रामायण की पावन कथा हर किसी ने पढ़ी व सुनी है उसे पढ़कर हर किसी के मन में यह प्रश्न उठता है कि अग्नि परीक्षा के बाद भी आखिरकार राम ने सीता को वनवास क्यों दिया (Ram Ne Sita Ko Kyon Chhoda)!! कुछ अधर्मी लोग इसे लेकर श्रीराम पर प्रश्न चिन्ह उठाते हैं तो कम ज्ञानी लोग इसे लेकर मौन साध जाते हैं।
ऐसे में आज का यह लेख मुख्यतया आप सभी को इस ऐतिहासिक व ज्वलंत विषय पर संपूर्ण ज्ञान देने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसे पढ़कर आपको अपने प्रश्न “राम ने सीता को क्यों छोड़ा” या फिर “राम ने सीता का त्याग क्यों किया“, का उत्तर मिल जाएगा।
रामायण केवल एक पुस्तक नहीं बल्कि महान आदर्शों, मानव रिश्तों, कर्तव्यों व त्याग की गूढ़ शिक्षाएं देकर जाती है। जिसने भी रामायण के भावार्थ को समझ लिया, मान लीजिए उसका जीवन सफल हो गया। वह इसलिए क्योंकि यह हमें दिखाती है कि मनुष्य के जीवन में प्रेम से बढ़कर त्याग है।
“राम जी ने सीता का त्याग क्यों किया“ (Why Ram Left Sita In Hindi) विषय के ऊपर लिखने से पहले हमने रामायण के उस प्रसंग को पढ़ा, जब यह घटना घटित हुई थी। इसी के साथ ही हमने इस विषय से संबंधित कई महापुरुषों की रचनाएँ देखी व पढ़ी। इसमें से मुंशी प्रेमचंद जी की गोदान पुस्तक व रामानंद सागर जी के रामायण धारावाहिक ने भी बहुत सहायता की।
सबसे पहले हम इस गलत धारणा का खंडन करना चाहते हैं जिसमें कुछ लोगों के द्वारा यह भ्रांतियां फैलाई गई कि भगवान श्रीराम ने प्रजा के कहने पर माता सीता का त्याग कर दिया था व उन्हें वन में भेज दिया था। सत्य यह है कि माता सीता ने स्वयं त्याग का निर्णय लिया व वन जाने का निश्चय किया क्योंकि प्रजा का निर्णय सर्वोच्च होता है।
भगवान श्रीराम तो माता सीता के लिए अपना राज सिंहासन तक छोड़ना चाहते थे लेकिन माता सीता ने ऐसा नहीं होने दिया। इसलिए माता सीता का भगवान श्रीराम के द्वारा त्याग व बलपूर्वक वन भेजना एक मिथ्या बात है।
यह जो दुखद घटना उस समय घटित हुई उससे आज के समय में लोगों के मन में जो प्रश्न उठते हैं, वह हैं:
ऐसे और भी प्रश्न आप सभी के मन में उठते (Ram Ne Sita Ko Kyu Tyaga) होंगे लेकिन चिंता ना करें। इस लेख में आपको आपके हर प्रश्न का उत्तर मिलेगा व साथ में मिलेगी एक ऐसी शिक्षा जो आपको सोचने पर विवश कर देगी। आइए जाने।
हम सबसे पहले प्रश्न से ही उत्तर देना शुरू करते हैं। यदि आपने रामायण पढ़ी हो तो आप यह भलीभांति जानते होंगे कि जिस सीता को दुष्ट रावण हरके लेकर गया था वह असली सीता नहीं बल्कि उनकी परछाई थी। असली सीता तो भगवान राम ने पहले ही अग्नि देव को सौंप दी थी व जब रावण का वध हुआ तब भगवान राम ने अग्नि परीक्षा के द्वारा फिर से अपनी सीता को वापस पा लिया।
अब आप यह समझें कि भगवान श्रीराम स्वयं विष्णु का रूप थे व माता सीता लक्ष्मी का। भगवान चाहे तो रावण को एक बार में ही समाप्त कर सकते थे, इसके लिए उन्हें पृथ्वी पर आने या इतने यत्न करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह सब इसलिए किया जाता है क्योंकि वे हर कथा से मनुष्य को एक शिक्षा देते हैं ताकि हम उनसे प्रेरणा ले सकें।
भगवान को यह पता था कि अब रावण आएगा व सीताहरण करेगा। इसलिए उन्होंने पहले ही माता सीता को अग्नि देव को सौंप दिया था तो क्या उन्हें सीता से बिछड़ने व वन जाने का नहीं पता होगा? अवश्य पता होगा व यह उन्होंने सब जानते हुए किया लेकिन ऐसा क्यों किया गया, यह महत्वपूर्ण है। इसके पीछे भगवान के मुख्यतया दो उद्देश्य थे:
