मनुस्मृति में मत्स्य न्याय (Matsya Nyaya) के बारे में बताया गया है। इसके अलावा इसकी व्याख्या तथा प्रभाव के बारे में महाभारत तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी लिखा गया है। इसे प्राकृतिक न्याय या जंगल का न्याय या मछली का न्याय भी कहा जाता है। मत्स्य न्याय के कारण ही इस पृथ्वी पर धर्म की स्थापना हुई थी अर्थात मत्स्य न्याय की काट के लिए ही धर्म को बनाया गया था।
अब आपके मन में प्रश्न उठेगा कि आखिरकार यह मत्स्य न्याय क्या है (Matsya Nyaya Kya Hai) तथा इसका धर्म से क्या संबंध है? इसलिए आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको इसी मत्स्य न्याय, इसके सिद्धांत, अवधारणा, इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं।
Matsya Nyaya Kya Hai | मत्स्य न्याय क्या है?
मत्स्य संस्कृत भाषा का शब्द है जिसको हिंदी में मछली कहा जाता है। अब क्या कभी आपने सोचा है कि समुद्र या नदियों में मछलियाँ अपना पेट कैसे भरती हैं!! तो इसका उत्तर है मछली को खाकर। जी हाँ, सही सुना आपने। समुद्र में बड़ी मछली के द्वारा अपने से छोटी मछली को खाया जाता है तो वहीं उससे बड़ी मछली उसे खा जाती है। इसी तरह सभी मछलियाँ अपना-अपना पेट भरती हैं।
इसलिए इसे मत्स्य न्याय अर्थात मछली का न्याय कहा गया है। ऐसा कार्य करके मछली किसी भी तरह का अन्याय नहीं करती है क्योंकि यही उसकी प्रकृति है। कहने का अर्थ यह हुआ कि मछली के द्वारा अपने से छोटी मछली को खा जाने के लिए ईश्वर उसे किसी तरह का दंड नहीं देते हैं। वह इसलिए क्योंकि ईश्वर ने यही नियम बनाया है और इसी के द्वारा ही वह अपने पेट को भर सकती है और जीवित रह सकती है।
अब इस Matsya Nyaya को हम प्रकृति से भी जोड़ सकते हैं जिसे वन का न्याय या जंगल का नियम भी कहा जा सकता है। यदि हम जंगल को देखेंगे तो वहाँ भी यही मत्स्य न्याय चलता है। वनों में एक सशक्त पशु या पक्षी के द्वारा अपने से छोटे या निर्बल पशु पक्षी को मारकर अपना आहार बनाया जाता है। इसी प्रकार एक जंगल चलता है तथा सभी का भरण-पोषण होता है। आइए इसके बारे में और जान लेते हैं।
मत्स्य न्याय का उदाहरण
यदि हम इसको उदाहरण के रूप में समझना चाहें तो हम अपने विद्यालय की पुस्तकों का उदाहरण ले सकते हैं जिसमें हमें पशु पक्षियों की खाद्य श्रंखला समझाई जाती थी। इसके अनुसार जिस प्रकार एक कीट पतंग को मेंढक खा जाता है तो मेंढक को सांप खा जाता है और उसी सांप को एक बाज या उल्लू खा जाता है। इसी प्रकार यह श्रंखला चलती है।
पेड़-पौधों में भी यही देखने को मिलता है। यदि आप दो पेड़ों को एक साथ लगा देंगे तो आप पाएंगे कि ज्यादा शक्तिशाली पेड़ के द्वारा कम शक्तिशाली पेड़ का अन्न, जल, खाद ले ली जाती है तथा धीरे-धीरे वह और बढ़ा होकर उसकी भूमि भी हड़प लेता है व सूर्य का प्रकाश भी ले लेता है। इस प्रकार शक्तिशाली पेड़ ही बचता है तथा कमजोर पेड़ नष्ट हो जाता है।
मत्स्य न्याय का सिद्धांत
