हिरण्यकश्यप का वरदान (Hiranyakashyap Ka Vardan) बहुत ही विचित्र था। हिरण्यकश्यप जिसे हिरण्यकशिपू या हिरण्यकश्यपु के नाम से भी जाना जाता है, महर्षि कश्यप तथा दिति का बड़ा पुत्र था। उसका जन्म दैत्य योनी में हुआ था तथा उसका छोटा भाई हिरण्याक्ष था।
उसके छोटे भाई हिरण्याक्ष का भगवान विष्णु ने वराहावतार में वध कर दिया था जिससे वह अत्यंत क्रोधित हो गया था। इसी के फलस्वरुप उसने भगवान ब्रह्मा की कड़ी तपस्या की तथा उनसे विचित्र वरदान (Hiranyakashipu Vardan) माँगा। आज हम आपको उसी घटना तथा वरदान के बारे में विस्तार से बताएँगे।
हिरण्यकश्यप का वरदान (Hiranyakashyap Ka Vardan)
जब हिरण्यकश्यप के छोटे भाई हिरण्याक्ष का भगवान विष्णु के वराह अवतार ने वध कर दिया तथा पृथ्वी को पुनः जल से ऊपर ले आये तो हिरण्यकश्यप प्रतिशोध की अग्नि में जलने लगा। वह विष्णु से इसका बदला लेना चाहता था तथा इसके लिए उसका शक्ति अर्जित करना अति-आवश्यक था। उसने देवों के परम गुरु भगवान ब्रह्मा की तपस्या करनी शुरू कर दी।
भगवान ब्रह्मा की तपस्या करने में उसने कई वर्ष बिता दिए तथा धूप, सर्दी, गर्मी, वर्षा हर ऋतु में वह तप करता रहा। तपस्या करते-करते हिरण्यकश्यप ने देवताओं के सौ वर्ष व्यतीत कर दिए। इस दौरान उसका शरीर अत्यंत निर्बल तथा बूढा हो गया। जगह-जगह से उसके शरीर को कीट, पतंगों ने खा लिया तथा केवल हड्डियों के ढांचे में प्राण शेष रहे।
हिरण्यकश्यप के तप की अग्नि देव लोक तक पहुँच गयी तथा समस्त देवताओं में हाहाकार मच गया। वे सभी भगवान ब्रह्मा से सहायता मांगने पहुंचे तब स्वयं भगवान ब्रह्मा हिरण्यकश्यप के तप की अग्नि को शांत करने पहुंचे तथा उसे दर्शन दिए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को पहले के जैसा बलवान तथा यौवन शरीर प्रदान किया तथा वरदान मांगने को कहा।
हिरण्यकश्यप को क्या वरदान मिला था?
हिरण्यकश्यप को पता था कि जिसनें भी मृत्यु लोक में जन्म लिया है उसे अमर होने का वरदान नही मिल सकता है। इसलिये उसने एक चाल सोची तथा भगवान ब्रह्मा से ऐसा वर माँगा जिससे वह अविजयी, अविनाशी तथा सर्वशक्तिमान हो जाता। हिरण्यकश्यप के वरदान के अनुसार:
“भगवान ब्रह्मा के बनाये हुए किसी भी प्राणी से उसकी मृत्यु न हो सके अर्थात ना मनुष्य से तथा ना ही पशु से, ना दैत्य से तथा ना ही देवताओं से, ना ही सर्प से तथा ना ही गन्धर्व से उसकी मृत्यु हो सके। इसके साथ ही वह ना ही अपने महल के भीतर मर सकता है तथा ना ही अपने महल के बाहर, ना उसे कोई दिन में मार सकता है तथा ना ही रात्रि में, ना ही अस्त्र से उसकी मृत्यु संभव हो सके तथा ना ही शस्त्र से, ना ही पृथ्वी पर उसकी मृत्यु हो तथा ना ही आकाश में।
साथ ही उसने यह वरदान माँगा कि ब्रह्मा के द्वारा बनाया गया कोई भी प्राणी उसकी शक्ति का सामना न कर सके व वह सभी का राजा बने, उसने स्वयं को इंद्र आदि देवताओं से ऊपर बनाने तथा भगवान ब्रह्मा के समान शक्तिशाली होने का वरदान माँगा था।”
हिरण्यकश्यप वरदान (Hiranyakashipu Vardan)
चूँकि यह वरदान अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली था लेकिन इसमें अमरत्व नही था। साथ ही हिरण्यकश्यप ने अत्यधिक कठिन तपस्या की थी जैसी आज तक किसी ने नही की थी। इसलिये भगवान ब्रह्मा को उसे यह वरदान देना पड़ा। इस वरदान को पाकर हिरण्यकश्यप का सामना त्रिलोक में कोई भी नही कर सकता था। उसके अंदर अपने शरीर तथा मन को बस में करने, योग की संपूर्ण शक्ति तथा युद्ध में कभी ना हारने की दिव्य शक्तियां आ चुकी थी।
उनका अंत केवल एक ही कर सकता था और वे थे स्वयं नारायण क्योंकि नारायण ही ऐसे प्राणी थे जिनकी रचना भगवान ब्रह्मा ने नही की थी। अपितु नारायण की नाभि से निकले कमल से ही भगवान ब्रह्मा की रचना हुई थी। इसलिये अंत में हिरण्यकश्यप दैत्य का अंत भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर किया था।
हिरण्यकश्यप के वरदान से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से क्या वरदान मांगा?
उत्तर: हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से विचित्र वरदान माँगा था जिसमें उसकी मृत्यु से संबंधित कई तरह की माँग की गई थी। यह एक तरह से अमरत्व प्रदान करने वाला ही वरदान था जिसके बारे में हमने इस लेख में विस्तार से बताया है।
प्रश्न: हिरण्यकश्यप को कौन सा वरदान प्राप्त था?
उत्तर: हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु ब्रह्मा जी के द्वारा बनाये गए किसी भी प्राणी से नहीं हो सकती है। ना ही वह पृथ्वी पर और ना ही आकाश में मारा जा सकता है। साथ ही अस्त्र-शस्त्र से भी उसकी मृत्यु नहीं होगी।
प्रश्न: हिरण्यकश्यप की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर: हिरण्यकश्यप की मृत्यु का कारण उसका अधर्म था। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद के विष्णु भक्त होने पर असहनीय अत्याचार किये थे। साथ ही वह स्वयं को भगवान विष्णु से बड़ा मानने लग गया था और तीनों लोकों में धर्म का नाश करने पर उतारू था।
प्रश्न: भगवान शिव ने हिरण्यकश्यप को क्या वरदान दिया था?
उत्तर: भगवान शिव ने हिरण्यकश्यप को कोई वरदान नहीं दिया था। उसे वरदान देने वाले भगवान ब्रह्मा था। इस वरदान की काट भागन विष्णु ने नरसिंह अवतार में की थी।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: