
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Mandir) का भक्तों के बीच बहुत महत्व है क्योंकि यहाँ भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान शिव ने इसी मंदिर में माता पार्वती से विवाह किया था।
यह मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध धाम केदारनाथ व बद्रीनाथ के पास में ही स्थित है। केदारनाथ जाने वाले भक्तगण त्रियुगीनारायण मंदिर भी अवश्य होकर आते हैं। आज हम आपको त्रियुगीनारायण मंदिर का इतिहास (Triyuginarayan Temple History In Hindi), कथा, सरंचना, महत्व इत्यादि के बारे में विस्तार से बताएँगे।
Triyugi Narayan Mandir | त्रियुगी नारायण मंदिर के बारे में जानकारी
भगवान शिव का वास पहाड़ों में रहा है। वैसे तो वे भारत के हर राज्य में बसते हैं, फिर चाहे वह उत्तर प्रदेश का काशी हो या तमिलनाडु का रामेश्वरम। फिर भी उनका मोह पहाड़ों से अधिक रहा है। माता पार्वती ने जब कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को स्वयं के साथ विवाह करने को मना लिया तो शिवजी ने इसी जगह उनसे विवाह रचवाया था।
इसके बाद तो भक्तों के बीच त्रियुगीनारायण मंदिर में विवाह करवाने की होड़ मची हुई है। आज भी बहुत से भक्तगण त्रियुगीनारायण मंदिर विवाह लागत के बारे में सर्च करते हुए देखे जा सकते हैं। इसलिए आज हम आपके सामने इस मंदिर की संपूर्ण जानकारी रखने वाले हैं।
Triyuginarayan Temple History In Hindi | त्रियुगीनारायण मंदिर का इतिहास
भगवान शिव की पहली पत्नी का नाम माता सती था। माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा शिव का अपमान किए जाने के कारण अग्नि कुंड में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था। इसके पश्चात शिव ने राजा दक्ष का वध कर दिया था व लंबी योग साधना में चले गए थे। कई वर्षों के पश्चात पर्वतराज हिमालय के यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ जिनका नाम पार्वती था। पार्वती माता सती का ही पुनर्जन्म था। माता पार्वती ने हजारों वर्षों तक उत्तराखंड के गौरीकुंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद माता पार्वती ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह सुनकर पार्वती के पिता हिमालायराज ने विवाह की तैयारियां शुरू कर दी। भगवान शिव के द्वारा पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के पश्चात तीनों लोकों में तैयारियां शुरू हो गई थी। उस समय हिमालय राज की नगरी हिमवत की राजधानी त्रियुगीनारायण गाँव ही था। इसलिए त्रियुगीनारायण गाँव के इस Triyuginarayan Mandir में दोनों का विवाह करवाने का निर्णय किया गया।
इस विवाह के साक्षी बनने स्वर्ग लोक से सभी देवी-देवता यहाँ पधारे थे। माँ पार्वती के भाई के रूप में भगवान विष्णु ने सभी कर्तव्यों का निर्वहन किया था व विवाह की रस्मों को निभाया था। स्वयं भगवान ब्रह्मा इस विवाह के पुरोहित बने थे और विवाह संपन्न करवाया था। भगवान शिव व माता पार्वती के द्वारा इस मंदिर में विवाह किए जाने के पश्चात यहाँ की महत्ता बहुत बढ़ गई थी। एक और मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु का पंचम अवतार भगवान वामन ने भी इसी स्थल पर जन्म लिया था। इसलिए यहाँ भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
त्रियुगीनारायण मंदिर कहां है?
