रामायण में शबरी के बेर (Shabri Ke Ber) उस रोचक घटना को दिखाते हैं जब भगवान स्वयं अपने भक्त के घर पहुँचते हैं और उसका दिया झूठा भोजन भी खुशी-खुशी खा लेते हैं। जहाँ हम सबसे पहले भगवान को भोजन का भोग लगाते हैं और फिर उसके बाद उसे प्रसाद रूप में खाते हैं। वहीं श्रीराम ने Sabri Ke Ber को ना केवल खाया था बल्कि उसका उद्धार भी कर दिया था।
शबरी के बेर की कहानी (Shabri Ke Ber Story) हमें यह दिखाती है कि यदि भक्ति सच्ची और निश्छल हो तो भगवान आपकी हर भूल क्षमा कर देते हैं। आज हम आपको यह बताएंगे कि भगवान राम ने शबरी के बेर खाकर क्या शिक्षा दी।
Shabri Ke Ber | शबरी के बेर
शबरी एक भील जाति समुदाय से थी जिसने किशोरावस्था में ही अपना घर त्याग दिया था व मतंग ऋषि के आश्रम में रहकर भगवान की भक्ति करने लगी थी। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी व अपने ऋषि के द्वारा समाधि लेने के पश्चात प्रतिदिन भगवान विष्णु के रूप श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करती थी। इसी प्रतीक्षा में उसने अपनी सारी उम्र निकाल दी व बूढी हो गई।
एक दिन जब भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ शबरी की कुटिया में आए तब शबरी की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। सामान्यतया जब कोई विद्वान या ऋषि गुरु किसी के घर आते थे तो सबसे पहले उनके चरणों को धोया जाता था। किंतु शबरी तो भगवान राम की भक्ति में ऐसी खोई हुई थी कि उसने अपने आँसुओं से ही प्रभु के चरण धो दिए।
वह प्रतिदिन प्रभु के लिए जंगल में जाकर बेर तोड़कर लाती थी व उन्हें चख-चख कर देखती थी ताकि कोई बेर कड़वा या खट्टा ना निकले। जो कोई भी बेर खट्टा निकलता वह उसे फेंक देती व प्रभु के भोजन के लिए केवल मीठे बेर ही रखती। जब प्रभु स्वयं उसकी कुटिया में आए तब उसने उन्हें वह बेर खाने को दिए। लक्ष्मण ने तो इसे खाने में आनाकानी की लेकिन प्रभु श्रीराम ने उन बेरों को बड़ी प्रसन्नता के साथ ग्रहण किया।
आखिर क्यों प्रभु श्रीराम ने शबरी के दिए झूठे बेर (Shabri Ke Ber Story) खा लिए व इससे उन्होंने क्या शिक्षा दी? आइए जानते हैं।
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जातिवाद से ऊपर कर्म
शबरी के बेर खाकर भगवान श्रीराम ने मनुष्य की जाति से ऊपर कर्म को रखा। कुछ लोगों के द्वारा केवल मनुष्य की जाति को ही महत्व दिया जाता है जबकि उसके कर्मों को अनदेखा कर दिया जाता है। हालाँकि त्रेता युग में लोगों के मन में ऐसी भावना नहीं थी लेकिन श्रीराम को भविष्य का पता था।
ऐसे में उन्होंने Shabri Ke Ber खाकर मनुष्य जाति को यह संदेश दिया कि ईश्वर के लिए मनुष्य की जाति नहीं बल्कि उसके कर्म महत्व रखते हैं। इसलिए आप चाहे जिस भी जाति के हो, लेकिन यदि आपके कर्म बुरे हैं तो ईश्वर आपको कभी नहीं मिलेंगे। वहीं यदि आपके कर्म सच्चे और भक्ति निश्छल है तो एक ना एक दिन ईश्वर आपका उद्धार कर देंगे।
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भक्त निर्धनों के भी
