सनातन धर्म के सोलह संस्कारों में से उपनयन संस्कार (Upnayan Sanskar) ग्यारहवें नंबर पर आता है। इससे पहले व्यक्ति का विद्यारंभ संस्कार करवाया जाता है जो उसकी पांच वर्ष की आयु में शुरू होता है। विद्यारंभ संस्कार के द्वारा उसे अक्षरों इत्यादि का ज्ञान करवाया जाता है ताकि आगे जाकर उसे वेदों का अध्ययन करवाया जा सके।
इसके बाद ही व्यक्ति विशेष का उपनयन संस्कार किया जाता है जिसमें उसे वेदों-शास्त्रों के अध्ययन के लिए गुरुकुल पढ़ने भेज दिया जाता है। ऐसे में आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि आज के समय के हिसाब से उपनयन संस्कार क्या है (Upnayan Sanskar Kya Hai) और इसका क्या महत्व है। आइये जानते है उपनयन संस्कार के बारे में।
Upnayan Sanskar Kya Hai | उपनयन संस्कार क्या है?
उपनयन शब्द का अर्थ होता है समीप जाना अर्थात इस संस्कार के माध्यम से एक मनुष्य अपने गुरु के समीप जाकर रहने लगता है। उपनयन संस्कार के पश्चात एक गुरु अपने शिष्य के रूप में उसे स्वीकार कर लेता है तथा उसे अपने गुरुकुल में स्थान देता है। इसके पश्चात उस बालक/बालिका पर माता-पिता का अधिकार समाप्त हो जाता है तथा वह उनके पास ब्रह्मचर्य की अवधि पूर्ण करने के पश्चात ही लौटता है जो 25 वर्ष की आयु तक निर्धारित है।
इसे जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है क्योंकि गुरुकुल जाने से पूर्व पूरे विधि-विधान के साथ उसे गायंत्री मंत्र की शिक्षा दी जाती है तथा वेदों का अध्ययन करने के लिए शुरूआती मंत्र सिखा दिया जाता है। इसके बाद उसे जनेऊ पहनाया जाता है जिसमे तीन सूत्र होते है जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को समर्पित है।
इस विधि को करने के पश्चात वह वेदों का अध्ययन करने के लिए सक्षम हो जाता है तथा फिर उसे सनातन धर्म के विज्ञान, रहस्य, खगोल, भूगोल इत्यादि की गूढ़ शिक्षा दी जाती है।
उपनयन संस्कार क्या होता है?
अब यदि आप वर्तमान समय से उपनयन संस्कार को समझाना चाहे तो किसी बच्चे को प्राथमिक विद्यालय या प्राइमरी स्कूल में भेजने को ही उपनयन संस्कार कहते हैं। उपनयन संस्कार से कुछ वर्ष पहले बच्चे का विद्यारंभ संस्कार किया जाता है। विद्यारंभ संस्कार में उसे अक्षरों का शुरूआती ज्ञान दिया जाता है और उसके दो से तीन वर्ष के पश्चात ही उपनयन संस्कार करवाया जाता है।
इस तरह से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बच्चों को किंडरगार्टन भेजने अर्थात नर्सरी से यूकेजी की पढाई विद्यारंभ संस्कार के अंतर्गत आती है तो वही उसका पहली कक्षा में प्रवेश करवाना उपनयन संस्कार के अंतर्गत आता है। इसके बाद शिक्षा पूरी होने तक वह इसी उपनयन संस्कार के नियमों का ही पालन करता है। एक तरह से यह संस्कार बच्चे का विद्यालय में प्रवेश करने की प्रक्रिया होती है।
उपनयन संस्कार कब होता है?
