आज हम आपको बताएँगे पंच केदार कौन कौन से हैं (Panch Kedar In Hindi) तथा इनका भगवान शिव से क्या संबंध है। दरअसल पंच केदार में से हमने पिछले कुछ वर्षों में एक मुख्य केदार का ही नाम सुना है और वह है केदारनाथ। किंतु यहाँ हम आपको बता दें कि कुल पंच केदारों में से केदारनाथ एक केदार है। हालाँकि यह मुख्य केदार भी है।
भगवान शिव से संबंधित पंच केदार की यात्रा (Panch Kedar Ke Naam) करने करोड़ों की संख्या में भक्त व सैलानी यहाँ पहुँचते हैं और पंच केदार के दर्शन कर अभिभूत हो उठते हैं। इसलिए इस लेख में हम आपको पंच केदार यात्रा कैसे करें, इसके बारे में भी बताएँगे। इसी के साथ ही पंच केदार की कथा भी आपके साथ साझा की जाएगी।
पंच केदार कौन कौन से हैं?
उत्तराखंड राज्य को देवभूमि यूँ ही नहीं बोला जाता है, इसके पीछे कई कारण हैं। उन्हीं में से एक कारण है यहाँ स्थित पंचकेदार। पंचकेदार का अर्थ हुआ पांच केदार धाम जिनका संबंध भगवान शिव व महाभारत के पांडवों से है। यह पंच केदार उत्तराखंड के पहाड़ों पर अलग-अलग जगहों और ऊँचाइयों पर स्थित हैं।
इन पंच केदारों के नाम (Panch Kedar Name In Hindi) केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर व कल्पेश्वर महादेव है। इनमें से केदारनाथ और फिर तुंगनाथ सबसे ज्यादा श्रद्धालु जाते हैं। अब हम सबसे पहले तो आपको पंच केदार की कहानी और फिर पंच केदार की यात्रा करने के ऊपर संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
पंच केदार की कथा
महाभारत के भीषण युद्ध के बाद पांडवों के ऊपर गोत्र व ब्राह्मण हत्या का पाप था जिसके लिए उनका पश्चाताप करना आवश्यक था। इसीलिए उन्होंने महादेव के पास जाकर अपने पापों का प्रायश्चित करने का सोचा किंतु महादेव उनसे बहुत क्रुद्ध थे। जब पांडव उत्तराखंड के गढ़वाल में पहुंचे तो भगवान शिव ने उनसे छुपने के लिए एक बैल का रूप ले लिया था।
तब भीम ने विशाल रूप धारण किया व चारों ओर नजरें दौड़ाई तो उन्होंने गुप्त काशी में बैल रुपी शिव को पहचान लिया। यह देखकर भगवान शिव भूमि में समाने लगे किंतु भीम ने बैल को पीछे से पकड़ लिया। इस कारण बैल का पीछे का भाग वहीं पर रह गया व अन्य भाग चार अलग-अलग जगहों पर निकले। आज इन्हीं पांच स्थानों को पंचकेदार के रूप में जाना जाता है तथा वहां पर भगवान शिव की आराधना की जाती है।
Panch Kedar Ke Naam | पंच केदार के नाम
अब हम एक-एक करके भगवान शिव के 5 केदारों के बारे में जानेंगे कि वे उत्तराखंड में कहाँ-कहाँ स्थित है एवं साथ ही उस स्थल पर भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का कौन सा भाग प्रकट हुआ था।
#1. केदारनाथ मंदिर
यह वही स्थल है जहाँ पांडवों ने भगवान शिव को देखा था व भीम ने उन्हें पीछे से पकड़ा था। इसलिए यहाँ भगवान शिव के बैल अवतार के पीठ की पूजा की जाती है। केदारनाथ धाम पंच केदारों के साथ-साथ चार छोटे धामों व बारह ज्योतिर्लिंगों में भी आता है। इसलिए इस स्थल की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है।
यह समुंद्र तट से 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि जगतगुरु शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार धाम की स्थापना के बाद यहीं केदारनाथ की भूमि में ही समाधि ली थी। 2013 में आए केदारनाथ प्रलय के बाद से यह दर्शकों के बीच का मुख्य केंद्र बन चुका है।
#2. तुंगनाथ मंदिर
यहाँ भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की भुजाएं प्रकट हुई थी। इसलिए तुंगनाथ मंदिर में उनकी भुजाओं की पूजा की जाती है। यह समुंद्र तट से 3,470 मीटर (11,385 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह रुद्रप्रयाग के चोपता नामक स्थल पर चंद्रशिला पहाड़ी पर स्थित है। यह मन्दाकिनी व अलकनंदा नदियों के जल को बीच में से विभाजित करता है। सर्दियों में भगवान की मूर्ति को मक्कुमाथ में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
