आज हम श्री कृष्ण वंदना श्लोक (Krishna Vandana) का पाठ करेंगे। श्री कृष्ण वंदना के माध्यम से श्रीकृष्ण के जीवन में घटित घटनाओं का वर्णन कर उनकी वंदना की गयी है। जैसे कि श्री कृष्ण ने कालिया नाग के अहंकार का नाश किया था और उसके फन पर नृत्य किया था, कैसे वो यमुना के किनारे अपनी मुरली से मधुर संगीत बजाया करते थे, किस तरह उन्होंने पूर्णिमा की रात्रि गोपियों संग रासलीला रचाई थी, इत्यादि।
इसी के साथ श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन भी किया गया है जैसे कि वे पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं, उनका वर्ण सांवला है, गले में पुष्पों की माला है तो हाथों में मुरली पकड़े हुए हैं इत्यादि। कृष्णा वंदना में श्री कृष्ण के विभिन्न गुणों का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है और साथ ही उन्हें निर्गुण की उपाधि भी दी गयी है।
आज के इस लेख में आपको श्री कृष्ण वंदना श्लोक अर्थ सहित (Shri Krishna Vandana In Hindi) भी पढ़ने को मिलेगी। आइए पढ़ते हैं श्री कृष्ण वंदना।
श्री कृष्ण वंदना श्लोक
॥ श्लोक ॥
वन्दे नव घनश्यामं पीत कौशेयवससम।
सानंदम सुंदरम शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृते परम॥
॥ श्रीकृष्ण वंदना ॥
वन्दे गोपालं वन्दे गोपालं।
मृगमद शोभितभालं करुणा कल्लोलं॥
जय देव, जय देव॥
निर्गुण सगुणाकारं संह्रतभूभारं।
मुरहर नंदकुमारं मुनिजन सुखकारं॥
वृंदावन संचारं कौस्तुभ मणिहारं।
करुणापारा वारं गोवर्धन धारं॥
कुंचित कुन्तलनीलं शरदिन्दु भवदनं।
मणिगण मण्डित कुण्डल शोभित श्रुतियुगलं॥
विकसित पंकजनयनं विलसित भ्रूयुगलं।
बिम्बाधर मतिसुंदर नासामणिलोलं॥
कम्बुग्रीवं कौस्तुभ मणिकंठाभरणं।
श्रीवत्सागिक्देहम लम्बितवनमालम॥
भूषित भुजवरयुगलं करतल धृतवेणुम।
त्रिवलीशोभितमध्यम करधृत नवनीतम॥
मुरलीवादन लीलासप्तस्वरगीतम।
जलचर वनचर खेचररंजन संगीतम॥
स्तम्भितयमुनातोयम परमाद्भुतचरितं।
गोपीचित्त विनोदनकारम श्रीकान्तं॥
रासक्रीडा मंडल वेष्ठितव्रज ललनं।
मध्ये तांडव नृत्य कोमल पदयुगलं॥
कुसुमाकार विरंजित मंदस्मित वदनं।
कालियफणी वरदलनम यक्षेश्वरहन्नम॥
मणि मण्डित मध्यम पीताम्बर वसनं।
मंजुल नूपुर शिन्चित विलसत्पदयुगलं॥
गोगोपीपरिवेष्टित यमुनातट संस्थं।
व्यासाभयदम सुखदम भुवनत्रयपालम॥
जय देव, जय देव॥
इस तरह से आपने श्री कृष्ण वंदना श्लोक को पढ़ लिया है। अब हम श्री कृष्ण वंदना का अर्थ भी जान लेते हैं। आइए जाने।
श्री कृष्ण वंदना श्लोक अर्थ सहित
वन्दे नव घनश्यामं पीत कौशेयवससम।
सानंदम सुंदरम शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृते परम॥
जिन घनश्याम ने पीले रंग के रेशमी वस्त्र धारण किए हुए है, मैं उनकी वंदना करता हूँ। जो हमेशा आनंद में रहते हैं, जो बहुत ही सुंदर, शुद्ध और इस प्रकृति से भी परे हैं, उन श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।
वन्दे गोपालं वन्दे गोपालं।
मृगमद शोभितभालं करुणा कल्लोलं॥
मैं गौमाता की रक्षा करने वाले श्रीकृष्ण की वंदना करता हूँ। उन श्रीकृष्ण के माथे पर कस्तूरी जैसी सुन्दरता है और जिनका हृदय दयाभाव से भरा हुआ है।
निर्गुण सगुणाकारं संह्रतभूभारं।
मुरहर नंदकुमारं मुनिजन सुखकारं॥
