सूर्य सिद्धांत किसकी रचना है? जाने इसके सभी 14 अध्यायों के बारे में

सूर्य सिद्धांत (Surya Siddhant)

आज हम भारतीय खगोल शास्त्र की सबसे प्रमुख पुस्तक सूर्य सिद्धांत (Surya Siddhant) के बारे में बात करने जा रहे हैं। हमारी पृथ्वी का मुख्य आधार सूर्य देव ही हैं और वही पृथ्वीवासियों के लिए सबसे बड़े देवता भी हैं। यही कारण है कि स्वयं भगवान विष्णु भी जब मनुष्य अवतार में जन्म लेते हैं तो वे सूर्य देव की उपासना करते हैं। ऐसे में सूर्य सिद्धांत का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है क्योंकि इसमें सूर्य की चाल और प्रभाव के आधार पर सब बातें लिखी गई है।

सूर्य सिद्धांत एक ऐसी पुस्तक है जिसमें ना केवल हमारी पृथ्वी के बल्कि ब्रह्माण्ड के भी कई अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाया है वैसे तो मूल पुस्तक संस्कृत भाषा में है लेकिन आज हम सूर्य सिद्धांत हिंदी में (Surya Sidhant) आपके सामने रखने जा रहे हैं। सूर्य सिद्धांत पुस्तक के बारे में जानकर आपको हमारे इतिहास और धर्म पर गर्व होगा।

Surya Siddhant | सूर्य सिद्धांत क्या है?

यह पुस्तक आज से हजारों वर्ष पहले लिखी गई थी। इस पुस्तक को सूर्य देव के आदेश पर लिखा गया था जिसमें ज्योतिष शास्त्र, गणित, परग्रही, ब्रह्मांड जैसे विषयों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। हालाँकि समय के साथ-साथ इसके कुछ अंश विलुप्त हो गए और उसमें से कुछ ही बचे हुए हैं।

इसके बाद छठी शताब्दी में वराहमिहिर जी ने सूर्य सिद्धांत को फिर से पूर्ण रूप दिया। उन्होंने इसमें ब्रह्मांड से जुड़े कई अनसुलझे प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। वर्तमान में जो वैज्ञानिक खोजे हुई हैं उसके बारे में हिंदू धर्म में आज से सदियों पहले ही सटीक आंकलन कर लिपिबद्ध कर दिया गया था। आप इसी से हमारे पूर्वजों की महानता का आंकलन कर सकते हैं। आइए सूर्य सिद्धांत हिंदी में जान और पढ़ लेते हैं।

सूर्य सिद्धांत किसकी रचना है?

यह प्रश्न लगभग हर किसी के मन में उठता है कि सूर्य सिद्धांत किसने लिखा!! ऐसा कौन था जिसने आज से हजारों वर्ष पूर्व ही इतनी महान खोज कर दी थी और ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा की चाल, व्यास, गति, दूरी इत्यादि का सटीक आंकलन कर दिया था। तो इसे हम तीन भागों में विभाजित करके आपको बताएँगे।

  • सूर्य देव का सूर्य सिद्धांत

सनातन धर्म के अनुसार पृथ्वी के सबसे बड़े देवता सूर्य देव ही हैं और उन्हीं के कारण पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य एक तारा है जो मंदाकिनी आकाशगंगा में स्थित है। सर्वप्रथम सूर्य देव के द्वारा ही सूर्य सिद्धांत पुस्तक की रचना की गई थी लेकिन समय के साथ-साथ इस पुस्तक के कुछ अंश विलुप्त होते चले गए।

  • वराहमिहिर का सूर्य सिद्धांत में योगदान

फिर भारतवर्ष के महान राजा विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में वराहमिहिर जैसे ज्ञानी पुरुष हुए। उन्हें ज्योतिष व खगोल विद्या में पारंगत माना जाता है। वे महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में भी थे। उन्होंने ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे मे गहन अध्ययन किया और उसे सूर्य सिद्धांत नामक पुस्तक के रूप में लिपिबद्ध किया। इसमें उन्होंने बहुत पहले ही मंगल ग्रह पर पानी व लौह तत्व होने के बारे में बता दिया था। इसके साथ ही ब्रह्मांड से जुड़े कई रहस्य भी इस पुस्तक में लिखे गए थे।

  • वर्तमान में सूर्य सिद्धांत किसने दिया?

