मसान होली क्यों मनाई जाती है? जाने काशी की चिता भस्म होली के बारे में

Kashi Ki Holi

Kashi Ki Holi: शिव अर्थात शव, शिव अर्थात मृत्यु, शिव अर्थात मोक्ष, शिव अर्थात जीवन का अंतिम सत्य। शिव की नगरी काशी जिसे बनारस या वाराणसी भी कहते हैं। यहाँ पर स्थित हैं देश का सबसे बड़ा व प्रसिद्ध श्मशान घाट जो हैं मणिकर्णिका घाट। ऐसा घाट जहाँ पर हर समय, हर पल किसी ना किसी की चिता जलती ही रहती हैं।

आज हम बात करेंगे भगवान शिव की नगरी काशी में खेली जाने वाली चिता भस्म होली की। इसे बनारस की होली (Banaras Ki Holi) या मसान होली भी कह दिया जाता है एक ओर पूरे भारतवर्ष में प्रेम के रंगों की होली खेली जाती हैं तो वही भगवान शिव की नगरी में जली हुई चिताओं की राख से होली खेलने का विधान हैं लेकिन ऐसा क्यों? आइए काशी की चिता भस्म होली के बारे में जाने सबकुछ।

Kashi Ki Holi | काशी की चिता भस्म होली

वैसे तो पूरे देश में होली का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं लेकिन काशी की चिता भस्म होली रंगभरनी एकादशी के अगले दिन होती हैं अर्थात फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन। इस दिन बम-भोले के सभी भक्त उनकी आज्ञा लेकर चिता भस्म होली खेलते हैं।

पूरे भारतवर्ष में लाखों की संख्या में श्मशान घाट हैं जहाँ मृत्यु के पश्चात शरीर को पंचतत्वों में मिलाने के उद्देश्य से दाह संस्कार किया जाता है। इन सभी श्मशान घाटों में सबसे मुख्य घाट हैं बनारस का मणिकर्णिका घाट। यह एक ऐसा घाट हैं जहाँ चिता की अग्नि कभी भी ठंडी नही पड़ती।

हर पल, हर समय किसी ना किसी की चिता यहाँ जल रही होती हैं अर्थात देश की सर्वाधिक चिताएं इसी घाट पर जलाई जाती हैं। बस इसी घाट पर इन चिताओं की राख से चिता भस्म होली (Bhasma Holi) खेलने का विधान हैं। इसी के साथ बनारस के ही कुछ अन्य श्मशान घाटों पर भी चिता-भस्म होली खेली जाती हैं।

काशी की मसान होली से जुड़ी कथा

मान्यता हैं कि माता सती के आत्म-दाह के बाद भगवान शिव चीर साधना में चले गए थे। इसके बाद कामदेव के द्वारा उन्हें साधना से उठाया गया था जिसके पश्चात शिवजी ने उन्हें अपना तीसरा नेत्र खोलकर भस्म कर दिया था। माता सती ने माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया था।

जब शिवजी को यह बात पता चली तो उन्होंने माता पार्वती के साथ पुनर्विवाह किया। इसके बाद रंगभरनी एकादशी के दिन शिवजी माता पार्वती को पहली बार उनके ससुराल काशी नगरी लेकर आए थे। इस खुशी के अवसर पर काशी नगरी वालों ने शिव-पार्वती के साथ रंगों की होली खेली थी किंतु शिवजी अपने गणों (भूत-प्रेत, अघोरी, नागा साधु, इत्यादि) के साथ होली नही खेल पाए थे।

इसके लिए शिवजी अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर गए और वहां जली हुई चिताओं की राख अपने शरीर पर मल दी। इसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ चिताओं की भस्म के साथ जमकर होली खेली। मान्यता हैं कि आज भी शिवजी रंगभरनी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर अदृश्य रूप में आते हैं और अपने गणों के साथ भस्म होली खेलते हैं। इसलिए काशी की होली (Kashi Ki Holi) का विशेष महत्व है।

चिता भस्म होली कैसे खेली जाती है?

