संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) | संतोषी माँ चालीसा (Santoshi Maa Chalisa)

Santoshi Mata Chalisa

संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa): अर्थ, महत्व व लाभ सहित

सनातन धर्म में माँ संतोषी का प्रमुख स्थान है। बहुत लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं होता है लेकिन आज हम उन्हें बता दें कि संतोषी माँ भगवान गणेश की पुत्री हैं। जी हां, संतोषी माता के माता-पिता का नाम रिद्धि-सिद्धि व गणेश जी है। संतोषी माता को संतोष प्रदान करने वाली देवी माना जाता है और सोलह शुक्रवार के व्रत भी उन्हीं के नाम पर ही किये जाते हैं। ऐसे में आज के इस लेख में आपको संतोषी माता चालीसा (Santoshi Mata Chalisa) पढ़ने को मिलेगी।

क्या आप जानते हैं कि संतोषी माता की चालीसा एक नहीं बल्कि दो-दो हैं जिनमें उनके महत्व को दर्शाया गया है। ऐसे में आज के इस लेख में आपको दोनों तरह की ही संतोषी चालीसा (Santoshi Chalisa) पढ़ने को मिलेगी। इसी के साथ आपको संतोषी माँ चालीसा (Santoshi Maa Chalisa) का हिंदी अर्थ भी पढ़ने को मिलेगा ताकि आप उसका भावार्थ जान सकें। अंत में आपको श्री संतोषी माता चालीसा का महत्व व लाभ भी पढ़ने को मिलेगा। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं संतोषी माता चालीसा।

संतोषी माता चालीसा (Santoshi Mata Chalisa)

।। दोहा ।।

श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान।

सन्तोषी मां की करूँ, कीरति सकल बखान।।

।। चौपाई ।।

जय संतोषी मां जग जननी, खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी।

गणपति देव तुम्हारे ताता, रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता।

माता-पिता की रहौ दुलारी, कीरति केहि विधि कहूं तुम्हारी।

क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी, कानन कुण्डल को छवि न्यारी।

सोहत अंग छटा छवि प्यारी, सुन्दर चीर सुनहरी धारी।

आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला, धारण करहु गले वन माला।

निकट है गौ अमित दुलारी, करहु मयूर आप असवारी।

जानत सबही आप प्रभुताई, सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई।

तुम्हरे दरश करत क्षण माई, दुख दरिद्र सब जाय नसाई।

वेद पुराण रहे यश गाई, करहु भक्त की आप सहाई।

ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई, लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई।

शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी, महिमा तीनों लोक में गाजी।

शक्ति रूप प्रगटी जन जानी, रुद्र रूप भई मात भवानी।

दुष्टदलन हित प्रगटी काली, जगमग ज्योति प्रचंड निराली।

चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे, शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे।

महिमा वेद पुरानन बरनी, निज भक्तन के संकट हरनी।

रूप शारदा हंस मोहिनी, निरंकार साकार दाहिनी।

प्रगटाई चहुंदिश निज माया, कण कण में है तेज समाया।

पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरू तारे, तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे।

पालन पोषण तुमहीं करता, क्षण भंगुर में प्राण हरता।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं, शेष महेश सदा मन लावैं।

मनोकामना पूरण करनी, पाप काटनी भव भय तरनी।

चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता, सो नर सुख सम्पत्ति है पाता।

बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं, पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं।

पति वियोगी अति व्याकुलनारी, तुम वियोग अति व्याकुलयारी।

कन्या जो कोई तुमको ध्यावै, अपना मन वांछित वर पावै।

शीलवान गुणवान हो मैया, अपने जन की नाव खिवैया।

विधिपूर्वक व्रत जो कोई करहीं, ताहि अमित सुख सम्पति भरहीं।

गुड़ और चना भोग तोहि भावै, सेवा करै सो आनन्द पावै।

श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं, सो नर निश्चय भव सों तरहीं।

उद्यापन जो करहि तुम्हारा, ताको सहज करहु निस्तारा।

नारि सुहागिन व्रत जो करती, सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती।

