राजा दशरथ की मृत्यु कैसे हुई? जाने राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किसने किया

राजा दशरथ का अंतिम संस्कार

राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किसने किया था (Raja Dashrath Ka Antim Sanskar) और राजा दशरथ की मृत्यु कैसे हुई (Raja Dashrath Ki Mrityu), यह दोनों ऐसे प्रश्न हैं जो हर किसी को अंदर तक झकझोर देंगे। जो व्यक्ति भारत का चक्रवर्ती सम्राट रह चुका हो, जिसने देवासुर संग्राम में असुरों को धूल चटाई हो, जिसके एक नहीं बल्कि चार-चार पुत्र हो, जिसके घर स्वयं नारायण ने पुत्र रूप में जन्म लिया हो, उसी राजा को अंतिम संस्कार के लाले पड़ गए थे।

कहने हैं ना जब नियति अपना खेल दिखाती है तो क्या राजा और क्या रंक। वर्षों पहले एक असहाय श्रवण कुमार के पिता का श्राप अयोध्या नरेश को इतना भारी पड़ेगा, यह किसी ने सोचा तक नहीं था। स्वयं महाराज दशरथ भी उस घटना को भूल चुके थे लेकिन जब मृत्यु उनके दरवाजे पर आ खड़ी हुई तब उसी श्राप के वाक्य उनके कानों में तीर की भाँति चुभने लगे।

राजा दशरथ का अंतिम संस्कार

राजा दशरथ अयोध्या के चक्रवती सम्राट थे जिन्होंने चारों दिशाओं में अपनी विजय पताका लहराई थी लेकिन उनकी मृत्यु बहुत दुखद हुई थी। उनके चार परम प्रतापी पुत्र थे जिसमें एक तो स्वयं भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम थे। जब दशरथ ने अपने सबसे बड़े पुत्र श्रीराम के राज्याभिषेक का निर्णय लिया। तब उनकी दूसरी पत्नी कैकई ने षड्यंत्र के तहत राम को 14 वर्षों का वनवास दिलवाया व अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनवाया। इसके पश्चात श्रीराम के वियोग में ही राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए थे।

कैकई के षडयंत्र के तहत भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्षों के वनवास के लिए चले गए थे। उस समय दशरथ के दो पुत्र भरत व शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय प्रदेश में गए हुए थे। श्रीराम के वन गमन के कुछ दिनों के पश्चात दशरथ ने पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए थे। जब Raja Dashrath Ki Mrityu हुई तब उनका कोई भी पुत्र अयोध्या में नहीं था। आइए उस घटनाक्रम के बारे में जानते हैं।

राजा दशरथ की मृत्यु

अब प्रश्न यह उठता है कि राजा दशरथ की मृत्यु कब हुई (Raja Dashrath Ki Mrityu) थी? जब दशरथ युवा थे और राजकुमार थे तब वे अक्सर शिकार करने जंगल में जाया करते थे। उस समय उन्होंने गलती से श्रवण कुमार को हिरण समझकर तीर चला दिया था। इससे श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी। अपने बेटे की मृत्यु के दुःख में श्रवण के माता-पिता ने भी प्राण त्याग दिए थे। मरने से पहले श्रवण के पिता ने दशरथ को पुत्र वियोग में मरने का श्राप दिया था।

महाराज दशरथ श्रीराम के वन में जाने के बाद ही बीमार हो गए थे। उन्हें बस यह आशा थी कि उनके मंत्री आर्य सुमंत श्रीराम को पुनः अयोध्या ले आएंगे। किन्तु जब आर्य सुमंत अकेले आए तब दशरथ को यह पता चल गया था कि अब श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद ही पुनः अयोध्या लौटेंगे। अपने पुत्र के दुःख में दशरथ का स्वास्थ्य हर दिन के साथ गिरता चला गया। एक तरह से दशरथ गहरे अवसाद में चले गए थे जिस कारण उन पर राज वैद्य की दवाइयों का असर होना भी बंद हो गया था।

वे अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे राम-राम ही जपते रहते थे और उनके बारे में ही सोचते रहते थे अपने अंतिम समय में उन्हें श्रवण कुमार की वह कहानी फिर से याद आ गई। उनके कानों में श्रवण कुमार के पिता के श्राप वचन पड़ने लगे। महाराज दशरथ की ऐसी स्थिति देखकर संपूर्ण राजभवन में हाहाकार मच गया और राज वैद्यों को तुरंत बुलावा भेजा गया। उससे पहले ही महाराज दशरथ ने कौशल्या की गोद में राम नाम जपते हुए अपने प्राण त्याग दिए।

राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किसने किया था?