इसके कई सदियों के बाद भारतवर्ष पर अफगान व मुगल आक्रांताओं के हमले बढ़ते चले गए। भारत के दो सबसे बड़े गुरुकुल तक्षशिला व नालंदा को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया व लाखों पंडितों, विद्वानों व ऋषि-मुनियों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। यह भी कहते हैं कि मुगलों की सेना ने नालंदा के पुस्तकालय में आग लगा दी थी जो लगभग छह माह तक जलती रही थी। यह केवल भारत के लिए ही नही अपितु संपूर्ण विश्व के लिए एक अपूर्णीय क्षति थी।

इसी दौरान सूर्य सिद्धांत पुस्तक भी या तो चोरी हो गई थी या उसे नष्ट कर दिया गया था। फिर बाद के विद्वानों व ऋषि-मुनियों ने Surya Sidhant पुस्तक की बातों को याद कर, उस पर अध्ययन कर व कई जगह से जानकारी जुटाकर इसे फिर से लिपिबद्ध किया। वर्तमान में सूर्य सिद्धांत नाम से जो पुस्तक उपलब्ध है वह यही है जिसका विश्व की लगभग हर भाषा में अनुवाद हो चुका है। देश-विदेश के सभी वैज्ञानिक अपने-अपने अध्ययन में इस पुस्तक से जानकारी लेना नही भूलते।

सूर्य सिद्धांत पुस्तक के अध्याय

सूर्य सिद्धांत में कुल 14 अध्याय हैं जो संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। हर अध्याय में श्लोक के माध्यम से खगोल विद्या को समझाने का प्रयास किया गया है। इन 14 अध्यायों में कुल 500 श्लोक लिखे गए हैं। यह पुस्तक स्वयं में समस्त सौरमंडल, ग्रह, पृथ्वी, राशियाँ, गणित इत्यादि के बारे में गूढ़ बातों को समेटे हुई है। इन 14 अध्यायों के नाम इस प्रकार हैं:

  1. ग्रहों की चाल
  2. ग्रहों की स्थिति
  3. दिशा, स्थान व समय
  4. चंद्रमा व ग्रहण
  5. सूर्य व ग्रहण
  6. ग्रहणों का पूर्वानुमान या आंकलन 
  7. ग्रहीय संयोग
  8. तारों के बारे में
  9. तारों (सूर्य) का उदय व अस्त होना
  10. चंद्रमा का उदय व अस्त होना
  11. सूर्य व चंद्रमा के कई अहितकर पक्ष
  12. ब्रह्मांड का निर्माण, सृजन, भूगोल इत्यादि के आयाम
  13. सूर्य घड़ी का दंड
  14. विभिन्न लोकों की गति व मानव का क्रिया-कलाप

इस तरह से सूर्य सिद्धांत पुस्तक में इन 14 अध्यायों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर गहन चर्चा की गई है। इसमें हरेक विषय के ऊपर गहन अध्ययन कर उसे लिपिबद्ध किया गया है। आज का आधुनिक विज्ञान अभी तक इतना आगे भी नहीं बढ़ पाया है और धीरे-धीरे Surya Siddhant पुस्तक में लिखी चीज़ों की पुष्टि कर रहा है। कहने का अर्थ यह हुआ कि जो बातें सूर्य सिद्धांत में इतने वर्षों पहले लिख दी गई थी, वहां आज का विज्ञान अभी पूरा भी नहीं पहुँच पाया है।

Surya Sidhant | सूर्य सिद्धांत के सूत्र

आज के वैज्ञानिक शोध से हजारों वर्षों पूर्व ही सूर्य सिद्धांत में ऐसी बातें बता दी गई थी जो आज के संदर्भ में एक दम सटीक बैठती हैं। इसी कारण इस पुस्तक का लगभग विश्व की हर भाषा में अनुवाद हो चुका है। साथ ही देश-विदेश के विभिन्न वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, इतिहासकारों द्वारा किसी खोज की शुरुआत व उसे पूर्ण रूप देने के लिए इस पुस्तक का सहारा लिया जाता है।

