पढ़ें नवग्रह चालीसा के फायदे – PDF फाइल व अर्थ सहित

Navgrah Chalisa

नवग्रह चालीसा (Navgrah Chalisa) का अत्यधिक महत्व है क्योंकि नवग्रहों से हमारी कुंडली, भाग्य, तीनों काल, स्वास्थ्य इत्यादि जुड़े हुए हैं। नवग्रह की चालीसा में सभी नौ ग्रहों के बारे में विस्तार से बताया गया है जिसमें उनकी महत्ता, गुण, पूजा करने के लाभ इत्यादि का वर्णन सम्मिलित है। इसलिए आज हम सर्वप्रथम नवग्रह चालीसा का पाठ करेंगे।

तत्पश्चात नवग्रह चालीसा का हिंदी अर्थ (Navgraha Chalisa) आपके साथ साझा किया जाएगा ताकि आप इसका संपूर्ण अर्थ जान सके। इसी के साथ नवग्रह चालीसा PDF फाइल भी दी जाएगी। अंत में नवग्रह चालीसा के फायदे भी आपको बताए जाएंगे। आइए सबसे पहले पढ़ते हैं नवग्रह चालीसा हिंदी में।

Navgrah Chalisa | नवग्रह चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय।
नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय॥

जय जय रवि शशि सोम बुध, जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह, करहुं अनुग्रह आज॥

॥ चौपाई ॥

श्री सूर्य चालीसा

प्रथमहि रवि कहँ नावों माथा, करहु कृपा जनि जानि अनाथा।

हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू।

अब निज जन कहँ हरहु कलेषा, दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।

नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर।

श्री चन्द्र चालीसा

शशि मयंक रजनीपति स्वामी, चन्द्र कलानिधि नमो नमामि।

राकापति हिमांशु राकेशा, प्रणवत जन तन हरहु कलेशा।

सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर।

तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहु कलेशा।

श्री मंगल चालीसा

जय जय जय मंगल सुखदाता, लोहित भौमादिक विख्याता।

अंगारक कुज रुज ऋणहारी, करहु दया यही विनय हमारी।

हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, लोहितांग जय जन अघनाशी।

अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै।

श्री बुध चालीसा

जय शशि नन्दन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहँ शुभ काजा।

दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा।

हे तारासुत रोहिणी नन्दन, चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन।

पूजहु आस दास कहुँ स्वामी, प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।

श्री बृहस्पति चालीसा

जयति जयति जय श्री गुरुदेवा, करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा।

देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्यादानी।

वाचस्पति बागीश उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।

विद्या सिन्धु अंगिरा नामा, करहु सकल विधि पूरण कामा।

श्री शुक्र चालीसा

शुक्र देव पद तल जल जाता, दास निरन्तन ध्यान लगाता।

हे उशना भार्गव भृगु नन्दन, दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।

भृगुकुल भूषण दूषण हारी, हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी।

तुहि द्विजवर जोशी सिरताजा, नर शरीर के तुमहीं राजा।

श्री शनि चालीसा

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन, जय कृष्णो सौरी जगवन्दन।

पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, वप्र आदि कोणस्थ ललामा।

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, क्षण महँ करत रंक क्षण राजा।

ललत स्वर्ण पद करत निहाला, हरहु विपत्ति छाया के लाला।

श्री राहु चालीसा

जय जय राहु गगन प्रविसइया, तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया।

रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा, शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।

सैहिंकेय तुम निशाचर राजा, अर्धकाय जग राखहु लाजा।

यदि ग्रह समय पाय कहिं आवहु, सदा शान्ति और सुख उपजावहु।

श्री केतु चालीसा

जय श्री केतु कठिन दुखहारी, करहु सुजन हित मंगलकारी।

ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला, घोर रौद्रतन अघमन काला।

शिखी तारिका ग्रह बलवान, महा प्रताप न तेज ठिकाना।

वाहन मीन महा शुभकारी, दीजै शान्ति दया उर धारी।

नवग्रह शांति फल

तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा।

ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुख हारी।

नव-ग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू।

जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।

॥ दोहा ॥

धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार।
चित नव मंगल मोद गृह, जगत जनन सुखद्वार॥

यह चालीसा नवोग्रह विरचित सुन्दरदास।
पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास॥

