ब्रह्मचारिणी माता स्तोत्र (Brahmacharini Mata Stotra)

Brahmacharini Devi Stotra

ब्रह्मचारिणी माता स्तोत्र (Brahmacharini Mata Stotra) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

हम हर वर्ष नवरात्र का पावन त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। नवरात्र नौ दिवस का पर्व है जिसमें हर दिन मातारानी के भिन्न रूप की पूजा की जाती है जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। इसमें मातारानी का हरेक रूप अपने भिन्न गुणों व शक्तियों के कारण पूजनीय है। ब्रह्मचारिणी देवी नवदुर्गा का द्वितीय रूप है जो तपस्या का परिचायक है। ऐसे में आज हम आपके साथ ब्रह्मचारिणी माता स्तोत्र का पाठ (Brahmacharini Mata Stotra) करने जा रहे हैं।

इस लेख में आपको ब्रह्मचारिणी स्तोत्र इन हिंदी (Brahmacharini Stotra In Hindi) में भी पढ़ने को मिलेगा। इससे आपको ब्रह्मचारिणी स्तोत्रं का भावार्थ भी समझने में सहायता होगी। अंत में हम आपके साथ माँ ब्रह्मचारिणी स्तोत्र के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं ब्रह्मचारिणी देवी स्तोत्र (Brahmacharini Devi Stotra)।

ब्रह्मचारिणी देवी स्तोत्र (Brahmacharini Devi Stotra)

॥ ध्यान ॥

वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥

पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥

॥ स्तोत्र ॥

तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

ब्रह्मचारिणी स्तोत्र इन हिंदी (Brahmacharini Stotra In Hindi)

॥ ध्यान ॥

वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, अपने मस्तक पर अर्ध चंद्र धारण करने वाली तथा हाथों में जपमाला व कमंडल लिए हुए ब्रह्मचारिणी माता, की वंदना करता हूँ।

गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥

ब्रह्मचारिणी माता का रंग गौरा है और वे स्वाधिष्ठान चक्र को मजबूत करने का कार्य करती हैं। वे नवदुर्गा का द्वितीय रूप हैं जिनकी तीन आँखें हैं। वे स्वच्छ व उजले हुए वस्त्रों को धारण करती हैं, वे साक्षात ब्रह्म रूप हैं और वे कमल पुष्पों से अपना अलंकार करती हैं अर्थात कमल पुष्प ही उनके आभूषण हैं।

पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥

मैं ब्रह्मचारिणी माता के चरणों की वंदना करता हूँ और वे हम सभी को आनंद प्रदान करती हैं। उनका रूप बहुत ही सुन्दर व आनंद प्रदान करने वाला है। मैं उनके चरणों का जल अमृत समझ कर पीता हूँ। उनका मुख कमनीय व सौंदर्य से युक्त है जिस पर स्नेह के भाव हैं।

॥ स्तोत्र ॥

तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

ब्रह्मचारिणी माता हमेशा तपस्या में लीन रहने वाली देवी हैं और वही उनका आचरण भी है। वे हमारे हितों की रक्षा करती हैं और दुखों का निवारण कर देती हैं। वे ही साक्षात ब्रह्म का रूप हैं जिन्होंने ब्रह्मचारिणी के रूप में हमें दर्शन दिए हैं। मैं ब्रह्मचारिणी माता को प्रणाम करता हूँ।

नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

वे हमारे शरीर के नौ चक्रों का भेद कर देती हैं अर्थात नौ चक्रों को जागृत करने का रहस्य उन्हीं के पास है। वे ही हमें इस विश्व में यश व वैभव प्रदान करने का कार्य करती हैं। हमें धन व सुख प्रदान करने वाली ब्रह्मचारिणी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।

शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

ब्रह्मचारिणी माता शंकर भगवान को बहुत प्रिय हैं और वे ही हमें सभी तरह की भक्ति व मुक्ति प्रदान करती हैं। ब्रह्मचारिणी माता की कृपा से इस सृष्टि में शांति व्याप्त होती है। मैं उन ब्रह्मचारिणी माँ को प्रणाम करता हूँ।