Matsya Nyaya को प्रकृति का नियम इसलिए कहा जाता है क्योंकि पृथ्वी पर सबकुछ अरण्य/ वनों से ही शुरू होता है तथा वहाँ केवल प्रकृति का नियम ही चलता है। इसका सिद्धांत ही यही है कि एक मजबूत, शक्तिशाली जीव ही अपने भोजन को प्राप्त कर पाता है तथा जीवित रहता है और जो बूढ़ा, कमजोर व निर्बल हो जाता है उसे भोजन नहीं मिल पाता तथा उसकी मृत्यु हो जाती है।
मत्स्य न्याय में कोई नियम, सिद्धांत, कानून, व्यवस्था, अधिकारी नहीं होते। इसका केवल एक सिद्धांत है और वो है कि सशक्त जीवित रहेगा तथा निर्बल मारा जाएगा। प्रकृति में सब कुछ वनों से ही शुरू होगा तथा उसी में सब समाप्त हो जाएगा।
मत्स्य न्याय व हिंदू धर्म
इसी मत्स्य न्याय को समाप्त करने की शक्ति केवल मानव जाति में होती है। ईश्वर ने मनुष्य को जो चीज दी है वह किसी अन्य जीव में नहीं है। वह है असीमित बुद्धि तथा ज्ञान को अर्जित करने की क्षमता। इसी का उपयोग कर मनुष्य शासन व्यवस्था बनाता है तथा सभी को समान अधिकार दिलाता है। इसमें सभी नियम, व्यवस्था निर्धारित होते हैं तथा सभी को न्याय दिया जाता है।
शास्त्रों में इसे ही धर्म की संज्ञा दी गई है जो मत्स्य न्याय को समाप्त करता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि मनुष्य के द्वारा जंगल में से एक भूभाग को नगर या गाँव के रूप में बसाया जाता है। वहाँ पर रहने वाले सभी मनुष्यों, जीव-जंतुओं इत्यादि पर मत्स्य न्याय नहीं बल्कि धर्म के नियम चलते हैं। इसके अनुसार शक्तिशाली को दुर्बल पर अन्याय नहीं बल्कि उसकी सहायता करनी है और सभी को एक साथ लेकर चलना है।
इस तरह से आपने यह जान लिया है कि मत्स्य न्याय क्या है (Matsya Nyaya Kya Hai) और इसका धर्म की उत्पत्ति से क्या संबंध होता है। धर्म की स्थापना मनुष्य जाति के उद्धार के लिए की गई थी। उस धर्म के शासक के तौर पर राजा को नियुक्त किया जाता था। वह धर्म विरुद्ध कार्य करने पर व्यक्ति विशेष को दंड देने का अधिकारी था।
मत्स्य न्याय से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: मत्स्य यानी क्या होता है?
उत्तर: मत्स्य न्याय के अनुसार शक्तिशाली व्यक्ति के द्वारा निर्बल या कमजोर व्यक्ति का शोषण किया जाता है। इसे जंगल का न्याय या नियम भी कहते हैं जिसमें शक्तिशाली जानवर कमजोर जानवर को मारकर खा जाता है।
प्रश्न: मत्स्य न्याय का अर्थ क्या है?
उत्तर: मत्स्य न्याय का अर्थ होता है मछली का न्याय, समुद्र में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है और उससे बड़ी मछली उसे। इसी प्रकार समुद्र में न्याय होता है जिसे मत्स्य न्याय कहा जाता है।
प्रश्न: मनु के अनुसार मत्स्य न्याय क्या है?
उत्तर: मनु के अनुसार मत्स्य न्याय का अर्थ होता है बड़ी मछली के द्वारा छोटी मछली को अपना आहार बनाना। इसके अनुसार जहाँ धर्म नहीं होता है, वहाँ शक्तिशाली मनुष्य के द्वारा कमजोर मनुष्य का शोषण किया जाता है।
प्रश्न: कौटिल्य के अनुसार मत्स्य न्याय का क्या अर्थ है?
उत्तर: कौटिल्य के अनुसार मत्स्य न्याय का अर्थ होता है प्रकृति का नियम। इसके अनुसार जहाँ धर्म नहीं होता और शासक किसी काम का नहीं होता, वहाँ शक्तिशाली लोगों के द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों पर अत्याचार किया जाता है।
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