आज हम आपके सामने तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas Ka Jivan Parichay) रखने जा रहे हैं। वही गोस्वामी तुलसीदास जी जिन्होंने श्रीराम के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की थी। वाल्मीकि रामायण के बाद कई रामायण लिखी गई लेकिन उसमें से महर्षि तुलसीदास जी की रामकथा सर्वप्रसिद्ध हुई। ऐसे में बहुत से भक्तगण तुलसीदास का जन्म और मृत्यु कब हुई, इसके बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं।
आज हम आपको तुलसीदास का जन्म कब हुआ, तुलसीदास का जन्म कहां हुआ था, तुलसीदास के गुरु का नाम इत्यादि कई प्रश्नों के उत्तर देने वाले हैं। दरअसल तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Tulsidas Ji Ka Jeevan Parichay) इन सभी प्रश्नों का उत्तर है। तो चलिए तुलसीदास जी के जीवन के बारे में जान लेते हैं।
Tulsidas Ka Jivan Parichay | तुलसीदास का जीवन परिचय – जन्म
कलियुग में जन्मे गोस्वामी तुलसीदास जी का सनातन धर्म में अतुलनीय स्थान है जिन्हें त्रेतायुग के महर्षि वाल्मीकि का ही एक रूप माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिंदू धर्म के सर्वप्रसिद्ध व प्रेरणादायक ग्रंथ वाल्मीकि रचित रामायण का अवधि भाषा में विस्तृत अनुवाद किया था जिसे आज हम रामचरितमानस के नाम से जानते हैं।
उनके द्वारा रचित रामचरितमानस रामायण का ही एक विस्तृत रूप है। इसमें उन्होंने हर घटना का विस्तारपूर्वक वर्णन किया व साथ ही कई और घटनाओं को भी जोड़ा। तुलसीदास जी का जन्म भारतवर्ष के ऐसे कालखंड में हुआ था जब हमारा देश मुगल आक्रांताओं के अधीन था और उनके बर्बर अत्याचार सह रहा था।
तुलसीदास जी का भी कई बार मुगल आक्रांता अकबर के साथ सामना हुआ था जिसमें उनकी रक्षा करने स्वयं हनुमान आए थे। आज के इस लेख में महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Tulsidas Biography In Hindi) और उनसे जुड़ी हरेक घटना का संक्षेप में वर्णन किया गया है।
तुलसीदास का जन्म कब हुआ?
तुलसीदास जी भारतीय इतिहास व हिंदू धर्म में प्रमुख स्थान रखते हैं किंतु उनकी जन्मतिथि व जन्म स्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। किसी पर भी पूर्णतया विश्वास नही किया जा सकता है क्योंकि किसी के पास भी इसके ठोस प्रमाण नही पाए जाते हैं। सभी मतों के अनुसार उनका जन्म 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच ही बताया गया है।
सबसे ज्यादा माने जाने वाले मत के अनुसार, तुलसीदास जी का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1532 ईसवी में व हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी को संवत 1589 में हुआ था। अन्य मतों के अनुसार उनका जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सन 1497, 1511 ईसवी भी बताए जाते हैं।
तुलसीदास का जन्म कहाँ हुआ था?
इनके जन्मवर्ष के अनुसार ही जन्मस्थान को लेकर भी स्थिति अस्पष्ट है। कई मान्यताओं के अनुसार इनका जन्म उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर बताया गया है, जैसे कि:
- राजापुर (वर्तमान चित्रकूट के निकट)
- सोरों शूकर क्षेत्र
- गोंडा
- कासगंज इत्यादि।
हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तुलसीदास जी का जन्म स्थान सोरों क्षेत्र को ही निर्धारित किया जा चुका है। इसलिए अब हम गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्मस्थान को सोरों क्षेत्र मान सकते हैं।
वाल्मीकि जी का पुनर्जन्म हैं तुलसीदास जी