जो सुमिरत जैसी मन भावा, सो नर वैसो ही फल पावा।

सात शुक्र जो व्रत मन धारे, ताके पूर्ण मनोरथ सारे।

सेवा करहि भक्ति युत जोई, ताको दूर दरिद्र दुख होई।

जो जन शरण माता तेरी आवै, ताके क्षण में काज बनावै।

जय जय जय अम्बे कल्यानी, कृपा करौ मोरी महारानी।

जो कोई पढ़े मात चालीसा, तापे करहिं कृपा जगदीशा।

नित प्रति पाठ करै इक बारा, सो नर रहै तुम्हारा प्यारा।

नाम लेत ब्याधा सब भागे, रोग दोष कबहूँ नहीं लागे।

।। दोहा ।।

सन्तोषी माँ के सदा बन्दहुँ पग निश वास।

पूर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास।।

संतोषी माँ चालीसा – अर्थ सहित (Santoshi Maa Chalisa – With Meaning)

।। दोहा ।।

श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान।

सन्तोषी मां की करूँ, कीरति सकल बखान।।

मैं भगवान गणेश के चरणों में अपना शीश झुकाकर व शारदा माता का ध्यान कर, संतोषी चालीसा के माध्यम से संतोषी माता की महिमा का वर्णन करता हूँ।

।। चौपाई ।।

जय संतोषी मां जग जननी, खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी।

गणपति देव तुम्हारे ताता, रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता।

माता-पिता की रहौ दुलारी, कीरति केहि विधि कहूं तुम्हारी।

क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी, कानन कुण्डल को छवि न्यारी।

हे इस सृष्टि की जननी संतोषी माता!! आपकी जय हो। आप अज्ञानता, दुष्टों व दैत्यों का नाश कर देती हो। आपके पिता गणेश जी हैं और रिद्धि-सिद्धि आपकी माता हैं। आप अपने माता-पिता को बहुत ही प्रिय हो और मैं आपकी कीर्ति का बखान करता हूँ। आपके सिर पर मुकुट विराजमान है तो कानो में कुंडल आपकी छवि को निखार रहे हैं।

सोहत अंग छटा छवि प्यारी, सुन्दर चीर सुनहरी धारी।

आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला, धारण करहु गले वन माला।

निकट है गौ अमित दुलारी, करहु मयूर आप असवारी।

जानत सबही आप प्रभुताई, सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई।

आपका शरीर मन को बहुत भा रहा है और यह देखने में बहुत ही सुन्दर व सुनहरा लग रहा है। आपकी चार भुजाएं हैं और आपने अपने गले में वनमाला पहनी हुई है। आपके पास में गाय माता है और आप मोर की सवारी करती हैं। आपको तो हर कोई जानता है और देवता, मनुष्य व मुनि सभी आपकी महिमा का वर्णन करते हैं।

तुम्हरे दरश करत क्षण माई, दुख दरिद्र सब जाय नसाई।

वेद पुराण रहे यश गाई, करहु भक्त की आप सहाई।

ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई, लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई।

शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी, महिमा तीनों लोक में गाजी।

आपके दर्शन करने से ही हमारे दुःख व गरीबी मिट जाती है। वेद व पुराण भी आपकी महिमा का वर्णन करते हैं और आपको भक्तों की रक्षा करने वाली बतलाते हैं। आप सरस्वती के रूप में भगवान ब्रह्मा की पत्नी बनी तो लक्ष्मी रूप में भगवान विष्णु की पत्नी कहलायी। पार्वती के रूप में आप शिवजी की पत्नी बनी। आपकी महिमा तो तीनो लोकों में छाई हुई है।

शक्ति रूप प्रगटी जन जानी, रुद्र रूप भई मात भवानी।

दुष्टदलन हित प्रगटी काली, जगमग ज्योति प्रचंड निराली।

चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे, शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे।

महिमा वेद पुरानन बरनी, निज भक्तन के संकट हरनी।

आपके शक्ति रूप को तो हर कोई जानता है और आपने अपना रूद्र रूप भी सभी को दिखाया हुआ है। आपने दुष्टों का नाश करने के लिए अपना काली रूप धर लिया था और आपकी ज्योति प्रचंड है। उस रूप में आपने चंड-मुंड, महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ इत्यादि राक्षसों का वध कर दिया था। आपकी महिमा का वर्णन वेद व पुराण कर रहे हैं जिसमे आपको अपने भक्तों के संकट दूर करने वाली बताया गया है।

रूप शारदा हंस मोहिनी, निरंकार साकार दाहिनी।

प्रगटाई चहुंदिश निज माया, कण कण में है तेज समाया।

पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरू तारे, तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे।