अब हम इन दोनों विषयों के बारे में विस्तार से बात करने वाले हैं और आपको समझाने वाले हैं। इन्हें पढ़कर आपके मन में उठ रही हरेक शंका व संदेह पर पूर्ण विराम लग जाएगा। साथ ही आपको श्रीराम व माता सीता के त्याग (Why Ram Left Sita In Hindi) से एक और शिक्षा मिलेगी।
आज के समय के अनुसार हम राजा या किसी बड़े पद पर आसीन व्यक्ति को हमारा स्वामी समझ बैठते हैं जो कि गलत है किंतु यह कलयुग है और वह त्रेतायुग था। उस समय राजा का कर्तव्य सबसे महान व कठिन होता था जिसे राजधर्म कहा जाता था। आप रामायण धारावाहिक को भी देखेंगे तो पाएंगे कि जब भी कोई सिद्ध ऋषि मुनि या गुरु राजमहल में आते थे तो स्वयं राजा सिंहासन से उठकर उनके चरणों को धोता था।
इस प्रकार जब भी कोई राजा राज सिंहासन संभालता था व शपथ लेता था तो उसके बाद उसका संपूर्ण जीवन केवल प्रजा के लिए हो जाता था। राजा का अपने निजी जीवन पर कोई अधिकार नहीं रह जाता था। एक राजा का यह कर्तव्य था कि यदि उसके राजकुल में से किसी सगे संबंधी ने भी राज्य के किसी सामान्य निर्धन व्यक्ति के साथ गलत किया है तो राजा उसे दंड दे।
एक राजा प्रजा का प्रतिनिधित्व करता है व प्रजा का जो मत होता है उसे ही राजा को मानना होता है क्योंकि प्रणाली व धर्म यही कहता है। सरल शब्दों में समझाया जाए तो मान लिजिए एक जगह 100 लोग हैं व एक निर्णय सुनाने के लिए 100 लोग एक साथ अलग-अलग बात बोलें तो अराजकता फैल जाएगी। इसलिए उनके ऊपर एक राजा का पद बनाया जाता है जिसे वही 100 लोग चुनते हैं या जिसे 100 में से अधिक व्यक्तियों का समर्थन मिला हो। अब उस राजा का निर्णय दिखाता है कि राज्य की ज्यादातर जनता का यही निर्णय है। यह व्यवस्था मनुष्य की शासन व्यवस्था व धर्म को सिखाता था जो अराजकता का नाश करता था।
इसी प्रकार धर्म के अनुसार राजा के लिए प्रजा का मत सर्वोच्च होना चाहिए चाहे उसका निजी निर्णय कुछ और हो। इसका एक उदाहरण आप राजा दशरथ के द्वारा भगवान राम को मिले वनवास से ले सकते हैं। इसमें राजा दशरथ को अपने वचनानुसार राम को वनवास देना पड़ा लेकिन वह प्रजा के निर्णय के विरुद्ध था। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रजा ने भरत तो क्या स्वयं दशरथ को भी राजा मानने से मना कर दिया था। इस स्थिति को स्वयं भरत ने राज सिंहासन पर श्रीराम की चरण पादुका रख कर संभाला था अन्यथा अराजकता फैल सकती थी।
इसलिए कोई मनुष्य यदि राजा बनता है तो उसका जीवन केवल और केवल जनता की सेवा के लिए है। समाज के बाकी लोगों का कर्तव्य अपने लिए होता है व साथ ही समाज के लिए कुछ करने का लेकिन एक राजा को हमेशा समाज के हित के लिए ही सोचना होता है, उनके लिए ही कार्य करने होते हैं व उनके लिए ही अपने प्राण से भी प्यारी वस्तु को त्याग देना होता है। इसी कारण राम ने सीता को छोड़ा (Ram Ne Sita Ko Kyon Chhoda Tha) था।
राम ने सीता को वनवास क्यों दिया (Ram Ne Sita Ko Kyon Chhoda Tha), में अब हम आपको एक ऐसी चीज़ बताने वाले हैं, जो शायद आपको रामायण पढ़कर सीधे तौर पर समझ में नहीं आई होगी। हम आपसे पूछना चाहते हैं कि आप इस विश्व का सबसे बड़ा अस्त्र किसे समझते हैं? क्या आप सोचते हैं कि वह परमाणु बम है या कोई अन्य हथियार? क्या आप सोचते हैं कि आप केवल हिंसा, तलवार, बल, युद्ध के द्वारा दूसरे व्यक्ति को जीत सकते हैं? क्या आप सोचते हैं कि समाज में परिवर्तन ऐसे ही आता है? यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप सर्वथा गलत हैं?