कहते हैं कि त्रेतायुग में जब महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण लिखी थी तब वे इसे दिखाने कैलाश पर्वत पर शिवजी के पास जा रहे थे। बीच रास्ते में उन्हें हनुमान जी मिले थे। वहां उन्होंने देखा कि हनुमान जी ने पहले से ही और उनसे उत्कृष्ट हनुमद रामायण को हिमालय के पत्थरों पर अपने नाखूनों से लिख दिया था।
यह देखकर वाल्मीकि जी थोड़े हताश हो गए थे। वाल्मीकि जी का उदासी भरा चेहरा देखकर हनुमान जी ने वह रामायण लिखा पहाड़ उठाकर समुंद्र में डुबो दिया था। हनुमान जी के इस बलिदान से वाल्मीकि जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उसी समय हनुमान जी को वचन दिया कि भविष्य में वे फिर से जन्म लेंगे और उस जन्म में वे रामायण को इससे भी बेहतर और विस्तृत रूप से लिखेंगे जिसमें हनुमान के योगदान को और सही से दर्शाया जाएगा।
कलियुग में जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ और उन्होंने वाल्मीकि लिखित रामायण को रामचरितमानस के रूप में एक विस्तृत रूप दिया और हनुमान चालीसा भी लिखी तो उन्हें ही वाल्मीकि जी का पुनर्जन्म माना गया।
Tulsidas Ji Ka Jeevan Parichay | तुलसीदास जी का जीवन परिचय – पारिवारिक
इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हालाँकि कुछ भिन्न मान्यताओं के अनुसार इनका जन्म अलग कुल में होना भी माना जाता है। चूँकि प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में होना ही माना गया है। इस कारण इन्हें अपना जीवनयापन भिक्षा मांगकर ही करना पड़ता था। बचपन में ही माता-पिता के देहांत हो जाने के कारण इनका जीवन कष्ट में बीता।
जब वे 5 वर्ष के हुए तो उनका पालन-पोषण करने वाली दासी चुनियां का भी देहांत हो गया था। इसके बाद वे पूरी तरह से अनाथ हो चुके थे। ऐसे में तुलसीदास जी के पिता का नाम क्या था, उनकी माता कौन थी, तुलसीदास का विवाह कब हुआ और किस से हुआ था, इसके बारे में जान लेना उचित रहेगा। दरअसल तुलसीदास जी के शुरूआती जीवन से ही उनका संघर्ष शुरू हो गया था। आइए उसके बारे में जान लेते हैं।
तुलसीदास के पिता का नाम
इनके माता-पिता का उल्लेख भी अलग-अलग काव्यों के आधार पर मिलता है। तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे व माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास जी के जन्म के कुछ दिनों में ही उनकी माँ का देहांत हो गया था। उनके पिता ने तुलसीदास जी को चुनियां नाम की एक दासी को सौंप दिया था व स्वयं वैराग्य ले लिया था। इसलिए उनका लालन-पालन चुनियां के द्वारा ही किया गया था।
माना जाता है कि तुलसीदास जी अपनी माँ के गर्भ में 12 महीनों तक रहे थे। जन्म के समय वे एक दम हष्ट-पुष्ट शिशु थे जिसके सभी दांत भी निकल आए थे। एक और प्रबल मान्यता के अनुसार, जन्म के समय तुलसीदास जी रोए नही थे व उनके मुंह से पहला शब्द राम निकला था। इसके बाद तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला पड़ गया था।
तुलसीदास के गुरु का नाम
इसके बाद उन्हें वैष्णव संप्रदाय के गुरु नरहरिदास ने अपने गुरुकुल में स्थान दिया व उनका नाम तुलसीदास रखा। उन्होंने ही तुलसीदास जी को शिक्षा देना प्रारंभ किया। शुरुआत में ही इनकी राम भक्ति देखकर गुरु ने इन्हें रामायण का ज्ञान देना शुरू कर दिया। तुलसीदास जी को भगवान राम से अत्यधिक प्रेम था, इसलिए उन्होंने संपूर्ण रामायण को कंठस्थ कर लिया व उसका गूढ़ जानने लगे।
अपने गुरु से मिले ज्ञान को वे अपने काव्यों व गीतों के माध्यम से लोगों को सुनाने लगे। लोग भी उनके द्वारा लिखे गए काव्य ध्यान से सुनते थे। इसी प्रकार एक बार उनका मिलन रत्नावली नामक स्त्री से हुआ जिसके बाद उनका उससे विवाह हो गया।
तुलसीदास की पत्नी का नाम
