आज हम आपको सती अनसूया की कहानी (Sati Ansuya Ki Kahani) सुनाने वाले हैं। सती अनसूया वही हैं जिन्होंने अपनी शक्ति से ब्रह्माण्ड के तीनों शक्तिशाली देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) को भी शिशु बना दिया था। उनको शिशु रूप में देखकर माता सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती चिंता में पड़ गई थी। उसी से ही भगवान दत्तात्रेय का स्वरुप प्रचलन में आया था।
अब इसके पीछे क्या कारण थे और क्यों माता अनुसूया ने ऐसा किया था!! यह तो आपको सती अनुसुइया की कहानी (Sati Anusuya Ki Kahani) पढ़कर ही पता चल पाएगा। इसलिए आज हम आपके सामने माता अनसूया के द्वारा त्रिदेव को शिशु बनाने की संपूर्ण कथा रखने वाले हैं।
Sati Ansuya Ki Kahani | सती अनसूया की कहानी
यह कथा सतयुग के समयकाल की है। उस समय तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर में पहले एक अरण्य नामक वन था जो बहुत विशाल था। इसी वन में ऋषि अत्री व उनकी पत्नी अनसूया का आश्रम था। ऋषि अत्री सप्त ऋषियों में से एक हैं व माता अनसूया को पतिव्रता स्त्री कहा जाता है। दोनों की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी।
बस इसी से ही सती अनसूया की कथा की शुरुआत होती है। इसमें कई घटनाक्रम आएँगे जो आपके मन को मोह लेंगे। साथ ही यह कथा आपको एक पतिव्रता स्त्री की शक्ति से भी परिचित करवाएगी जिनके सामने स्वयं त्रिदेव भी नतमस्तक हो गए थे। आइए कथा शुरू करते हैं।
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माता अनसूया की पवित्रता
एक बार नारद मुनि ने माता पार्वती, माता लक्ष्मी व माता सरस्वती को यह संदेश देने के लिए कि विश्व में माता अनसूया से बड़ी कोई पतिव्रता स्त्री नहीं है, उनके पास गए व उनके सामने माता अनसूया की पवित्रता का बखान किया। नारद मुनि के मुख से यह सुनकर तीनों माताओं के मन में आशंका व ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हुई। तीनों अपने-अपने पति के पास गई व माता अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा।
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सती अनुसुइया की परीक्षा
भगवान शिव, विष्णु व ब्रह्मा ने अपनी पत्नियों की बात मान ली। एक दिन जब महर्षि अत्री हिमालय पर्वत पर तप करने बाहर गए हुए थे तब त्रिदेव ब्राह्मण वेश धारण कर उनके आश्रम आए। उस समय माता अनसूया स्नान कर रही थी। तीनों ने माता से भिक्षा मांगी। इसके साथ ही उन्होंने उन्हें उसी समय नग्न अवस्था में बाहर आने को कहा।
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सती अनसूया का धर्मसंकट
माता अनसूया यह सुनकर बिल्कुल भी विचलित नहीं हुई व उन्होंने अपने अंतर्मन से यह जान लिया कि बाहर ब्राह्मण रूप में त्रिदेव हैं जो उनकी परीक्षा लेने आए हैं किंतु उन्हें पतिव्रत धर्म व ब्राह्मण धर्म दोनों का पालन करना था। यदि वे नग्न अवस्था में बाहर जाती तो पतिव्रत धर्म का पालन नहीं होता व यदि उन्हें मना करती तो ब्राह्मण धर्म का पालन नहीं होता।
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अनसूया ने बनाया त्रिदेव को शिशु
ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने विवेक से काम लिया व अपने तप से तीनों देवों को 6 महीने के एक शिशु में परिवर्तित कर दिया। इसके बाद माता अनसूया उसी अवस्था में बाहर आई व तीनों को शिशु रूप में देखकर उनका ममत्व जाग उठा। उसके बाद उन्होंने तीनों शिशुओं को दूध पिलाया, उन्हें खाना खिलाया व पालने में सुला दिया। माता का दूध पीने के पश्चात तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो गए।
