ओम हर हर हर महादेव की आरती लिखी हुई हिंदी में, Mahadev Ki Aarti

Shivji Ki Aarti

महादेव आरती (Mahadev Aarti) भी उतनी ही प्रसिद्ध है जितनी शिव जी की आरती। वैसे तो शिव जी की कई आरतियाँ हैं जो उनके विभिन्न रूपों को समर्पित है जैसे कि गंगाधर, भोलेनाथ, शंकर किंतु आज हम हर हर महादेव की आरती (Har Har Mahadev Aarti) को पढ़ेंगे।

इस लेख में आपको सर्वप्रथम महादेव की आरती लिखी हुई (Mahadev Ki Aarti) पढ़ने को मिलेगी। तत्पश्चात ओम हर हर हर महादेव आरती को अर्थ सहित आपको समझाया जाएगा।

महादेव आरती (Mahadev Aarti)

हर हर हर महादेव!!

सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव! सबके स्वामी।

अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी।।

हर हर हर महादेव!!

आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी।

अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी।।

हर हर हर महादेव!!

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।

कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी।।

हर हर हर महादेव!!

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय, औघरदानी।

साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी।।

हर हर हर महादेव!!

मणिमय-भवन निवासी, अतिभोगी, रागी।

सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी।।

हर हर हर महादेव!!

छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल, व्याली।

चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयनमहाकाली।।

हर हर हर महादेव!!

प्रेत पिशाच सुसेवित, पीतजटाधारी।

विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी।।

हर हर हर महादेव!!

शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।

अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि-मनहारी।।

हर हर हर महादेव!!

निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय, नित्य-प्रभो।

कालरूप केवल हर! कालातीत विभो।।

हर हर हर महादेव!!

सत्, चित्, आनंद, रसमय, करुणामय धाता।

प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता।।

हर हर हर महादेव!!

हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै।

सब बिधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै।।

हर हर हर महादेव!!

हर हर महादेव की आरती हिंदी में अर्थ सहित (Om Har Har Mahadev Ki Aarti Hindi Meaning)

सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव! सबके स्वामी।

अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी।।

महादेव ही सत्य, शुरुआत-अंत, सुंदर और सभी के स्वामी हैं। उनमे कोई परिवर्तन नही हो सकता, उनका कोई विनाश नही कर सकता, उन्हें कोई जीत नही सकता तथा वे सब जगह व्याप्त हैं।

आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी।

अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी।।

वे ही शुरुआत करते हैं, वे ही अंत करते हैं, उन्हें कोई रोग नही हो सकता, उन्हें कोई खंडित नही कर सकता, वे सभी कलाओं में परिपूर्ण हैं। वे निष्पाप हैं, उनका कोई रूप नही है, उन्हें देखा नही जा सकता है, उन्हें विचलित नही किया जा सकता है, वे अपवित्रता को भी हर लेते हैं।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।

कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी।।

वे परम ब्रह्मा, श्रीहरि नारायण व सदाशिव तीनों के रूप हैं। वे ब्रह्मा के रूप में सृष्टि का निर्माण करते हैं, वे ही विष्णु के रूप में सृष्टि का संचालन करते हैं और वे ही शिव रूप में इसका संहार भी करते हैं।

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय, औघरदानी।

साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी।।

वे ही सज्जनों की रक्षा करते हैं और वे ही पापियों का नाश करते हैं, वे ही हमे प्रोत्साहित करते हैं, वे ही सभी को प्रिय हैं, वे ही आदिशक्ति का रूप हैं। वे ही सभी चीज़ों को देख रहे हैं, वे ही निष्कामी हैं और वे ही सभी काम करते हैं, वे ही हम सभी का अभिमान हैं।

मणिमय-भवन निवासी, अतिभोगी, रागी।

सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी।।

उन्हें रत्न आभूषणों से बने भवनों में भी भेज दो तो भी वे श्मशान में ही विचरण करेंगे। उन्हें किसी चीज़ का मोह नही है, वे परम योगी व सन्यासी हैं।

छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल, व्याली।

चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयनमहाकाली।।

वे वस्त्रों के रूप में बाघ की खाल पहनते हैं, उनके गले में राक्षसों के कटे हुए सिरों की माला है व एक सर्प है, वे ही पुल्लिंग के साथ-साथ स्त्रीलिंग का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। वे चिताओं की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं, उनकी तीन आँखें हैं, वे हमेशा गतिमान रूप में हैं जो काली (समय) का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रेत पिशाच सुसेवित, पीतजटाधारी।

विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी।।

जिनकी भूत, प्रेत, पिशाच भी सेवा करते हैं, जो अपनी जटाओं में माँ गंगा को धारण किये हुए हैं। वे वस्त्रों का त्याग कर प्रलय लाने में भी सक्षम हैं।

शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।

अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि-मनहारी।।

वे सभी में शुभ व संयम रखने वाले हैं, वे ही माँ गंगा को धारण किये हुए हैं, उनके मस्तक पर चंद्रमा भी सुशोभित है, वे सभी को सुख प्रदान करने वाले हैं। वे सभी में सबसे सुंदर हैं, वे ही शांति प्रदान करते हैं, वे सभी ऋषि-मुनियों के मन को हरने वाले हैं।

निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय, नित्य-प्रभो।

कालरूप केवल हर! कालातीत विभो।।

उनका कोई गुण नही है लेकिन वे गुणयुक्त भी हैं अर्थात वे अच्छे व बुरे गुणों से मुक्त हैं, वे दोष रहित हैं, वे सपूर्ण विश्व में प्रिय हैं, वे ही सदैव रहने वाले ईश्वर हैं। वे काल को भी हर लेते हैं और वे काल से भी परे हैं अर्थात वे समय से भी परे हैं।

सत्, चित्, आनंद, रसमय, करुणामय धाता।

प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता।।

वे ही सारांश हैं, वे ही मन हैं, वे ही आनंद देते हैं, वे ही रस हैं, वे ही करुणा हैं। वे संपूर्ण विश्व को प्रेम, चेतना, ज्ञान इत्यादि प्रदान करते हैं।

हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै।

सब बिधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै।।

हम आपके सामने याचक बनकर आये हैं, इसलिए हमे अपनी शरण में ले लीजिए। हमारे मन को शुद्ध करके हमें अपना बना लीजिए।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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