पालन पोषण तुमहीं करता, क्षण भंगुर में प्राण हरता।

आप शारदा माता के रूप में हंस पर विराजमान बहुत ही सुन्दर लगती हैं और आपका प्रभाव हर जगह फैला हुआ है। आपकी माया चारों दिशाओं में फैली हुई है और हर कण में आपका ही तेज है। पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा तथा सभी तारे आपके कारण ही गतिमान हैं व एक क्रम में फैले हुए हैं। आप ही हम सभी का पालन-पोषण करती हो और एक क्षण में ही हमारे प्राण भी ले सकती हो।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं, शेष महेश सदा मन लावैं।

मनोकामना पूरण करनी, पाप काटनी भव भय तरनी।

चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता, सो नर सुख सम्पत्ति है पाता।

बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं, पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं।

भगवान ब्रह्मा व विष्णु भी आपका ही ध्यान करते हैं और शेषनाग व शिवजी भी आप में ही अपना मन लगाते हैं। आप हम सभी की मनोकामना को पूरा करने वाली और पापों का नाश करने वाली हो। जो भी आपका ध्यान लगाता है, उसे हर तरह के सुख व संपत्ति प्राप्त होती है। बाँझ नारी आपकी पूजा करने पर पुत्र को प्राप्त करती है।

पति वियोगी अति व्याकुलनारी, तुम वियोग अति व्याकुलयारी।

कन्या जो कोई तुमको ध्यावै, अपना मन वांछित वर पावै।

शीलवान गुणवान हो मैया, अपने जन की नाव खिवैया।

विधिपूर्वक व्रत जो कोई करहीं, ताहि अमित सुख सम्पति भरहीं।

जिसका पति उससे दूर है, वह आपका ध्यान लगाने पर अपने पति को पुनः प्राप्त करती है। अविवाहित स्त्री आपका ध्यान लगाकर अपनी इच्छा अनुसार वर को प्राप्त करती है। आप बहुत ही दयावान व गुणवान हो और आप ही अपने भक्तों का बेड़ा पार करती हो। जो भी विधि के अनुसार संतोषी माता का व्रत करता है, उसे सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

गुड़ और चना भोग तोहि भावै, सेवा करै सो आनन्द पावै।

श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं, सो नर निश्चय भव सों तरहीं।

उद्यापन जो करहि तुम्हारा, ताको सहज करहु निस्तारा।

नारि सुहागिन व्रत जो करती, सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती।

आपको गुड़ व चना बहुत स्वादिष्ट लगता है और जो भी आपकी सेवा करता है, उसे आनंद की अनुभूति होती है। जो भी श्रद्धा भाव से संतोषी माता का ध्यान करता है, वह भव सागर पार कर लेता है। जो भी आपके व्रत का उद्यापन करता है, आप उसके सभी काम बना देती हो। यदि सुहागिन स्त्री संतोषी माता के नाम का व्रत करती है तो उसके घर में सुख-संपत्ति आती है।

जो सुमिरत जैसी मन भावा, सो नर वैसो ही फल पावा।

सात शुक्र जो व्रत मन धारे, ताके पूर्ण मनोरथ सारे।

सेवा करहि भक्ति युत जोई, ताको दूर दरिद्र दुख होई।

जो जन शरण माता तेरी आवै, ताके क्षण में काज बनावै।

जो भी जिस भी भाव से संतोषी माता का ध्यान करता है, संतोषी माता उसे वैसा ही फल देती हैं। यदि हम संतोषी माता के नाम के सात शुक्रवार के व्रत कर लेते हैं तो हमारी सभी मनोकामनाएं पूरण हो जाती है। जो भी भक्तिभाव से संतोषी माता की सेवा करता है, उसके दुःख व दरिद्रता दूर हो जाती है। जो भी संतोषी माता की शरण में जाता है, संतोषी माँ उसके सभी काम तुरंत कर देती हैं।

