रामायण में बाली और दुंदुभी का युद्ध व दुंदुभी राक्षस का वध होना

रामायण बाली (Ramayan Bali)

रामायण में कई शक्तिशाली राक्षसों का वर्णन है जिसमें से एक दुंदुभी राक्षस (Dundubhi Rakshas) भी था। दुंदुभी एक शक्तिशाली भैंसा था जिसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। उसका यह घमंड किष्किंधा नरेश बाली ने तोड़ा था। इसे बाली और दुंदुभी का युद्ध (Bali Aur Dundubhi Ka Yudh) भी कहा जाता है।

आज के इस लेख में हम किष्किंधा के राजा बाली और राक्षस दुंदुभी के बीच हुए महासंग्राम के बारे में आपको बताएंगे। इसी युद्ध में बाली ने दुंदुभी राक्षस का वध (Dundubhi Rakshas Ka Vadh) कर दिया था लेकिन बाली को यह बहुत महंगा पड़ा था। आइए जाने इसकी संपूर्ण कथा।

Dundubhi Rakshas | दुंदुभी राक्षस

बाली अत्यंत शक्तिशाली व महापराक्रमी राजा था जिसके सामने कोई भी नहीं टिक सकता था। उसे ब्रह्मा जी से मिले वरदान के कारण शत्रु की आधी शक्ति उसके अंदर आ जाती थी जिस कारण उसे पराजित करना असंभव था। इसी कारण उसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। बाली प्रतिदिन सूर्योदय के समय चारों दिशाओं की परिक्रमा करता था व पर्वतों से गेंद की भाँति खेला करता था।

उसी समय में पराक्रमी दुंदुभी नाम का एक राक्षस था जो भैंसे के रूप में पर्वत जितना विशाल था। उसके अंदर भी अथाह शक्ति थी जिसके दम पर वह दूसरों को चुनौती दिया करता था। एक दिन अपने घमंड में उसने समुंद्र को युद्ध के लिए ललकारा। तब समुंद्र देव ने उससे कहा कि वह सबसे शक्तिशाली नहीं है इसलिए वह जाकर हिमालय पर्वत से लड़े क्योंकि वे उनसे ज्यादा शक्तिशाली हैं।

यह सुनकर Dundubhi Rakshas हिमालय पर्वत के पास गया व पर्वत देव को युद्ध के लिए ललकारा। उसकी ललकार सुनकर हिमालय पर्वत ने कहा कि वह भी इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली नहीं है। इसलिए वह किष्किंधा के राजा बाली से युद्ध करे क्योंकि वही सबसे बलवान है।

Bali Aur Dundubhi Ka Yudh | बाली और दुंदुभी का युद्ध

दुंदुभी अंत में बाली की नगरी किष्किंधा पहुँचा व उसे युद्ध के लिए ललकारा। शत्रु की पुकार सुनकर बाली अत्यंत क्रोध से भर गया व उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। ब्रह्मा के वरदान स्वरुप उस दुंदुभी भैसे की आधी शक्ति बाली के अंदर आ गई। अब बाली के अंदर स्वयं व उस भैसे की आधी शक्ति थी व साथ ही दुंदुभी की आधी शक्ति समाप्त हो जाने से वह कमजोर पड़ गया था।

Dundubhi Rakshas Ka Vadh | दुंदुभी राक्षस का वध

बाली ने उस भैंसे को बहुत मारा व उसे कई जगह से लहूलुहान कर दिया। अंत में बाली ने भैंसे को अपने दोनों हाथों से उठाकर कई कोस दूर फेंक दिया। वह भैंसा हवा में उड़ता हुआ धरती पर दूर जाकर गिरा। बीच में मतंग ऋषि का आश्रम आता था जहाँ उस भैंसे के शरीर से निकल रहा रक्त गिरा।

मतंग ऋषि का बाली को श्राप

अपने आश्रम पर रक्त के गिरने से मतंग ऋषि अत्यधिक क्रोधित हो गए व उन्होंने उसी क्रोध में बाली को श्राप दे दिया। मतंग ऋषि ने बाली को श्राप दिया कि भविष्य में वह उनके आश्रम के आसपास की लगभग एक योजन की भूमि पर नहीं आ सकता। यदि वह इस भूमि में आने का प्रयास करेगा तो उसी समय उसकी मृत्यु हो जाएगी।

ऋषि मतंग के इसी श्राप के कारण बाली धरती पर कहीं भी जा सकता था लेकिन उस आश्रम के आसपास की भूमि व वहाँ स्थित ऋष्यमूक पर्वत के पास नहीं भटक सकता था। इस तरह से Dundubhi Rakshas अपनी मृत्यु के बाद राजा बाली को बहुत भारी पड़ा था क्योंकि उसी पर्वत पर ही उसके छोटे भाई सुग्रीव ने शरण ले रखी थी। इसी पर्वत पर बैठकर ही सुग्रीव ने श्रीराम के साथ मिलकर बाली वध की योजना बनाई थी।

Dundubhi Rakshas से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: दुंदुभी राक्षस कौन था?

उत्तर: रामायण में दुंदुभी राक्षस एक शक्तिशाली भैंसा था जिसका किष्किन्धा के राजा बाली के साथ भीषण युद्ध हुआ था इस युद्ध में बाली ने दुंदुभी का वध कर दिया था

प्रश्न: दुंदुभी राक्षसों का वध किसने किया?

उत्तर: दुंदुभी राक्षसों का वध किष्किन्धा नगरी व वानरों के राजा बाली के द्वारा किया गया था

प्रश्न: रामायण में दुंदुभी कौन है?

उत्तर: रामायण में दुंदुभी एक बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था जिसके अंदर कई हज़ार हाथियों का बल था उसका वध किष्किन्धा नरेश बाली के द्वारा हुआ था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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