Navgraha Chalisa | नवग्रह चालीसा – हिंदी अर्थसहित

॥ दोहा ॥

श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय।
नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय॥

जय जय रवि शशि सोम बुध, जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह, करहुं अनुग्रह आज॥

मैं श्री गणेश भगवान का नाम लेकर और उन्हें अपना गुरु मानकर उनके चरणों में कमल का पुष्प चढ़ाता हूँ और संपूर्ण प्रेम भाव से उनके सामने सिर झुकाता हूँ। इसके पश्चात मैं नवग्रह चालीसा का पाठ करता हूँ और मन ही मन बहुत प्रसन्न होता हूँ। सभी नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु, मंगल, शनि, राहु, शुक्र व केतु की जय हो। आज मैं आप सभी से विनती करता हूँ।

॥ चौपाई ॥

श्री सूर्य स्तुति

प्रथमहि रवि कहँ नावों माथा, करहु कृपा जनि जानि अनाथा।

हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू।

अब निज जन कहँ हरहु कलेषा, दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।

नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर।

सर्वप्रथम मैं नवग्रहों के राजा सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ। हे सूर्य देव!! आप हम सभी पर अपनी कृपा करें और अनाथों की रक्षा कीजिए। हे आदित्य, दिवाकर व भानु देव!! मैं तो मंदबुद्धि व अज्ञानी हूँ।

सभी मनुष्य आपसे विनती कर रहे हैं कि आप उनके कष्ट समाप्त कर दीजिए। आपके तो बारह मास के अनुसार बारह रूप हैं। आपके कुछ नाम भास्कर, सूर्य, प्रभाकर, अर्क, मित्र, अघ व मोघ हैं जिनको मेरा नमस्कार है। आप मुझे मेरी गलतियों के लिए क्षमा कर दीजिए।

श्री चन्द्र स्तुति

शशि मयंक रजनीपति स्वामी, चन्द्र कलानिधि नमो नमामि।

राकापति हिमांशु राकेशा, प्रणवत जन तन हरहु कलेशा।

सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर।

तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहु कलेशा।

चंद्र देव के कुछ नाम शशि, मयंक व रजनीपति हैं। वे सभी कलाओं में निपुण हैं और उन्हें मेरा बार-बार नमन है। उन्हें राकापति, हिमांशु व राकेश के नाम से भी जाना जाता है। वे सभी मनुष्यों के कष्टों को दूर करते हैं।

वे सोमरस, इंदु, विधु व शांति प्रदान करने वाले हैं। उनके प्रभाव से ही शीतलता बनी रहती है, औषधि कार्य करती है और वे रात्रि में आते हैं। आप तो महादेव के मस्तिष्क पर सुशोभित हैं और वहां बहुत ही सुंदर लगते हैं। आपकी शरण में आने से तो सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं।

श्री मंगल स्तुति

जय जय जय मंगल सुखदाता, लोहित भौमादिक विख्याता।

अंगारक कुज रुज ऋणहारी, करहु दया यही विनय हमारी।

हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, लोहितांग जय जन अघनाशी।

अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै।

मंगल ग्रह जो सभी को सुख देते हैं, उनकी जय हो, जय हो, जय हो। वे लाल रंग के हैं और संपूर्ण पृथ्वी लोक में प्रसिद्ध हैं। उनके प्रभाव से हमारे सभी कष्ट दूर होते हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। मेरी आपसे यही विनती है कि अब आप मुझ पर अपनी दया करें।

हे सभी को सुख, सौम्यता व सुंदरता प्रदान करने वाले मंगल देव, आप सभी जीवों के दुःख समाप्त कर दीजिए। आप दुर्गम हैं और अब आप सभी अमंगल कार्यों को समाप्त कर दीजिए। हम सभी की इच्छाओं को पूरा कीजिए।

श्री बुध स्तुति

जय शशि नन्दन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहँ शुभ काजा।

दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा।

हे तारासुत रोहिणी नन्दन, चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन।

पूजहु आस दास कहुँ स्वामी, प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।

हे सभी के मन को जीतने वाले बुध महाराज!! सभी प्रजाजन आपसे शुभ फल देने को कह रहे हैं। आप हम सभी को बुद्धि, बल व विद्या दीजिए। साथ ही हमारे कष्ट, दुःख समाप्त कर हमारा कल्याण कीजिए।