जय जय जय अम्बे कल्यानी, कृपा करौ मोरी महारानी।

जो कोई पढ़े मात चालीसा, तापे करहिं कृपा जगदीशा।

नित प्रति पाठ करै इक बारा, सो नर रहै तुम्हारा प्यारा।

नाम लेत ब्याधा सब भागे, रोग दोष कबहूँ नहीं लागे।

हे माँ अम्बे और हम सभी का कल्याण करने वाली!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर कृपा कीजिये। जो कोई संतोषी माता चालीसा का पाठ करता है, उस पर स्वयं नारायण की कृपा होती है। जो प्रतिदिन कम से कम एक बार संतोषी माँ चालीसा का पाठ कर लेता है, संतोषी माता की कृपा दृष्टि उस पर बनी रहती है। संतोषी माता का नाम लेने मात्र से ही हमारे सभी संकट, रोग, दोष इत्यादि दूर हो जाते हैं।

।। दोहा ।।

सन्तोषी माँ के सदा बन्दहुँ पग निश वास।

पूर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास।।

हम हमेशा संतोषी माता के चरणों में वास करें। संतोषी माता हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें और इस जगत के सभी संकटों को दूर कर दें।

संतोषी चालीसा – द्वितीय (Santoshi Chalisa)

।। दोहा ।।

बन्दौं संतोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।

ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार।।

भक्तन को संतोष दे संतोषी तव नाम।

कृपा करहूँ जगदंबा अब आया तेरे धाम।।

।। चौपाई ।।

जय संतोषी मात अनुपम, शांतिदायिनी रूप मनोरम।

सुंदर वरण चतुर्भुज रूपा, वेश मनोहर ललित अनुपा।

श्वेताम्बर रूप मनहारी, माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी।

दिव्य स्वरूपा आयत लोचन, दर्शन से हो संकट मोचन।

जय गणेश की सुता भवानी, रिद्धि-सिद्धि की पुत्री ज्ञानी।

अगम अगोचर तुम्हरी माया, सब पर करो कृपा की छाया।

नाम अनेक तुम्हारे माता, अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता।

तुमने रूप अनेक धारे, को कहि सके चरित्र तुम्हारे।

धाम अनेक कहां तक कहिए, सुमिरन तब करके सुख लहिए।

विंध्याचल में विंध्यवासिनी, कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी।

कलकत्ते में तू ही काली, दुष्‍ट नाशिनी महाकराली।

संबल पुर बहुचरा कहाती, भक्तजनों का दुख मिटाती।

ज्वाला जी में ज्वाला देवी, पूजत नित्य भक्त जन सेवी।

नगर बम्बई की महारानी, महा लक्ष्मी तुम कल्याणी।

मदुरा में मीनाक्षी तुम हो, सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो।

राजनगर में तुम जगदंबे, बनी भद्रकाली तुम अंबे।

पावागढ़ में दुर्गा माता, अखिल विश्‍व तेरा यश गाता।

काशी पुराधीश्‍वरी माता, अन्नपूर्णा नाम सुहाता।

सर्वानंद करो कल्याणी, तुम्हीं शारदा अमृत वाणी।

तुम्हरी महिमा जल में थल में, दुःख दरिद्र सब मेटो पल में।

जेते ऋषि और मुनीशा, नारद देव और देवेशा।

इस जगती के नर और नारी, ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी।

जापर कृपा तुम्हारी होती, वह पाता भक्ति का मोती।

दुःख दारिद्र संकट मिट जाता, ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता।

जो जन तुम्हरी महिमा गावै, ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै।

जो मन राखे शुद्ध भावना, ताकी पूरण करो कामना।

कुमति निवारि सुमति की दात्री, जयति जयति माता जगधात्री।

शुक्रवार का दिवस सुहावन, जो व्रत करे तुम्हारा पावन।

गुड़ छोले का भोग लगावै, कथा तुम्हारी सुने सुनावै।

विधिवत पूजा करे तुम्हारी, फिर प्रसाद पावे शुभकारी।

शक्ति सामर्थ्य हो जो धनको, दान-दक्षिणा दे विप्रन को।

वे जगती के नर औ नारी, मनवांछित फल पावें भारी।

जो जन शरण तुम्हारी जावे, सो निश्‍चय भव से तर जावे।

तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावै, निश्‍चय मनवांछित वर पावै।

सधवा पूजा करे तुम्हारी, अमर सुहागिन हो वह नारी।

विधवा धर के ध्यान तुम्हारा, भवसागर से उतरे पारा।

जयति जयति जय संकट हरणी, विघ्न विनाशन मंगल करनी।

हम पर संकट है अति भारी, वेगि खबर लो मात हमारी।

निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता, देह भक्ति वर हम को माता।

