आज हम बात करने जा रहे हैं महारानी दुर्धरा की मृत्यु कैसे हुई (Durdhara Ki Mrityu Kaise Hui)? चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी तो आप सभी ने सुनी ही होगी किंतु क्या कभी आपने चंद्रगुप्त मौर्य की धर्मपत्नी महारानी दुर्धरा के बारे में जाना है!! रानी दुर्धरा ने ही भारत के अगले महाराज बिंदुसार को जन्म दिया था और फिर बिंदुसार से महान शासक अशोक का जन्म हुआ था।
आज हम महारानी दुर्धरा की आश्चर्यजनक मृत्यु की बात करने जा रहे हैं। वैसे तो चंद्रगुप्त मौर्य ने तीन विवाह किए थे जिनके नाम दुर्धरा, हेलेना व चंद्र नंदिनी है। उनमें से चंद्रगुप्त की मुख्य व सबसे पहली पत्नी दुर्धरा (Chandragupta Maurya Wife In Hindi) ही थी लेकिन इतिहास में उनका नाम बहुत कम देखने को मिलता है। वह इसलिए क्योंकि चंद्रगुप्त की प्रथम संतान को जन्म देते समय उनके देहांत हो गया था। यही संतान आगे चलकर भारत के अगले महाराज बने थे जिनका नाम बिन्दुसार था।
अब दुर्धरा की मृत्यु कोई सामान्य मृत्यु नहीं थी बल्कि उसे आचार्य चाणक्य व चंद्रगुप्त मौर्य ने ही विष देकर मार दिया था। वह भी उस समय जब वह कुछ ही दिनों में चंद्रगुप्त मौर्य की संतान को जन्म देने वाली थी। आखिरकार दुर्धरा को विष देने का क्या कारण था और गर्भवती होने के बाद भी उसका पुत्र कैसे बच निकला!! इसके पीछे बहुत ही रोचक घटना छिपी हुई है, जिसके बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं।
दुर्धरा की मृत्यु कैसे हुई?
आचार्य चाणक्य ने भारत के सबसे बड़े और शक्तिशाली राज्य के महाराज धनानंद को उनके सिहांसन से हटाने की कठोर प्रतिज्ञा ली थी व एक योग्य शासक को भारत के सिंहासन पर बिठाने का उत्तरदायित्व भी। इसके लिए आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य का चुनाव किया था और उसका बचपन से ही प्रशिक्षण चालू कर दिया था।
आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त की शुरुआत से ही कठिन तैयारी करवानी शुरू कर दी थी क्योंकि लक्ष्य जो कठिन था। इसी के साथ आचार्य चाणक्य कूटनीति व राजनीति के बहुत बड़े ज्ञाता भी थे व भविष्य के जोखिमों को देखते हुए उन्होंने कई कदम समयपूर्व ही उठाने शुरू कर दिए थे। इसी में था चन्द्रगुप्त मौर्य को बचपन से ही छोटी-छोटी मात्रा में विष देते रहना।
आचार्य चाणक्य चन्द्रगुप्त को बिना बताए शुरू से ही उसको भोजन में कम मात्रा में विष मिलाकर दिया करते थे ताकि भविष्य में होने वाले किसी भी संभावित खतरे से निपटा जा सके।
जब चंद्रगुप्त मौर्य को सांप ने डस लिया था
एक बार जब चन्द्रगुप्त मौर्य बड़े होकर आचार्य चाणक्य के नेतृत्व में धनानंद के विरुद्ध अभियान चला रहे थे तो एक समय उन्हें धनानंद के धन और स्वर्ण मुद्राओं के खजाने को लूटना था। तब एक तिजोरी को खोलते समय उसमे रखे एक अति विषैले सर्प ने उन्हें काट लिया था जिससे वे कुछ समय के लिए अचेत हो गए थे। वह सर्प अति विषैला था जिस कारण उनकी उसी समय मृत्यु हो जाती किंतु यह केवल आचार्य चाणक्य की ही दूरदर्शी सोच का परिणाम था कि वे बच गए।