ऐसी कौन-कौन सी गूढ़ व मुख्य बातें हैं जो इस पुस्तक को सबसे अद्भुत बनाती हैं? आज हम एक-एक करके उन्ही के बारे में जानेंगे। नीचे दिए गए बिंदु इस पुस्तक में निहित कुछ मूल सिद्धांत हैं जिनका विस्तार से वर्णन सूर्य सिद्धांत पुस्तक में ही निहित है। आइए जानते हैं:

#1. ब्रह्मांड की उत्पत्ति व प्रलय

इस पुस्तक में ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा की संज्ञा दी गई है जिन्हें इस ब्रह्मांड व सृष्टि का सृजनकर्ता बताया गया है। इसमें बताया गया है कि इस ब्रह्मांड में केवल हमारी पृथ्वी ही नही अपितु असंख्य तारें विद्यमान हैं जिनमे सूर्य भी एक तारा है। इसी प्रकार सूर्य से बड़े या छोटे करोड़ों तारे इस ब्रह्मांड में विद्यमान हैं जो एक समय के बाद प्रलय में समा जाते हैं अर्थात ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।

इसमें प्रलय का अर्थ वस्तु के पुनः निर्माण से है अर्थात एक ग्रह या तारा अपना कालखंड समाप्त करने के बाद ब्रह्म में लीन हो जाता है व उसके बाद उसका किसी और रूप में निर्माण संभव हो पाता है।

#2. ग्रहों की गति व दिशा

इसमें हमारे सौरमंडल की विस्तृत व्याख्या की गई है। उस समय की अद्भुत व चमत्कारिक शक्तियों के द्वारा उन्होंने ना केवल पृथ्वी की गति व स्थिति का सटीक अनुमान लगाया अपितु सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे अन्य ग्रहों के समय व गति का अनुमान भी लगाया

इसमें सूर्य के केवल 6 ग्रह माने गए हैं जो हैं बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति व शनि। पृथ्वी को छोड़कर इन्हीं 5 ग्रहों, चंद्रमा व सूर्य के नाम पर सप्ताह के सात दिनों के नाम रखे गए हैं। अरुण, वरुण व यम को ग्रह की संज्ञा नही दी गई है।

इस पुस्तक में कौन सा ग्रह किस गति से सूर्य के चक्कर लगा रहा है, कौनसा ग्रह अब किस दिशा में है, सौरमंडल में उसका स्थान कहां व किसके बाद आता है, किस ग्रह में कितने दिन होते हैं, इत्यादि का सटीक अनुमान लगाया गया है जो आज के वैज्ञानिक शोध से एक दम मेल खाता है।

#3. समय का चक्र

Surya Sidhant में समय को एक महत्वपूर्ण कारक बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि समय की गति सब जगह एक जैसी नही होती है अर्थात जिस गति से समय पृथ्वी पर दौड़ रहा है, वह समय बुद्ध ग्रह में अलग व बृहस्पति ग्रह में अलग गति से दौड़ रहा है। इसी के आधार पर इस पुस्तक में विभिन्न ग्रहों के वर्ष में होने वाले कुल दिन, समय की गति, दिशा आदि का विवरण दिया गया है।

इसका उल्लेख विभिन्न धार्मिक घटनाओं में भी किया गया है, जैसे कि स्वर्ग लोक का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर है। उसी प्रकार ब्रह्म लोक, पाताल लोक इत्यादि में समय की गति को अलग-अलग बताया गया है।

#4. दूरी व व्यास

इसमें विभिन्न ग्रहों के बीच की दूरी को भी आँका गया है। पृथ्वी की चंद्रमा से दूरी, पृथ्वी की सूर्य से दूरी, सूर्य व चंद्रमा के बीच की दूरी, पृथ्वी का व्यास, चंद्रमा का व्यास, सूर्य का व्यास इत्यादि का वर्णन इसमें दिया गया है। सभी की दूरी व व्यास के बीच में तुलनात्मक अध्ययन भी किया गया है। इन्हीं तुलनात्मक अध्ययनों से निकले निष्कर्ष के कारण ही हिंदू धर्म में 108 व 9 को शुभ अंक माना गया है।

