शिवलिंग की आधी परिक्रमा कैसे करें? आइए जाने

शिवलिंग की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए`

आज हम जानेंगे कि शिवलिंग की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए (Shivling Ki Parikrama Kitni Bar Karni Chahie)? सनातन धर्म में मंदिरों में जाने और वहां पूजा करने के कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। इसी में एक नियम है कि शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा आधी ही की जाती है लेकिन बहुत लोगों के मन में यह शंका होती है कि आखिरकार शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों?

पुराणों में सभी देवताओं की परिक्रमा करने की अलग-अलग संख्या निर्धारित की गई है लेकिन किसी की भी आधी परिक्रमा करने को नही कहा गया है केवल शिवलिंग को छोड़कर। इसके पीछे धार्मिक व वैज्ञानिक दोनों कारण हैं जिनके बारे में आज हम आपको बताएँगे। साथ ही बहुत से भक्त शिवलिंग की आधी परिक्रमा कैसे करें (Shivling Ki Aadhi Parikrama Kaise Karen), के बारे में भी जानना चाहते हैं। इस लेख में आपको आपके हरेक प्रश्न का स्पष्ट उत्तर मिल जाएगा।

शिवलिंग की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए?

भगवान शिव की तो पूर्ण परिक्रमा की जा सकती है लेकिन उन्हीं के ही रूप शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को कहा जाता है। दरअसल इसके लिए पहले आपको शिवलिंग के बारे में जानना होगा। शिवलिंग रहस्यों से भरा हुआ है। जब हम शिवलिंग की परिक्रमा कर रहे होते हैं तो उसमें जलाधारी को नहीं लांघा जाता है।

शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा करने के पीछे इसी जलाधारी को नहीं लांघना होता है। इसके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। इसे आप शिवलिंग और जलाधारी को जानकर ही समझ पाएंगे। इसके बाद ही आपको शिवलिंग की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए, का सही से पता लग पाएगा। तो चलिए पता लगाते हैं।

शिवलिंग क्या है?

शिवलिंग की परिक्रमा के बारे में जानने से पहले हमारा यह जानना आवश्यक है कि आखिरकार शिवलिंग होता क्या है!! दरअसल शिवलिंग का ऊपरी भाग पुरुषत्व या शिव का प्रतिनिधित्व करता है और नीचे वाला भाग स्त्रीत्व या शक्ति का। इसके अलावा शिवलिंग के रहस्य को विस्तार से जानने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

मुख्यतया शिवलिंग में ऊर्जा का अथाह भंडार होता है जिस कारण इसके आसपास अत्यधिक ऊर्जा का संचार होता रहता है जो कि गर्म होती है। इसलिए शिवलिंग के ऊपर हमेशा एक मटकी रखी जाती है जिसमे से बूँद-बूँद रूप में जल शिवलिंग पर गिरता रहता है और उसे ठंडा रखता है। शिवलिंग में अथाह ऊर्जा का स्रोत होने के कारण इसे घर पर रखने से भी मना किया जाता है।

जलाधारी किसे कहते हैं?

जब भी हम शिव मंदिर जाते हैं तो वहां शिवलिंग को कुछ ना कुछ चढ़ाते हैं। जैसे कि दूध, दही, जल, शहद, भांग, धतूरा इत्यादि। इसमें से ठोस चीज़ें तो निकाल ली जाती है लेकिन दृव्य वाली चीजें एक नली के माध्यम से बाहर निकल जाती है। यह सब जिस नली से बाहर निकलता है, उसे ही जलाधारी कहा जाता है।

अब इस जलाधारी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे कि सोमसूत्र, जलहरी या निर्मली इत्यादि। आमतौर पर इसे जलाधारी ही कहा जाता है जहाँ से शिवलिंग को चढ़ाया जल, दूध इत्यादि बाहर निकलता है। भक्तों के द्वारा इसमें से निकल रहे जल को स्पर्श कर अपने माथे पर लगाया जाता है।

शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों?