इन सब अस्त्रों का प्रयोग केवल मनुष्य के ऊपर शारीरिक जीत के लिए किया जाता है लेकिन जो असली विजय होती है वह होती है मन की। एक गलत विचार या धारणा के लिए मनुष्य को खत्म करने से बेहतर है उस विचार के लिए उसका पश्चाताप। यही पश्चाताप की अग्नि इतनी भयंकर होती है कि यह मनुष्य को अंदर से खत्म कर देती है और साथ में बनती है आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा।
इस प्रकृति में स्त्री का पद पुरुष से बहुत ऊँचा है। सदियों से पुरुष ने केवल हिंसा, युद्ध, संग्राम इत्यादि का ही मार्ग चुना। भाई ने भाई को संपत्ति के लिए मारा, राजा ने राजा से अपने अभिमान की रक्षा के लिए युद्ध किए, किसी ने किसी का रक्त बहाया तो किसी ने किसी को पराजित किया। जिस पुरुष को एक स्त्री अपने मातृत्व के प्रेम से अपने रक्त से अपने दूध से सींचती है उसी पुरुष को दूसरे पुरुषों ने एक पल में मार डाला।
अब जरा सोचिए यदि स्त्री अपने सबसे बड़े अस्त्र प्रेम, त्याग व श्रद्धा के भाव को छोड़कर पुरुषों के समान हत्या, आवेश, क्रोध पर उतर आए तो इस सृष्टि का क्या होगा? क्या यह सृष्टि एक मरुस्थल नहीं बन जाएगी? यदि उस समय माता सीता भी गलत का मुख बंद करवाने का बोलती तो क्या होता? कितने लोगों की हत्या होती और उनकी हत्या के फलस्वरूप कितने लोगों के मुख और खुलते। इसका क्या परिणाम मिलता? इसका परिणाम यही होता कि किसी को कोई शिक्षा तो नहीं मिलती बस एक और रक्त बहाने वाला युद्ध होता।
किंतु ऐसा हुआ नहीं व जो हुआ वह हम सबके सामने है। माता सीता व भगवान राम तो एक दूसरे से आकाश, पाताल में भी अविभाज्य थे फिर वे कैसे मृत्यु लोक में एक दूसरे से अलग हो सकते थे। उस समय उन्होंने जो निर्णय लिया उससे प्रेरणा लेकर हमारी पीढियां आज तक सीख रही है।
माता सीता ने उन सब लोगों का मुँह तलवार के जोर पर बंद करवाने की बजाए स्त्री के सबसे बड़े अस्त्र त्याग (Ram Ne Sita Ko Kyu Tyaga) को चुना जिसने उनके हृदय पर अंदर तक चोट की। इससे ना केवल उनके मुख बंद हुए बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण बन गया। याद रखिए पछ्तावे की आग बहुत ज्यादा भयानक होती है जो माता सीता ने जलाई।
माता सीता का त्याग व वनगमन हमें शिक्षा देता है कि प्राणियों के विकास में स्त्री का पद पुरुष से कहीं अधिक श्रेष्ठ है। यह उसी प्रकार श्रेष्ठ है जिस प्रकार प्रेम व त्याग को हिंसा व युद्ध से श्रेष्ठ समझा जाता है। एक तरह से माता सीता ने समाज की सभी स्त्रियों से प्रश्न किया कि क्या वे पुरुषों के साथ इस पाप में सहयोगी बनकर विश्व का कल्याण कर पाएंगी? इसलिए उनका संदेश था कि जो विनाश या पाप करते हैं उन्हें अपना काम करने दीजिए व स्त्री को अपना धर्म निभाना चाहिए जो मनुष्य के शरीर को नहीं काटता बल्कि उसके मन को काटता है।