हे तारासुत व रोहिणी के नंदन!! चंद्रमा के जैसे दिखने वाले हमारे दुखों व कष्टों को समाप्त कर दीजिए। आज मैं बहुत ही आशा के साथ आपकी पूजा कर रहा हूँ। हम सभी के प्राणों के रक्षक, आपको नमन है।

श्री बृहस्पति स्तुति

जयति जयति जय श्री गुरुदेवा, करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा।

देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्यादानी।

वाचस्पति बागीश उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।

विद्या सिन्धु अंगिरा नामा, करहु सकल विधि पूरण कामा।

हे सभी देवों के गुरु!! आपकी जय हो, जय हो। मैं सदा ही आपकी सेवा करता हूँ। आप सभी देवताओं के आचार्य व गुरु हैं एवं उन सभी में सबसे ज्ञानी हैं। आप देव राजा इंद्र के पुरोहित हैं जो उन्हें विद्या देते हैं।

आप बहुत बड़े विद्वान हैं और सभी में उदार भी। आपका नाम बृहस्पति है। आपके पिता का नाम अंगिरा ऋषि व माता का नाम सिंधु है जिन्होंने आपका यह नाम रखा। आपकी भक्ति करने से हमारे सभी काम पूरे होते हैं।

श्री शुक्र स्तुति

शुक्र देव पद तल जल जाता, दास निरन्तन ध्यान लगाता।

हे उशना भार्गव भृगु नन्दन, दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।

भृगुकुल भूषण दूषण हारी, हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी।

तुहि द्विजवर जोशी सिरताजा, नर शरीर के तुमहीं राजा।

शुक्र देव जहाँ भी अपना पैर रख दें वह स्थान जल जाता है। मैं आपका सेवक सदैव आपका ध्यान लगाता हूँ। आपके पिता का नाम ऋषि भृगु है और आपका पहले का नाम उशना था। आप दैत्यों के पुरोहित हैं व दुष्टों का नाश करते हैं।

भृगुकुल से होकर भी आपके ऊपर स्वर्ण, आभूषण हार गए और आप पर कोई भी आरोप सिद्ध नही हो सका। आप नाश को भी नष्ट कर देते हैं और सभी को सुख देते हैं। आपने ही दैत्यों के सिर पर ताज पहनाया। आप ही मनुष्य के शरीर के स्वामी हो।

श्री शनि स्तुति

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन, जय कृष्णो सौरी जगवन्दन।

पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, वप्र आदि कोणस्थ ललामा।

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, क्षण महँ करत रंक क्षण राजा।

ललत स्वर्ण पद करत निहाला, हरहु विपत्ति छाया के लाला।

हे सूर्य देव के पुत्र, शनि देव!! आपकी जय हो। आपका वर्ण सांवला है और आप संपूर्ण जगत में पूजनीय हैं। पीला रंग व हल्का भूरा रंग लिए हुए आप रोद्र रूप में यमराज का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। आप ही चांडाल रूप हैं।

आपकी टेढ़ी नज़र जब भी किसी पर पड़ जाए तो आप राजा को रंक और रंक को राजा बना सकते हैं। आपके मस्तक पर स्वर्ण का मुकुट सुशोभित है। अपनी छाया का दान करने से आप हमारी विपत्तियों को कम कर देते हैं।

श्री राहु स्तुति

जय जय राहु गगन प्रविसइया, तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया।

रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा, शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।

सैहिंकेय तुम निशाचर राजा, अर्धकाय जग राखहु लाजा।

यदि ग्रह समय पाय कहिं आवहु, सदा शान्ति और सुख उपजावहु।

आकाश में रहने वाले राहु देव!! आपकी जय हो, जय हो। आप ही सूर्य व चंद्रमा को निगल लेते हैं। सूर्य व चंद्रमा की धारा आपसे ही है और शिखी आदि आपके बहुत से नाम है।

आप चंद्रमा के राजा हैं और अपने आधे अंग से भी जगत के मान-सम्मान की रक्षा करते हैं। यदि आप सही समय पर सही जगह रहते हैं तो जीवन में सदैव ही शांति व सुख का वास रहता है।

