आज हम आपके साथ स्कंदमाता स्तोत्र (Skandmata Stotra) का पाठ करने जा रहे हैं। हम हर वर्ष नवरात्र का पावन त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। नवरात्र नौ दिवस का पर्व है जिसमें हर दिन मातारानी के भिन्न रूप की पूजा की जाती है जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। इसमें मातारानी का हरेक रूप अपने भिन्न गुणों व शक्तियों के कारण पूजनीय है। स्कंदमाता नवदुर्गा का पंचम रूप है जो मोक्ष व पुत्र प्राप्ति का परिचायक है।
इस लेख में आपको स्कंद माता स्तोत्र (Skandmata Stotram) के साथ-साथ उसका हिंदी अर्थ भी जानने को मिलेगा। इससे आप स्कंद माता स्तोत्र का भावार्थ भी समझ पाएंगे। अंत में हम आपके साथ मां स्कंदमाता देवी स्तोत्र के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं स्कंदमाता स्तोत्रं।
Skandmata Stotra | स्कंदमाता स्तोत्र
॥ ध्यान मंत्र ॥
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्मयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्लवंदना पल्ल्वांधरा कांतकपोलापीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
॥ स्तोत्र ॥
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
Skandmata Stotram | स्कंद माता स्तोत्र – अर्थ सहित
॥ ध्यान मंत्र ॥
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्॥
मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, सभी तरह के मनोरथों को पूरा करने वाली, मस्तक पर अर्ध चंद्र को धारण करने वाली, सिंह की सवारी करने वाली, चार भुजाओं वाली और यश प्रदान करने वाली स्कंदमाता, की वंदना करता हूँ।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्मयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधराम् भजेम्॥
स्कंदमाता उजले रंग की हैं और हमारे विशुद्ध चक्र में निवास कर उसे मजबूत बनाती हैं। वे दुर्गा माता का पांचवां रूप हैं जिनके तीन नेत्र हैं। इन्होने अपनी चार भुजाओं में से दो में कमल पुष्प पकड़ रखा है, एक से कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है जबकि एक हाथ अभय मुद्रा में है।
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
स्कंद माता पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके मुख पर स्नेह के भाव हैं और उन्होंने नाना प्रकार के आभूषणों से अपना अलंकार किया हुआ है। उन्होंने अपने शरीर पर मंजीर, हार, केयूर, किंकिणी व रत्नों से जड़ित कुंडल धारण किये हुए हैं।
प्रफुल्लवंदना पल्ल्वांधरा कांतकपोलापीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
मैं प्रसन्न मन के साथ स्कन्दमाता की आराधना करता हूँ। उनका स्वरुप बहुत ही सुंदर, कमनीय, रमणीय व वैभव युक्त है। तीनों लोकों में उनकी पूजा की जाती है।
॥ स्तोत्र ॥
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
स्कंद अर्थात कार्तिकेय को ली हुई स्कंदमाता को मेरा नमन है। सृष्टि के सभी तत्व उन्हीं के अंदर समाये हुए हैं। स्कंदमाता सागर की गहराइयों में भी वास करती हैं और हमें ऊर्जा प्रदान करती हैं।
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
वे शिव की अर्धांगिनी हैं। वे ही हम सभी को प्रकाश देती हैं। उन्होंने अपने मस्तक पर सोने का मुकुट पहन रखा है। उनके मस्तक पर सूर्य के समान आभा है जो संपूर्ण विश्व में उजाला करती है।
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
वे सभी इन्द्रियों की स्वामिनी हैं और ब्रह्म पुत्रों के द्वारा पूजनीय हैं अर्थात सभी वेद भी उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। देवता व राक्षस दोनों ही मातारानी के इस निर्मल व आदि रूप की आराधना करते हैं।
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
स्कंदमाता देवी हमारे सभी तरह के दोषों व विकारों का निवारण कर देती हैं। वे हमारे शरीर व मन को स्वस्थ रखने का कार्य करती हैं और हमारा उद्धार कर देती हैं।
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
स्कंद माता ने तरह-तरह के आभूषणों से अपना श्रृंगार किया हुआ है। इंद्र देव भी उनकी आराधना करते हैं। वे सृष्टि के सभी तत्वों में समाहित हैं और सभी लोकों का भार उन्हीं के ऊपर ही है।
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
स्कंदमाता के द्वारा ही हमें बुद्धि व विद्या मिलती है तथा हम उसका सदुपयोग कर पाते हैं। वे हमारी अज्ञानता का नाश कर देती हैं। वे कमल पुष्प में निवास करने वाली और शुभ फल देने वाली हैं।