यह पंच केदार (Panch Kedar In Hindi) में दूसरा प्रमुख केदार है। इसी के साथ ही इसे भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर स्थित वाला मंदिर माना जाता है। यहाँ की चढ़ाई भी सीधी है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है। इसलिए यदि आप तुंगनाथ जाने का सोच रहे हैं तो पहले इसके बारे में अच्छे से जान लें।
#3. रुद्रनाथ मंदिर
रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव के बैल रूपी अवतार की मुखाकृति प्रकट हुई थी। इसलिए यहाँ उनके मुख की पूजा की जाती है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। इस मंदिर की ऊंचाई समुंद्र तट से 3,600 मीटर (11,811 फीट) है। इस मंदिर तक पहुँचने का रास्ता बहुत दुर्गम है क्योंकि यह एक गुफा में स्थित है।
इस मंदिर की चोटी से आपको नंदा देवी व त्रिशूल के आकार की पहाड़ियां देखने को मिलेगी। सर्दियों में भगवान रुद्रनाथ को गोपीनाथ मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
#4. मध्यमहेश्वर मंदिर
भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की नाभि लिंग के रूप में पूजा मध्यमहेश्वर मंदिर में की जाती है। इसे मदमहेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के गौंडर गाँव में स्थित है। यहीं पर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ मधुचंद्र रात्रि बिताई थी। इसी के साथ यहाँ के जल को अत्यंत ही पवित्र माना गया है। सर्दियों में भगवान की मूर्ति को उखीमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
#5. कल्पेश्वर मंदिर
कल्पेश्वर मंदिर भगवान शिव के बैल रुपी अवतार के जटाओं की पूजा की जाती है। यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत उर्गम घाटी में स्थित है जिसकी समुंद्र तट से ऊंचाई लगभग 2,200 मीटर (7,217 फीट) है। यहाँ से जुड़ी कुछ अन्य कथाओं के अनुसार ऋषि दुर्वासा ने यहाँ कल्पवृक्ष के नीचे भगवान शिव की तपस्या की थी। यहाँ की मूर्ति को सर्दियों में कहीं स्थानांतरित नही किया जाता है। यहाँ तक पहुँचने का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है।
इस तरह से आपने पंच केदार के नाम (Panch Kedar Ke Naam) सहित उनसे जुड़ी कथा जान ली है। अब समय आ गया है पंच केदार की यात्रा पर जाने का और उसके बारे में जानकारी जुटाने का। तो चलिए वह भी जान लेते हैं।
पंच केदार यात्रा कैसे करें?
पंच केदार की यात्रा करना हर किसी का सपना होता है। अभी तक करोड़ों भक्त केदारनाथ की यात्रा तो कर ही चुके होंगे लेकिन उन्होंने अन्य केदार की यात्रा नहीं की होगी। वहीं कुछ भक्तगण केदारनाथ की यात्रा करने का भी सोच रहे होंगे। ऐसे में हम आपके सामने एक-एक करके पंच केदार यात्रा का संपूर्ण विवरण रखने जा रहे हैं।
इसी के साथ ही हम आपको यह भी बताएँगे कि आपको किस समय किस केदार की यात्रा पर जाना चाहिए ताकि आपको किसी तरह की असुविधा ना होने पाए। आइए पंच केदार की यात्रा से जुड़ी हरेक जानकारी जान लेते हैं।
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केदारनाथ
आप हवाई मार्ग से देहरादून एयरपोर्ट पहुँच सकते हैं व आगे की यात्रा बस या टैक्सी से कर सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन में ऋषिकेश व फिर हरिद्वार है। देहरादून हवाई अड्डे या ऋषिकेश/हरिद्वार के रेलवे स्टेशन से आपको गौरी कुंड की बस मिल जाएगी। यहाँ से आगे 16 किलोमीटर की चढ़ाई है जिसे आप पैदल चलकर, पालकी, घोड़ा या हवाई सेवा के द्वारा तय कर सकते हैं।
कब जाएँ केदारनाथ?