अब बात करते हैं कि क्यों हमे शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को ही कहा जाता है। इसके पीछे का सबसे मुख्य कारण जलाधारी ही है क्योंकि इसे लांघना शास्त्रों में घोर अपराध माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इसे लांघने से भगवान शिव रुष्ट हो जाते हैं और इस कारण मनुष्य को शारीरिक व मानसिक रूप से दुःख भोगने पड़ते हैं।

यह तो आम लोगों को डराने के उद्देश्य से कहा जाता है लेकिन इसके पीछे धर्म का एक छुपा हुआ ज्ञान है। आइए उसके बारे में जान लेते हैं:

  • शिवलिंग में अथाह ऊर्जा का भंडार होता है। इसलिए जब हम उस पर जल इत्यादि चढ़ाते हैं तो ऊर्जा का कुछ भाग उसमे मिलकर जलाधारी के माध्यम से प्रवाहित होता रहता है। इस मिश्रण में शिव व शक्ति दोनों की ऊर्जा मिली हुई होती है जो अत्यधिक गर्म होती है।
  • यदि हम शिवलिंग की परिक्रमा करते समय इस जलाधारी को लांघते हैं तो लांघते समय यह ऊर्जा हमारे दोनों पैरों के बीच में से शरीर में प्रवेश कर जाती है।
  • इससे हमे वीर्य व रज संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही हमे देवदत्त तथा धनंजय वायु के प्रभाव में रुकावटों का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • कुल मिलाकर शिवलिंग के सोमसूत्र को लांघने से मनुष्य को कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन्हीं कारणों से शास्त्रों में जलाधारी को लांघना वर्जित माना गया है।

हिंदू धर्म में हर एक चीज़ को वैज्ञानिक आधार पर ही निर्धारित किया गया है फिर चाहे वह सूर्य को जल चढ़ाना हो या नमस्कार करना। शिवलिंग के निर्माण के पीछे भी एक गहरा रहस्य है। दरअसल शिवलिंग हमारे संपूर्ण ब्रह्मांड के आकार या फैलाव तथा परमाणु ऊर्जा का संकेतक है।

भगवान शिव की नगरी काशी के भूजल में भी परमाणु ऊर्जा की तरंगें पाई गई है। इसके साथ ही जहाँ-जहाँ शिवलिंग की स्थापना की गई है वहां-वहां रेडियो एक्टिव तरंगें बहुतायत में है। शिवलिंग का आकार और परमाणु केन्द्रों के आकार में भी बहुत समानताएं पाई जाती है। इन्हीं सब कारणों के कारण शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा करने को ही उचित माना गया है अन्यथा हमे इसके कई दुष्परिणाम भोगने पड़ सकते हैं।

शिवलिंग की आधी परिक्रमा कैसे करें?

शिवलिंग की परिक्रमा को अर्ध चंद्राकर परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है जिसको करने की एक विधि होती है। अब हम आपको शिवलिंग की आधी परिक्रमा कैसे करें (Shivling Ki Aadhi Parikrama Kaise Karen), इसके बारे में चरण दर चरण संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

  • शिवलिंग की परिक्रमा को हमेशा अपने बायीं ओर से प्रारंभ करना चाहिए अर्थात आपका दाहिना हाथ शिवलिंग की ओर होना चाहिए।
  • बायीं ओर से परिक्रमा शुरू करने के बाद, जलाधारी तक जाएं लेकिन इसे पार ना करें।
  • अब झुककर जलाधारी को प्रणाम करें और उसमें से बह रहे जल को छूकर सिर पर लगाएं।
  • इसके बाद वहीं से वापस मुड़ जाएं और वापस शिवलिंग के सामने आकर अपनी परिक्रमा पूरी करें।
  • इस दौरान आपको उल्टे पांव वापस नहीं आना है, बल्कि पीछे मुड़कर वापस आना है
  • फिर आप शिवलिंग के मुख्य द्वार अर्थात जहाँ से आपने परिक्रमा शुरू की थी, वहां आएं और शिवलिंग को प्रणाम करें।
  • मुख्य तौर पर तो शिवलिंग की आधी परिक्रमा यहीं समाप्त हो जाती है लेकिन कुछ भक्त इसके आगे की प्रक्रिया भी करते हैं
  • इसके तहत अब आपको दायीं ओर से जलाधारी तक जाना होगा और वहां उसे पुनः छूकर पीछे मुड़कर वापस आना होगा
  • यह प्रक्रिया वैसी ही है, जैसे पहले की गई थी। बस इसमें उल्टा जाना होता है।

