आर्य सुमंत रामायण (Arya Sumant Ramayan) में महाराज दशरथ के मुख्य मंत्री थे। आपने राजकार्य में कई बार आर्य सुमंत का जिक्र सुना होगा। मुख्य तौर पर राजा दशरथ के राजकार्यों में आर्य सुमंत का अहम योगदान हुआ करता था। श्रीराम के समयकाल में वे बूढ़े हो गए थे। साथ ही श्रीराम के समय उनके मंत्रियों की भूमिका में उनके तीनों भाई थे।
आर्य सुमंत (Arya Sumant Kaun The) की मुख्य भूमिका तब दिखाई देती है जब भगवान श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास मिला था। तब महाराज दशरथ के द्वारा उन्हें ही श्रीराम को वन में ले जाने का दायित्व दिया गया था। इसके साथ ही महाराज दशरथ ने उन्हें एक और दायित्व दिया था जो आर्य सुमंत पूरा नहीं कर पाए थे। ऐसे में आज हम आर्य सुमंत का रामायण में क्या योगदान था, उसके बारे में जानेंगे।
Arya Sumant Ramayan | आर्य सुमंत रामायण
आर्य सुमंत अयोध्या में राजा दशरथ के मंत्री व उनके परम मित्र थे। वे बचपन से ही दशरथ के साथ रहे थे व अब अयोध्या का राजकाज सँभालने में सहायता करते थे। जब भगवान श्रीराम को माता कैकेयी के षडयंत्र के कारण 14 वर्षों का वनवास हुआ तब दशरथ ने सुमंत को ही उनके साथ जाने को कहा व सकुशल वन में छोड़कर आने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि उन्हें वापस लाने का पूरा प्रयत्न करना अन्यथा केवल माता सीता को ही वापस ले आना।
इसके बाद आर्य सुमंत भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण को रथ पर बिठाकर निकल पड़े। सबसे पहले वे उनके साथ अयोध्या से बीस किलोमीटर की दूरी पर तमसा नदी के तट तक गए। वहाँ तक अयोध्या की प्रजा भी उनके साथ-साथ पैदल गई। इसलिए भगवान श्रीराम ने वहीं नदी के तट पर एक दिन का डेरा डाला व प्रातःकाल जल्दी उठकर अयोध्या की प्रजा को बिना जगाए सुमंत के साथ निकल पड़े।
इसके बाद सुमंत (Arya Sumant Kaun The) रथ को लेकर कौशल देश की सीमा से निकल गए व श्रृंगवेरपुर नगर में पहुंचे जो भगवान श्री राम के मित्र निषादराज गुह का राज्य था। गुह के एक आदिवासी राजा थे जिन्होंने भगवान राम के साथ ही महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में अध्ययन किया था। उन्होंने भगवान राम व अन्य के लिए वहीं गंगा किनारे रात्रि विश्राम का प्रबंध कर दिया था। वहीं पर आर्य सुमंत ने भी अपना एक दिन और व्यतीत किया।
अगले दिन जब भगवान श्रीराम ने रथ को वहीं पर छोड़ने व केवट के द्वारा गंगा पार करके आगे जाने का निर्णय किया तो आर्य सुमंत विचलित हो उठे। उन्होंने भगवान श्रीराम से अनुरोध किया कि उन्हें जहाँ भी जाना है वे रथ पर चलें व उनको भी साथ लेकर ही चलें लेकिन भगवान श्रीराम ने उन्हें वापस अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया।
उन्होंने सुमंत को समझाया कि इस समय अयोध्या में राजा दशरथ को उनकी आवश्यकता है। यदि वे जल्दी नहीं लौटे तो माता कैकेयी को भी संशय बना रहेगा कि कहीं राम वनवास से वापस ना लौट आए। इसलिए उन्होंने सुमंत को वापस अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया व वहाँ जाकर अयोध्या को सँभालने व दशरथ की सेवा करने को कहा।
इसके बाद भगवान श्रीराम वहाँ से गंगा पार करके प्रयाग चले गए किंतु सुमंत वहीं रुके रहे। महाराज दशरथ व अयोध्या की प्रजा के सामने खाली रथ ले जाने का उनमें साहस नहीं था। वे वहीं भगवान राम की प्रतीक्षा करते रहे। कुछ समय बाद जब निषादराज भगवान राम को चित्रकूट छोड़कर वापस श्रृंगवेरपुर नगरी में आए तब उन्होंने मंत्री सुमंत को वहीं बैठे देखा। ऐसे में उन्होंने सुमंत को वापस अयोध्या लौट जाने का भगवान श्रीराम का आदेश याद करवाया।
यह सुनकर आर्य सुमंत भारी मन के साथ खाली रथ लेकर अयोध्या लौट गए। सुमंत को अकेले आया देखकर महाराज दशरथ तो मानो पागल से ही हो गए थे। इसके बाद दशरथ का स्वास्थ्य हर दिन के साथ और बिगड़ता चला गया और अन्तंतः उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह से आर्य सुमंत रामायण (Arya Sumant Ramayan) में कुछ इस तरह की भूमिका में थे कि वे अयोध्या के सबसे शक्तिशाली मंत्री होने के बाद भी बेबस हो गए थे।
आर्य सुमंत से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: आर्य सुमंत कौन थे?
उत्तर: आर्य सुमंत राजा दशरथ के समयकाल में अयोध्या के मुख्य मंत्री थे। साथ ही वे राजा दशरथ के परम मित्र की भूमिका में भी थे।
प्रश्न: राजा दशरथ के मंत्री सुमंत के माता पिता का क्या नाम था?
उत्तर: राजा दशरथ के मंत्री सुमंत के माता पिता का नाम कहीं बताया नहीं गया है। आर्य सुमंत की रामायण में क्या भूमिका थी, केवल इसी का ही उल्लेख है।
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