इसमें अलग-अलग वर्णों के लिए अलग-अलग आयु निर्धारित होती हैं। चूँकि जन्म से सभी मनुष्यों को निम्न स्तर का माना जाता है तथा विद्या ग्रहण करने के पश्चात ही उसे शिक्षित माना जाता है। इसलिये गुरुकुल में भेजने के लिए उपनयन संस्कार किया जाता था।
इसके लिए ब्राह्मण को आठ वर्ष की आयु में, क्षत्रिय को ग्यारह वर्ष की आयु में तथा वैश्य को बारह वर्ष की आयु में उपनयन संस्कार के लिए योग्य समझा जाता था। चूँकि शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार सभी को होता था इसलिये यह गुरुकुल के गुरु पर निर्भर करता था कि वह अपने शिष्य के रूप में किसे किस आयु में स्वीकार करता है।
इसके लिए आठ वर्ष के बाद की आयु उपयुक्त मानी जाती थी क्योंकि 2 से 3 वर्ष उसे अक्षर तथा भाषा के ज्ञान में लगते थे जो उसे विद्यारंभ संस्कार में दिए जाते थे।
उपनयन संस्कार का दूसरा नाम क्या है?
उपनयन संस्कार का एक नाम तो आपने ऊपर पढ़ ही लिया है जो की जाने संस्कार है। अब इस संस्कार में व्यक्ति को जाने पहनाया जाता है, जिस कारण इसे सरल भाषा में जनेऊ संस्कार भी कह दिया जाता है। वही इसका एक और नाम यज्ञोपवित संस्कार भी है। यज्ञोपवित का अर्थ भी यज्ञ के द्वारा व्यक्ति विशेष को जनेऊ धारण करवाना होता है। इस तरह से हम उपनयन संस्कार को यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कह सकते हैं।
उपनयन संस्कार का महत्व
यह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि बिना वेदों के ज्ञान के एक व्यक्ति को निंदनीय समझा जाता था। एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए व्यक्ति का शिक्षा ग्रहण करना अति-आवश्यक होता है अन्यथा समाज में उसकी कोई भागीदारी नही रह जाती है। इसे एक तरह से मनुष्य का दूसरा जन्म भी कहा जाता है इसलिये उसे द्वीज भी कहा जाता है अर्थात शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात उसका दूसरा जन्म।
यह एक तरह से वेदों का अध्ययन करने के लिए प्रवेश पत्र होता है जिसके पश्चात ही एक गुरु उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर उसे वेदों-शास्त्रों का अध्ययन करवाता है। इसकी शिक्षा भी उसे आगे के कर्म के अनुसार दी जाती है अर्थात जिसे आगे ब्राह्मण का कर्तव्य निभाना है उसे संपूर्ण शिक्षा दी जाती है, जिसे क्षत्रिय का धर्म निभाना है उसे कूटनीति, राजनीति इत्यादि की शिक्षा दी जाती है, जिसे वैश्य का धर्म निभाना है उसे व्यापर, धन, मोलभाव इत्यादि की शिक्षा दी जाती है।
इस तरह से आज आपने जान लिया है कि उपनयन संस्कार क्या है (Upnayan Sanskar Kya Hai) और यह कब व कैसे किया जाता है। इसके बाद ही बालक को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय भेजा जाता है।
उपनयन संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: उपनयन संस्कार कब किया जाता है?
उत्तर: उपनयन संस्कार मुख्य तौर पर आठ से बारह वर्ष की आयु में करवाया जाता है। जब एक बालक वेदों को पढ़ने की स्थिति में आ जाता है या उसका विद्यारंभ संस्कार अच्छे से पूरा हो जाता है तो फिर यह संस्कार किया जाता है।
प्रश्न: उपनयन संस्कार के बाद क्या होता है?
उत्तर: उपनयन संस्कार के बाद व्यक्ति का वेदारंभ संस्कार किया जाता है। इसके माध्यम से उसे वेदों व विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती है। इसी से ही वह आगे चलकर अपना भविष्य बनाता है।
प्रश्न: वैदिक काल में उपनयन संस्कार कब होता है?
उत्तर: वैदिक काल में उपनयन संस्कार आठ वर्ष की आयु से प्रारंभ हो जाता था। यह आठ वर्ष की आयु से शुरू होकर बारह वर्ष की आयु के बीच में कभी भी किया जा सकता है।
प्रश्न: उपनयन संस्कार का अर्थ क्या होता है?
उत्तर: उपनयन संस्कार का अर्थ होता है व्यक्ति को यज्ञ के माध्यम से जाने धारण करवाना और उसे शिक्षा ग्रहण करने गुरु के साथ भेज देना।
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