यह चालीसा जो नित गावे, सो भवसागर से तर जावे।

संतोषी चालीसा हिंदी में (Santoshi Maa Chalisa In Hindi)

।। दोहा ।।

बन्दौं संतोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।

ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार।।

भक्तन को संतोष दे संतोषी तव नाम।

कृपा करहूँ जगदंबा अब आया तेरे धाम।।

मैं संतोषी माता के चरणों में प्रणाम करता हूँ जो हमें रिद्धि-सिद्धि देती हैं। संतोषी माता का ध्यान करने मात्र से ही हमारे दुःख समाप्त हो जाते हैं। संतोषी माता हमें संतोष प्रदान करती हैं और इसी कारण उनका नाम संतोषी है। हे जगदम्बे माँ!! मैं आपकी शरण में आया हूँ और अब आप मुझ पर कृपा कीजिये।

।। चौपाई ।।

जय संतोषी मात अनुपम, शांतिदायिनी रूप मनोरम।

सुंदर वरण चतुर्भुज रूपा, वेश मनोहर ललित अनुपा।

श्वेताम्बर रूप मनहारी, माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी।

दिव्य स्वरूपा आयत लोचन, दर्शन से हो संकट मोचन।

हे संतोषी माँ!! आपका रूप अनुपम व मनोरम है। आप ही हमें शांति प्रदान करती हैं। आपकी चार भुजाएं हैं जो आप पर बहुत सुन्दर लगती है। आपका रंग-रूप मन को मोह लेने वाला है। आपने श्वेत रंग के वस्त्र पहने हुए हैं और आपकी छवि इस जगत में सबसे अलग है। आपका स्वरुप दिव्य है जिसके दर्शन करने से ही हमारे संकट दूर हो जाते हैं।

जय गणेश की सुता भवानी, रिद्धि-सिद्धि की पुत्री ज्ञानी।

अगम अगोचर तुम्हरी माया, सब पर करो कृपा की छाया।

नाम अनेक तुम्हारे माता, अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता।

तुमने रूप अनेक धारे, को कहि सके चरित्र तुम्हारे।

आप गणेश भगवान की पुत्री हो और रिद्धि-सिद्धि आपकी माताएं हैं। आपकी माया अपरंपार है और आप हम सभी पर कृपा करती हो। आपके तो कई नाम हैं और संपूर्ण विश्व आपका ही ध्यान करता है। आपने गुणों के अनुसार कई तरह के रूप धारण किये हुए हैं।

धाम अनेक कहां तक कहिए, सुमिरन तब करके सुख लहिए।

विंध्याचल में विंध्यवासिनी, कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी।

कलकत्ते में तू ही काली, दुष्‍ट नाशिनी महाकराली।

संबल पुर बहुचरा कहाती, भक्तजनों का दुख मिटाती।

इस धरा पर आपके कई जगह पर धाम हैं, जहाँ जाकर हम सुख का अनुभव करते हैं। विन्ध्याचल पर्वत पर आप विंध्यवासिनी के नाम से प्रसिद्ध हैं तो कोटेश्वर महादेव में माँ सरस्वती के रूप में विख्यात हैं। कलकत्ता में आप काली रूप में विराजमान हैं जो दुष्टों का संहार करती हैं। संबलपुर में आप बहुचरा के नाम से प्रसिद्ध हैं जो भक्तों के दुःख दूर करती हैं।

ज्वाला जी में ज्वाला देवी, पूजत नित्य भक्त जन सेवी।

नगर बम्बई की महारानी, महा लक्ष्मी तुम कल्याणी।

मदुरा में मीनाक्षी तुम हो, सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो।

राजनगर में तुम जगदंबे, बनी भद्रकाली तुम अंबे।

ज्वाला में आप ज्वाला देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं जहाँ आपके भक्त प्रतिदिन आपकी पूजा करते हैं। बम्बई (मुंबई) नगरी में आप महालक्ष्मी के रूप में हम सभी का कल्याण करती हो। मदुरई में आप मीनाक्षी मंदिर में मीनाक्षी माता के रूप में विराजित हो जो भक्तों के हर सुख-दुःख में उनके साथ बनी रहती हैं। राजनगर में आप जगदंबे के रूप में विराजित हो जिसे हम भद्रकाली या अम्बे के नाम से भी जानते हैं।

