अग्रसेन महाराज की आरती (Agrasen Maharaja Ki Aarti) – अर्थ सहित

Maharaja Agrasen Ki Aarti

महाराजा अग्रसेन की आरती (Maharaja Agrasen Ki Aarti) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

सनातन धर्म में चार वर्ण हैं जिनमें से एक वर्ण वैश्य है। इसी वैश्य वर्ण में एक समुदाय अग्रवाल समाज का है जिसकी स्थापना महाराज अग्रसेन के द्वारा की गयी थी। अग्रवाल समाज के लिए अग्रसेन महाराज उनके पितामह माने जाते हैं जिन्होंने अपने 18 पुत्रों के नाम पर 18 जातियों का गठन किया था। ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ महाराजा अग्रसेन की आरती का पाठ (Maharaja Agrasen Ki Aarti) ही करने जा रहे हैं।

इतना ही नहीं, यहाँ पर हम आपको अग्रसेन महाराज की आरती (Agrasen Maharaja Ki Aarti) अर्थ सहित भी समझाएंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें। अंत में महाराज अग्रसेन आरती का महत्व व लाभ (Maharaja Agrasen Aarti) भी आपके साथ सांझा किया जाएगा। तो आइये सबसे पहले करते हैं श्री अग्रसेन महाराज की आरती।

अग्रसेन महाराज की आरती (Agrasen Maharaja Ki Aarti)

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें॥
जय श्री अग्र हरे…

आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे॥
जय श्री अग्र हरे…

केसरिया ध्वज फहरे, छात्र चंवर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे॥
जय श्री अग्र हरे…

अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आए।
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाए॥
जय श्री अग्र हरे…

सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता।
ईंट, रुपए की रीति, प्रकट करे ममता॥
जय श्री अग्र हरे…

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा॥
जय श्री अग्र हरे…

अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाए।
कहत त्रिलोक विनय से सुख संपत्ति पाए॥

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें॥
जय श्री अग्र हरे…

महाराजा अग्रसेन की आरती (Maharaja Agrasen Ki Aarti) – अर्थ सहित

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें॥

अग्रसेन महाराज की जय हो। हम सभी के स्वामी महाराज अग्रसेन की जय हो। अग्रसेन महाराज जी के सम्मान में करोड़ों जनों के सिर झुके हुए हैं। हम सभी अग्रसेन जी को सदर नमन करते हैं।

आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे॥

अग्रसेन जी का जन्म आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकम तिथि के दिन हुआ था। वे राजा वल्लभ जी के पुत्र थे और उनकी जय हो। अग्रसेन महाराज ने ही अग्रवाल समाज की स्थापना की थी। उन्होंने नाग वंश की कन्या माधवी के साथ विवाह किया था।

केसरिया ध्वज फहरे, छात्र चंवर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे॥

अग्रसेन महाराज जी की नगरी में धर्म ध्वजा के रूप में केसरिया लहरा रहा है। हम सभी उन्हें चंवर कर रहे हैं। उनके द्वार पर झांझ, नफीरी इत्यादि बजाये जा रहे हैं।

अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आए।
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाए॥

अग्रसेन महाराज जी की राजधानी का नाम अग्रोहा है जो उनके शासनकाल में बहुत ज्यादा समृद्ध हो गयी थी। स्वयं देवराज इंद्र भी उनकी शरण में आते थे। उन्होंने अपने अठारह पुत्रों के नाम पर अग्रवाल समाज के अठारह गौत्रों की स्थापना की थी।

सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता।
ईंट, रुपए की रीति, प्रकट करे ममता॥

अग्रसेन महाराज जी ने अपने शासन काल में सत्य व अहिंसा का आचरण किया था। वे सभी के साथ न्याय करते थे, नियमों पर चलते थे और सभी को एक समान दृष्टि से ही देखते थे। जो कोई भी अग्रोहा नगरी में आकर बसना चाहता था तो अग्रसेन महाराज जी के बनाये नियमों के अनुसार हर घर से एक ईंट व एक रुपया उस व्यक्ति को जाता था।