आज के समय में जब सूर्य सिद्धांत सहित अन्य भाषाओं में उपलब्ध है तो लोगों को इसके महत्व का ज्ञान हो रहा है। यह उस समय में किसी चमत्कार से कम नहीं था जब ग्रहों के बीच की दूरी और उनके व्यास का इतना सटीक आंकलन कर दिया गया था। वैज्ञानिकों ने जब कुछ समय पहले इन सब बातों का पता लगाया तो वह सूर्य सिद्धांत में लिखी गई बातों से मेल खाता था।

#5. ग्रहण का लगना व उसका आंकलन

सूर्य ग्रहणचंद्र ग्रहण क्यों लगता है, उस समय क्या स्थिति बनती है, इसका क्या प्रभाव हमारी पृथ्वी व मानव जाति पर पड़ता है, उस समय हमे क्या करना चाहिए व क्या नही करना चाहिए इत्यादि, जैसी बातों का विस्तार से उल्लेख इसमें किया गया है। इसी के साथ सूर्य व चंद्रमा के उदय व अस्त होने के कारण भी बताए गए हैं।

यदि हम ग्रहण के समय Surya Siddhant में कही गई बातों का ध्यान नहीं रखते हैं तो इसके एक नहीं बल्कि कई दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं। उदाहरण के तौर पर अजन्मे शिशु का विकलांग हो जाना, व्यक्ति का स्वास्थ्य गिर जाना इत्यादि। इसलिए सूर्य सिद्धांत का हरेक सिद्धांत बहुत ही महवपूर्ण है।

#6. राशियाँ व उनके प्रभाव

मनुष्य के जन्म, कुल, तिथि, वार इत्यादि के आधार पर उसकी राशि व नाम कैसे निर्धारित किया जाता है, इसके बारे में भी बताया गया है। हर मनुष्य की उसके जन्म के अनुसार नक्षत्रों व ग्रहों की दिशा को देखकर कुंडली बनाई जाती है। मनुष्य की राशियों के आधार पर ही राशिफल निकाला जाता है।

इसमें विभिन्न ग्रहों की दिशा, उनकी स्थिति इत्यादि के आधार पर आंकलन करके मनुष्य को सचेत किया जाता है। हमारा जीवन, व्यवहार, स्थिति इत्यादि कैसी होगी, यह सब कुछ हमारी राशि और उससे बनने वाली कुंडली इत्यादि पर ही निर्भर करती है। ऐसे में Surya Siddhant में लिखी गई इन बातों का मनुष्य के जीवन से सीधा और निजी संबंध है।

#7. सूर्य सिद्धांत पंचांग

सूर्य सिद्धांत में समय की गति के बारे में उल्लेख है व साथ ही उसको किस प्रकार मापा जाए व संग्रहित किया जाए, उसका भी विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसी संदर्भ में नाड़ी, दिन, मास, वर्ष इत्यादि का उल्लेख मिलता है। इसी के अनुसार कैलेंडर, ऋतुएं, मुहूर्त, त्यौहार, पर्व इत्यादि की तिथियाँ निर्धारित होती है। हिंदू धर्म में हर चीज़ का समय निर्धारित करने में पंचांग का मुख्य महत्व है।

हालाँकि धर्म में दो तरह के कैलेंडर प्रचलित हैं जिसमें से एक विक्रम संवत है तो दूसरा शक संवत। इसमें से ज्यादा प्रचलित विक्रम संवत है जो सूर्य सिद्धांत अर्थात सूर्य ग्रह की गणना पर निर्धारित है।

#8. त्रिकोणमिति

हमने स्कूल में त्रिकोणमिति या ट्रिगनोमेट्री पढ़ी होगी जिसमे हमें ज्या (sine), कुज्या (cosine) व स्पर्शज्या (tan) इत्यादि के विभिन्न सूत्र पढ़ाए जाते हैं। इन सभी सूत्रों या फ़ॉर्मूलों का उल्लेख इसी पुस्तक में दिया गया है। त्रिकोणमिति का उपयोग असामान्य दूरी मापने में किया जाता है।