सामान्यतया धनवान लोग भगवान के प्रति अपनी भक्ति को सिद्ध करने के लिए बड़े-बड़े यज्ञ, हवन का आयोजन करवाते हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों या मंदिरों में भी उन्हें अधिक महत्व दिया जाता है, तो वहीं निर्धन लोग सामान्य रूप से ही भक्ति कर पाते हैं। ऐसे में भगवान ने स्वयं अपने भक्त की कुटिया में जाकर और Sabri Ke Ber खाकर यह दिखा दिया कि यदि भक्ति सच्ची हो तो भगवान स्वयं तुम्हारे घर आ जाते हैं।
कहने का तात्पर्य यह हुआ कि यह मायने नहीं रखता है कि किसी धनी व्यक्ति या राजनेता को ईश्वर की मूर्ति के समीप रहकर पूजा करने का अवसर मिल रहा है तो ईश्वर उस पर अपनी कृपा बरसाएंगे। यदि आप ईश्वर के दरबार में आखिरी पंक्ति में भी खड़े हैं लेकिन यदि आपकी भक्ति सच्ची है तो यकीन मानिए, ईश्वर आपको भी देख रहे होंगे।
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भक्त का भोग भगवान को
लोग कुछ भी खाने से पहले भगवान को भोग लगाते हैं व फिर उसे प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं जो कि सही भी है। किंतु भगवान ने भक्त की श्रद्धा व सच्चे मन को देखकर यह बताया कि यदि नादानी में भक्त अपने भगवान को झूठा भोग लगा दे परंतु उसकी भक्ति सच्ची हो तो भगवान उसे भी खुशी-खुशी ग्रहण कर लेते हैं। शबरी के बेर भी श्रीराम के लिए झूठे नहीं बल्कि अमृत समान थे।
यहाँ हम यह कहना चाह रहे हैं कि एक भक्त के द्वारा अनजाने में या गलती से कोई चूक हो जाती है तो ईश्वर उसका दंड नहीं देते हैं। ईश्वर को सभी का मन पढ़ना आता है और वे हमारे मन को भी भलीभाँति जानते हैं। हम उस ईश्वर की ही संतान हैं और वे हमारे परम पिता हैं। इसलिए बच्चों से गलती हो सकती है और पिता उसे क्षमा करने का भी अधिकार रखता है।
इस प्रकार Shabri Ke Ber खाकर भगवान श्रीराम ने सभी को यह संदेश दिया कि जब भक्त अपने भगवान के प्रति संपूर्ण निष्ठाभाव से स्वयं को समर्पित कर देता है तो भगवान भी स्वयं को उसके सामने उसी प्रकार समर्पित कर देते हैं। जब कुछ पाने की इच्छा ना हो व भक्ति ही सर्वोत्तम हो तो मनुष्य को मोक्ष प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता।
शबरी के बेर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राम ने शबरी के जूठे बेर क्यों खाएं?
उत्तर: शबरी की भगवान के प्रति भक्ति सच्ची थी और उसने अनजाने में उन्हें झूठे बेर खिलाए थे। इसलिए राम जी ने शबरी के झूठे बेर खा लिए थे।
प्रश्न: रामायण के बाद शबरी का क्या हुआ?
उत्तर: शबरी की कुटिया से जाने से पहले भगवान श्रीराम उसे नवधा भक्ति का ज्ञान देते हैं। इस ज्ञान को प्राप्त कर शबरी मोक्ष प्राप्त कर लेती है।
प्रश्न: लक्ष्मण जी ने शबरी के बेर क्यों नहीं खाए?
उत्तर: लक्ष्मण जी ने शबरी के बेर इसलिए नहीं खाए थे क्योंकि वह झूठे थे। हालाँकि श्रीराम के कहने पर लक्ष्मण ने भी शबरी के झूठे बेर खा लिए थे।
प्रश्न: शबरी की कुटिया कौन से वन में थी?
उत्तर: शबरी की कुटिया महर्षि मतंग के आश्रम के पास ही थी। वहाँ रहकर वह ऋषि-मुनियों की सेवा और श्रीराम की प्रतीक्षा करती थी।
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