंकि सभी ही ईश्वर का रूप हैं। उन्होंने कहा कि गुरु के द्वारा ही हमें भगवान, भक्ति, वेद इत्यादि का ज्ञान होता है। इसलिए गुरु का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है।

#8. आठवीं नवधा भक्ति

“आठवँ जथालाभ संतोषा, सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा”

अर्थ: आठवीं नवधा भक्ति में श्रीराम कहते हैं कि हमें जो कुछ भी ईश्वर देते हैं, उसी में ही संतोष करना चाहिए। इसी के साथ ही हमें सपने में भी दूसरों के दोष नहीं देखने चाहिए।

भावार्थ: आज के समय में ईश्वर के द्वारा दिया गया यह संदेश बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि मनुष्य जो मिल जाए, उसी में ही संतुष्ट है तो उससे ज्यादा प्रसन्न इस विश्व में कोई दूसरा नहीं हो सकता है। हमें कभी भी आवश्यकता से अधिक पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए। साथ ही दूसरों को दोष देने की बजाए, स्वयं के उद्धार पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

#9. नौवीं नवधा भक्ति

“नवम सरल सब सन छलहीना, हरि भरोस हियँ हरष न दीना”

अर्थ: ईश्वर कहते हैं कि हमें अपने मन को सरल बनाना चाहिए और सभी के साथ कपटरहित व्यवहार करना चाहिए। हमेशा ईश्वर पर विश्वास बनाए रखना चाहिए। साथ ही हर परिस्थिति में हर्षित रहना और तनाव नहीं लेना चाहिए।

भावार्थ: यदि हम दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं तो सामने वाला व्यक्ति दुष्ट होते हुए भी अच्छा आचरण करने लगता है। इससे हम ना केवल अपना भला करते हैं बल्कि समाज को भी उन्नत बनाने का काम करते हैं। इसी के साथ ही विकट परिस्थितियों में भी यदि हम ईश्वर पर विश्वास बनाए रखते हैं और तनाव ना लेकर प्रसन्नता के साथ काम करते हैं तो वह काम जल्दी और अच्छे से बन जाता है।

इस तरह से आपने नवधा भक्ति रामायण चौपाई अर्थ सहित समझ ली है। इसकी आखिरी पंक्ति “नवधा भक्ति शबरी कह दीनी, सादर सबरी शीश धरी लीनी” का अर्थ हुआ “श्रीराम ने माता शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया जिसे सुनकर शबरी ने सम्मान सहित उनके चरणों पर अपना सिर रख दिया”। इस नवधा भक्ति को पाकर शबरी का उद्धार (Shabri Navdha Bhakti) हो गया था और उन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया था।

निष्कर्ष

श्रीराम के मुख से निकली नवधा भक्ति रामायण चौपाई (Navdha Bhakti Ramayan) हम सभी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इन नौ पंक्तियों में ही श्रीराम ने मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बता दिया है। नवधा भक्ति की अंतिम पंक्ति “नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई, नारि पुरुष सचराचर कोई” में श्रीराम स्वयं कहते हैं कि “इन नवधा भक्ति में से यदि किसी के द्वारा एक भी भक्ति का संपूर्ण रूप से पालन किया जाता है तो उसका उद्धार हो जाता है। फिर चाहे वह चर (मनुष्य, पशु, पक्षी) हो या अचर (पेड़, पौधे)।

नवधा भक्ति रामचरितमानस से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: रामचरितमानस में नवधा भक्ति कौन कौन सी है?

उत्तर: रामचरितमानस में भगवान श्रीराम के द्वारा शबरी को जो नवधा भक्ति दी गई है, उसे हमने इस लेख में अर्थ व भावार्थ सहित समझाया है।

प्रश्न: माता शबरी से भगवान श्रीराम ने कितने प्रकार की भक्ति का वर्णन किया था?

उत्तर: माता शबरी से भगवान श्रीराम ने नौ प्रकार की भक्ति का वर्णन किया था जिसे नवधा भक्ति भी कहा जाता है

प्रश्न: नव विधा भक्ति क्या है?

उत्तर: भगवान श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया था इसे हमने इस लेख में अर्थ व भावार्थ सहित विस्तार से बताया है

प्रश्न: सर्वश्रेष्ठ भक्ति क्या है?

उत्तर: सर्वश्रेष्ठ भक्ति होती है कि मनुष्य को जो मिल जाए, उसी में ही संतोष करना और दूसरों का कभी भी बुरा नहीं करना

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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