Raja Dashrath Ki Mrityu के पश्चात पूरी अयोध्या शोकगुल हो गई थी। राजगुरु, तीनों रानियों, सामंतों व अन्य प्रजावासियों के द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी गई थी लेकिन महर्षि वशिष्ठ ने उनका अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था। चूँकि राजा की मृत्यु के पश्चात यदि कोई नया राजा नियुक्त ना हुआ हो या वह उस समय उपस्थित ना हो तो राजगुरु को ही सभी राजनीतिक निर्णय लेने के अधिकार प्राप्त होते थे।

महर्षि वशिष्ठ Raja Dashrath Ka Antim Sanskar उनके पुत्रों के द्वारा ही करवाना चाहते थे क्योंकि पुत्र ही पिता का संस्कार करता है। इसलिए महर्षि वशिष्ठ ने महाराज के मृत शरीर को औषधीय युक्त तेल के साथ संभाल कर रखा ताकि उनके पुत्र भरत व शत्रुघ्न के द्वारा राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किया जा सके।

उसी समय महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से एक संदेश वाहक को तेज गति से कैकेय प्रदेश में भेजा गया तथा भरत व शत्रुघ्न को अयोध्या की राज आज्ञा सुनाई गई। उस समय उन्हें कुछ भी नहीं बताया गया व केवल शीघ्र अयोध्या आने का आदेश दिया गया। राज आज्ञा के अनुसार भरत व शत्रुघ्न तेज गति से अयोध्या की ओर निकल पड़े।

राजा दशरथ की अंतिम यात्रा

भरत व शत्रुघ्न के अयोध्या पहुँचते ही उन्हें सब षड्यंत्र, श्रीराम के वनगमन व अपने पिता और राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार मिला। यह सुनते ही भरत गुस्से में आग-बबूला हो उठे और उसी क्षण से उन्होंने अपनी माँ कैकई का त्याग कर दिया। जहाँ राजा दशरथ का शव रखा गया था, वहाँ पहुँच कर भरत बुरी तरह रोने लगे थे।

तब राजगुरु वशिष्ठ ने स्थिति को संभाला व भरत शत्रुघ्न को ढांढस बंधाया। उन्होंने ही स्थिति के अनुसार निर्णय लेकर भरत को अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार (Raja Dashrath Ka Antim Sanskar) करने को कहा था। फिर भरत के आदेशानुसार अयोध्या में राजा दशरथ की अंतिम यात्रा निकाली गई और सभी अयोध्यावासियों ने उन्हें पुष्प अर्पित किए।

इस तरह से महाराज दशरथ के दूसरे पुत्र भरत व चौथे पुत्र शत्रुघ्न के द्वारा उनके अंतिम संस्कार की सभी विधि की गई थी। भरत के द्वारा ही अपने पिता दशरथ को मुखाग्नि दी गई थी। जब चित्रकूट में भरत भगवान श्रीराम को वापस अयोध्या लाने पहुंचे तब उनके द्वारा श्रीराम व लक्ष्मण को पिता दशरथ की मृत्यु का समाचार मिला। यह सुनकर श्रीराम व लक्ष्मण ने भी अपने पिता को जलांजलि दी।

राजा दशरथ के अंतिम संस्कार से जुड़े प्रश्नोत्तर

प्रश्न: राजा दशरथ का अंतिम संस्कार कौन किया था?

उत्तर: राजा दशरथ का अंतिम संस्कार उनके दूसरे पुत्र भरत के द्वारा किया गया था इस विधि में उनके चौथे पुत्र शत्रुघ्न भी साथ में थे

प्रश्न: रामचंद्र जी ने पिता की उपाधि देकर किसका अंतिम संस्कार किया?

उत्तर: रामचंद्र जी ने पिता की उपाधि देकर गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार किया जो माता सीता की रक्षा में रावण के हाथों मारे गए थे

प्रश्न: रामायण में दशरथ की मृत्यु कैसे हुई थी?

उत्तर: रामायण में दशरथ की मृत्यु अपने पुत्र श्रीराम के वियोग में हुई थी साथ ही उन्हें श्रवण कुमार के पिता का श्राप भी मिला हुआ था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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