विश्व के लिए त्याग, क्षमा व प्रेम सबसे बड़े आदर्श हैं व इन आदर्शों को नारी बहुत पहले ही पा चुकी है। पुरुष इन्हें पाने की कब से चेष्ठा ही कर रहा है। इसके लिए वह अपनी माता, गुरु, ऋषि मुनियों, ग्रंथों इत्यादि का आश्रय लेता है लेकिन स्त्री को यह आदर्श जन्म से ही मिल जाते हैं। यह उसके ऊपर परमात्मा का परोपकार नहीं है तो और क्या है।
अब हम आपके अंतिम प्रश्न का उत्तर भी दे देते हैं कि क्यों भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी के गर्भवती होते हुए भी उन्हें वन में अकेले जाने दिया। इसका उत्तर भी स्वयं माता सीता ने ही दिया कि यदि एक राजा भी अपनी पत्नी को इतना निर्बल व असहाय समझेगा कि वह अपने बल पर अपना व अपने गर्भ में पल रही संतान की रक्षा व भरण पोषण नहीं कर सकती तो एक सामान्य नागरिक क्या समझेगा?
कहने का तात्पर्य यह हुआ कि स्त्री की शक्तियां केवल प्रेम व त्याग तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि वह अपने बल पर एक शिशु का इस प्रकार पालन कर सकती है कि वह एक दिन पूरे विश्व को अपने आदर्शों से उसके सामने झुका दे।
इस तरह से आज आपने राम ने सीता को वनवास क्यों दिया (Ram Ne Sita Ko Kyon Chhoda), विषय के ऊपर संपूर्ण जानकारी ले ली है। आशा है कि हम आपकी हर शंका व संदेह को दूर कर पाए होंगे। यदि अभी भी आपके मन में कोई शंका रह गई है तो आप नीचे कमेंट कर हम से पूछ सकते हैं।
सीता के परित्याग से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: भगवान राम ने सीता का त्याग क्यों किया?
उत्तर: भगवान राम ने सीता का त्याग राजधर्म की शिक्षा देने व स्त्री के महान अस्त्र त्याग को दिखाने के लिए किया था। इसके बारे में हमने इस लेख में विस्तार से बताया है।
प्रश्न: राम ने सीता का वनवास क्यों किया?
उत्तर: राम ने सीता का वनवास राजधर्म से विवश होकर दिया था। हालाँकि माता सीता ने ही स्वयं का त्याग करवाया था और वन में जाने का निर्णय लिया था।
प्रश्न: राम ने सीता को क्यों छोड़ा था?
उत्तर: श्री राम ने सीता को राजधर्म के कारण छोड़ा था। वे तो स्वयं सिंहासन का त्याग करने वाले थे लेकिन माता सीता ने उन्हें राजधर्म का पालन करने को कहा था।
प्रश्न: राम ने सीता को वनवास क्यों भेजा?
उत्तर: राम ने सीता को वनवास राजधर्म में बंधकर भेजा था। यह माता सीता और भगवान श्रीराम का सयुंक्त रूप से निर्णय था कि माता सीता का त्याग किया जाए और वे वन में चली जाएं।
प्रश्न: राम ने सीता का परित्याग क्यों किया?
उत्तर: राम ने सीता का परित्याग राजधर्म की शिक्षा देने और माता सीता ने स्त्री के महान अस्त्र त्याग को दिखाने के लिए किया था। इसके बारे में हमने इस लेख में समझाया है।
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अच्छी जानकारी साझा की आपने ! माता सीता के प्रेम त्याग और सेवा भाव को यदि आज की महिलाएं सीख और अपना लें तो अवश्य गृह कलेश समाप्त।हो जायेंगे