जब राम दरबार में लव कुश रामायण कथा (Lav Kush Ramayan) का पाठ करते हैं तो उसे सुनने के लिए के अयोध्यावासियों का जमावड़ा लग जाता है। यह तब की बात है जब माता सीता को अकेले वनवास मिला था तथा श्रीराम के द्वारा उनका त्याग कर दिया गया था। उस समय माता सीता गर्भवती थी। माता सीता को महर्षि वाल्मीकि जी ने अपने आश्रम में शरण दी थी तथा वहीं उनके दो पुत्रों लव व कुश का जन्म हुआ था।
महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में माता सीता का असली नाम तथा उनका परिचय केवल वे ही जानते थे। आश्रम में किसी और को इस बात का नहीं पता था। स्वयं लव कुश को इस बात का पता उचित समय आने पर लगा था। लव कुश को अपने माता-पिता का असली ज्ञान होने के पश्चात गुरु वाल्मीकि ने उन्हें अयोध्या जाकर उनकी लिखी रामायण कथा (Love Kush Ki Ramayan) को संगीत के माध्यम से सुनाने को कहा था। आइए जाने उस अद्भुत प्रसंग के बारे में।
Lav Kush Ramayan | लव कुश रामायण कथा
अपने गुरु वाल्मीकि तथा माता सीता से आज्ञा लेकर लव कुश अयोध्या निकल पड़े जहाँ वे गली-गली में राम कथा को सुनाते। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई तथा अयोध्या की प्रजा में उनके द्वारा रामायण सुनने की होड़ मचने लगी। इस बात का समाचार अयोध्या के राजमहल में भी पहुँचा तथा श्रीराम ने उन्हें राज दरबार में आमंत्रित किया। श्रीराम ने लव कुश से मिलकर दोनों वनवासियों को प्रतिदिन राजदरबार में ही रामायण कथा सुनाने की आज्ञा दे दी।
इसके पश्चात प्रतिदिन लव कुश राम दरबार में आते जहाँ श्रीराम, अयोध्या राजपरिवार के सभी सदस्य, गुरु तथा प्रजावासी होते थे। लव कुश संगीत के माध्यम से रामायण कथा सबको सुनाते। चूँकि महर्षि वाल्मीकि जी ने भगवान ब्रह्मा तथा देवर्षि नारद मुनि के आदेश पर भगवान राम के जीवन की हर घटना को छंदबद्ध किया था इसलिए उसको सुनाने में कई दिन व्यतीत हो गए। लेकिन सभी अयोध्यावासी प्रतिदिन अपने राजा श्रीराम की कथा सुनने आते तथा आनंद लेते।
लव कुश ने सुनाई रामायण (Love Kush Ki Ramayan)
इसी प्रकार कई दिन बीत गए तथा लव कुश ने श्रीराम के जन्म से लेकर, महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में उनकी शिक्षा, ताड़का वध, सीता स्वयंवर, वनवास, सीता हरण, हनुमान मिलन, राम सेतु बनाना, रावण वध, अयोध्या पुनः आगमन तथा राज्याभिषेक की कथा सुना डाली। इसके पश्चात उन्होंने अयोध्या की प्रजा के द्वारा माता सीता के चरित्र पर कलंक लगाने तथा उनके वन जाने की घटना को भी संगीत के माध्यम से बताया।
अयोध्या की प्रजा तथा वहाँ उपस्थित सभी लोग केवल यहाँ तक की कथा ही जानते थे, उसके बाद माता सीता कहाँ गई तथा उन्होंने अभी तक अपना जीवन कैसे व्यतीत किया, इसके बारे में सभी अनभिज्ञ थे। इसलिए लव कुश ने माता सीता को वाल्मीकि जी के द्वारा आश्रय देना, एक महारानी होते हुए वनवासी की तरह जीवन व्यतीत करना, आश्रम में उनके दो पुत्रों का होना, अपने स्वाभिमान की रक्षा करना तथा अपने दोनों पुत्रों को पूरी शिक्षा दिलवाना इत्यादि का वर्णन किया।
अंत में उन्होंने स्वयं को श्रीराम तथा माता सीता के पुत्र बताते हुए रामायण समाप्त कर दी। लव व कुश के ही श्रीराम के पुत्र होने की बात सुनकर दरबार में सभी लोग अचंभित रह गए थे। लव कुश रामायण कथा (Lav Kush Ramayan) के बाद तुरंत राजसी आदेश पारित हुआ कि माता सीता व वाल्मीकि जी राजभवन पहुँचे।
लव कुश रामायण कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: लव कुश की शादी हुई थी क्या?
उत्तर: लव व कुश दोनों की शादी हुई थी और उसके बाद उनका वंश भी चला था। कहते हैं कि कुश की शादी कुमुदावती से हुई थी जिससे उन्हें अतिथि नाम के पुत्र प्राप्त हुए थे।
प्रश्न: लव कुश के 309 वंशज कौन है?
उत्तर: जयपुर राजघराने की महारानी पद्मिनी ने बताया है कि उनके परिवार के सदस्य कुश के आखिरी वंशज हैं। श्रीराम के बड़े पुत्र कुश थे। ऐसे में उनके 309 वंशज के रूप में जयपुर राजघराने को जाना जाता है।
प्रश्न: लव कुश वंश कब तक चला?
उत्तर: लव कुश वंश अभी तक चल रहा है। उनकी 309वीं पीढ़ी जयपुर राजघराने की मानी जाती है।
प्रश्न: राम ke आखिरी वंशज कौन थे?
उत्तर: श्रीराम के आखिरी वंशज के रूप में जयपुर राजघराने का नाम आता है। वहाँ की महारानी पद्मिनी और उनका परिवार श्रीराम के वंशज के रूप में जाने जाते हैं।
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