बहुत से भक्तों के मन में यह शंका रहती है कि क्या त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Mandir) उत्तराखंड में है या फिर हिमाचल में है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिरकार त्रियुगी नारायण मंदिर कहां है!! यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसके लिए भक्तगणों को सबसे पहले सोनप्रयाग पहुंचना होता है। सोनप्रयाग से मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर के आसपास है।
मंदिर के पास में गौरीकुंड, केदारनाथ व वासुकी ताल भी स्थित है। अब आप में से बहुत से भक्तगण केदारनाथ से मंदिर की दूरी या फिर गौरीकुंड इत्यादि से मंदिर की दूरी भी जानना चाहते होंगे। तो आइए एक-एक करके इसके बारे में भी जान लेते हैं।
- त्रियुगीनारायण से केदारनाथ दूरी: 31 किलोमीटर
- सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण की दूरी: 7.9 किलोमीटर
- गौरीकुंड से त्रियुगीनारायण की दूरी: 16 किलोमीटर
त्रियुगीनारायण मंदिर की सरंचना
Triyugi Narayan Mandir के प्रत्येक हिस्से का भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह से संबंध दिखाई देता है। हालाँकि मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी व भूदेवी के साथ विराजमान हैं लेकिन मंदिर के अन्य हिस्सों का संबंध शिव-पार्वती के विवाह से है। आइए मंदिर के हरेक हिस्से के बारे में जान लेते हैं।
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अखंड धुनी
यह इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में किया गया था। इस अखंड धुनी के चारों ओर फेरे लगाकर ही भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। यह अग्नि तीन युगों से जल रही है जिस कारण इसे त्रियुगी मंदिर अर्थात तीन युगों से जल रही अखंड धुनी कहा जाता है।
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ब्रह्म कुंड
मंदिर में तीन कुंड स्थित हैं जिसमें से एक कुंड ब्रह्म कुंड है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने विवाह संस्कार शुरू करने से पहले इसी कुंड में स्नान किया था जिसके बाद से इस कुंड का नाम ब्रह्म कुंड पड़ गया था।
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विष्णु कुंड
Triyuginarayan Mandir में स्थित दूसरे कुंड का नाम विष्णु कुंड है। इस कुंड में भगवान विष्णु के द्वारा स्नान किया गया था।
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रूद्र कुंड
भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह का साक्षी बनने के लिए स्वर्ग लोक से सभी देवी-देवता भी पधारे थे। रूद्र कुंड में उन सभी के द्वारा स्नान किया गया था।
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त्रियुगीनारायण मंदिर का स्तंभ
इस मंदिर में एक पतली से डंडी बंधी है। मान्यता है कि भगवान शिव को विवाह में एक गाय मिली थी। उस गाय को इसी डंडी से बांधा गया था। यह डंडी आज भी वैसे ही उसी स्थान पर है।
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ब्रह्म शिला
मंदिर के सामने जहाँ भगवान शिव व माता पार्वती ने विवाह किया था, उस स्थल को ब्रह्म शिला का नाम दिया गया है।
इस तरह से Triyuginarayan Mandir का हरेक हिस्सा शिव-पार्वती के विवाह का सूचक है। भक्तगण इन्हीं पलों को फिर से देखने के लिए और उनका अहसास करने के लिए मुख्य तौर पर इस मंदिर में आते हैं।
त्रियुगीनारायण मंदिर विवाह लागत
चूँकि इस मंदिर में शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। साथ ही इस मंदिर की लोकेशन बहुत ही सुंदर और मनोरम है। इसलिए आज तक हजारों लोगों ने यहाँ अपना विवाह रचवाया है। इसके लिए मंदिर संस्थान के द्वारा बुकिंग करवाई जाती है और सभी तरह की तैयारी करवाई जाती है। मंदिर के अंदर ही विवाह के लिए अलग से हॉल, मंडप, रिश्तेदारों के रुकने, खाने-पीने इत्यादि व्यवस्था देखी जाती है।
सामान्य तौर पर त्रियुगी नारायण मंदिर में विवाह के लिए आने वाली लगत 50 हज़ार रुपए के आसपास होती है। हालाँकि यह पूर्ण रूप से आप पर निर्भर करता है कि आप कितने दिनों के लिए मंदिर बुक करवा रहे हैं या कितने दिनों का सेलिब्रेशन यहाँ करना चाहते हैं। इसके साथ ही कितने लोगों को आमंत्रित किया गया है, विवाह कितने बड़े स्तर पर किया जाएगा इत्यादि। उसी के अनुसार ही खर्चा कम या ज्यादा हो सकता है।
यहाँ पर विवाह करने वाले जोड़ों का जीवन हमेशा सुखमय रहता है। साथ ही यहाँ पर फोटोशूट भी बहुत अच्छा होता है क्योंकि आसपास की लोकेशन बहुत ही सुंदर है। इसलिए आप भी अपने किसी जानने वाले को इस मंदिर में डेस्टिनेशन वेडिंग करने के लिए कह सकते हैं। इसी के साथ ही यह भी जान लें कि मंदिर में विवाह की बुकिंग राशि 1100 रुपए रखी गई है।
त्रियुगीनारायण मंदिर का महत्व
इस मंदिर का महत्व हर तरह के लोगों के लिए है। मुख्य तौर पर यहाँ विवाह करने वाले, विवाह के पश्चात आने वाले और संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही मूल्यवान रहता है। आइए जानते हैं।
- इस मंदिर में विवाह करने वाले जोड़ों का वैवाहिक जीवन हमेशा सुखमय रहता है। एक तरह से जो इस मंदिर में विवाह रचवाते हैं, उन्हें साक्षात शिव-पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।
- जो पति-पत्नी मंदिर के दर्शन करने आते हैं, वे अखंड धुनी की भस्म भी अपने साथ लेकर जाते हैं। इस भस्म से उनके वैवाहिक जीवन में आ रही हरेक तरह की बाधा दूर हो जाती है और जीवन सुखमय बनता है।
- मंदिर में जो रूद्र कुंड है उसको लेकर मान्यता है कि इसमें स्नान करने से व्यक्ति की संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है। इसलिए कई निस्संतान दंपत्ति यहाँ रुद्र कुंड में स्नान करने भी आते हैं।
त्रियुगी नारायण मंदिर कब जाए?
