कुष्मांडा देवी स्तोत्र (Kushmanda Devi Stotra)

Kushmanda Devi Stotra

कुष्मांडा देवी स्तोत्र (Kushmanda Devi Stotra) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

हम हर वर्ष नवरात्र का पावन त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। नवरात्र नौ दिवस का पर्व है जिसमें हर दिन मातारानी के भिन्न रूप की पूजा की जाती है जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। इसमें मातारानी का हरेक रूप अपने भिन्न गुणों व शक्तियों के कारण पूजनीय है। कूष्मांडा माता नवदुर्गा का तृतीय रूप है जो निरोगी काया का परिचायक है। ऐसे में आज हम आपके साथ कुष्मांडा देवी स्तोत्र का पाठ (Kushmanda Devi Stotra) करने जा रहे हैं।

इस लेख में आपको कूष्मांडा देवी स्तोत्र (Kushmanda Devi Stotram) के साथ-साथ उसका हिंदी अर्थ भी जानने को मिलेगा। इससे आपको कूष्मांडा स्तोत्र का भावार्थ (Kushmanda Stotra) भी समझने में सहायता होगी। अंत में हम आपके साथ कुष्मांडा माता स्तोत्र के लाभ व महत्व भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं कूष्मांडा माता स्तोत्र।

कूष्मांडा देवी स्तोत्र (Kushmanda Devi Stotram)

॥ ध्यान मंत्र ॥

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

॥ स्तोत्र ॥

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

कूष्मांडा स्तोत्र इन हिंदी (Kushmanda Stotra In Hindi)

॥ ध्यान मंत्र ॥

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, सभी कामों को पूर्ण करने वाली, मस्तक पर अर्ध चंद्र धारण करने वाली, सिंह पर सवार, आठ भुजाओं वाली और यश प्रदान करने वाली कूष्मांडा माता, की वंदना करता हूँ।

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

कुष्मांडा माता ही सूर्य को तेज प्रदान करती हैं। वे हमारे शरीर के अनाहत चक्र में स्थित होकर इसे मजबूती प्रदान करती हैं। वे दुर्गा माता का चतुर्थ रूप हैं जिनके तीन नेत्र हैं। उन्होंने अपनी आठ भुजाओं में कमंडल, चाप, बाण, कमल पुष्प, कलश, चक्र व गदा पकड़ी हुई है।

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

उन्होंने पीले रंग के वस्त्र पहने हुए हैं जिसमें वे कामना करने योग्य लग रही हैं। उनके मुख पर मंद-मंद मुस्कान है। उन्होंने कई प्रकार के आभूषणों से अपना श्रृंगार किया हुआ है। उन्होंने मंजीर, हार, केयूर, किंकिणी व रत्नों से जड़ित कुंडल से अपना श्रृंगार किया हुआ है।

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

मैं कूष्मांडा देवी के चरणों का ध्यान कर उनकी वंदना करता हूँ। उनके गाल बहुत ही कोमल व सुंदर है। उनका हरेक अंग कोमल, स्नेह से भरा हुआ मुख, शरीरे के मध्य में नाभि है जो उनके रूप को बहुत ही सुंदर बना रहा है।

॥ स्तोत्र ॥

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

कूष्मांडा देवी दुर्गति का नाश कर देती हैं और हमारी गरीबी को दूर कर देती हैं। हमें जय व धन प्रदान करने वाली कुष्मांडा माता को मैं प्रणाम करता हूँ। कहने का अर्थ यह हुआ कि कुष्मांडा माता की कृपा से ही हमें वैभव व धन की प्राप्ति होती है।

जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

माता कूष्मांडा ही इस जगत की माता हैं और वे इस जगत के सभी कामों को बना देती हैं। वे ही इस जगत की आधार रूप हैं। वे ही ब्रह्म रूप में इस सृष्टि की ईश्वरी हैं। मैं कुष्मांडा माता को प्रणाम करता हूँ।