केदारनाथ के कपाट अपने भक्तों के लिए अप्रैल के माह में खुलते हैं व नवंबर के मध्य में (दीपावली के एक दिन बाद) बंद हो जाते हैं। सर्दियों के मौसम में यहाँ जाया नही जा सकता है व साथ ही यहाँ के स्थानीय निवासी भी सर्द मौसम में यहाँ से नीचे चले जाते हैं। इसी के साथ भगवान केदारनाथ को भी नीचे स्थित उखीमठ में ले जाया जाता है। बारिश के मौसम में यहाँ जाना थोड़ा कठिन होता है व फिसलन की संभावना बढ़ जाती है।
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तुंगनाथ
यह उखीमठ के पास ही स्थित है जहाँ से आप ऋषिकेश या हरिद्वार से गोपेश्वर मठ तक की बस ले सकते हैं। फिर चोपता नामक स्थल से इसकी चढ़ाई शुरू होती है जो लगभग 5 किलोमीटर लंबी है। वैसे तो इसकी चढ़ाई कम है किंतु यह बहुत सीधी है जो इसको बहुत मुश्किल बना देती है।
कब जाएँ तुंगनाथ?
वैसे तो यहाँ जाने के लिए सबसे अनुकूल मौसम अप्रैल से लेकर सितंबर तक का होता है किंतु कुछ लोग सर्दियों में भी यहाँ जाते हैं। दिसंबर से लेकर फरवरी के महीनों में यहाँ भीषण बर्फ़बारी होती है। इसलिए इस मौसम में यहाँ जाना जोखिमभरा हो सकता है व इस समय मंदिर भी बंद रहता है।
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रुद्रनाथ
यहाँ तक पहुँचने के लिए कई रास्तों से चढ़ाई शुरू होती है जिनका अपना अलग-अलग आनंद व जोखिम है। यह भी गोपेश्वर के पास ही स्थित है। सबसे सुगम चढ़ाई गोपेश्वर के सागर गाँव से है जो कि गोपेश्वर से 3 किलोमीटर दूर है। यहाँ से मंदिर की चढ़ाई लगभग 20 किलोमीटर है।
एक अन्य मुख्य चढ़ाई गोपेश्वर से 13 किलोमीटर दूर मंडल गाँव से है। यहाँ से रुद्रनाथ मंदिर 26 किलोमीटर की दूरी पर है व बीच में आपको माता अनुसूया मंदिर के दर्शन करने को भी मिलेंगे।
इनके अलावा रुद्रनाथ पहुँचने की अन्य चढ़ाई गोपेश्वर से 3 किलोमीटर दूर गंगोल गाँव जहाँ से रुद्रनाथ 17 किलोमीटर दूर है, जोशीमठ से हेलांग होते हुए 45 किलोमीटर का ट्रेक, कल्पेश्वर से दमुक गाँव होते हुए उर्गम घाटी से भी है।
कब जाएँ रुद्रनाथ?
यह मंदिर भी अपने भक्तों के लिए मई के महीने में खुलता है जो कि सर्दियों में बंद हो जाता है क्योंकि भीषण बर्फ़बारी पूरे मंदिर व पहाड़ी को ढक लेती है। यदि आप रुद्रनाथ की यात्रा बारिश के मौसम के बाद करेंगे तो उस समय यहाँ का माहौल बहुत ही खुशनुमा व शांति का अनुभव कराने वाला होता है।
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मध्यमहेश्वर
यदि आप मध्यमहेश्वर जाने का सोच रहे हैं तो इसके सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून हवाई अड्डा व नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश या हरिद्वार का रेलवे स्टेशन है। यहाँ से आप बस या टैक्सी की सहायता से उनिअना गाँव से अपनी चढ़ाई शुरू कर सकते हैं।
वैसे इसकी मुख्य यात्रा उखीमठ से 24 किलोमीटर दूर रांसी/अक्तोलीधर से शुरू होती है जहाँ से मध्यमहेश्वर मंदिर की चढ़ाई 18 किलोमीटर की है जो कि विभिन्न गांवों से होकर गुजरती है।
कब जाएँ मध्यमहेश्वर?