पावागढ़ में दुर्गा माता, अखिल विश्‍व तेरा यश गाता।

काशी पुराधीश्‍वरी माता, अन्नपूर्णा नाम सुहाता।

सर्वानंद करो कल्याणी, तुम्हीं शारदा अमृत वाणी।

तुम्हरी महिमा जल में थल में, दुःख दरिद्र सब मेटो पल में।

पावागढ़ में आप दुर्गा माता के रूप में विराजित हो। इस रूप में विश्व के सभी प्राणी आपकी महिमा का वर्णन करते हैं। काशी नगरी में जहाँ भगवान विश्वनाथ विराजित हैं, वहां आप माँ अन्नपूर्णा के रूप में बैठी हो। आप ही हम सभी का कल्याण कर सकती हो और आप शारदा के रूप में मीठी वाणी बोलती हैं। आपकी महिमा जल व भूमि दोनों जगह है और आप ही हमारे दुखों व गरीबी को मिटा सकती हो।

जेते ऋषि और मुनीशा, नारद देव और देवेशा।

इस जगती के नर और नारी, ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी।

जापर कृपा तुम्हारी होती, वह पाता भक्ति का मोती।

दुःख दारिद्र संकट मिट जाता, ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता।

सभी ऋषि-मुनि, नारद मुनि, देवता व ईश्वर आपका ध्यान करते हैं। इस पृथ्वी के सभी पुरुष व महिलाएं, आपका ही ध्यान करते हैं। जिस किसी पर भी आपकी कृपा हो जाती है, उसे आपकी भक्ति का आनंद मिलता है। जो भी आपका ध्यान करता है, उसके सभी दुख, गरीबी व संकट समाप्त हो जाते हैं।

जो जन तुम्हरी महिमा गावै, ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै।

जो मन राखे शुद्ध भावना, ताकी पूरण करो कामना।

कुमति निवारि सुमति की दात्री, जयति जयति माता जगधात्री।

शुक्रवार का दिवस सुहावन, जो व्रत करे तुम्हारा पावन।

जो कोई भी संतोषी माता की महिमा का गुणगान करता है और उनका ध्यान करता है, उसे परम सुख की प्राप्ति होती है। जो भी अपने मन में शुद्ध विचार रखता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। संतोषी माता हमारे अज्ञान को दूर कर हमें सद्बुद्धि प्रदान करती हैं। इस सृष्टि का कल्याण करने वाली संतोषी माता की जय हो। शुक्रवार का दिन संतोषी माता का दिन होता है और जो भी इस दिन संतोषी माता का व्रत करता है, उस पर मातारानी की कृपा होती है।

गुड़ छोले का भोग लगावै, कथा तुम्हारी सुने सुनावै।

विधिवत पूजा करे तुम्हारी, फिर प्रसाद पावे शुभकारी।

शक्ति सामर्थ्य हो जो धनको, दान-दक्षिणा दे विप्रन को।

वे जगती के नर औ नारी, मनवांछित फल पावें भारी।

जो कोई भी संतोषी माता को गुड़-छोले का भोग लगाता है, उनकी कथा को सुनता है, विधि के अनुसार उनकी पूजा करता है, उसे संतोषी माता शुभ फल देती हैं। जिसका जितना सामर्थ्य होता है, वह ब्राह्मण को उतनी दान-दक्षिणा देता है। ऐसा करने वाले मनुष्य, संतोषी माता की कृपा से धन्य होते हैं और उनकी हरेक इच्छा पूरी होती है।

जो जन शरण तुम्हारी जावे, सो निश्‍चय भव से तर जावे।

तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावै, निश्‍चय मनवांछित वर पावै।

सधवा पूजा करे तुम्हारी, अमर सुहागिन हो वह नारी।

विधवा धर के ध्यान तुम्हारा, भवसागर से उतरे पारा।

जो भी संतोषी माता की शरण में जाता है, वह भव सागर को पार कर मुक्ति पा लेता है। यदि कोई कुंवारी स्त्री माँ संतोषी का ध्यान करती है तो उसे मनवांछित वर की प्राप्ति होती है। विवाहित स्त्री को संतोषी माता की पूजा करने से हमेशा सुहागन रहने का आशीर्वाद मिलता है। विधवा स्त्री संतोषी माता के ध्यान से मुक्ति पा लेती है।