त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

कूष्मांडा देवी इस जगत में सबसे अधिक सुंदर हैं। वे ही हमारे दुखों को दूर करती हैं और शोक हर लेती हैं। कुष्मांडा माता की ही कृपा से हमें परमानंद की प्राप्ति होती है। मैं देवी कूष्मांडा को नमस्कार करता हूँ।

कुष्मांडा देवी स्तोत्र (Kushmanda Devi Stotra) – महत्व

कूष्मांडा माता को ब्रह्माण्ड की रचयिता कहा गया है। एक तरह से उन्हें ब्रह्म स्वरुप ही माना गया है। जब इस सृष्टि में कुछ भी नहीं था तब कुष्मांडा माता ने अपनी शक्ति से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। धर्म ग्रंथों में कूष्मांडा का निवास ब्रह्माण्ड के मध्य भाग में बताया गया है। ऐसे में कुष्मांडा देवी स्तोत्र के माध्यम से उनकी शक्तियों के बारे में बताया गया है और उसकी आराधना की गयी है।

एक तरह से कूष्मांडा देवी स्तोत्र से हमें कूष्मांडा माता की शक्तियों, गुणों, महत्व व उद्देश्य का ज्ञान होता है। ऐसे में हमें कूष्मांडा स्तोत्र कूष्मांडा माता के बारे में पूरा ज्ञान देने के लिए ही है और उसी के साथ ही इसके माध्यम से उनकी आराधना भी हो जाती है। यही कूष्मांडा माता स्तोत्र का महत्व होता है।

कूष्मांडा माता स्तोत्र (Kushmanda Mata Stotra) – लाभ

कूष्मांडा माता को इस ब्रह्माण्ड की जनक माना गया है जो ब्रह्माण्ड के मध्य भाग में स्थित होती हैं। इसी के साथ ही कुष्मांडा माता के द्वारा ही सूर्य को ताप दिया जाता है जिस कारण इस पृथ्वी पर जीवन पनपता है। सूर्य की किरणों से ही हमें अन्न की प्राप्ति होती है तथा शरीर निरोगी रहता है। ऐसे में जो भक्तगण सच्चे मन के साथ कुष्मांडा माता स्तोत्र पढ़ता है और उनका ध्यान करता है तो उसकी काया स्वस्थ व ऊर्जावान बनती है।

कूष्मांडा माँ की कृपा से हमें निरोगी काया तो मिलती ही है बल्कि इसी के साथ ही हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी पहले की तुलना में बेहतर बनता है। वहीं जो लोग व्यापार करते हैं तो उन्हें अपने व्यापार में वृद्धि देखने को मिलती है। नौकरी कर रहे लोगों की भी उन्नति होती है और वे अपने कार्य में बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। इस तरह से मां कूष्मांडा स्तोत्र पढ़ने से हमें कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं।

कुष्मांडा स्तोत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कुष्मांडा का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: कुष्मांडा माता के द्वारा ब्रह्मांड की रचना करने के कारण इन्हें आदिशक्ति या आदिमाता भी कह दिया जाता है।

प्रश्न: मां कुष्मांडा को क्या चढ़ाएं?

उत्तर: मां कुष्मांडा को आप लाल रंग की चोली, सिंदूर तथा सुहाग का सारा सामान चढ़ा सकते हैं और इसके पश्चात कुष्मांडा आरती व स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।

प्रश्न: मां कुष्मांडा की पूजा क्यों की जाती है?

उत्तर: कुष्मांडा माता सभी रोगों का नाश कर हमारे शरीर को स्वस्थ बनाने का कार्य करती हैं और साथ ही मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाती हैं जिस कारण कुष्मांडा माता की पूजा की जाती है।

प्रश्न: कुष्मांडा को हिंदी में क्या कहते हैं?

उत्तर: कुष्मांडा को हिंदी में कुम्हड़ा कहा जाता है जिसे आज के समय में हम पेठे के फल के रूप में जानते हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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