जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया? जाने जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

Jagannath Mandir History In Hindi

आज हम आपके सामने जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (Jagannath Mandir History In Hindi) रखने जा रहे हैंपुरी उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित है जो चार धामों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के कुछ वर्षों के पश्चात पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था। उन्हें यह आदेश स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के रूप भगवान जगन्नाथ ने दिया था।

हालाँकि जगन्नाथ मंदिर के निर्माण के पीछे भगवान श्रीकृष्ण और राजा इंद्रद्युम्न की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा का संपूर्ण विवरण आज हम आपके सामने रखने वाले हैं। इतना ही नहीं, वर्तमान में मंदिर का जो स्वरुप आप देखते हैं, वह बारहवीं शताब्दी के राजाओं के द्वारा बनवाया गया था। इन सभी राजाओं में से मुख्य रूप से जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया (Jagannath Temple History In Hindi) और किसे इसका श्रेय दिया जाता है, उनका नाम भी आज हम आपको बताएँगे।

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (Jagannath Mandir History In Hindi)

इंद्रद्युम्न मालवा राज्य के राजा थे जो भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने कई महान यज्ञों का आयोजन करवाया था तथा धर्म की स्थापना की थी। भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के कुछ वर्षों के पश्चात एक दिन भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण के रूप) ने इंद्रद्युम्न को स्वप्न में दर्शन दिए तथा बताया कि नीलांचल पर्वत पर आदिवासी जनजाति का राजा विश्वबसु रहता है। उसके पास एक नीले रंग की मूर्ति है जिसे नीलमाधव के नाम से जाना जाता है, तुम उसे प्राप्त करो तथा एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाकर उसमें मेरी मूर्ति स्थापित करो।

कहते हैं कि विश्वबसु अपने पिछले जन्म में वही शिकारी था जिसके बाण से भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई थी। जिस नीले रंग की मूर्ति की वह पूजा करता था वह कुछ और नहीं बल्कि भगवान कृष्ण का हृदय था जो उनके अंतिम संस्कार के बाद भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर अर्जुन ने समुंद्र में बहा दिया था। कई वर्षों की यात्रा के पश्चात वह समुंद्र में बहता हुआ पुरी पहुँच गया था तथा विश्वबसु को मिला था।

  • ब्राह्मण विद्यापति व राजा विश्वबसु

राजा इंद्रद्युम्न ने अपने कई सैनिकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा जिसमें से एक ब्राह्मण विद्यापति भी थे। उन्हें आदिवासी राजा विश्वबसु मिल गए तथा उन्होंने उससे वह मूर्ति दिखाने को कहा लेकिन उसने मना कर दिया। इसके पश्चात विद्यापति ने किसी तरह से राजा की बेटी ललिता से विवाह कर लिया तथा फिर से अपने ससुर के सामने वही इच्छा प्रकट की।

इस बार राजा विश्वबसु ने अपनी दामाद की बात को मान लिया तथा उसे मूर्ति दिखाने चल पड़े। वह मूर्ति उन्होंने एक गहन जंगल के अंदर रखी हुई थी लेकिन विद्यापति अपनी बुद्धिमता से मूर्ति तक पहुँचने के मार्ग में सरसों के बीज गिराता चला गया। कुछ समय के बाद जब उसमें से पौधे निकल आए तब उसने राजा को जाकर यह सूचना दी।

विद्यापति के द्वारा यह जानकारी पाने के बाद राजा इंद्रद्युम्न बहुत प्रसन्न हुए तथा अपने सैनिकों के साथ नील माधव की मूर्ति लेने चल पड़े। लेकिन जब वे उस स्थल पर पहुँचे तो वह मूर्ति वहाँ से विलुप्त हो चुकी थी। यह देखकर राजा इंद्रद्युम्न बहुत निराश हुए तथा वहाँ नीलांचल पर्वत पर ही बैठ गए तथा अन्न जल का त्याग कर दिया।

  • भगवान जगन्नाथ और राजा इंद्रद्युम्न

इसके पश्चात भगवान जगन्नाथ ने फिर से राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में दर्शन दिए तथा कहा कि पहले वह एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाए। उसके पश्चात उसे समुंद्र के तट पर एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा। उससे तुम चार मूर्तियों का निर्माण करो जो भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम), बहन सुभद्रा तथा सुदर्शन चक्र की होगी तथा उसे मंदिर में स्थापित करो।