श्रीकृष्ण निर्गुण भी है और सगुन भी अर्थात उनका कोई गुण नहीं भी है और सद्गुण भी है। उन्होंने इस पृथ्वी से पाप के भार को कम किया है। उन्होंने राक्षसों का वध किया और वे नंद बाबा के पुत्र है। वे ऋषि-मुनियों को सुख प्रदान करते हैं।
वृंदावन संचारं कौस्तुभ मणिहारं।
करुणापारा वारं गोवर्धन धारं॥
वे वृंदावन की गलियों में घूमते हैं और उन्होंने कौस्तुभ मणि को धारण किया हुआ है। श्रीकृष्ण दया के सागर है और उन्होंने हो गोवर्धन पर्वत को उठाया था।
कुंचित कुन्तलनीलं शरदिन्दु भवदनं।
मणिगण मण्डित कुण्डल शोभित श्रुतियुगलं॥
उनकी आँखें नीले रंग की और बाल घुंघराले है। उनका मुख शरद ऋतु के चंद्रमा के समान मनोहर है। उनके कानो में रत्न जडित कुंडल है जो उनकी शोभा को बढ़ा रहे हैं।
विकसित पंकजनयनं विलसित भ्रूयुगलं।
बिम्बाधर मतिसुंदर नासामणिलोलं॥
श्रीकृष्ण की आँखें पंकज पुष्प के समान विकसित है तो वही उनकी भौहें बहुत ही सुंदर है। उनके होंठ भी बहुत सुंदर है और नासिका में मणि उनकी शोभा को बढ़ा रहा है।
कम्बुग्रीवं कौस्तुभ मणिकंठाभरणं।
श्रीवत्सागिक्देहम लम्बितवनमालम॥
उनकी गर्दन शंख रुपी आकार में है। उन्होंने अपने गले में कौस्तुभ मणि को धारण किया हुआ है। उनकी देग पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है तो वही उन्होंने एक लंबी वनमाला भी पहनी हुई है।
भूषित भुजवरयुगलं करतल धृतवेणुम।
त्रिवलीशोभितमध्यम करधृत नवनीतम॥
उनकी दोनों भुजाओं नाना प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित है। उन्होंने अपने हाथों में बांसुरी भी पकड़ी हुई है। उनका उदर तीन धारियों वाला है तो वही उनके एक हाथ में मक्खन भी है।
मुरलीवादन लीलासप्तस्वरगीतम।
जलचर वनचर खेचररंजन संगीतम॥
श्रीकृष्ण अपनी मुरली की धुन में सभी सात स्वरों के रस को घोल देते हैं। उनका यह मधुर संगीत जल, वन और आकाश में रहने वाले सभी प्राणियों को आनंदित करता है।
स्तम्भितयमुनातोयम परमाद्भुतचरितं।
गोपीचित्त विनोदनकारम श्रीकान्तं॥
उनके मधुर संगीत के कारण माँ यमुना का जलस्तर भी शांत और ठहर जाता है। उनके कारण सभी गोपियों का मन आनंदित हो उठता है। वही वे लक्ष्मी पति भी कहलाते हैं।
रासक्रीडा मंडल वेष्ठितव्रज ललनं।
मध्ये तांडव नृत्य कोमल पदयुगलं॥
श्रीकृष्ण ने राधा व अन्य गोपियों संग रासलीला भी रचाई थी। सभी गोपियों के बीच में श्रीकृष्ण ने तांडव समान सुंदर नृत्य का प्रदर्शन किया था।
कुसुमाकार विरंजित मंदस्मित वदनं।
कालियफणी वरदलनम यक्षेश्वरहन्नम॥
आपका मुख की हल्की सी मुस्कान हम सभी के मन को आनंद देने वाली है। आप नाना प्रकार के पुष्पों से सुशोभित है। आपने ही कालिया नाग के फनों को रौंद डाला था और यक्ष राजा का वध कर दिया था।
मणि मण्डित मध्यम पीताम्बर वसनं।
मंजुल नूपुर शिन्चित विलसत्पदयुगलं॥
आपने अपने शरीर पर मणियों से युक्त आभूषण व पीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए है। आपने अपने पैरों में मंजीर भी बाँध रखी है जिससे मधुर संगीत निकलता है।
गोगोपीपरिवेष्टित यमुनातट संस्थं।
व्यासाभयदम सुखदम भुवनत्रयपालम॥
आप गौमाता और गोपियों से घिरे हुए यमुना नदी के आसपास विचरण करते हैं। आप महर्षि वेदव्यास को अभय और सुख प्रदान करने वाले हैं। आप ही तीनो लोको के स्वामी और हम सभी के पालनहार है।