कुछ समय तक सर्प के विष से अचेत होने के बाद वे फिर से होश में आ गए और पूरी तरह स्वस्थ भी थे। यह देखकर वहां खड़े सभी लोग आश्चर्यचकित थे केवल आचार्य चाणक्य को छोड़कर। फिर भी उन्होंने उस भेद को उस समय भी किसी के सामने उजागर नही किया।
चंद्रगुप्त मौर्य व दुर्धरा की कहानी
इसी तरह आचार्य चाणक्य धीरे-धीरे धनानंद को कमजोर करते चले गए और चंद्रगुप्त को नीतिगत रूप से आगे बढ़ाते गए। एक समय बाद आचार्य चाणक्य की रणनीति काम आई और धनानंद को शीर्ष सत्ता से अपदस्थ कर दिया गया। इसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य भारत के अगले महाराज बने।
महाराज बनने के बाद चंद्रगुप्त का विवाह दुर्धरा नाम की स्त्री से हुआ। भारत का सिंहासन मिलने के बाद भी आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को उनके भोजन में विष देना जारी रखा। उन्होंने यह बात अभी तक भी किसी को नहीं बताई थी। स्वयं चंद्रगुप्त मौर्य भी इस बात को नहीं जानते थे कि उनके भोजन में विष डाला जाता है।
आचार्य चाणक्य ने समय के साथ-साथ चन्द्रगुप्त मौर्य के भोजन में विष की मात्रा भी धीरे-धीरे बढ़ा दी थी। यदि यह विष किसी और व्यक्ति को सीधे दिया जाता तो उसी समय उसकी मृत्यु हो जाती। हालाँकि चंद्रगुप्त मौर्य शुरुआत से विष ले रहे थे, तो अब अधिक मात्रा का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। हालाँकि यही उनकी पत्नी दुर्धरा की मृत्यु (Durdhara Ki Mrityu Kaise Hui) की मुख्य वजह बन गया।
दुर्धरा ने अनजाने में पी लिया विष
जब रानी दुर्धरा 9 माह की गर्भवती थी और उनके प्रसव में केवल सात दिन का समय ही शेष बचा था तब चन्द्रगुप्त ने अज्ञातवश अपना भोजन उनके साथ सांझा कर लिया। हालाँकि चन्द्रगुप्त मौर्य इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके भोजन में विष है। इसका परिणाम यह हुआ कि विष के प्रभाव से चन्द्रगुप्त को तो कुछ नही हुआ क्योंकि वे तो बचपन से इसे पीते आ रहे थे लेकिन रानी दुर्धरा मरणासन्न अवस्था में पहुँच गई।
जब रानी दुर्धरा अपनी अंतिम साँसे ले रही थी तब सब ओर हाहाकार मच गया। उनके गर्भ में मौर्यवंश के अगले महाराज थे जिन्हें भारतवर्ष का नेतृत्व करना था। उसी समय तीव्र गति से यह सूचना आचार्य चाणक्य के पास पहुंचाई गई और वे शीघ्र ही चन्द्रगुप्त मौर्य के कक्ष में पहुँच गए। उस समय तक किसी को यह ज्ञात नही था कि अचानक रानी दुर्धरा को क्या हो गया लेकिन आचार्य सब समझ चुके थे।
उन्हें यह अच्छे से ज्ञात था कि विष का प्रभाव बहुत तेज है और किसी भी तरह से रानी दुर्धरा को नही बचाया जा सकता था। साथ ही गर्भावस्था के अंतिम चरण में होने के कारण उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी क्षीण हो चुकी थी लेकिन उनके गर्भ में पल रहे भारतवर्ष के अगले महाराज को बचाया जा सकता था।
बिंदुसार का जन्म कैसे हुआ?