भगवान का यह आदेश पाकर राजा इंद्रद्युम्न ने पुरी में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। इसके पश्चात उन्हें समुंद्र तट पर एक काष्ठ/ लकड़ी का लठ्ठा मिला जिसे भगवान श्रीकृष्ण का हृदय कहा जाता है। यह नीले रंग का था जिसमें से सुगंध आ रही थी।

तब राजा इंद्रद्युम्न ने महान शिल्पकार विश्वकर्मा जी की सहायता से इस लट्ठे को मूर्त रूप दिया। उन्होंने इससे चार मूर्तियाँ बनवाई जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा तथा सुदर्शन चक्र की थी। इन सभी मूर्तियों को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया गया। तब से यह मंदिर सनातन धर्म में एक मुख्य पहचान बन गया।

Jagannath Temple History In Hindi | जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया?

कई सदियों तक यह मंदिर ऐसा ही रहा और देशभर से लोग यहाँ दर्शन करने आते। बीच-बीच में वहाँ के राजाओं के द्वारा इसकी मरम्मत का कार्य करवाया जाता था लेकिन एक समय के बाद मंदिर जर्जर हो गया था। उस समय कलिंग के राजा अनंतवर्मन चोडगंग हुआ करते थे जो गंगा वंश से थे। पुरी नगरी उनके राज्य का ही एक हिस्सा था। वे पहले शैव समुदाय से थे लेकिन भगवान जगन्नाथ के प्रभाव के चलते वैष्णव समुदाय में आ गए थे।

उनके द्वारा ही ग्यारहवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच विशाल स्तर पर जगन्नाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था। इसके लिए राजा अनंतवर्मन ने पूरे संसाधन झोंक दिए थे और हजारों कारीगरों को इसमें लगाया गया था। उन्होंने वर्ष 1077 से लेकर 1150 तक कलिंग पर राज किया था। कहते हैं कि जगन्नाथ मंदिर का निर्माण उनके समयकाल में भी पूरा नहीं हो पाया था। हालाँकि आगे चलकर उनके पुत्र राजा अनंग भीमदेव ने भी मंदिर निर्माण का कार्य जारी रखा था।

इसके कुछ वर्षों के पश्चात दिल्ली से पृथ्वीराज चौहान को अपदस्थ कर दिया गया था। उसके बाद मुगल आक्रांताओं के द्वारा जगन्नाथ मंदिर पर कुल सत्रह बार आक्रमण किया गया लेकिन हर बार यहाँ के राजाओं और ब्राह्मणों ने मंदिर की रक्षा की। मंदिर पर आखिरी आक्रमण वर्ष 1731 में हुआ था और उसके बाद देश पर अंग्रेजों का शासन आने लगा था। अंग्रेजों ने आक्रमण करने की बजाए मंदिरों व देश की संपत्ति को लूटने का प्रयास किया था। इस तरह से यही जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (Jagannath Mandir History In Hindi) था।

जगन्नाथ मंदिर के इतिहास से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: पुरी जगन्नाथ मंदिर के पीछे की कहानी क्या है?

उत्तर: पुरी जगन्नाथ मंदिर के पीछे की कहानी यही है कि मंदिर निर्माण का आदेश स्वयं भगवान जगन्नाथ ने पुरी के राजा इंद्रद्युम्न को दिया था उनके आदेशानुसार भगवान विश्वकर्मा जी ने मंदिर की मुख्य मूर्तियों का निर्माण कार्य किया था

प्रश्न: भगवान जगन्नाथ के अंदर क्या है?

उत्तर: भगवान जगन्नाथ के अंदर भगवान श्रीकृष्ण का हृदय है श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात उनके हृदय से ही भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण किया गया था

प्रश्न: जगन्नाथ पुरी मंदिर की परछाई क्यों नहीं बनती?

उत्तर: जगन्नाथ पुरी मंदिर की परछाई इसलिए नहीं बनती है क्योंकि मंदिर का निर्माण कार्य इस तरह से किया गया है कि सूर्य की किरणें मंदिर में ही उसकी परछाई बना देती है

प्रश्न: कृष्ण का हृदय अभी कहां है?

उत्तर: जब भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई थी तब उनके हृदय से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण किया गया था इस तरह से कृष्ण का हृदय भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर निवास करता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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