सामान्यतया हम दूरी मापने के लिए मीटर, किलोमीटर जैसे मापदंडों का सहारा लेते हैं किंतु कुछ क्षेत्रों में यह मापदंड असहाय हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर वृक्ष की धरातल से दूरी, ग्रहों के बीच की दूरी इत्यादि। उस समय यह दूरी या तो अस्पष्ट होती है या उसका निम्नलिखित मापदंडों से गणना करना असंभव होता है। ऐसे समय में Surya Sidhant में लिखे गए त्रिकोणमिति के सूत्रों के द्वारा विभिन्न कोणों, त्रिभुज इत्यादि का सहारा लेकर दूरी की गणना की जाती है।

#9. गुरुत्वाकर्षण बल

न्यूटन की खोज से हजारों वर्ष पूर्व ही इस पुस्तक में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में लिखा हुआ है। इसमें बताया गया है कि पृथ्वी के खालीपन में एक ऊर्जा है जो नीचे से निकलती है। यह ऊर्जा अलग-अलग ग्रहों, तारों व आपस में भिन्न-भिन्न हो सकती है। इसी ऊर्जा के कारण कोई भी वस्तु पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ओर खींचे चली जाती है।

कहने का अर्थ यह हुआ कि हर ग्रह का अपना-अपना गुरुत्वाकर्षण बल होता है। अब उनका एक समान होना या एक जैसा होना आवश्यक नहीं है। किसी के लिए यह बल ज्यादा होता है तो किसी के लिए बहुत कम। हमारी पृथ्वी पर इतना गुरुत्वाकर्षण बल है कि यह हवा तक को भी ऊपर नहीं जाने देती है।

#10. पृथ्वी की रेखाओं व ध्रुवों का विवरण

इसमें पृथ्वी की संरचना, उसका भूगोल, आधार, पाताल-आकाश, विभिन्न जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों व मानव जाति का आपसी संतुलन का भी विवरण मिलता है। अक्षांश व देशांतर रेखाओं के अनुसार पृथ्वी पर समुंद्र, पहाड़, मरुस्थल इत्यादि का उल्लेख भी इसमें दिया गया है। इसमें पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव का भी उल्लेख मिलता है।

पृथ्वी में हर प्राणी का क्या महत्व है, यह आपको Surya Siddhant में ही पढ़ने को मिलेगा। हम मनुष्य सोचते हैं कि यदि चींटियाँ या मकड़ियाँ समाप्त हो जाए तो जीवन बहुत अच्छा हो जाएगा लेकिन यह पृथ्वी के लिए घातक है। ऐसे ही हर जीव-जंतु व पेड़-पौधों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, यह इस पुस्तक में बताया गया है।

निष्कर्ष

इस तरह से आज के इस लेख में आपने यह जाना कि सदियों पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने जिस सूर्य सिद्धांत (Surya Siddhant) की रचना की थी, वह आज तक की महानतम रचनाओं में से एक थी। हालाँकि मुगलों के आक्रमण ने केवल भारत को नहीं अपितु पूरे विश्व को ही अपूर्णीय क्षति पहुंचाई थी। यदि असली सूर्य सिद्धांत हमारे पास होता तो मनुष्य आज कितनी उन्नति कर चुका होता।

सूर्य सिद्धांत से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: सूर्य सिद्धांत पुस्तक के लेखक कौन है?

उत्तर: सूर्य सिद्धांत पुस्तक के मूल लेखक स्वयं सूर्य देव हैं किन्तु आज हम जो सूर्य सिद्धांत पढ़ते हैं, वह प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराहमिहिर जी के द्वारा लिखी गई है

प्रश्न: सूर्य चिन्ह सिद्धांत क्या है?

उत्तर: सूर्य चिन्ह सिद्धांत में ब्रह्मांड के रहस्यों के ऊपर से पर्दा उठाया गया है इसमें पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा सहित अन्य ग्रहों व तारों का सटीक आंकलन किया गया है

प्रश्न: सूर्य सिद्धांत कितने साल का है?

उत्तर: सूर्य सिद्धांत को आज से हजारों वर्ष पहले लिखा गया था बाद में मुगलों के आक्रमण के कारण इसे फिर से संगृहीत किया गया था

प्रश्न: सूर्य सिद्धांत में कितने अध्याय हैं?

उत्तर: सूर्य सिद्धांत में कुल 14 अध्याय हैं जिनका संबंध विभिन्न विषयों से है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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