वेदारंभ संस्कार क्या होता है? जाने इसकी समूची जानकारी

Vedarambh Sanskar

हिंदू धर्म के कुल सोलह संस्कारों में वेदारम्भ संस्कार (Vedarambh Sanskar) बारहवें स्थान पर आता है जिसका एक व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्व होता है। इस संस्कार को करने से पहले विद्यारंभ तथा यज्ञोपवित संस्कार अति-आवश्यक होते हैं अन्यथा वेदारंभ संस्कार नही हो पाता है।

चूँकि वेदारंभ संस्कार (Vedarambh Sanskar In Hindi) में एक बालक को उच्च शिक्षा दी जाती है जिसके लिए उसका अक्षर का ज्ञान होना आवश्यक है जो उसे विद्यारंभ संस्कार में मिलता है। इसके पश्चात उसका उपनयन संस्कार किया जाता है जिसमें उसे गुरुकुल जाने तथा ब्रह्मचर्य का पालन करने की कठोर प्रतिज्ञा दिलवाई जाती है। तत्पश्चात ही एक गुरु उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर वेदारम्भ संस्कार करवाते हैं।

Vedarambh Sanskar | वेदारम्भ संस्कार

यह संस्कार हर किसी को नही मिलता था क्योंकि इसके लिए विशेष योग्यता तथा गुणों का होना आवश्यक था। साथ ही इस संस्कार को करने के लिए कठिन प्रण लेने होते थे। इसमें एक प्रण यह था कि वेदारंभ करने वाले बालक/बालिका पर उसके माता-पिता तथा रिश्तेदारों का ब्रह्मचर्य की सीमा तक कोई अधिकार नही रह पाता तथा पच्चीस वर्ष की आयु तक वह गुरु के सरंक्षण में ही रहता है।

इसके लिए उसे पच्चीस वर्ष की आयु तक भूमि पर सोना होता था, भिक्षा मांगनी होती थी, आश्रम को स्वच्छ रखना, वन से सूखी लकड़ियाँ और पुष्प तोड़कर लाना, गुरु की हर आज्ञा का पालन करना व वेदों का अध्ययन करना सम्मिलित था। यह अत्यधिक कठिन प्रण होता था तथा गुरु उस बालक की जाँच-परख करके ही उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करते थे।

वेदारम्भ संस्कार (Vedarambh Sanskar In Hindi) में एक मनुष्य के अंदर ज्ञान का असीमित भंडार भरा जाता था। उसे चारों वेदों का अध्ययन करवाया जाता था जिससे उसे ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्य, विद्यान, आध्यात्म, संस्कृति का महत्व, चिकित्सा के उपाय, विभिन्न जड़ी-बूटियों तथा औषधियों के बारे में जानकारी और उसका प्रभाव, भूगोल, ज्योतिष शास्त्र, इतिहास, रसायन, गणित के सूत्र इत्यादि की शिक्षा दी जाती थी।

ब्राह्मणों को संपूर्ण शिक्षा दी जाती थी क्योंकि उन्हें पवित्र कार्य, धार्मिक अनुष्ठान, शोध इत्यादि करने होते थे तथा साथ ही उनके ऊपर अगली पीढ़ी के लोगों को शिक्षा देने का भी भार होता था। अन्य को उनके क्षेत्र के अनुसार शिक्षा देने का प्रावधान था ताकि हर कोई अपने क्षेत्र के अनुसार उचित कार्य कर सके।

वेदारंभ संस्कार कब किया जाता है?

इसे यज्ञोपवित/ उपनयन संस्कार के तुरंत बाद ही शुरू कर दिया जाता है। चूँकि एक बालक के जीवन में विद्यारंभ संस्कार की आयु पांच से आठ वर्ष के बीच की मानी जाती है जिसमें वह भाषा, अक्षर तथा शुरूआती ज्ञान लेता है। इसके पश्चात उनकी योग्यता तथा गुणों के आधार पर आठ से बारह वर्ष की आयु में यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता है तथा गुरुकुल भेज भेज दिया जाता है। इसके तुरंत बाद Vedarambh Sanskar शुरू हो जाता है जो उसकी 25 वर्ष (ब्रह्मचर्य की सीमा) की आयु तक चलता है।

वेदारंभ संस्कार का महत्व

सनातन धर्म के वेद शिक्षा का अक्षुण्ण भंडार थे जिनका अध्ययन करके एक तरह से मनुष्य को दूसरा जीवन मिलता था। इसलिये उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात द्विज भी कहा जाता था अर्थात द्वितीय जन्म। इसकी शुरुआत ॐ मंत्र के माध्यम से की जाती थी तथा फिर उसे सभी प्रकार की शिक्षा दी जाती थी।

शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात ही वह समाज में रहने लायक बन पाता था तथा एक सुशिक्षित समाज का निर्माण कर पाता था। एक समाज व देश को सुचारू रूप से चलाये रखने के लिए व्यक्ति का शिक्षा ग्रहण करना अति-आवश्यक होता था अन्यथा समाज में अराजकता तथा अपराध फैलने का डर रहता था।

एक शिक्षित समाज के द्वारा ही निरंतर गति रहती थी तथा धर्म रुपी कार्य किये जाते थे। इसलिये वेदारम्भ संस्कार का होना अति-आवश्यक था। स्वयं भगवान श्रीराम तथा श्रीकृष्ण का भी Vedarambh Sanskar हुआ था तथा पच्चीस वर्ष की आयु तक उन्हें गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ी थी।

वेदारम्भ संस्कार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: वेदारंभ संस्कार कब करना चाहिए?

उत्तर: वेदारंभ संस्कार उपनयन संस्कार के बाद किया जाता है इसके लिए आदर्श आयु आठ वर्ष है जिसे अधिकतम बारह वर्ष की आयु तक किया जाना आवश्यक होता है

प्रश्न: वेदारण्यम संस्कार हिंदू धर्म का कौन सा संस्कार है?

उत्तर: वेदारण्यम संस्कार हिंदू धर्म का बारहवां संस्कार है इसे वेदारंभ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है जब किसी छात्र को विद्यालय में भेजकर उसकी शिक्षा शुरू करवा दी जाती है

प्रश्न: जन्म से पहले कितने संस्कार होते हैं?

उत्तर: जन्म से पहले तीन संस्कार होते हैं इनके नाम गर्भाधान, पुंसवन व सीमन्तोन्नयन संस्कार है इसके बाद बारह संस्कार मनुष्य के जीवित रहते हुए होते हैं और अंतिम संस्कार उसकी मृत्यु के बाद होता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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