तुलसीदास का विवाह रत्नावली नामक स्त्री से हुआ था। रत्नावली दीनबंधु पाठक की पुत्री थी। तुलसीदास जी को रत्नावली से तारक नाम का पुत्र हुआ। हालाँकि तारक का अपनी यौवन अवस्था में ही देहांत हो गया था। अपने एकलौते पुत्र के देहांत के बाद तुलसीदास जी और रत्नावली बुरी तरह टूट चुके थे।
इसके कुछ समय बाद रत्नावली अपने मायके रहने चली गई थी। दूसरी ओर, तुलसीदास जी एकदम अकेले पड़ गए थे। उन्हें रह-रह कर अपने पुत्र और पत्नी की याद सता रही थी। इसी घटना के बाद ही तुलसीदास जी के जीवन में अहम मोड़ आया। दरअसल अपनी पत्नी की याद में तुलसीदास जी ने कुछ ऐसा कर दिया जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। आइए उस घटना के बारे में जान लेते हैं।
तुलसीदास की प्रेम कहानी
तुलसीदास जी अपनी पत्नी रत्नावली को बहुत प्रेम करते थे। एक दिन जब उनकी पत्नी मायके गई हुई थी तब तुलसीदास जी यमुना नदी को पार करके अपने ससुराल पहुँच गए थे। यह देखकर उनकी पत्नी बहुत नाराज़ हो गई व उन्होंने तुलसीदास जी को बहुत डांट लगाई। उनकी पत्नी ने एक श्लोक के माध्यम से तुलसीदास जी को उपदेश दिया कि “इस हाड़ मांस से बने शरीर से आप जितना प्रेम करते हैं, उतना ही प्रेम यदि आप स्वयं भगवान राम को कर लेंगे तो भव सागर को पार कर जाएंगे”।
अपनी पत्नी के द्वारा कहे गए इस कथन को सुनकर तुलसीदास जी के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आया। उन्होंने अपनी पत्नी का त्याग कर दिया व वैराग्य जीवन अपना कर साधु बन गए। इसके बाद उन्होंने सभी वेदों, उपनिषदों, संस्कृत भाषा, साहित्य का गहन अध्ययन शुरू कर दिया।
तुलसीदास जी का सबसे ज्यादा लगाव भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम की ओर था। इसलिए उन्होंने वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण का मुख्य रूप से विश्लेषण किया। इसके साथ ही वे हमेशा राम भक्ति में डूबे रहते और राम-राम का नाम लेते रहते। इस क्रम में उन्होंने एक दिन रामायण का अवधि भाषा में विस्तृत रूप से अनुवाद कर दिया।
श्रीराम के जीवन पर आधारित यह पुस्तक रामचरितमानस के रूप में पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध हो गई। स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी गंगा किनारे रामचरितमानस का पाठ रामभक्तों को प्रतिदिन सुनाया करते थे।
Tulsidas Biography In Hindi | तुलसीनाथ जीवन परिचय – भक्ति
जिस समय चक्र में तुलसीदास जी ने श्रीराम के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की थी, उस समय भारतभूमि पर मुगलों के भीषण अत्याचार हो रहे थे। मुस्लिम आक्रांता अकबर ने चारों ओर हिंदुओं का नरसंहार किया हुआ था, मंदिर तोड़े जा रहे थे और धर्म परिवर्तन का काम जोरों से हो रहा था। ऐसे में तुलसीदास जी के जन्म से ही शुरू हुआ संघर्ष अभी भी जारी था।
हालाँकि अब उनकी सहायता करने स्वयं भक्त हनुमान जी आ चुके थे। वो कहते हैं ना कि यदि आप श्रीराम का काम कर रहे हो और उसमें कोई दुविधा आ जाए तो भक्त हनुमान दौड़े दौड़े चले आते हैं। तो इन्हीं भक्त हनुमान ने तुलसीदास जी का जीवन सार्थक कर दिया और श्रीराम से मिलाकर उनका उद्धार भी करवा दिया। आइए इसके बारे में भी जान लेते हैं।
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तुलसीदास जी का दुष्ट अकबर से संघर्ष
उस समय भारतवर्ष पर मुगलों का आधिपत्य था व हिंदुओं पर बर्बर अत्याचार हो रहे थे। मुगल आक्रांता अकबर के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों में एक तुलसीदास जी भी थे। जब अकबर ने गोस्वामी जी की प्रसिद्धि को दूर-दूर फैलते हुए पाया तो उसने अपनी सेना को तुलसीदास जी को बंदी बनाने का आदेश दे दिया।