एक तरह से हम जलाधारी को लांघ नहीं सकते हैं लेकिन इसे बिना लांघे ही पहले बायीं ओर से जाकर वापस आ जाना और फिर दायीं ओर से जाकर वापस आकर भी शिवलिंग की परिक्रमा की जा सकती है

हालाँकि शिवलिंग की इस तरह परिक्रमा करना आवश्यक नहीं होता है और आप केवल बायीं और जाकर वापस आ सकते हैं। ऐसा करने से ही शिवलिंग की आधी परिक्रमा को पूरा मान लिया जाता है।

शिवलिंग की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?

अब कुछ भक्तों के मन में शंका होगी कि क्या हम शिवलिंग की आधी-आधी करके एक से ज्यादा परिक्रमा भी लगा सकते हैं? या फिर शिवलिंग की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए (Shivling Ki Kitni Parikrama Karni Chahie)? ऐसे में यहाँ हम आपको पहले ही बता दें कि किसी भी परिस्थिति में शिवलिंग की आधी परिक्रमा से ज्यादा करने को मना किया गया है।

शास्त्रों में शिवलिंग की परिक्रमा करने की कुल संख्या ही आधी बताई गई है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि आपको बस केवल एक बार ही शिवलिंग की आधी परिक्रमा करनी है, उससे ज्यादा नहीं।

कब की जा सकती है शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा

वैसे तो शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा करने की मनाही है लेकिन शास्त्रों में शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा करने के भी नियम हैं। इसके अनुसार यदि जलाधारी भूमिगत हो या उसे किसी चीज़ से ढका गया हो तो ऐसे में उसे लांघा जा सकता है।

शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को इसलिए ही कहा जाता है क्योंकि इसके ऊपर से जाने पर जलाधारी की ऊर्जा हमारे अंदर प्रवेश कर सकती है। जलाधारी अगर भूमिगत है या ढकी हुई है तो ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा की जा सकती है।

शिवलिंग की परिक्रमा करने के नियम

इसी के साथ ही आपको शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा करते समय कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसे हम शिवलिंग की परिक्रमा के नियम भी कह सकते हैं। आइए उनके बारे में जान लेते हैं।

  • शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने को कहा जाता है लेकिन शिवजी की मूर्ति की पूर्ण परिक्रमा ही करें।
  • जलाधारी से उल्टे पाँव वापस नही आना है अपितु पीछे मुड़कर वापस आएं।
  • जलाधारी से वापस आने से पहले उसके जल को अवश्य स्पर्श करके अपने सिर से लगाएं।
  • शिवलिंग की परिक्रमा करते समय छोटे बच्चों को गोद में या हाथ पकड़ कर रखें क्योंकि वे गलती से जलाधारी लांघ भी सकते हैं।
  • जलाधारी जब पूरी तरह से ढकी हुई हो, ऐसी स्थिति में ही उसे लांघें अन्यथा नहीं।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने यह जान लिया है कि शिवलिंग की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए और साथ ही शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है। आशा है कि शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा के पीछे छुपे रहस्य को जानकर आप संतुष्ट हुए होंगे।

शिवलिंग की परिक्रमा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: शिवलिंग की परिक्रमा कैसे की जाती है?

उत्तर: शिवलिंग की परिक्रमा पूरी नहीं बल्कि आधी की जाती है इसमें जलाधारी तक जाकर फिर पीछे मुड़कर वापस आना होता है

प्रश्न: शिव जी की कितनी परिक्रमा लगानी चाहिए?

उत्तर: शिव जी की तो आप कितनी भी परिक्रमा लगा सकते हैं लेकिन शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही की जाती है

प्रश्न: शिवलिंग का मुंह किधर होता है?

उत्तर: शिवलिंग का मुहं मुख्य तौर पर उत्तर दिशा की ओर रहता है

प्रश्न: शिवलिंग पर जल कितने बजे तक चढ़ाना चाहिए?

उत्तर: सुबह के समय आप कभी भी शिवलिंग पर जल चढ़ा सकते हैं हालाँकि सुबह 4 बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक शिवलिंग पर जल चढ़ाया जा सकता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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