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त्रिदेवियों की चिंता
कुछ समय बीत जाने के पश्चात भी जब तीनों देव अपने-अपने निवास स्थान तक नही पहुंचें तो तीनों देवियों को चिंता सताने लगी। तीनों देवियाँ नारद मुनि के साथ माता अनसूया के आश्रम पहुंची व अपने-अपने पति के बारे में पूछा। तब माता अनसूया ने पालने में सोए हुए शिशुओं की ओर इशारा करके उन्हें बताया। यह देखकर तीनों देवियाँ बहुत व्याकुल हो उठी व माता अनसूया से उन्हें पुनः उसी रूप में लाने की प्रार्थना की।
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सती अनसूया ने माँगा वरदान
देवियों के अनुरोध के बाद माता अनसूया ने अपने तप से फिर से तीनों शिशुओं को पुनः वही रूप प्रदान किया। भगवान शिव, विष्णु व ब्रह्मा माता अनसूया के पतिव्रत धर्म व बुद्धिमता से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए व उन्हें वरदान मांगने को कहा। तब माता अनसूया ने उनसे प्रतीक स्वरुप तीनों के बालक रूप उसी आश्रम में स्थापित करने को कहा।
तो इस तरह से सती अनुसुइया की कहानी (Sati Anusuya Ki Kahani) का अंत हो जाता है। त्रिदेव ने माता अनसूया की सभी इच्छाओं की पूर्ति की और फिर पुनः अपने लोक को पधार गए। इसके बाद ही स्तानुमलायण मंदिर और त्रिदेव का दत्तात्रेय रूप अस्तित्व में आया था जिसके बारे में हम आपको नीचे बताएँगे।
स्तानुमलायण मंदिर का निर्माण
माता का यह वरदान त्रिदेव ने पूरा किया व आज उस स्थान पर एक विशाल मंदिर स्थित है जिसका नाम स्तानुमलायण मंदिर है। इसमें “स्तानु” भगवान शिव को, “मल” भगवान विष्णु को व “आयन” भगवान ब्रह्मा को रेखांकित करता है। यह मंदिर तमिलनाडु के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो कन्याकुमारी से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है।
दत्तात्रेय भगवान आए अस्तित्व में
सती अनसूया के पुत्र के रूप में जिन त्रिदेव की पूजा की जाती है, उन्हें ही हम दत्तात्रेय भगवान के नाम से जानते हैं। इस तरह से त्रिदेव के सम्मिलित रूप को दत्तात्रेय भगवान कहा जाता है। यह तीनों का शिशु रूप है जो माता अनसूया के पास रह गया था।
निष्कर्ष
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने सती अनसूया की कहानी (Sati Ansuya Ki Kahani) को जान लिया है। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि स्त्री का चरित्र ठीक है और वह अपने पतिव्रत धर्म का पालन करती है तो ब्रह्मांड की कोई भी शक्ति उसे हरा नहीं सकती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सती अनुसुइया की कहानी के रूप में देखने को मिलता है।
सती अनसूया की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अनसूया को सती क्यों कहा जाता है?
उत्तर: माता अनसूया का अपने पति के प्रति सतीत्व इतना तेज था कि उसकी चमक आकाश मार्ग से होकर देवलोक तक भी जाती थी। इस कारण उन्हें सती अनसूया कहा गया।
प्रश्न: अनसूया भगवान शिव की माता है?
उत्तर: वास्तव में अनसूया भगवान शिव की माता नहीं है। हालाँकि एक बार उन्होंने अपनी शक्ति से त्रिदेव जिसमें भगवान शिव भी आते हैं, उन्हें शिशु बनाकर स्तनपान करवाया था।
प्रश्न: सती अनसूया के बेटे का क्या नाम था?
उत्तर: सती अनसूया के बेटे का नाम दत्तात्रेय भगवान था। इन्हें त्रिदेव का सम्मिलित रूप कहा जाता है।
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