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
स्कंदमाता देवी इस सृष्टि के अंधकार को दूर कर देती हैं और उनका स्वभाव भगवान शिव के जैसा ही है। वे कामना करने योग्य हैं। उनके अंदर करोड़ो सूर्य के समान शक्ति है और उन्हीं से ही इस पृथ्वी पर अर्थ का महत्व है।
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्कंद माता अनादिकाल से हैं और इस सृष्टि की रचयिता हैं। उन्होंने ही हम सभी को प्रकाश देने का कार्य किया है। वे ही प्रजा का हित करने वाली, उनकी स्वामिनी व माता हैं। हम सभी स्कंद माता को नमन करते हैं।
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
वे हर बिगड़े हुए काम को बना देती हैं, वे हमेशा गतिमान हैं, हरि का काम करने वाली और माता पार्वती का रूप हैं। उनके अंदर अनंत शक्ति समाहित है और उनका तेज सबसे ज्यादा है। वे ही हमें यश, धन, भक्ति व मुक्ति का मार्ग सुझाती हैं।
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
उन्होंने ही इस जगत को सब कुछ दिया है और वे इस जगत के सभी प्राणियों सहित देवताओं के द्वारा वंदना करने योग्य है। वे ही हम सभी की ईश्वरी, तीनों लोकों में व्याप्त व आदिशक्ति हैं।
स्कंद माता स्तोत्र का महत्व
स्कंदमाता का स्वरुप नवदुर्गा के अन्य आठ स्वरूपों से सबसे अलग व अद्भुत है। इसमें मातारानी अकेली नहीं अपितु अपने साथ एक बालक को लिए हुए होती हैं और वह बालक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान कार्तिकेय हैं। इस तरह से कार्तिकेय की माता होने के कारण उन्हें माता पार्वती भी कहा जाता है। कार्तिकेय भगवान का एक अन्य नाम स्कंद है और इसी कारण नवदुर्गा के इस रूप का नाम स्कंद माता पड़ा अर्थात स्कंद की माता।
स्कंद माता स्तोत्र के माध्यम से हमें स्कंदमाता के गुणों, शक्तियों, कर्मों व उद्देश्य के बारे में बताया गया है। इसी के साथ ही उनकी आराधना भी की गयी है ताकि हमारा कल्याण हो सके और हम मोक्ष को प्राप्त कर सकें। यही स्कंद माता स्तोत्र का महत्व होता है।
स्कंदमाता स्तोत्र के लाभ
जो भक्तगण प्रतिदिन सच्चे मन के साथ स्कंदमाता स्तोत्र का पाठ करते हैं, इससे उन्हें अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं। इसका सबसे मुख्य लाभ तो यही है कि व्यक्ति अपने मन को नियंत्रण में करना सीख जाता है और सांसारिक मोहमाया से दूर हो जाता है। स्कंदमाता कृपा से व्यक्ति के मन में सकारात्मक विचार आते हैं और वह मन को केंद्रित कर पाता है। इससे उसका ध्यान नहीं भटकता है और वह कुशलता के साथ कार्य पूरे कर पाता है।
जिन लोगों को संतान प्राप्ति नही हो पा रही है या इसमें किसी प्रकार की बाधा आ रही है तो वह भी स्कंद माता की कृपा से प्राप्त होती है। इसके लिए भक्तों को प्रतिदिन सुबह के समय स्कंदमाता स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और दंपति को एक साथ ही यह कार्य करना चाहिए। यही स्कंदमाता देवी स्तोत्र के मुख्य लाभ होते हैं।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने स्कंदमाता स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित (Skandmata Stotra) पढ़ लिया हैं। साथ ही आपने स्कंद माता स्तोत्र स्तोत्र के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
स्कंदमाता देवी स्तोत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: स्कंदमाता का बीज मंत्र क्या है?
उत्तर: स्कंदमाता का बीज मंत्र “महाबले महोत्साहे। महाभय विनाशिनी। त्राहिमाम स्कन्दमाते। शत्रुनाम भयवर्धिनि॥” है जिसका हर भक्त को नवरात्र के पांचवें दिन जाप करना चाहिए।
प्रश्न: स्कंदमाता को कौन सा भोग लगाते हैं?
उत्तर: स्कंद माता को हलवा या मीठी वस्तुएं बहुत पसंद आती है। इसी के साथ फलों में केला स्कंद माता का प्रिय भोजन है। तो आप स्कंदमाता को केले व हलवे का भोग लगा सकते हैं।
प्रश्न: स्कंदमाता का प्रिय रंग कौन सा है?
उत्तर: मां स्कंदमाता को पीला रंग प्रिय है। ऐसे में यदि आप पीले रंग के वस्त्र पहन कर उन्हें पीले रंग की वस्तुओं का भोग लगाएंगे तो मातारानी जल्दी प्रसन्न होंगी।
प्रश्न: स्कंदमाता नाम क्यों पड़ा?
उत्तर: स्कंद भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम है। ऐसे में कार्तिकेय की माता होने कारण उन्हें स्कंदमाता भी कहा गया। स्कंदमाता पार्वती माता का ही एक रूप है।
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