शिव भोले की आरती: शीश गंग अर्धांग पार्वती लिरिक्स इन हिंदी अर्थ सहित

Shivji Ki Aarti

वैसे तो भगवान शिव जी की कई आरतियाँ (Shiv Ji Aarti) हैं जिनमें से ॐ जय शिव ओंकारा आरती सर्वप्रसिद्ध है किंतु आज हम उन्हीं शिवजी के कैलाशवासी रूप को समर्पित दूसरी शिव आरती(Sheesh Gang Ardhang Parvati Lyrics Hindi) पढ़ेंगे। कुछ भक्त शीश गंग अर्धांग पार्वती को आरती कहते हैं तो कुछ इसे भजन कह देते हैं। वैसे यह शिवजी की आरतियों में आती है।

इस लेख में सर्वप्रथम आपको शिव भोले की आरती शीश गंग अर्धांग पार्वती लिरिक्स हिंदी में (Shish Gange Ki Dhar Lyrics In Hindi) पढ़ने को मिलेगी। तत्पश्चात शिव आरती का हिंदी अनुवाद आपके लिए किया जाएगा, आइए पढ़ें आरती शिव जी की।

आरती शिव जी की – शीश गंग अर्धांग पार्वती लिरिक्स इन हिंदी (Sheesh Gang Ardhang Parvati Lyrics Hindi)

शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।

नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी।।

शीतल मन्द सुगंध पवन बह, बैठे हैं शिव अविनाशी।

करत गान गंधर्व सप्त स्वर, राग रागिनी मधुरासी।।

यक्ष रक्ष भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।।

कोयल शब्द सुनावत सुंदर, भ्रमर करत हैं गुंजा सी।।

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु, लाग रहे हैं लक्षासी।

कामधेनु कोटिन जहँ डोलत, करत दुग्धकी वर्षा सी।।

सूर्यकांत सम पर्वत शोभित, चंद्रकांत सम हिमराशी।

नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित, सेवत सदा प्रकृति दासी।।

ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।

ब्रह्मा विष्णु निहारत निसिदिन, कछु शिव हमकूं फरमासी।।

ऋद्धि सिद्धि के दाता शंकर, नित सत चित्त आनंदराशी।

जिन के सुमिरत ही कट जाती, कठिन काल यमकी फांसी।।

त्रिशूल धरजी का नाम निरंतर, प्रेम सहित जो नर गासी।

दूर होय विपदा उस नर की, जन्म-जन्म शिवपद पासी।।

कैलासी काशी के वासी, अविनाशी मेरी सुध लीजो।

सेवक जान सदा चरनन को, अपनो जान कृपा कीजो।।

तुम तो प्रभुजी सदा दयामय, अवगुण मेरे सब ढकियो।

सब अपराध क्षमाकर शंकर, किंकर की विनती सुनियो।।

शीश गंग अर्धांग पार्वती स्तुति का अर्थ (Shish Gange Ki Dhar Lyrics In Hindi Meaning)

शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।

नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी।।

जिनकी जटाओं में गंगा है, जो माता पार्वती के पति हैं, जो कैलाश पर्वत पर रहते हैं, जिनके लिए नंदी इत्यादि सहचर नृत्य करते हैं, जिनके ध्यान से सभी देवता सुख को प्राप्त करते हैं।

शीतल मन्द सुगंध पवन बह, बैठे हैं शिव अविनाशी।

करत गान गंधर्व सप्त स्वर, राग रागिनी मधुरासी।।

जिनके यहाँ पर सुगंधित वायु बहती है, जहाँ पर शिव बैठे हैं जिनका विनाश नही किया जा सकता है। जिनके लिए सभी गंधर्व मधुर संगीत गाते हैं और राग लगाते हैं।

यक्ष रक्ष भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।।

कोयल शब्द सुनावत सुंदर, भ्रमर करत हैं गुंजा सी।।

जहाँ पर यक्ष, रक्षक, भैरव इत्यादि घूमते हैं, जहाँ पर वनवासी भी बोल उठते हैं, जहाँ पर पक्षी भी सुंदर गीत गाते हैं और भ्रमर चारों ओर गूंजते हैं।

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु, लाग रहे हैं लक्षासी।

कामधेनु कोटिन जहँ डोलत, करत दुग्धकी वर्षा सी।।

जहाँ पर ब्रह्मांड के सबसे उत्तम वृक्ष स्थित हैं जैसे कि पारिजात के वृक्ष, जहाँ सर्वोत्तम गाय कामधेनु घूमती है और अपना दूध देती है।

सूर्यकांत सम पर्वत शोभित, चंद्रकांत सम हिमराशी।

नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित, सेवत सदा प्रकृति दासी।।

जहाँ पर सूर्य व चंद्रमा दोनों विराजमान है, जहाँ पर सभी छह ऋतुयें नियमित रूप से होती है, जिनकी सेवा में प्रकृति हमेशा तत्पर रहती है।

ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।

ब्रह्मा विष्णु निहारत निसिदिन, कछु शिव हमकूं फरमासी।।

सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, मनुष्य इत्यादि जिनके गुणों का बखान करते हैं, जिनको ब्रह्मा व विष्णु भी प्रतिदिन देखने आते हैं।

ऋद्धि सिद्धि के दाता शंकर, नित सत चित्त आनंदराशी।

जिन के सुमिरत ही कट जाती, कठिन काल यमकी फांसी।।

जो सभी प्रकार के ज्ञान व सिद्धियों के दाता हैं, जो मन को आनंद प्रदान करते हैं, जिनके स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के कष्ट इत्यादि नष्ट हो जाते हैं तथा महाकाल व यमराज के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।

त्रिशूल धरजी का नाम निरंतर, प्रेम सहित जो नर गासी।

दूर होय विपदा उस नर की, जन्म-जन्म शिवपद पासी।।

जो भी मनुष्य उन त्रिशूल धारी शिवजी का नाम नियमित रूप से लेता है, उसके सभी प्रकार के संकट व कष्ट दूर होते हैं तथा उसे हर जन्म में भगवान शिव का साथ मिलता है।

कैलासी काशी के वासी, अविनाशी मेरी सुध लीजो।

सेवक जान सदा चरनन को, अपनो जान कृपा कीजो।।

हे कैलाश में रहने वाले भगवान शिवजी! कृपया आप मुझ पर भी अपना ध्यान दें। मुझे आप अपना ही सेवक समझें और मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।

तुम तो प्रभुजी सदा दयामय, अवगुण मेरे सब ढकियो।

सब अपराध क्षमाकर शंकर, किंकर की विनती सुनियो।।

हे प्रभु! आप तो बहुत ही दयावान हैं, इसलिए मेरे सभी दोषों को दूर करें और मेरे सभी अपराध क्षमा कर दीजिए, मेरी बस यह विनती सुन लीजिए।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.