Kaal Bhairav Katha: जाने काल भैरव की कथा जो हैं महादेव का उग्र रूप

काल भैरव (Kaal Bhairav In Hindi)

काल भैरव (Kaal Bhairav In Hindi) भगवान शिव के क्रुद्ध व रूद्र रूप हैं। इनकी उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध स्वरुप ही हुई थी। यह रूप भगवान शिव के द्वारा विनाश व प्रलय से जुड़ा हुआ है। इनका रूप अत्यधिक भयानक है जिसमें शरीर का रंग एकदम काला, क्रोध में भरी आँखें, चीते के समान नुकीले दांत व हाथों में अस्त्र-शस्त्र व स्वयं ब्रह्मा की खोपड़ी है।

इनके मुख्यतया चार हाथ होते हैं जिसमेंएक हाथ में स्वयं भगवान ब्रह्मा का मस्तक, एक में त्रिशूल व अन्य दो में डंडा या डमरू होते हैं। अब भगवान शिव का यह रूप इतना भयानक क्यों है, इसे जानने के लिए तो आपको काल भैरव की कथा (Kaal Bhairav Katha) को जानना होगा। इस लेख में हम आपके साथ काल भैरव का इतिहास सहित उनके बारे में समूची जानकारी सांझा करने वाले हैं।

काल भैरव (Kaal Bhairav In Hindi)

भैरव नाम तीन अक्षरों के मेल से बना है जो सृष्टि के निर्माण व विध्वंस के बारे में बताता है। इसमें “भै” का अर्थ सृष्टि के निर्माण से, “र” का अर्थ सृष्टि के संचालन से व “व” का अर्थ सृष्टि के विनाश से है। इस प्रकार भगवान शिव का यह रूप सृष्टि की रचना, पालन व प्रलय को दर्शाता है।

काल भैरव को दंडपानि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये हाथों में लोहे का एक मोटा डंडा लिए हुए होते हैं जिससे वे दुष्टों को दंड देते हैं। इनके गले में रुद्राक्ष की माला होती है व वाहन एक काला कुत्ता होता है। भैरव भगवान को हमेशा दंड देने के लिए ही नहीं अपितु अच्छे लोगों की रक्षा करने के लिए भी जाना जाता है।

इसके लिए आपको काल भैरव का इतिहास जानना होगा क्योंकि इसी में ही सब छुपा हुआ है। दरअसल काल भैरव का जन्म मुख्य रूप से तीन कारणों से हुआ था। इस तरह से काल भैरव की कथा एक नहीं बल्कि तीन-तीन हैं। चलिए अब उसके बारे में जान लेते हैं।

काल भैरव की कथा (Kaal Bhairav Katha)

काल भैरव शिवजी का एक रूप हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि काल भैरव के भी कुल 64 रूप हैं। इनमें से आठ भैरव मुख्य हैं जिन्हें अष्ट भैरव के रूप में पूजा जाता है। काल भैरव के जन्म से जुड़ी तीन कथाओं में यह एक कथा है। अन्य दो कथाओं का संबंध भगवान ब्रह्मा के मस्तक काटने और माता सती के आत्म-दाह से है। आइए इन सभी के बारे में जान लेते हैं।

#1. काल भैरव ने काट दिया ब्रह्मा का सिर

यह उस समय की बात है जब भगवान ब्रह्मा व विष्णु में स्वयं की महानता सिद्ध करने के लिए विवाद हुआ तब भगवान शिव ने उन दोनों की परीक्षा ली। इसमें भगवान विष्णु ने तो अपनी हार स्वीकार कर ली किंतु भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोला व भगवान शिव का अपमान किया।

शिव के अपमान स्वरुप उनसे काल भैरव ने जन्म लिया व अपने बाएं हाथ की छोटी ऊँगली के नाखून से भगवान ब्रह्मा का पांचवां मस्तक काट कर अलग कर दिया क्योंकि उन्होंने उसी मस्तक से झूठ बोला था। इसके बाद काल भैरव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा जिसका निवारण काशी नगरी में जाकर हुआ।

#2. शक्तिपीठों की रक्षा करने के लिए काल भैरव

यह कथा भगवान शिव के ससुर दक्ष प्रजापति व देवी सती से जुड़ी हुई है। जब माता सती ने अपने पति भगवान शिव का अपमान देखकर अपने पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी तो भगवान शिव माता सती का मृत शरीर लेकर चारों दिशाओं में दौड़े। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया जो पृथ्वी पर 51 स्थानों पर गिरे।

जहाँ-जहाँ माता सती के शरीर के टुकड़े गिरे वहां आज आदिशक्ति को समर्पित शक्ति पीठ स्थापित हैं। जब भगवान शिव ने यह देखा तो उन्होंने अपने भैरव अवतार को भी हर शक्ति पीठ की रक्षा करने को भेजा। आज आप जहाँ भी शक्तिपीठ पाएंगे उसके पास भैरव बाबा का मंदिर (Kaal Bhairav In Hindi) भी पाएंगे जो उनकी रक्षा करते हैं।

