सर्वरूप भगवान की आरती (Sarvaroop Bhagwan Ki Aarti)

Vishnu Ji Ki Aarti

सनातन धर्म में ईश्वर के कई रूप हैं और हरेक रूप का अपना महत्व है। उन्हें हम भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा के रूप में पूजते हैं। वहीं भगवान शिव व भगवान विष्णु के कई अवतार हुए हैं जिन्होंने इस धरती पर धर्म स्थापना में अहम भूमिका निभाई है। कुछ प्रमुख अवतार भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण व हनुमान है। इन सभी की एक साथ आरती करने के लिए ही सर्वरूप भगवान की आरती (Sarvaroop Bhagwan Ki Aarti) की रचना की गयी है।

ईश्वर के द्वारा लिए गए प्रत्येक अवतार का अपना अलग महत्व है और उनके गुणों के आधार पर ही उनकी पूजा करने का विधान है। ऐसे में इन सभी की आरतियाँ भी भिन्न-भिन्न होती है किन्तु सर्वरूप आरती (Sarvaroop Aarti) के माध्यम से एक साथ ही सभी की आरती हो जाती है। आइये सर्वरूप भगवान आरती (Sarvaroop Bhagwan Aarti) का पाठ करें और साथ ही उसका भावार्थ, महत्व व लाभ जाने।

सर्वरूप भगवान की आरती (Sarvaroop Bhagwan Ki Aarti)

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय जगदीश हरे॥

आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशी॥ जय जगदीश हरे॥

अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय जगदीश हरे॥

विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही जगभूपा॥ जय जगदीश हरे॥

माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय जगदीश हरे॥

साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय जगदीश हरे॥

राम-कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मन-मोहन मुरलीधर, नित-नव नटनागर॥ जय जगदीश हरे॥

सब बिधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन-मन॥ जय जगदीश हरे॥

आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय जगदीश हरे॥

सर्वरूप आरती हिंदी में (Sarvaroop Aarti In Hindi)

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥

इस जगत के ईश्वर भगवान विष्णु की जय हो, जय हो। वे ही माया के स्वामी हैं और ईश्वर के भी ईश्वर हैं। उनके बारे में जानना हमारे मन, वचन और बुद्धि से भी परे है। हम पूर्ण रूप में ईश्वर को कभी नहीं पहचान सकते हैं और यह मनुष्य की क्षमता से परे है।

आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशी॥

इस सृष्टि की शुरुआत उन्ही से है, अंत भी उन्ही से है, वे हर जगह व्याप्त हैं, उन्हें कोई हिला नहीं सकता है, उनका विनाश नहीं किया जा सकता है, उनकी तुलना किसी से नहीं हो सकती है, उनका कोई अंत नहीं है, उन्हें कोई रोग नहीं हो सकता है और वे बहुत ही शक्तिशाली हैं

अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥

वे स्वच्छ रूप वाले हैं जो आज और कल दोनों में है, उनका जन्म नहीं हुआ है, वे अविनाशी हैं, वे कम या ज्यादा नहीं हो सकते हैं, उनमें किसी तरह का दोष नही आ सकता है। वे हमारे मन व शरीर को सुख प्रदान करने वाले हैं। शिव के रूप में वे बहुत ही सुन्दर और हम सभी के स्वामी हैं।

विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही जगभूपा॥

श्री विष्णु, शिव शंकर, गणपति देव, सूर्य देव व आदिशक्ति के रूप में वे ही हमारे ईश्वर हैं। उनके कारण ही यह विश्व व सृष्टि चल रही है और इस धरती के स्वामी वे ही हैं।

माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥

वे ही हमारे माता, पिता, ईश्वर, स्वामी, भाई-बंधू इत्यादि हैं। उनके द्वारा ही इस विश्व व हम सभी प्राणियों का उद्गम, पालन व संहार किया जाता है अर्थात हमारे जन्म लेने, जीवन जीने और मृत्यु के पीछे उन्ही का ही हाथ होता है।

साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥

वे ही हमारे हर कर्म के साक्षी हैं, उनके द्वारा ही हमें शरण दी जाती है, वे ही हमारे मित्र, प्रेमी व प्रेम हैं। वे ही हमारा भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल निर्धारित करने वाले हैं।

राम-कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मन-मोहन मुरलीधर, नित-नव नटनागर॥

श्रीराम व श्रीकृष्ण के रूप में वे बहुत ही करुणामयी रूप वाले हैं जिन्होंने इस धरती के प्राणियों पर प्रेम की वर्षा की थी। श्रीकृष्ण के रूप में उन्होंने मुरली बजाकर हम सभी का मन मोहित कर लिया था और हर दिन एक नए नाटक की रचना की थी।

सब बिधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन-मन॥

हे प्रभु!! इस कलयुग में हम मनुष्य विधि हीन हो चुके हैं अर्थात धर्म विधि भूल चुके हैं, हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है, पाप बहुत ज्यादा बढ़ गया है। हम प्राणियों ने आपके चरणों से मुख मोड़ लिया है जिस कारण हम दुर्भाग्य का शिकार हैं। कलयुग के साए ने हम मनुष्यों के तन व मन दोनों को ही दूषित कर दिया है।

आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥

इस कारण आप हम सभी को अपने चरणों में स्थान दें और हम पर अपनी दया बरसाएं। आप ही हम सभी मनुष्यों के पाप के ताप को हर सकते हैं और हमें मुक्ति प्रदान कर सकते हैं।

सर्वरूप आरती (Sarvaroop Aarti) – महत्व

ईश्वर के विभिन्न रूपों को समर्पित यह सर्वरूप आरती बहुत ही महत्व वाली है। हम अलग-अलग उत्सवों, धार्मिक अनुष्ठानों व विशेष दिन ईश्वर के भिन्न रूप की आरती करते है। इसके फलस्वरूप हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है किन्तु सर्वरूप भगवान की आरती के माध्यम हमें एक साथ सभी आरतियों के लाभ मिल जाते हैं।

ईश्वर का क्या रूप है, उनकी क्या महिमा है, हमारे लिए उनका क्या महत्व है, वे किस तरह से मनुष्य के जीवन तथा सृष्टि के नियमों को प्रभावित करते हैं, इत्यादि बताने के लिए ही सर्वरूप भगवान आरती की रचना की गयी है। यही सर्वरूप भगवान की आरती का महत्व होता है।

सर्वरूप भगवान आरती (Sarvaroop Bhagwan Aarti) – लाभ

यदि आप सच्चे मन के साथ सर्वरूप भगवान आरती का पाठ करते हैं और ईश्वर का ध्यान करते हैं तो इससे आपके सभी तरह के संकट एक पल में ही दूर हो जाते हैं। आपके जीवन में कोई भी विपदा आ रही है और उसका हल नहीं निकल पा रहा है, तो वह भी निकल जाता है। आपके शत्रु आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं।

इतना ही नहीं, सर्वरूप आरती के माध्यम से हमें ईश्वर की अनुभूति होती है और मन शांत होता है। मन शांत होने से हमारे अंदर चल रहा द्वंद्व भी मिट जाता है और मानसिक विकास होता है। जो लोग प्रतिदिन सच्चे मन के साथ ईश्वर का ध्यान कर सर्वरूप भगवान की आरती करते हैं, उन्हें जल्द ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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