जयति जयति जय संकट हरणी, विघ्न विनाशन मंगल करनी।

हम पर संकट है अति भारी, वेगि खबर लो मात हमारी।

निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता, देह भक्ति वर हम को माता।

यह चालीसा जो नित गावे, सो भवसागर से तर जावे।

हे संकटों का नाश करने वाली संतोषी माता!! आपकी जय हो, जय हो। आप ही विघ्नों का नाश करने वाली और हम सभी का मंगल करने वाली हैं। हम पर बहुत बड़ा संकट आया हुआ है और अब आप हम पर भी ध्यान दो। मैं दिन-रात आपका ही ध्यान करता हूँ और अब आप मुझे वरदान स्वरुप अपनी भक्ति प्रदान कीजिये। यह संतोषी चालीसा का पाठ जो कोई भी कर लेता है, वह भव सागर को पार कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

संतोषी माता की चालीसा – महत्व (Santoshi Mata Ki Chalisa – Mahatva)

अभी तक आपने माँ संतोषी की चालीसा पढ़ ली है और साथ ही उसका अर्थ भी जान लिया है। इसे पढ़कर अवश्य ही आपको संतोषी माता के गुणों व महत्व के बारे में ज्ञान हो गया होगा। संतोषी माता को संतोष की देवी माना जाता है और मनुष्य को जितनी जल्दी संतोष मिल जाता है, उसके लिए उतना ही उचित रहता है।

यही संतोषी चालीसा के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य के लिए संतोष का कितना अधिक महत्व होता है। फिर चाहे मनुष्य के पास कितना ही धन हो, रिश्ते हो तथा उसे किसी भी चीज़ की कमी ना हो लेकिन यदि उसके जीवन में संतोष नहीं है तो वह उन सभी के होते हुए भी उनका आनंद नहीं ले पायेगा। यही संतोषी माता चालीसा का मुख्य महत्व होता है।

माँ संतोषी चालीसा पढ़ने के लाभ (Maa Santoshi Chalisa Benefits In Hindi)

अब यदि आप प्रतिदिन संतोषी माता चालीसा का पाठ करते हैं और संतोषी माँ का ध्यान करते हैं तो अवश्य ही उसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिलता है। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से संतोषी माँ चालीसा को पढ़ता है उस पर अवश्य ही संतोषी माता की कृपा दृष्टि होती है। ऐसे में उसके मन में किसी बात को लेकर असंतोष पनप रहा है या किसी बात की चिंता खाए जा रही है तो वह समाप्त हो जाती है।

प्रतिदिन संतोषी माँ चालीसा के पाठ से व्यक्ति को परम सुख की प्राप्ति होती है और वह सांसारिक मोहमाया को समझने लगता है। इससे उसके हृदय में शांति का अनुभव होता है और जो वह चाहता है, उसकी प्राप्ति हो जाती है। अब व्यक्ति का हृदय शांत हो जाए और उसे संतोष मिल जाए तो उससे बढ़कर सुखी मनुष्य इस विश्व में कोई दूसरा नहीं होगा। ऐसे में आपको प्रतिदिन संतोषी माता चालीसा का पाठ करना चाहिए।

संतोषी माता चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: संतोषी माता का मंत्र क्या है?

उत्तर: जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः। श्री संतोषी देव्व्ये नमः। ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः। ॐ सर्वनिवार्नाये देविभुता नमः।

प्रश्न: संतोषी किसकी पत्नी है?

उत्तर: इसको लेकर कहीं से संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया है। यदि हमें इसके बारे में पता चलता है तो हम तुरंत आपको सूचित करने का काम करेंगे।

प्रश्न: संतोषी माता को खुश कैसे करें?

उत्तर: यदि आप संतोषी माता को खुश करना चाहते हैं तो आपको सोलह शुक्रवार के व्रत रखने चाहिए व इसी के साथ ही प्रतिदिन संतोषी चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: संतोषी माता की बेटी कौन है?

उत्तर: इसको लेकर कहीं से संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया है। यदि हमें इसके बारे में पता चलता है तो हम तुरंत आपको सूचित करने का काम करेंगे।

प्रश्न: संतोषी मां का असली नाम क्या है?

उत्तर: संतोषी मां का असली नाम संतोषी ही है जो भगवान गणेश व रिद्धि-सिद्धि की पुत्री हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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