हम नवरात्र का पावन पर्व मनाते हैं व अष्टमी या नवमी के दिन अपने घर में कंजकों को ज़िमाते हैं। इसमें कंजकों के साथ एक भैरव बाबा को जिमाने की भी प्रथा होती है। ऐसा ऊपर दी गई कथा के कारण ही किया जाता है जिसमें भगवान भैरव माता रानी की रक्षा के लिए होते हैं।

#3. असुरों का नाश करने के लिए

एक बार देवताओं व दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ तो भगवान शिव ने अपने पराक्रम से 8 भैरवों की रचना की जिन्हें अष्ट भैरव कहा गया। इन अष्ट भैरवों से 7-7 अन्य भैरवों की रचना हुई। इस तरह कुल 64 भैरव बने जो 8-8 के समूह में थे जिनका नेतृत्व हर आठ में से एक भैरव कर रहा था। इन 64 भैरवों में से काल भैरव सबसे महान था जिसके नेतृत्व में सब चलते थे। इस प्रकार उन्होंने राक्षसों का वध किया।

अष्ट भैरवों के नाम
  • असितांग भैरव
  • रुद्र भैरव
  • चंद्र भैरव
  • क्रोध भैरव
  • उन्मत्त भैरव
  • कपाली भैरव
  • भीषण भैरव
  • संहार भैरव

इन आठों भैरवों के रूप व शस्त्र अलग-अलग हैं व इनकी पूजा करने की विधि भी अलग है। इन आठ भैरवों के साथ आठ भैरवियों की भी पूजा की जाती है जिनके साथ इनका विवाह हुआ था। सबसे मुख्य काल भैरव की पत्नी को काल भैरवी कहा जाता है जो उनके समान ही रूद्र रूप में हैं। काल भैरवी को माँ काली से जोड़कर भी देखा जाता है।

इस तरह से आपने काल भैरव की कथा (Kaal Bhairav Katha) को जान लिया है। वैसे तो अन्य भैरवों की भी अलग-अलग कथाएं या प्रसंग प्रचलित हैं जिसमें से एक प्रमुख भैरव बटुक भैरव हैं। आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं।

बटुक व काल भैरव

भैरव बाबा को हमेशा रूद्र रूप में ही नहीं दिखाया जाता अपितु भगवान शिव ने उन्हें दो रूपों में विभाजित किया है। इसमें बटुक भैरव अपने भक्तों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाए गए जो अच्छे लोगों को उनके कर्मों का फल देते हैं तो वहीं काल भैरव का रूप अत्यंत क्रोधमय है जो दुष्टों को उनके पापों का दंड देते हैं।

शिव मंदिर में स्थापित

शिव मंदिर में भैरव बाबा को उत्तर दिशा में रखा जाता है जिनका मुख दक्षिण दिखा की ओर होता है। यह मंदिर की सुरक्षा की दृष्टि से होता है। इसलिए इन्हें क्षेत्रपाल या द्वारपाल की संज्ञा भी दी गई है।

तमिलनाडु में ग्रामदेवता के रूप में प्रसिद्ध

तमिलनाडु राज्य में इन्हें ग्राम देवता के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह उनके गाँवों, पशुओं व धन की रक्षा करते हैं। सामान्यतया भैरव बाबा को अच्छे लोगों की रक्षा करने के लिए जाना जाता है जो बुरे लोगों को दंड देने के साथ-साथ समाज में अच्छाई को बचाए रखते हैं।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने काल भैरव (Kaal Bhairav In Hindi) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। भगवान शिव के सभी रूप विचित्र हैं। इसी में से यह एक रूप है जो अत्यधिक प्रचंड व क्रोधित स्वरुप में है।

काल भैरव से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई?

उत्तर: काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप के कारण हुई थी साथ ही उन्होंने शक्तिपीठों के पास ही काल भैरव के मंदिर बनवाए थे

प्रश्न: क्या शिव और कालभैरव एक ही हैं?

उत्तर: जी हाँ, शिव और कालभैरव एक ही हैं दरअसल काल भैरव भगवान शिव का उग्र रूप है जिसे असुरों का वध करने के लिए प्रकट किया गया था

प्रश्न: भैरवनाथ की कथा क्या है?

उत्तर: भगवान शिव ने देव-दानवों के युद्ध में देवताओं की सहायता करने के लिए ही भैरवनाथ की उत्पत्ति की थी। उसके बाद भैरवनाथ ने सभी दानवों का वध कर दिया था।

प्रश्न: भगवान शिव ने काल भैरव को क्यों लिया?

उत्तर: भगवान शिव ने काल भैरव को इसलिए प्रकट किया था क्योंकि देव-दानव युद्ध में देवता कमजोर पड़ रहे थे। ऐसे में काल भैरव ने ही देवताओं की सहायता की थी।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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