ब्रह्मचारिणी माता स्तोत्र (Brahmacharini Mata Stotra) – महत्व

माँ ब्रह्मचारिणी का महत्व बताने और उनकी आराधना करने के लिए ही ब्रह्मचारिणी स्तोत्र की रचना की गयी है। ब्रह्मचारिणी शब्द दो शब्दों के मेल से बना होता है जिसमें ब्रह्म का अर्थ ब्रह्माण्ड के तत्वों से है जबकि चारिणी का अर्थ आचरण या व्यवहार करने से होता है। ऐसे में जो देवी ब्रह्माण्ड के तत्वों में लीन रहती हैं या उनका आचरण करती हैं उसे ब्रह्मचारिणी कहा गया है। यहाँ ब्रह्म तत्व में लीन रहने का अर्थ तपस्या या वैराग्य से है।

ऐसे में ब्रह्मचारिणी माता स्तोत्र के माध्यम से माता ब्रह्मचारिणी के गुणों, शक्तियों तथा कर्मों के ऊपर प्रकाश डाला गया है। नवदुर्गा के इस द्वितीय रूप को क्यों प्रकट किया गया, उनकी उत्पत्ति के पीछे क्या उद्देश्य निहित थे तथा उससे मानव जाति को क्या संदेश मिलता है, इन्हीं सभी बातों को उजागर करने और ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना करने के लिए ही ब्रह्मचारिणी देवी स्तोत्र लिखा गया है। यही माता ब्रह्मचारिणी स्तोत्र का महत्व होता है।

माँ ब्रह्मचारिणी स्तोत्र (Maa Brahmacharini Stotra) – लाभ

अब आपने ऊपर यह तो जान ही लिया है कि ब्रह्मचारिणी देवी को तपस्या में लीन रहने वाली देवी माना जाता है जो वैराग्य का संदेश देती हैं। इस तरह से यदि हम मां ब्रह्मचारिणी स्तोत्र का पाठ करते हैं और उनमें अपना ध्यान लगाते हैं तो वे हमारे मन को नियंत्रण में करने का मार्ग सुझाती हैं। यदि आपका स्वयं पर विश्वास अर्थात आत्म-विश्वास कमजोर है तो वह ब्रह्मचारिणी जी की तपस्या से मजबूत बनता है।

ब्रह्मचारिणी माता की कृपा से हमारा स्वाधिष्ठान चक्र मजबूत बनता है। इसके मजबूत बनने से हमारा स्वयं पर विश्वास दृढ होता है, कार्यों को तेज गति से करने की शक्ति आती है, सांसारिक वस्तुओं से आसक्ति कम होती है तथा लोगों से बात करने का साहस आता है। इस तरह से जो व्यक्ति प्रतिदिन ब्रह्मचारिणी स्तोत्रं का पाठ करेगा, उसे जल्द ही यह सभी लाभ देखने को मिलेंगे।

ब्रह्मचारिणी स्तोत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: मां ब्रह्मचारिणी को क्या पसंद है?

उत्तर: मां ब्रह्मचारिणी को सबसे ज्यादा शक्कर पसंद आती है। ऐसे में भक्तगण माता ब्रह्मचारिणी की पूजा में मुख्य रूप से शक्कर का ही भोग लगाते हैं।

प्रश्न: मां ब्रह्मचारिणी का भोग क्या है?

उत्तर: ब्रह्मचारिणी माता को शक्कर बहुत प्रिय होती है। ऐसे में यदि आप उन्हें शक्कर का भोग लगाते हैं और सच्चे मन से उनकी आराधना करते हैं तो वे जल्दी प्रसन्न होती हैं।

प्रश्न: ब्रह्मचारिणी किसका प्रतीक है?

उत्तर: ब्रह्मचारिणी माता का नाम दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ब्रह्मा का अर्थ ब्रह्म तत्व से है जबकि चारिणी का अर्थ आचरण या व्यवहार से है। इस तरह तपस्या में लीन रहने या वैराग्य को ही ब्रह्मचारिणी कहा गया है।

प्रश्न: ब्रह्मचारिणी नाम क्यों पड़ा?

उत्तर: ब्रह्मचारिणी माता हमेशा ब्रह्म तत्व में लीन रहने वाली, तप करने वाली तथा वैराग्य भाव रखने वाली हैं। इस कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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