इस तरह से आज आपने श्री कृष्ण वंदना श्लोक अर्थ सहित (Shri Krishna Vandana In Hindi) पढ़ ली है। अब हम श्री कृष्ण वंदना को पढ़ने से मिलने वाले लाभ और उसके महत्व को भी जान लेते हैं।
श्री कृष्ण वंदना का महत्व
भगवान श्री कृष्ण वंदना के श्लोक के माध्यम से हमें श्रीकृष्ण के गुणों, शक्तियों, महिमा, महत्व इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का एक ऐसा पूर्ण अवतार है जो सभी गुणों से संपन्न है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में एक नहीं बल्कि कई उद्देश्यों को पूरा किया है। अपने कर्मों के द्वारा उन्होंने हमें कई तरह की शिक्षा भी दी है।
श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ही कलियुग के अंत तक की शिक्षा दे दी थी। जैसे-जैसे कलियुग का समयकाल आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही श्रीकृष्ण भी अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण के बारे में और अधिक जानने और उनके गुणों को आत्मसात करने के उद्देश्य से ही श्री कृष्ण वंदना का पाठ किया जाता है। यहीं श्री कृष्ण वंदना श्लोक का महत्व है।
श्री कृष्ण वंदना पढ़ने के फायदे
यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ श्री कृष्ण वंदना श्लोक का पाठ करते हैं तो इससे श्रीकृष्ण आपसे प्रसन्न होते हैं। श्रीकृष्ण के प्रसन्न होने का अर्थ हुआ, आपकी सभी तरह की दुविधाओं, संकटों, कष्टों, परेशानियों, विघ्नों, दुविधाओं, उलझनों, मतभेदों, समस्याओं, नकारात्मकता, द्वेष, ईर्ष्या, इत्यादि का अंत हो जाना।
श्रीकृष्ण की कृपा से हमारा जीवन सरल हो जाता है, घर में सुख-शांति का वास होता है, व्यापार, करियर व नौकरी में उन्नति होती है, शिक्षा में अव्वलता आती है, स्वास्थ्य उत्तम होता है, रिश्ते मधुर बनते हैं और समाज में प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इसलिए आपको शुद्ध तन, निर्मल मन और स्वच्छ स्थान पर श्री कृष्ण वंदना का पाठ करना चाहिए।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने श्री कृष्ण वंदना श्लोक (Krishna Vandana) को अर्थ सहित पढ़ लिया है। आशा है कि आपको धर्मयात्रा संस्था के द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी। यदि आप अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। हमारी और से आप सभी को जय श्रीकृष्ण।
श्री कृष्ण वंदना श्लोक से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कृष्ण का प्रसिद्ध श्लोक कौन सा है?
उत्तर: कृष्ण का प्रसिद्ध श्लोक श्री कृष्ण वंदना श्लोक है। इसे हमने इस लेख में दिया है। साथ ही उन श्लोक को अर्थ सहित भी समझाया गया है।
प्रश्न: कृष्ण की स्तुति कैसे करें?
उत्तर: यदि आप भगवान श्री कृष्ण की स्तुति करना चाहते हैं तो उसके लिए तन, मन व स्थान का शुद्ध होना अति आवश्यक होता है। इसके पश्चात आप श्री कृष्ण स्तुति का पाठ कर सकते हैं।
प्रश्न: कृष्ण का प्रिय शब्द कौन सा है?
उत्तर: भगवान श्री कृष्ण का प्रिय शब्द राधे राधे होता है। यहीं कारण है कृष्ण भक्त एक दूसरे को राधे राधे कहकर संबोधित करते हैं।
प्रश्न: एक लाइन में कृष्ण कौन है?
उत्तर: कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है जिन्होंने मनुष्य को कलियुग के अंत तक की शिक्षा द्वापर युग में ही दे दी थी।
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