जानकी मंगल स्तोत्र हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

जानकी स्तोत्र (Janki Stotra)

आज हम जानकी माता की आराधना करने के लिए जानकी स्तोत्र (Janki Stotra) का पाठ करेंगे। माता जानकी का नाम पवित्रता का पर्यायवाची कह दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। सदियों पहले अयोध्या की प्रजा के द्वारा उनके चरित्र पर जो लांछन लगाया गया था, उसको धोने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया कि वे युगों-युगों तक पवित्रता शब्द की ही पर्याय बन गयी।

जानकी मंगल स्तोत्र (Janki Mangal Stotra) के माध्यम से जानकी माता के जीवन, गुणों, शक्तियों, कर्मों, उद्देश्य व महत्व इत्यादि का वर्णन किया गया है। ऐसे में आज हम आपके साथ जानकी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित साझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ भी समझ सकें। अंत में हम आपके साथ जानकी स्तोत्र पढ़ने के लाभ व महत्व भी साझा करेंगे। तो आइए सबसे पहले करते हैं श्री जानकी स्तोत्र का पाठ।

Janki Stotra | जानकी स्तोत्र

नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्त्रग-सुधाकरद्युतिम्।
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम्।
तद्दहाङ्गमिति पावकं यतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकै: सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घ्रिकां भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

संचयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम्।
तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

Janki Mangal Stotra | जानकी मंगल स्तोत्र – अर्थ सहित

नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

जिनके नेत्र नीलकमल के समान है, जो लक्ष्मण के बड़े भाई श्रीराम की भुजाओं को अपनाती हैं, जो अग्नि के ताप में जलकर अपनी पवित्रता सिद्ध करना चाहती हैं तथा श्रीराम के मन को आनंद प्रदान करने वाली माता सीता का मैं ध्यान करता हूँ।

रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

जो श्रीराम के चरणों को ही देख रही हैं, जिन्होंने अपने शरीर की कांति व तेज से सभी को मात दे दी है, जो श्रीराम के द्वारा राक्षसों के प्रति कहे गए कटु वचनों से चिंतित हैं, उन माता सीता का मैं मन से ध्यान लगाता हूँ।

कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्त्रग-सुधाकरद्युतिम्।
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

जिस प्रकार चंद्रमा को राहु ग्रह के द्वारा अंधकारमय कर दिया जाता है, ठीक उसी तरह सीता माता के गाल उनके बिखरे हुए बालों से ढक गए हैं और यह देखकर माता सीता लज्जा से भर गयी हैं। वे अपने तन पर पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं और मैं उन माता सीता को नमस्कार करता हूँ।

कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम्।
तद्दहाङ्गमिति पावकं यतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

जो अग्नि देव को यह कहती हैं कि यदि उन्होंने अपने शरीर, वाणी या मन में श्रीराम के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष को किंचित मात्र भी स्थान दिया है तो उसी समय उन्हें भस्म कर दे और इसके बाद वे अग्नि में प्रवेश कर जाती हैं, उन माता सीता को मैं हृदय से प्रणाम करता हूँ।

इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकै: सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घ्रिकां भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

स्वर्ग लोक से इंद्र, रूद्र, कुबेर व वरुण इत्यादि देवता अपने विमानों में बैठकर आते हैं और माता सीता के ऊपर पुष्प वर्षा करते हैं। वे सभी माता सीता के चरणों का ध्यान करते हैं और उसी में ही अपना मन लगाते हैं। श्रीराम के आनंद का कारण माता सीता का मैं ध्यान करता हूँ।

संचयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम्।
तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम्॥

अग्नि शुद्धि के लिए अपने-अपने विमानों में बैठे हुए सभी देवतागण जिसकी ओर देख रहे थे, वे माता सीता अपने तेज से सभी दिशाओं में प्रकाश फैला रही थी, उन माता सीता का मैं ध्यान लगाता हूँ।

जानकी मंगल स्तोत्र का महत्व

ऊपर के लेख में आपने जानकी स्तोत्र सहित उसका अर्थ भी पढ़ा और जानकी माता स्तोत्र के भावार्थ को जाना। ऐसे में जानकी माता के स्तोत्र को लिखने का आशय यही था कि इससे जानकी माता के गुणों और कर्मों के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया जा सके और हम उसके पाठ से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर सकें। सीता माता के स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को सीता माता के अद्भुत गुणों के बारे में ज्ञान होता है।

माता जानकी त्याग, प्रेम, दया की प्रतीक हैं और उनका पूरा जीवन इसी को ही समर्पित रहा। उनके कर्मों के कारण वे युगों-युगों तक मनुष्य जाति के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गयी और आज भी हम सभी उन्हें आदर्श मानकर उदाहरण देते हैं। ऐसे में जानकी स्तोत्र के माध्यम से जानकी माता के जीवन के बारे में अद्भुत वर्णन किया गया है। यही सीता माता के स्तोत्र का महत्व होता है।

जानकी स्तोत्र के लाभ

अब यदि आप जानकी स्तोत्र पढ़ने के फायदे जानने को यहाँ आये हैं तो वह भी हम आपको बता देते हैं। आपने टीवी पर रामायण अवश्य ही देखी होगी और जब आप उसे देखते होंगे तो आपका हृदय अंदर से निर्मल हो जाता होगा। वहीं जब आप उस पर माता जानकी की भूमिका को देखते हैं तो आपके अंदर प्रेम सहित त्याग की भावना विकसित होती है जो आपको दूसरों का भला करने को प्रेरित करती है।

यही भावनाएं जानकी स्तोत्र के पाठ से भी विकसित होती हैं। इससे आपका मन शांत होता है और उसमें सकारात्मक विचार आते हैं। मन में जो द्वेष, घृणा, तनाव, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध इत्यादि की भावनाएं पनप रही थी, वह सभी समाप्त होने लगती हैं तथा मन प्रेम, स्नेह, दया, करुणा, त्याग, आध्यात्म की भावनाओं से भर जाता है। इससे ना केवल आप शांत मन से अपना कार्य कर पाते हैं बल्कि उसे उत्तम तरीके से भी करते हैं। यही श्री जानकी स्तोत्रं को पढ़ने के मुख्य लाभ होते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने जानकी स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित (Janki Stotra) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने जानकी मंगल स्तोत्र के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

जानकी स्तोत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: जानकी जी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर: जानकी जी का जन्म वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन हुआ था। इसी दिन को हम सभी हर वर्ष जानकी जयंती या सीता नवमी के नाम से मनाते हैं।

प्रश्न: जानकी नवमी क्या है?

उत्तर: जानकी माता का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में नवमी के दिन हुआ था जिस कारण उनके जन्मदिवस को जानकी नवमी कहकर संबोधित किया जाता है।

प्रश्न: जानकी जन्मोत्सव कब है?

उत्तर: हर वर्ष वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को जानकी माता का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसी दिन जानकी माता इस धरती पर अवतरित हुई थी।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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