श्री रामचंद्र जी की आरती (Shri Ramchandra Ji Ki Aarti) – अर्थ व लाभ सहित

Ram Ji Ki Aarti

भगवान श्रीराम श्रीहरि के सातवें अवतार थे जिन्होंने ना केवल राक्षस राजा रावण का वध करने के लिए जन्म लिया था अपितु इस सृष्टि के कल्याण के लिए मनुष्य जाति को मानवीय मूल्यों के बारे में समझाना भी उनका उद्देश्य था। ऐसे में श्रीराम हम सभी के लिए पूजनीय हैं और उसके लिए हम सभी रामचंद्र जी की आरती (Ramchandra Ji Ki Aarti) का पाठ करते हैं।

इस लेख में ना केवल आपको श्री रामचंद्र जी की आरती (Shri Ramchandra Ji Ki Aarti) पढ़ने को मिलेगी अपितु साथ ही उसका भावार्थ भी जानने को मिलेगा। अंत में हम आपके साथ राम चंद्र आरती का महत्व व लाभ (Ram Chandra Aarti) भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले करते हैं आरती रामचन्द्र जी की।

रामचंद्र जी की आरती (Ramchandra Ji Ki Aarti)

बंदौ रघुपति करुना-निधान।
जाते छूटै भव-भेद-ग्यान॥

रघुबंस-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
सेवत पद-पंकज अज महेस॥

निज भक्त-हृदय पाथोज-भृंग।
लावन्यबपुष अगनित अनंग॥

अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
अग्यान-गहन-पावक-प्रचंड॥

अभिमान-सिंधु-कुम्भज उदार।
सुररंजन, भंजन भूमिभार॥

रागादि-सर्पगन-पन्नगारि।
कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥

भव-जलधि-पोत चरनारबिंद।
जानकी-रवन आनंद-कंद॥

हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल।
निष्काम कामधुक गो दयाल॥

त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम।
कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥

श्री रामचंद्र जी की आरती (Shri Ramchandra Ji Ki Aarti) – अर्थ सहित

बंदौ रघुपति करुना-निधान।
जाते छूटै भव-भेद-ग्यान॥

माता सीता के पति तथा हम सभी पर कृपा बरसाने वाले श्रीराम को मैं आदर सहित प्रणाम करता हूँ। श्रीराम को जो कोई भी जान लेता है, वह इस सांसारिक मोहमाया से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।

रघुबंस-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
सेवत पद-पंकज अज महेस॥

श्रीराम का जन्म रघुकुल में हुआ था जो चंद्रमा की भांति हम सभी के मन को शीतलता प्रदान करने वाले और आनंद देने वाले हैं। स्वयं भगवान ब्रह्मा व शिव भी उनके चरणों की वंदना करते हैं।

निज भक्त-हृदय पाथोज-भृंग।
लावन्यबपुष अगनित अनंग॥

श्रीराम का चरित्र व रूप इतना मनमोहक है कि हम सभी भक्तों का हृदय उनकी ओर एक भंवरे की भांति आकर्षित रहता है। श्रीराम की सुंदरता अगणित कामदेवों से भी अधिक है जिनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है।

अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
अग्यान-गहन-पावक-प्रचंड॥

श्रीराम का तेज सूर्य के समान है जो मोहमाया के अंधकार को अपने प्रकाश से सोख लेता है। उनके अंदर समाहित ज्ञान में अग्नि के जैसी शक्ति है जो अज्ञानता का दहन कर देती है।

अभिमान-सिंधु-कुम्भज उदार।
सुररंजन, भंजन भूमिभार॥

श्रीराम का ज्ञान समुंद्र की भांति है जिसका कोई अंत नहीं है लेकिन फिर भी उनके अंदर अभिमान का अंश मात्र नहीं है। श्रीराम के द्वारा देवताओं को आनंद प्राप्त होता है और वे इस भूमि के भार को भी वहन करते हैं।

रागादि-सर्पगन-पन्नगारि।
कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥

श्रीराम हमारे मन को आनंदित करने वाले हैं और सर्पों के समान हमारी इच्छाओं और भावनाओं को भी नियंत्रित करते हैं। उन्हें हम सभी मुरारी के नाम से भी जानते हैं जो श्रीकृष्ण के रूप में मुरली बजाते हैं। अपने इस रूप में वे प्रेम के देवता कामदेव को भी पराजित कर देते हैं।