यह मंदिर सर्दियाँ समाप्त होते ही अप्रैल-मई के महीने में भक्तों के लिए खुल जाता है व सर्दियों के शुरू होने पर लगभग दीपावली के बाद बंद हो जाता है। बारिश के मौसम में बहुत बार फिसलन की वजह से यहाँ की यात्रा बंद हो जाती है जो बारिश के मौसम के समाप्त होने के बाद फिर से खुल जाती है।
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कल्पेश्वर
यहाँ तक पहुँचने के लिए भी सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून व नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश या हरिद्वार का है। यहाँ से आपको उर्गम गाँव तक पहुँचने के लिए बस या टैक्सी मिल जाएगी जो हेलांग से जाती है। उर्गम गाँव से कल्पेश्वर की चढ़ाई 10 से 12 किलोमीटर के पास है।
हालाँकि कुछ समय पहले सरकार द्वारा उर्गम गाँव से भी ऊपर देवग्राम गाँव तक एक कच्चा रास्ता बनाया गया है जहाँ से मंदिर तक की चढ़ाई मात्र 300 मीटर ही है। इस रास्ते से कार या बस नही गुजर सकती है किंतु आप अपनी बाइक, वहां उपलब्ध जीप की सुविधा या छोटी कार से देवग्राम तक पहुँच सकते हैं।
कब जाएं कल्पेश्वर?
पंचकेदारों में केवल एक केदार कल्पेश्वर अपने भक्तों के लिए 12 महीने खुला रहता है। हालाँकि सर्दियों के मौसम में यहाँ भी बर्फ़बारी होती है किंतु यहाँ पहुंचना अन्य केदारों के अनुपात में इतना कठिन नही है। इसलिए आप अपनी रुचि व सुविधा के अनुसार किसी भी मौसम में यहाँ की यात्रा कर सकते हैं। बस बारिश के मौसम में यहाँ जाने से बचें।
निष्कर्ष
आज आपने जाना कि पंच केदार कौन कौन से हैं (Panch Kedar In Hindi) और इसी के साथ ही आपने उनसे जुड़ी कथा और यात्रा का भी संपूर्ण विवरण ले लिया है। आप भी अपने जीवन में एक बार इन सभी पंच केदार की यात्रा अवश्य करके आएं। इसी के साथ ही यह भी जान लें कि इनमें से कुछ केदार की यात्रा बहुत ही दुर्गम है, जैसे कि तुंगनाथ। इसलिए पूरी सावधानी और जानकारी के साथ ही पंच केदारों की यात्रा पर जाएं।
पंच केदार से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: पंच केदार के नाम क्या है?
उत्तर: पंच केदार के नाम केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर व कल्पेश्वर महादेव है। इसमें से केदारनाथ मुख्य केदार है।
प्रश्न: पंच केदार में से कितने केदार रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है?
उत्तर: पंच केदार में से रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ स्थित है जो पंच केदार में दूसरा प्रमुख केदार है।
प्रश्न: प्रथम केदार कौन सा है?
उत्तर: प्रथम केदार के रूप में केदारनाथ का पूजन किया जाता है। यहाँ भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की पीठ निकली थी।
प्रश्न: सबसे ऊंचा पंच केदार कौन सा है?
उत्तर: सबसे ऊंचा पंच केदार तुंगनाथ महादेव मंदिर है जिसकी ऊँचाई 11,385 फीट है। यहाँ तक पहुँचने का मार्ग बहुत ही दुर्गम है।
प्रश्न: पंच केदार कितने दिन में पूरा करना है?
उत्तर: आप पंच केदार की यात्रा को 20 दिनों में पूरा कर सकते हैं। हालाँकि यह आप पर निर्भर करता है कि आप कितना समय लेते हैं।
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