अकबर के आदेश पर तुलसीदास जी को पकड़कर उसके दरबार में लाया गया। अकबर ने उनके सामने एक मृत शरीर को रखा। इसके बाद उन्होंने तुलसीदास जी को अपनी शक्ति के द्वारा उसमे जीवन डालने का कहकर उनका उपहास किया। तुलसीदास जी ने अकबर के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया और कहा कि “यह सब मिथ्या है तथा वे केवल प्रभु राम को ही अपना भगवान व राजा मानते हैं”।
तुलसीदास जी की रामभक्ति से कुटील अकबर इतना ज्यादा क्रोधित हो गया कि उसने भरी सभा में उनका बहुत अपमान किया। इसके साथ ही उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि तुलसीदास जी को फतेहपुर सिकरी के कारावास में बंदी बना कर डाल दिया जाए। इसके बाद अकबर के सैनिक तुलसीदास जी को वहां से ले गए और फतेहपुर सिकरी के कारावास में बंद कर दिया।
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तुलसीदास हनुमान जी की कहानी
जब तुलसीदास जी फतेहपुर सिकरी के कारावास में बंद थे तब भी उन्होंने राम व हनुमान भक्ति नही छोड़ी थी। यहीं रहकर उन्होंने हनुमान चालीसा की रचना कर दी थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लिखी हनुमान चालीसा का निरंतर 40 दिनों तक पाठ किया था। अंतिम दिन आश्चर्यजनक रूप से फतेहपुर सिकरी को असंख्य बंदरों की भीड़ ने चारों ओर से घेर लिया।
बंदर नगर के हर घर में घुस गए व सभी सामान को इधर-उधर फेंकने लगे। उन्होंने कारावास पर भी भीषण आक्रमण कर दिया। यह देखकर अकबर की सेना में आंतक फैल गया और उन्होंने तुरंत तुलसीदास जी को स्वतंत्र कर दिया। बंदरों के आक्रमण से दुष्ट अकबर की सेना में इतना ज्यादा आंतक फैल गया था कि वे उस नगर को हमेशा के लिए छोड़कर चले गए थे।
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तुलसीदास व हनुमान मिलन
इसके बाद तुलसीदास जी वाराणसी जाकर रहने लगे व वहां के घाट पर प्रतिदिन रामचरितमानस की कथा का पाठ करने लगे। दिनभर लोगों की भीड़ उनका पाठ सुनने आती किंतु एक वृद्ध व कुष्ठ रोगी प्रतिदिन सबसे पहले आता व अंत में जाता। कुछ दिन तुलसीदास जी ने उस पर इतना ध्यान नही दिया किंतु अंत में वे उस वृद्ध व्यक्ति को पहचान गए।
एक दिन जब सब भक्त उनका पाठ सुनकर चले गए थे तब भी वह वृद्ध व्यक्ति वहां बैठा था। तुलसीदास जी उनके निकट गए व चरणों में गिर पड़े। उन्होंने उस व्यक्ति से अपने वास्तविक रूप में आने को कहा। वह मनुष्य कोई और नही अपितु स्वयं हनुमान जी थे। यह देखकर तुलसीदास जी ने पहली बार हनुमान जी के सामने हनुमान चालीसा का पाठ किया।
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तुलसीदास व राम मिलन
जब तुलसीदास जी हनुमान से मिले थे तब उन्होंने उनके सामने श्रीराम से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। हनुमान ने उन्हें इसके लिए चित्रकूट जाने को कहा। इसके बाद तुलसीदास जी चित्रकूट के रामघाट जाकर रहने लगे। एक दिन वे कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा कर रहे थे तभी उन्हें दो मनुष्य (एक सांवला और एक गौर वर्ण का) घोड़े पर जाते हुए दिखे। तुलसीदास जी ने उन्हें अनदेखा कर दिया।
बाद में हनुमान जी ने उन्हें बताया कि वे दोनों श्रीराम और लक्ष्मण थे। यह सुनकर तुलसीदास जी को बहुत दुःख हुआ। यह देखकर हनुमान ने उन्हें अगली सुबह फिर से श्रीराम के दर्शन होने को कहा। अगली सुबह तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे। तभी श्रीराम उनके पास एक बच्चे के रूप में आए किंतु इस बार तुलसीदास जी ने उन्हें पहचान लिया था।
वह बच्चा उनसे चंदन का लेप मांग रहा था लेकिन तुलसीदास जी उन्हें देखकर जड़ से हो गए थे। यह देखकर श्रीराम के रूप उस बच्चे ने अपने हाथों से उस चंदन को लिया। फिर उस चंदन को उसने अपने माथे पर और फिर तुलसीदास जी के माथे पर लगाया और वहां से चले गए।
तुलसीदास की मृत्यु कब हुई?