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा॥

अग्रसेन महाराज जी को तो स्वयं भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शंकर व माँ आदिशक्ति ने अपना वरदान दिया था। उनकी कुलदेवी महामाया अर्थात महालक्ष्मी थी जिनकी कृपा हमेशा से ही वैश्य समुदाय पर रही है।

अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाए।
कहत त्रिलोक विनय से सुख संपत्ति पाए॥

जो भक्तगण सच्चे मन के साथ अग्रसेन महाराज जी की आरती गाता है, तीनों लोकों में उसे हर तरह का सुख व संपत्ति की प्राप्ति होती है। एक तरह से महाराज अग्रसेन की आरती के माध्यम से हमें सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है।

महाराज अग्रसेन आरती (Maharaja Agrasen Aarti) – महत्व

अग्रसेन जी राजा वल्लभ के पुत्र थे जो भगवान श्रीराम के ही वंशज माने जाते हैं। स्वयं अग्रसेन महाराज और उनके पिता ने पांडवों की ओर से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था जिसमें उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। इसके पश्चात महाराज अग्रसेन ने अपने राज्य के पदभार को संभाला और प्रजा को ऐसा शासन दिया जो सभी के लिए प्रेरणा बन गया।

यही कारण है कि उनके पुत्रों के नाम पर 18 गौत्र वैश्य समाज में आज तक चले आ रहे हैं। महाराज अग्रसेन की कीर्ति ऐसी फैली की सदियों तक कई राजा उनके बताये मार्ग का अनुसरण करते रहे। ऐसे में अग्रसेन महाराज की आरती के माध्यम से महाराज अग्रसेन के गुणों, शक्तियों, सत्कर्मों इत्यादि के ऊपर प्रकाश डाला गया है और साथ के साथ उनकी पूजा भी की गयी है। यही महाराजा अग्रसेन की आरती का महत्व होता है।

अग्रसेन महाराज जी की आरती (Agrasen Maharaja Ji Ki Aarti) – लाभ

अग्रवाल समाज का जो व्यक्ति अग्रसेन महाराज की आरती का पाठ करता है और मन ही मन उनका ध्यान करता है तो उसके अंदर अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलते हैं। उसका मन शांत होता है तथा सभी तरह का तनाव दूर हो जाता है। यदि उसे व्यापार में किसी तरह का संकट आ रहा है या नौकरी में समस्या उत्पन्न हो रही है, तो वह अग्रसेन महाराज की कृपा से दूर हो जाती है।

जिस किसी पर भी अग्रसेन जी की कृपा हो जाती है, उस घर में सुख-संपत्ति का वास होता है। अग्रसेन आरती के माध्यम से माँ लक्ष्मी भी हमसे बहुत प्रसन्न होती हैं और अपना आशीर्वाद हम पर बरसाती हैं। हमें कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है और समाज में मान-सम्मान में वृद्धि देखने को मिलती है। यही महाराज अग्रसेन की आरती के लाभ होते हैं।

अग्रसेन आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: महाराजा अग्रसेन की पत्नी कौन है?

उत्तर: महाराजा अग्रसेन की पत्नी का नाम माधवी है जो नागों के राजा कुमुद की पुत्री थी। उनके विवाह में स्वयं देवराज इंद्र भी पधारे थे।

प्रश्न: महाराजा अग्रसेन के कितने गोत्र हैं?

उत्तर: महाराजा अग्रसेन के 18 गोत्र हैं। अग्रसेन जी के कुल 18 पुत्र थे और उन्होंने अपने इन्हीं पुत्रों के नाम पर ही 18 गोत्रों की शुरुआत की थी।

प्रश्न: महाराजा अग्रसेन की कितनी पत्नी थी?

उत्तर: महाराजा अग्रसेन की एक ही पत्नी थी जिनका नाम माधवी था। माधवी नागराजा कुमुद की पुत्री थी।

प्रश्न: महाराजा अग्रसेन कौन से वंश से थे?

उत्तर: महाराजा अग्रसेन क्षत्रिय वंश से थे। उन्हें भगवान श्रीराम के बड़े पुत्र कुश की पीढ़ी का माना जाता है जो भगवान श्रीकृष्ण के समकालीन थे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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