चूँकि महारानी दुर्धरा को बचाया जाना असंभव था लेकिन उनके पेट में पल रही संतान जो कि भारत के अगले महाराज थे, उन्हें अभी भी बचाया जा सकता था। ऐसे में बिंदुसार का जन्म (Bindusar Ka Janam Kaise Hua) बहुत ही आश्चर्यजनक व विकट परिस्थिति में हुआ था।
आचार्य चाणक्य ने उस समय किसी को भी भोजन में विष मिलाने की बात को समझाने में समय व्यर्थ नही किया। उन्होंने अपनी दूरदर्शी सोच के अनुसार भविष्य के महाराज को बचाने के उद्देश्य से रानी दुर्धरा का ऑपरेशन के द्वारा प्रसव करने का निर्णय लिया। इसे आज हम सी-सेक्शन प्रसव के नाम से जानते हैं जो हमारे महान संतों और वैद्यों के द्वारा उसी समय खोज ली गई थी।
तब आचार्य चाणक्य ने वैद्यों की सहायता से रानी दुर्धरा के पेट का सफल ऑपरेशन किया और उनके पुत्र को गर्भ से सफलतापूर्वक निकाल लिया। हालाँकि रानी दुर्धरा की विष के प्रभाव से मृत्यु हो चुकी (Durdhara Ki Mrityu Kaise Hui) थी किंतु भारत के अगले महाराज जीवित थे और स्वस्थ भी। महाराज बिंदुसार के शरीर पर कई दाग थे, जिस कारण उनका नाम बिंदुसार रखा गया था।
हालाँकि रानी दुर्धरा के गर्भ से भ्रूण निकालने के पश्चात क्या घटित हुआ, इसके बारे में बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में दो अलग-अलग कथाएं लिखी हुई है। आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं।
बौद्ध धर्म के अनुसार बिन्दुसार का जन्म कैसे हुआ था?
जब आचार्य चाणक्य ने दुर्धरा के गर्भ से भ्रूण को निकाल लिया तब उसके जन्म लेने के 7 दिन शेष थे। इसके लिए आचार्य चाणक्य ने प्रतिदिन एक बकरी का वध कर उस भ्रूण को बकरी के गर्भ में रखा ताकि उसे एक माँ के पेट की गर्माहट मिलती रहे।
इस प्रकार सात दिनों बाद भविष्य के महाराज का सफलतापूर्वक जन्म हुआ जो कि पूर्णतया स्वस्थ था। भ्रूण को बकरी के गर्भ में रखने के कारण उसके शरीर पर जगह-जगह बकरी के रक्त के धब्बे पड़ गए थे जिस कारण आचार्य चाणक्य ने उसका नाम बिंदुसार रखा।
जैन धर्म के अनुसार बिन्दुसार का जन्म कैसे हुआ?
जैन धर्म की मान्यता के अनुसार जब रानी दुर्धरा ने विष पी लिया था तब उसकी एक बूँद भ्रूण के मस्तक तक पहुँच गई थी। विष के शरीर के बाकि अंगों तक पहुँचने से पहले ही आचार्य चाणक्य के द्वारा उसे सफलतापूर्वक बाहर निकाल लिया गया था। लेकिन सिर तक विष की बूंद पहुँचने के कारण वहां एक स्थाई निशान पड़ गया था जिस कारण आचार्य चाणक्य ने उसका नाम बिंदुसार रखा।
चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद भारतवर्ष के अगले महाराज बिंदुसार ही बने थे जिन्होंने अपने राज्य की सीमाओं को और आगे बढ़ाया था। भारत के महान सम्राट और बौद्ध धर्म का मुख्य रूप से प्रचार-प्रसार करने वाले महाराज अशोक इन्हीं बिन्दुसार के ही पुत्र थे। हालाँकि अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य और पुत्र अशोक की तरह महाराज बिन्दुसार का इतिहास के पन्नों में इतना उल्लेख नही मिलता है।
दुर्धरा की मृत्यु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: चंद्रगुप्त मौर्य की सबसे प्रिय पत्नी कौन थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य की सबसे प्रिय पत्नी दुर्धरा थी। वे चंद्रगुप्त मौर्य की तीन पत्नियों में प्रथम पत्नी व मुख्य महारानी थी।
प्रश्न: वास्तविक जीवन में दुर्धरा की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: वास्तविक जीवन में दुर्धरा की मृत्यु विष युक्त भोजन खाने से हुई थी। इस विषयुक्त भोजन को आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त के लिए भेजा था लेकिन अनजाने में दुर्धरा ने वह खा लिया था।
प्रश्न: चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा कौन थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा नंद वश में धनानंद की पुत्री थी। चंद्रगुप्त महाराज धनानंद को अपदस्थ करके ही भारत के अगले महाराज बने थे।
प्रश्न: चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी कितनी थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य की तीन पत्नियाँ थी जिनके नाम दुर्धरा, हेलेना व चंद्र नंदिनी था।
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