इसके बाद तुलसीदास जी पुनः वाराणसी आ गए। यह उनके जीवन के अंतिम दिन थे। मृत्यु से पहले उन्होंने उसी जगह पर एक हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया जहाँ उनकी हनुमान से भेंट हुई थी। उस मंदिर को आज वहां संकटमोचन हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है जो देश-विदेश में अत्यधिक प्रसिद्ध है।
मंदिर निर्माण के पश्चात उन्होंने उसी तुलसी घाट पर समाधि ले ली और अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु के वर्ष को लेकर सभी एकमत हैं जो सन 1623 ईसवी (संवत 1680) मानी गई है। आज उस घाट को तुलसीघाट के नाम से भी जाना जाता है। इस घाट पर हर वर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु हनुमान जी व तुलसीदास जी से आशीर्वाद लेने आते हैं।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने जीवनकाल में हिंदू धर्म के दो सबसे मुख्य ग्रंथों की रचना की जो हैं रामचरितमानस व हनुमान चालीसा। इसके अलावा भी तुलसीदास जी के द्वारा कई रचनाएँ की गई, जो इस प्रकार हैं:
- दोहावली
- विनयपत्रिका
- कवितावली
- वैराग्य संदीपनी
- जानकी मंगल
- पार्वती मंगल
- साहित्य रत्न या रत्न रामायण
- कृष्ण गीतावली या कृष्णावली
- रामलला नहछू
- बरवै रामायण
- रामाज्ञा प्रश्न
- संकटमोचन हनुमानाष्टक
- हनुमान बाहुक
- तुलसी सतसई इत्यादि।
इस तरह से तुलसीदास जी ने एक नहीं बल्कि कई रचनाएँ लिखी हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस व हनुमान चालीसा है। अपनी इन्हीं रचनाओं के कारण इतिहास में तुलसीदास जी का नाम सदा के लिए अमर हो गया।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas Ka Jivan Parichay) तो जान ही लिया है, बल्कि साथ ही उनके जीवन से जुड़े रोचक प्रसंगों का ज्ञान भी ले लिया है।
तुलसीदास जी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: तुलसीदास का जीवन परिचय कैसे लिखा जाता है?
उत्तर: तुलसीदास का जीवन परिचय हमने इस लेख के माध्यम से दिया है। यहाँ आपको तुलसीनाथ जी के जन्म से लेकर मृत्यु तक का संपूर्ण जीवन परिचय मिल जाएगा।
प्रश्न: तुलसीदास का नाम तुलसीदास क्यों पड़ा?
उत्तर: तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था। जब वे बड़े हुए तो गुरु नरहरिदास के गुरुकुल में पढ़ने लगे। वहां उनके गुरु ने ही उन्हें तुलसीदास नाम दिया था।
प्रश्न: तुलसीदास कितने पढ़े लिखे थे?
उत्तर: तुलसीदास जी ने गुरुकुल में रहकर सभी वेदों और शास्त्रों का अध्ययन किया था। इसी कारण उन्हें गुरु की उपाधि मिली थी।
प्रश्न: तुलसीदास की भाषा शैली क्या है?
उत्तर: तुलसीदास की भाषा शैली अवधि है। यह उत्तर प्रदेश राज्य की स्थानीय बोली है। उत्तर प्रदेश में ही जन्म होने के कारण तुलसीदास जी की भी मातृभाषा अवधि ही थी।
प्रश्न: तुलसीदास ने रामायण कहां लिखी थी?
उत्तर: तुलसीदास जी ने रामायण की रचना वाराणसी के गंगा किनारे बैठकर की थी। आज वहीं पर तुलसीघाट बनाया गया है जहाँ हर वर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
प्रश्न: तुलसीदास जी कितने वर्ष जीवित रहे?
उत्तर: तुलसीदास जी लगभग 111 वर्षों तक जीवित रहे थे। उनका जन्म 1511 ईसवी में तो देहांत 1623 ईसवी में हुआ था।
प्रश्न: तुलसीदास जी के गुरु कौन माने जाते हैं?
उत्तर: तुलसीदास जी के गुरु नरहरिदास जी थे। उन्होंने नरहरिदास जी के गुरुकुल में रहकर ही सभी वेदों और शास्त्रों का अध्ययन किया था।
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आपके द्वारा भारत के महान कवि तुलसीदास के बारे में जो जानकारी दी है यह सभी जानकारी हमारे लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है तुलसीदास जी ने ऐसी बड़ी-बड़ी रचनाएं करी है उसके बारे में जो आपने इस लेख में बताएं यह बहुत ही ज्यादा अच्छा लगा है
बहुत ही सटीक व सही जानकारी….. महान संत श्री तुलसी दास जी के बारे में इतनी महत्वपूर्ण व गुढ़ जानकारी पा कर हम तो धन्य हो गये… आप का बहुत बहुत धन्यवाद.
आम को इतनी जानकारी के लिए आपका हिर्दय से धन्यवाद जय श्री राम
Very Informative about our great SAINT Tulsidas ji