भव-जलधि-पोत चरनारबिंद।
जानकी-रवन आनंद-कंद॥

हम सभी मनुष्य उनके चरणों में समुंद्र की एक बूँद के समान हैं। वे ही हमें इस भवसागर से पार करवा सकते हैं। श्रीराम माता जानकी के मन को आनंद देने वाले और दुष्ट रावण का अंत करने वाले हैं।

हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल।
निष्काम कामधुक गो दयाल॥

श्रीराम अपने भक्त हनुमान पर अपार प्रेम लुटाते हैं और उन्हें अपना सच्चा भक्त मानते हैं। हनुमान उनके पुत्र के समान हैं जो उनकी हरेक आज्ञा का पालन करता है। श्रीराम कामधेनु गाय के समान सभी पर दया बरसाने वाले और निष्काम हैं।

त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम।
कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥

तीनों लोकों में भगवान श्रीराम का तिलक कर उनके गुणों को याद किया जाता है और उनकी आराधना की जाती है। महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीराम के चरणों में अपना शीश झुकाकर उन्हें प्रणाम करते हैं।

राम चंद्र आरती (Ram Chandra Aarti) – महत्व

भगवान श्रीराम किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के प्राणियों के लिए पूजनीय हैं। उन्होंने हमें एक ऐसा मार्ग दिखाया जो सदियों-सदियों तक मनुष्य जाति के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया। ऐसे में उनकी महिमा का वर्णन किसी एक आरती या चालीसा में नहीं समेटा जा सकता है। यही कारण है कि समय-समय पर जन्मे कई महान ऋषियों और महापुरुषों ने श्रीराम की महिमा का वर्णन अपनी-अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है।

इसी में एक रचना रामचंद्र जी की आरती महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गयी है जिन्होंने रामचरितमानस की भी रचना की थी। तुलसीदास जी के द्वारा लिखी होने के कारण राम चंद्र आरती का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

आरती रामचन्द्र जी की (Aarti Ramchandra Ji Ki) – लाभ

जो व्यक्ति प्रतिदिन श्रीराम के नाम का जाप करता है और उनके रूप का ध्यान करता है, उसके अंदर किसी तरह का अपराधबोध नहीं रहता है और साथ ही मन भी पवित्र बनता है। अब यदि मनुष्य इसी के साथ ही श्री रामचंद्र जी की आरती का भी पाठ कर ले तो उसे अद्भुत लाभ देखने को मिलते हैं। श्रीराम की कृपा से उनके भक्तों के हरेक संकट दूर होते हैं और जीवन सरल बनता है।

यदि हमारे शत्रु हम पर हावी हैं या हम किसी चीज़ में फंसे हुए हैं तो वह विपदा भी टल जाती है। श्रीराम की जिस किसी पर भी कृपा हो जाती है, उसका उद्धार तय माना जाता है। वह मनुष्य अपने अंतिम समय में भवसागर को पार कर विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करता है और जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है। यही राम चंद्र जी की आरती के लाभ होते हैं।

रामचंद्र जी की आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: श्री राम स्तुति किसने लिखी थी?

उत्तर: श्री राम स्तुति गोस्वामी तुलसीदास जी ने पंद्रहवीं शताब्दी में लिखी थी। इसी के साथ ही उन्होंने भगवान श्रीराम व हनुमान को समर्पित कई ग्रंथों व काव्यों की रचना की थी।

प्रश्न: श्री रामचंद्र जी के गुरु का क्या नाम था?

उत्तर: श्री रामचंद्र जी के गुरु का नाम महर्षि वशिष्ठ था जो रघुकुल के राज गुरु भी थे। उन्होंने ही श्रीराम को शिक्षा देने का उत्तम कार्य किया था।

प्रश्न: भगवान राम को रामचंद्र क्यों कहते हैं?

उत्तर: भगवान राम को रामचंद्र कहने के पीछे कई मान्यताएं हैं जिसमें से एक प्रचलित यह है कि उनके प्रिय भक्त हनुमान ने उनकी छवि को चंद्रमा के समान शीतल बताया था जिस कारण उनका नाम रामचंद्र पड़ गया।

प्रश्न: श्री राम चंद्र कृपालु में कौन सा छंद है?

उत्तर: श्री राम चंद्र कृपालु गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा विनय पत्रिका में लिखा गया है। इसी के साथ ही उन्होंने रामचंद्र जी की आरती को भी इसी विनय पत्रिका में लिखा है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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