श्री केतु स्तुति

जय श्री केतु कठिन दुखहारी, करहु सुजन हित मंगलकारी।

ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला, घोर रौद्रतन अघमन काला।

शिखी तारिका ग्रह बलवान, महा प्रताप न तेज ठिकाना।

वाहन मीन महा शुभकारी, दीजै शान्ति दया उर धारी।

हे केतु ग्रह!! आप हम सभी के कष्ट व दुखों को समाप्त करते हैं, आपकी जय हो। आप हम सभी का मंगल व लाभ करते हैं। आप बिना मुख के आधे शरीर के साथ रोद्र व विशाल रूप में हैं जो कि अत्यधिक काले वर्ण का है।

आप यदि किसी की कुंडली में बलवान हैं तो उसका प्रताप बहुत बढ़ता है। आपका वाहन मछली है और आप सभी के लिए शुभ फल देने वाले हैं। आप हम सभी को शांति व दया प्रदान कीजिए।

नवग्रह शांति फल

तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा।

ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुख हारी।

नव-ग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू।

जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।

प्रयाग नगरी तीर्थों में महान है और वहां श्रीराम के भक्त रहते हैं। ककरा गाँव में तिवारी निवास करते हैं। दुर्वासा ऋषि के आश्रम में मनुष्य के दुःख समाप्त होते हैं। नवग्रह की शांति के उपाय वहीं मिलते हैं और सभी मनुष्यों के कष्ट समाप्त होते हैं। जो भी इस नवग्रह चालीसा का प्रतिदिन पाठ करता है, उसे सभी तरह के सुख व यश की प्राप्ति होती है।

॥ दोहा ॥

धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार।
चित नव मंगल मोद गृह, जगत जनन सुखद्वार॥

यह चालीसा नवोग्रह विरचित सुन्दरदास।
पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास॥

हे नवग्रह!! आप सभी धन्य हैं, आप सभी की महिमा अपरंपार है। आप सभी हमारे मन को आनंदित करते हैं और सभी का मंगल करते हैं। आपके कारण ही प्रजाजन को सुख प्राप्त होता है। यह नवग्रह चालीसा सुन्दरदास के द्वारा लिखी गयी है। जो भी मनुष्य इसे प्रेमसहित पढ़ता है, उसे परम सुख की प्राप्ति होती है।

नवग्रह चालीसा PDF | Navgrah Chalisa PDF

अब हम नवग्रह चालीसा की PDF फाइल भी आपके साथ साझा कर देते हैं

यह रहा उसका लिंक: नवग्रह चालीसा PDF

ऊपर आपको लाल रंग में नवग्रह चालीसा PDF फाइल का लिंक दिख रहा होगा। आपको बस उस पर क्लिक करना है और उसके बाद आपके मोबाइल या लैपटॉप में पीडीएफ फाइल खुल जाएगी। फिर आपके सिस्टम में इनस्टॉल एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर के हिसाब से डाउनलोड करने का विकल्प भी ऊपर ही मिल जाएगा।

नवग्रह चालीसा के फायदे

पृथ्वी के ऊपर नवग्रहों का बहुत प्रभाव है क्योंकि हम एक ही आभामंडल में आते हैं। ऐसे में मनुष्य योनी का जन्म अवश्य ही पृथ्वी के क्षेत्र पर हुआ है लेकिन उस पर केवल पृथ्वी के वातावरण व वायुमंडल का प्रभाव ही नही होता अपितु इन सभी नव ग्रहों का भी हमारे ऊपर उतना ही प्रभाव होता है।

ऐसे में हमारी जन्म तिथि व समय के अनुसार हमारी कुंडली का निर्माण किया जाता है तथा विभिन्न ज्योतिषीय आंकड़ों के अनुसार हमारे भविष्य का आंकलन किया जाता है। ऐसे में इन ग्रहों का हमारे ऊपर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए और इनकी शांति के उपाय के लिए नवग्रह चालीसा, स्तोत्र व आरती का पाठ किया जाता है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने नवग्रह चालीसा (Navgrah Chalisa) पढ़ ली है। साथ ही आपने इसका अर्थ और फायदे भी जान लिए है। यदि आपको नवग्रह चालीसा PDF फाइल डाउनलोड करने में किसी तरह की समस्या होती है या आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट करें। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देंगे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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