इसमें सभी भक्त एक दिन पहले रंगभरनी एकादशी के दिन शिवजी और माता पार्वती को पालकी में बिठाकर पूरे शहर में उनकी यात्रा निकालते हैं और रंग उड़ाते हैं। इसके अगले दिन सभी भगवान शिव के ही रूप बाबा विश्वनाथ से आज्ञा पाकर और उनकी पूजा कर मणिकर्णिका घाट पर पहुँच जाते हैं।

इसके बाद शुरू होता हैं चिताओं की भस्म से होली (Bhasma Holi) खेलने का कार्यक्रम। वहां हजारों चिताओं की राख पड़ी होती हैं। इसलिये होली खेलने के लिए राख की कोई कमी नही होती। सभी अपने हाथों में राख लेकर एक-दूसरे को लगाते हैं, हवा में उड़ाते हैं और होली खेलते हैं।

मसान होली कौन खेलता है?

इसे मुख्यतया भगवान शिव के गण खेलते हैं जिनमें अघोरी और नागा साधु प्रमुख हैं। मान्यता हैं कि इस दिन भूत-प्रेत भी इस घाट पर चिता-मसान होली खेलने आते हैं लेकिन वह हम देख नही सकते। इसके साथ ही भगवान शिव भी अदृश्य रूप में इसे अपने गणों के साथ खेलने आते हैं।

इनके अलावा कोई भी भक्तगण इसे खेल सकता हैं। इसके लिए देश-विदेश से भगवान शिव के लाखों भक्त बनारस की होली (Banaras Ki Holi) का आनंद उठाने आते हैं और इसे खेलते हैं।

बनारस की होली का महत्व

मनुष्य को जीवन में सबसे ज्यादा भय मृत्यु या अपनों की मृत्यु से होता हैं लेकिन यही परम सत्य भी हैं। श्मशान घाट पर हमेशा मातम पसरा रहता हैं और लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु का शोक प्रकट करते हैं। पूरे वर्ष में केवल एक दिन यही आता हैं जब जलती हुई चिताओं के बीच में हर कोई उत्साह के साथ होली का पर्व मना रहा होता हैं और वह भी चिताओं की भस्म से।

इससे भगवान शिव ने यह संदेश दिया कि मनुष्य को मृत्यु का भय त्याग कर अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार जन्म एक परम सत्य हैं तो उसी प्रकार मृत्यु भी अर्थात जिसका इस मृत्यु लोक में जन्म हुआ हैं तो उसकी मृत्यु भी निश्चित हैं चाहे वह स्वयं भगवान ही क्यों ना हो।

इसलिये मनुष्य के मृत्यु के शोक को खुशी में बदलने, उसको मृत्यु का रहस्य समझाने और अपने कर्म पर ही ध्यान केन्द्रित करने के उद्देश्य से काशी की चिता भस्म होली (Kashi Ki Holi) का त्यौहार मनाया जाता है।

भस्म होली से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: मसान होली क्यों मनाई जाती है?

उत्तर: मान्यता है कि मसान होली वाले दिन भगवान शिव काशी आते हैं और अपने भक्तों के साथ चिताओं की भस्म से होली खेलते हैं इसके माध्यम से वे मृत्यु का भी आनंद मनाते हैं

प्रश्न: मसाने की होली कब होती है?

उत्तर: मसाने की होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मनाई जाती है इस दिन काशी नगरी के मणिकर्णिका घाट पर चिताओं की भस्म अर्थात राख के साथ होली खेली जाती है

प्रश्न: मसाना होली क्या है?

उत्तर: काशी में खेली जाने वाली चिता भस्म होली को ही मसान होली के नाम से जाना जाता है यह होली फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को मनाई जाती है इस दिन को भगवान शिव को समर्पित माना जाता है

प्रश्न: बनारस में होली कैसे मनाते हैं?

उत्तर: बनारस में चिताओं की भस्म से होली मनाई जाती है हालाँकि यह एक अलग त्यौहार है होली वाले दिन तो यहाँ भी रंगों के साथ ही खेला जाता है

प्रश्न: बनारस में होली कैसे मनाई जाती है?

उत्तर: बनारस में होली को रंगों के साथ ही मनाया जाता है इसी के साथ ही वहाँ एक और होली मनाई जाती है जिसे चिता भस्म या मसान होली के नाम से जाना जाता है इस दिन चिताओं की राख से होली खेली जाती है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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