वैसे तो आप वर्षभर में कभी भी Triyugi Narayan Mandir में जा सकते हैं लेकिन बहुत से भक्तगण सर्दियों के माह में यहाँ जाना पसंद नही करते। ऐसा इसलिए क्योंकि सर्दियों में केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं। यह मंदिर केदारनाथ के आधार क्षेत्र गौरीकुंड के बहुत पास पड़ता है। इसलिए यहाँ आने वाले लोग आगे केदारनाथ अवश्य होकर आते हैं।
केदारनाथ सर्दियों में दीपावली के अगले दिन से बंद हो जाता है। इसके छह माह के बाद मई माह में पड़ने वाले अक्षय तृतीया के दिन केदारनाथ धाम के कपाट फिर से खोले जाते हैं। इसलिए यदि आप त्रियुगीनारायण मंदिर के साथ-साथ केदारनाथ जाने का भी कार्यक्रम बना रहे हैं तो आपको मई माह से अक्टूबर माह के बीच में यहाँ जाना चाहिए।
त्रियुगीनारायण मंदिर कैसे पहुंचे?
इसके लिए आपको सबसे पहले हवाईजहाज, रेलगाड़ी या बस से उत्तराखंड के तीन मुख्य शहरों देहरादून, ऋषिकेश या हरिद्वार पहुंचना पड़ेगा। फिर वहां से सोनप्रयाग या गुप्तकाशी जाने के लिए स्थानीय बस, टैक्सी या कार की सुविधा मिल जाएगी।
जब आप सोनप्रयाग पहुँच जाएंगे तो यहाँ से आपको अलग-अलग टैक्सी मिल जाएगी। कुछ केदारनाथ जाने के लिए गौरीकुंड तक की होगी तो कुछ सीधे त्रियुगी नारायण मंदिर की होगी। यदि आपको सीधे मंदिर का साधन नहीं मिलता है तो आप गौरीकुंड पहुँच कर भी वहां से आगे निकल सकते हैं।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Mandir) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। केदारनाथ मंदिर के साथ ही इस मंदिर का महत्व भी भक्तों के बीच तेजी से बढ़ रहा है। हर दिन के साथ मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसलिए आप भी केदारनाथ जाने के साथ-साथ त्रियुगीनारायण मंदिर भी अवश्य होकर आएं।
त्रियुगीनारायण मंदिर से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: त्रियुगीनारायण मंदिर में शादी कैसे होती है?
उत्तर: त्रियुगीनारायण मंदिर में शादी करवाने के लिए मंदिर संस्थान में 1100 रुपए की बुकिंग करवानी होती है। उसके बाद का जो भी खर्चा होता है, वह शादी की तैयारियों के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
प्रश्न: त्रियुगीनारायण मंदिर में शादी करने में कितना खर्चा आता है?
उत्तर: त्रियुगीनारायण मंदिर में शादी करने में लगभग 50 हज़ार रुपए के आसपास का खर्चा आता है। हालाँकि यह आप पर निर्भर करता है कि आप कितनी भव्य शादी करना चाहते हैं।
प्रश्न: त्रियुगीनारायण मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: त्रियुगीनारायण मंदिर में भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इसी कारण यह मंदिर भक्तों के बीच प्रसिद्ध है।
प्रश्न: क्या त्रियुगीनारायण में हमारी शादी हो सकती है?
उत्तर: जी हां, त्रियुगीनारायण में आपकी शादी हो सकती है लेकिन इसके लिए वर व वधु दोनों के माता-पिता की अनुमति ली जानी आवश्यक है।
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